डॉ. विवेक कुमार सिंघल, वैज्ञानिक, 
मृदा विज्ञान विभाग, ईगाकृविवि रायपुर


प्रस्तावना:
प्राकृतिक खेती एक ऐसी खेती पद्धति है जो प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करते हुए मिट्टी की स्वास्थ्य बनाए रखने और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले रसायनों का उपयोग कम करने का उद्देश्य रखती है। यह एक प्राकृतिक, सामर्थ्यपूर्ण और सतत खेती पद्धति है जो भूमि की उपज बनाए रखने के साथ-साथ किसानों को भी धन, स्वास्थ्य, और पर्यावरण संरक्षण के लाभ प्रदान करती है।

प्राकृतिक खेती की महत्वपूर्णता:
प्राकृतिक खेती की महत्वपूर्णता कई पहलुओं में देखी जा सकती है। सबसे पहले, यह खेती पद्धति भूमि के स्वास्थ्य को बनाए रखती है और मिट्टी की उपज को सुधारती है। प्राकृतिक खेती में जैविक खाद, जैविक उपज, और स्थायी खेती प्रथाओं का उपयोग होता है, जो भूमि के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। दूसरे, यह खेती पद्धति पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले केमिकल्स का उपयोग कम करती है, जिससे जल, वायु, और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने से बचाती है।

नेचुरल फार्मिंग के मुख्य प्रथाएँ निम्नलिखित हैं:

1. जीरो-तिलेज या न्यूनतम खेती: भूमि में कम से कम खुरपी का प्रयोग करके खाद की कठोरता और भूमि की तथा कीट-पात की हानि को कम करने के लिए इस मुख्य प्रैक्टिस का अनुकुलन किया जाता है। यह भूमि की स्वास्थ्य और खेती की समृद्धि को बढ़ावा देता है।

2. पोषण की समृद्धि: प्राकृतिक खाद, जैसे कि जीवामृत, गोबर की खाद, हरी खाद, और नीम खाली, का प्रयोग किसानों द्वारा किया जाता है, जिससे भूमि को पोषण मिल सके और उसकी समृद्धि बढ़ सके।

3. जीवांश (बायो-फर्टिलाइजर): जीवांश, जैसे कि राइजोबियम और एजोटोबैक्टर, का इस्तेमाल वृक्षों और फसलों की पोषणात्मक आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया जाता है। इन जीवांशों का उपयोग फसलों की जड़ों में विशेष गुणवर्धक पदार्थों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।

4. जीवामृत: जीवामृत, खाद को और भूमि को पुनर्जन्म देते हैं और उत्तम तरीके से खेती को पोषण देते हैं। यह भूमि के जीवों को बढ़ावा देता है और उन्नत उत्पादन को बढ़ावा देता है।

5. खेती के समय बायोडाइवर्सिटी: खेती के समय अलग-अलग प्रकार के फसलों को फसलों की एक नई लाइन में बार-बार उगाकर किसानों द्वारा किया जाता है। इससे खेती का पोषणात्मक स्तर और भूमि की समृद्धि को बढ़ाया जा सकता है।

6. वनस्पति चयन: प्राकृतिक रूप से संचित बीजों का इस्तेमाल किसानों द्वारा किया जाता है, जिससे उन्हें केमिकल बीजों के नुकसान से बचाया जा सके और खेती की समृद्धि को बढ़ाया जा सके।

7. नदी-पावन एवं खाद के प्रक्रिया: खेती के लिए उपयुक्त जल और खाद की संरक्षण और समृद्धि के लिए प्राकृतिक उपायों का अनुकूलन किया जाता है, जिससे भूमि की उपयोगिता और भूमि की समृद्धि को बढ़ाया जा सके।

8. वृक्ष लगाए और उनकी संरक्षण: अग्रो-फारेस्ट्री का व्यावसायिक पद्धति द्वारा, किसानों द्वारा वृक्षों की फसल और मूल्यों को समृद्धि देने की कार्यवाही की जाती है, जिससे खेती के प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जा सकता है।

प्राकृतिक खेती के फायदे:

1. स्वस्थ मिट्टी: प्राकृतिक खेती में जैविक खादों का उपयोग होता है, जो मिट्टी को सुषम और पोषक बनाए रखते हैं। इससे मिट्टी की उपज बढ़ती है और किसानों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने में मदद मिलती है।

2. प्राकृतिक उत्पादन: प्राकृतिक खेती में जैविक उपज का उत्पादन होता है, जो आहार में अधिक पोषण और स्वास्थ्य के लाभ प्रदान करता है। यह भी बाजार में अधिक मूल्यवान उत्पादों का संचार करता है।

3. पर्यावरण संरक्षण: प्राकृतिक खेती नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करती है, जैसे कि जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन। यह भी जल संसाधनों का संरक्षण करती है और प्राकृतिक जैविक संसाधनों को पुनर्चक्रण करती है।

4. आर्थिक लाभ: प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में विकसित किसान अपने उत्पादों के लिए अधिक मूल्य प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और उनकी आय बढ़ती है।

निष्कर्ष:
प्राकृतिक खेती एक सतत, प्राकृतिक और समृद्ध खेती पद्धति है जो किसानों को उत्पादकता, स्वास्थ्य, और पर्यावरण संरक्षण के लाभ प्रदान करती है। इस पद्धति को अपनाने से किसान अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं, और पर्यावरण को भी संरक्षित रख सकते हैं। इसलिए, हमारे अगले कदम को प्राकृतिक खेती के प्रति अधिक समर्थ होना चाहिए, जिससे हम एक स्वस्थ, सुरक्षित और सतत खाद्य संसाधन का उत्पादन कर सकें।