नीलम सिन्हा, पीएच.डी. शोधार्थी,
कृषि अर्थशास्त्र विभाग, IGKV रायपुर (छ.ग.)
बदलती कृषि दिशा में बागवानी का महत्व
छत्तीसगढ़, जिसे वर्षों से "धान का कटोरा" कहा जाता रहा है, अब धीरे-धीरे एक बहुआयामी कृषि राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन, गिरते बाज़ार भाव, उच्च लागत और बदलती उपभोक्ता मांग ने किसानों को वैकल्पिक खेती की दिशा में सोचने पर मजबूर किया है। ऐसे समय में बागवानी एक व्यवहारिक और लाभकारी विकल्प बनकर उभरी है। फल और सब्जियों की खेती अब सिर्फ पूरक खेती नहीं रही, बल्कि कई किसानों के लिए मुख्य आय का साधन बन चुकी है। कम समय में तैयार होने वाली फसलें, लगातार मांग, और तेज़ नकदी प्रवाह जैसे लाभों ने बागवानी को विशेष रूप से मध्यम और बड़े किसानों के लिए आकर्षक बना दिया है।
धान की सीमाएँ और बागवानी की ओर झुकाव
धान की परंपरागत खेती छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से होती है, लेकिन इससे जुड़ी कई आर्थिक सीमाएँ अब स्पष्ट हो चुकी हैं। धान एक श्रम-सघन और जल-सघन फसल है, जिसमें सिंचाई की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है, जबकि मंडियों में समर्थन मूल्य के अतिरिक्त कोई स्थिर लाभ नहीं मिल पाता। धान की कटाई के बाद खेत की तैयारी में समय अधिक लगता है, जिससे वार्षिक फसल विविधता पर भी असर पड़ता है। इसके अतिरिक्त, विपणन की निर्भरता सरकारी खरीद पर बनी रहती है, जिससे नकदी प्रवाह बाधित होता है। इन सभी कारणों से कई किसान अब बागवानी की ओर रुख कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में बागवानी की वर्तमान स्थिति
राज्य की जलवायु, मिट्टी की विविधता और सिंचाई संसाधनों की उपयुक्तता ने बागवानी फसलों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान किया है। रायपुर, दुर्ग, महासमुंद, बिलासपुर और जशपुर जैसे ज़िलों में बागवानी फसलों-जैसे टमाटर, लौकी, खीरा, अमरूद, केला, पपीता, फूलगोभी आदि—का रकबा और उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, यह वृद्धि केवल योजनाओं और आंकड़ों तक सीमित नहीं है। असली परिवर्तन ज़मीन पर वे किसान ला रहे हैं जो निजी संसाधनों और अनुभव से यह तय कर रहे हैं कि अब खेती को “मुनाफे के साथ मैनेजमेंट” की ज़रूरत है।
बागवानी के व्यावहारिक लाभ
बागवानी किसानों को अनेक प्रकार के व्यावहारिक लाभ देती है। यह खेती पारंपरिक फसलों के मुकाबले अधिक लचीली, बाजार अनुकूल और मुनाफे की दृष्टि से उपयुक्त साबित हो रही है। बागवानी फसलें 60–90 दिनों में तैयार हो जाती हैं और अलग-अलग सीज़न में उत्पादन के चलते वर्षभर नकदी प्रवाह बनाए रखती हैं। ड्रिप व स्प्रिंकलर पद्धति से पानी की बचत होती है और एक ही भूमि में सालभर में कई फसलें ली जा सकती हैं। सब्ज़ियाँ व फल रोज़मर्रा की आवश्यकता हैं, जिससे बाजार की स्थिर मांग रहती है और किसानों को व्यापारी व खुदरा विक्रेताओं से संपर्क करने और थोक बिक्री के लिए मंडियों तक पहुँच बनाने का अवसर मिलता है।
तेज़ आमदनी और विपणन की सरलता
बागवानी फसलों से किसानों को तेज़ आय मिलती है, जिससे नकदी प्रवाह बना रहता है। एक या दो एकड़ भूमि में भी वैज्ञानिक तरीके से अच्छा लाभ संभव होता है। किसान अपनी उपज को मंडी में थोक में बेचने के लिए नियमित रूप से पहुँच बनाते हैं, जिससे उन्हें बेहतर रिटर्न और मूल्य मिल पाता है। मल्चिंग, टपक सिंचाई जैसी तकनीकों से लागत कम और उत्पादन बेहतर होता है, जिससे लाभप्रदता और भी बढ़ जाती है।
