अंजली धृतलहरे, डाॅ. बी.एस. राजपूत, डाॅ. नूतन रामटेके, अतुल डांगे, डाॅ. मोहनिशा जंघेल, सुरभि जैन,
कृषि विज्ञान केन्द्र, राजनांदगांव

भारत में मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। जिसमें 24-26ः प्रोटीन,55-60ः कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3ःवसा होता है। दलहनी फसलो की जड़ो में इसकी जड़ों में स्थित ग्रंथियों में वातावरण से नाइट्रोजन को मृदा में स्थापित करने वाले सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। इस नाइट्रोजन का प्रयोग मूंग के बाद बोई जाने वाली फसल द्वारा किया जाता है।जिससे भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढती है। ग्रीष्म मूंग की खेती गेहूं, चना, सरसों, मटर, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, छतीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान प्रमुख ग्रीष्म मूंग उत्पादक राज्य है। गेहूं-धान फसल चक्र वाले क्षेत्रों में जायद मूंग की खेती द्वारा मिट्टी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। ग्रीष्म मूंग की खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी की सदुपयोग आदि के कई फायदे है।

जलवायु एवं भूमि
मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 30-40 °ब् तापमान अनुकूल पाया गया हैं। पकने के समय साफ मौसम तथा 60ः आर्दता होना चाहिये। पकाव के समय वर्षा हानिप्रद होती है।

भूमि की तैयारी
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं। दीमक से बचाव के लिये क्लोरपायरीफॉस 1.5: चूर्ण 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिये।

किस्में
आर एम जी-62, आर एम जी-268, आर एमजी-344,एस एम एल-668, हम-16, हम-12, एम. एच.-421, प्रज्ञा,पैरी मूंग, शिखा।

बीज दर व बीज उपचार
ग्रीष्मकालीन मूंग को कतार विधि से बुआई हेतु बीज की मात्रा 25- 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीजो को कार्बेन्डाजिम- केप्टान (1- 2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। तत्पश्चात इस उपचारित बीज को जैव उर्वरक राईजोबियम कल्चर एवं पी. एस. बी. कल्चर एवं अंत में जैविक फंफूदनाशक ट्रा्र्रइकोडर्मा 5-10 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोनी करें।

बीज की बुवाई
ग्रीष्मकालीन मूंग की स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाली बीज की बुवाई 15 मार्च से 15 अप्रैल तक कर देनी चाहिए तथा उपचारित बीजो की बुआई कतारों में करनी चाहिए कतारों से कतारों के बीच दूरी 30 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है।

खाद एवं उर्वरक
मूंग के लिए 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन तथा 40 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन एवं फास्पोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया एवं 30 किलो पोटाश प्रति हैक्टेयर के द्वारा बुवाई के समय देनी चाहिए मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिए खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिटटी की जाँच कर लेनी चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण
फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलिन(स्टोम्प) की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई हाथ से करनी चहिये या इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मी. ली . मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

सिंचाई एवं जल निकास
बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये।

पौध संरक्षण
दीमक-दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैस बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए बोने के समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए।

मोयला, सफेद मक्खी एवं हरा तेला
ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। इनकी रोकथाम के किये मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार दोबारा चिकाव किया जा सकता है।

पती बीटल
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूंनालफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए।

फली छेदक
फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए क्लोरट्रानिप्रोल 18.50 प्रतिशत एस.सी 100मि.ली/ हेक्टयर की दर से छिड़काव भुरकाव करनी चहिये।

रस चूसक कीड़े
मूंग की पतियों ,तनो एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैं। इन कीड़ों की रोकथाम हेतु एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मी.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।

चीती जीवाणु रोग
इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते है। इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्रामया स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

पीत शिरा मोजेक
इस रोग के लक्षण फसल की पतियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते है। फैले हुए पीले धब्बो के रूप में रोग दिखाई देता है। यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता हैै। इसके नियंत्रण हेतु ईमिडाक्लोप्रिड की 0.5 मि.ली. प्रति ली. पानी की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है।

तना झुलसा रोग
इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये।

पीलिया रोग
इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये।

सरकोस्पोरा पती धब्बा
इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां,जड़ें व अन्य भाग भी सुखने लगते हैं। इस के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की 1ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चहिये बीज को 3 ग्राम केप्टान या २ ग्राम कार्बेंडोजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाइये।

जीवाणु पती धब्बा, फफुंदी पती धब्बा और विषाणु रोग
इन रोगो की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम १ ग्राम , सरेप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान 25 ई .सी.की एक मिली.मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये।

कटाई एंव गहाई
मूंग की फसल क्रमशः 65-70दिन में पक जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में करें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। हॅंसिए से काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या बैंलो को चलाकर दाना अलग कर लेते है

उपज
ग्रीष्मकालीन मूंग की उत्पादन 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है भण्डारण के लिए बीजो को धूप में अच्छी से सुखाकर नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत भण्डारण योग्य है।

मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए आवश्यक बाते
  • स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
  • सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है।
  • किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
  • बीजोपचार अवश्य करें जिससे पौधों को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से बचाया जा सके।
  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी है।
  • ग्रीष्मकालीन मूंग को समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियो का समय पर नियंत्रण किया जा सके।