बागवानी की चुनौतियाँ
हालांकि बागवनी लाभदायक है, फिर भी इसमें कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। अत्यधिक वर्षा, तेज़ धूप या पाला जैसी घटनाएं बागवनी फसलों को शीघ्र नुकसान पहुंचा सकती हैं। यदि किसी फसल का उत्पादन बहुत अधिक हो जाए, तो बाज़ार भाव गिर सकता है। अधिकांश बागवनी उत्पाद जल्दी खराब हो जाते हैं, जिसके लिए कोल्ड स्टोरेज जरूरी है, परंतु इसकी पहुंच सीमित है। इसके अलावा समय पर कटाई, छंटाई और पैकेजिंग हेतु श्रमिकों की आवश्यकता अधिक होती है, जिससे श्रम लागत बढ़ जाती है।
केस स्टडी I : श्री समीर चंद्राकर
पता: ग्राम परागांव, ब्लॉक आरंग, जिला रायपुर, छत्तीसगढ़
श्री समीर चंद्राकर जी से मेरी प्रत्यक्ष भेंट उनके खेत पर हुई। वे बी.ई. (इंजीनियरिंग स्नातक) हैं और तकनीकी शिक्षा प्राप्त होने के बावजूद उन्होंने खेती को व्यावसायिक अवसर के रूप में अपनाया है। वे लगभग 22 एकड़ भूमि में पूरी तरह से बागवानी आधारित खेती कर रहे हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि वे किसी भी सरकारी योजना या विभागीय सहायता के बिना पूर्ण आत्मनिर्भरता के साथ यह कार्य कर रहे हैं।
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श्री समीर चंद्राकर जी के खेत में मुलाकात |
उनकी खेती का मॉडल नवाचार, अनुशासन और व्यावसायिक सोच का उत्कृष्ट उदाहरण है। वे टमाटर, खीरा और अमरूद की फसलें उगाते हैं, जिन्हें वे फसल चक्र और मौसमी मांग के अनुसार विभाजित करते हैं, जिससे सालभर उत्पादन और नकदी प्रवाह बना रहता है।
तकनीकी नवाचार की बात करें तो:
- वे सफ़ेद रंग की 27 माइक्रॉन मोटाई वाली इनबिल्ट होल मल्चिंग शीट का प्रयोग करते हैं, जिससे तापमान नियंत्रण, नमी संरक्षण और खरपतवार प्रबंधन में मदद मिलती है।
- प्रत्येक एकड़ में वे 1 ट्रक FYM (गोबर खाद) का उपयोग करते हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक है।
- उन्होंने अपने खेत में उत्पादित अमरूद के फलों की गुणवत्ता और विपणन योग्य स्थिति को बनाए रखने हेतु स्वयं की डिज़ाइन की गई थर्माकोल की कस्टम कवरिंग थैलियों का निर्माण किया है।
विपणन दृष्टिकोण से, वे अपनी फसलों को रायपुर और भुवनेश्वर जैसे बाज़ारों में भेजते हैं, जिससे उन्हें बहिःराज्यीय व्यापार का लाभ और बेहतर कीमतें प्राप्त होती हैं। उनकी उपज की लगातार मांग बनी रहती है।
“खेती को जब आप तकनीक और समझ से करते हैं, तो यह किसी भी पेशे से कम नहीं लगती। बागवानी मेरे लिए सिर्फ खेती नहीं, मेरी उद्यमिता है।”
केस स्टडी II: श्री शेर सिंह ठाकुर जी
पता: ग्राम बासनी, ब्लॉक धमधा, जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़
शेर सिंह ठाकुर जी उन गिने-चुने किसानों में हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर बागवानी को अपनाया है और उसे एक सफल मॉडल के रूप में स्थापित किया है। वे कॉमर्स स्नातक (Commerce Graduate) हैं, लेकिन उनका झुकाव कृषि प्रबंधन और फसल योजना की ओर रहा है, जिसे उन्होंने पूरी दक्षता से ज़मीन पर उतारा। उनके पास लगभग 50 एकड़ भूमि है, जिसे वे मौसम और मांग के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से उपयोग करते हैं।
- टमाटर की खेती वे बड़े रकबे में करते हैं। वे चरणबद्ध बुवाई करते हैं जिससे पूरे सीजन में ताजा उपज उपलब्ध रहती है और बाजार में कीमत स्थिर बनी रहती है।
- लौकी और करेला की खेती भी वे बड़े पैमाने पर करते हैं। इन फसलों के लिए उन्होंने स्टैकिंग तकनीक अपनाई है जिससे पौधों को ऊर्ध्व दिशा में सहारा मिलता है और फल सतह पर सीधे संपर्क में आने से बचते हैं, जिससे गुणवत्ता बनी रहती है।
- ठाकुर जी 1600 मिमी चौड़ाई की मल्चिंग फिल्म का उपयोग करते हैं, जो नमी बनाए रखने, खरपतवार नियंत्रण और उत्पादन में वृद्धि में सहायक है।
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श्री शेर सिंह ठाकुर जी के खेत में मुलाकात |
शेर सिंह ठाकुर जी ने अपने अनुभव और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए बागवानी की फसल योजना तैयार की है। वे स्थानीय मंडियों और व्यापारियों से सीधे संपर्क में रहते हैं, जिससे उन्हें अपनी फसलों का उचित मूल्य और समय पर बिक्री सुनिश्चित होती है।
“50 एकड़ की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। हर खेत को उसकी फसल और ज़रूरत के हिसाब से चलाना पड़ता है,” वे गर्व से कहते हैं।
आर्थिक विश्लेषण और भविष्य की दिशा
कृषि अर्थशास्त्र की दृष्टि से बागवानी खेती छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए उच्च प्रति इकाई लाभ (High Return per Unit Input) का व्यावसायिक मॉडल बनती जा रही है। परंपरागत धान की तुलना में बागवानी फसलों में प्रति हेक्टेयर आमदनी कहीं अधिक है और उत्पादन चक्र भी तेज़ होता है। समीर चंद्राकर और शेर सिंह ठाकुर जैसे किसान न केवल उत्पादन बढ़ा रहे हैं, बल्कि उनका बाजार संबंध भी सीधा है, जिससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है और 'प्रति यूनिट नेट इनकम' अधिक होती है। बागवानी में श्रम उत्पादकता बेहतर है—एक ही श्रमिक अधिक मूल्य वाली उपज का उत्पादन करता है। साथ ही, मूल्य संवेदनशीलता (Price volatility) के आधार पर किसान कीमतों के उतार-चढ़ाव का बेहतर प्रबंधन कर पा रहे हैं। यह मॉडल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाते हुए राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था को विविध और समावेशी बना रहा है।
नीति सुझाव और निष्कर्ष
आगे की दिशा में बागवानी के लिए स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट्स की स्थापना, कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क का विस्तार, किसान समूहों द्वारा सामूहिक विपणन और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त डिजिटल मंडी प्लेटफार्म और मूल्य सूचना सेवा का विस्तार किसानों को अधिक सशक्त बना सकता है।
इन दो किसानों से मिलकर यह स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ में बागवानी अब विकल्प नहीं, बल्कि अर्थशास्त्र आधारित खेती का सशक्त मॉडल बन रही है। यदि तकनीक, निवेश और बाजार को समझकर उपयोग किया जाए, तो बागवानी किसान की आर्थिक सुरक्षा, स्थिरता और गरिमा की नींव बन सकती है। छत्तीसगढ़ की अगली हरित क्रांति, शायद धान से नहीं—बागवानी से लिखी जाएगी।
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