डॉ. पी. मूवेंथन (वरिष्ठ वैज्ञानिक), डॉ. गुंजन झा (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र, राजनांदगांव),
डॉ. श्रावणी सान्याल (वैज्ञानिक), डॉ. निरंजन प्रसाद (वैज्ञानिक)
सुमन सिंह (सीनियर रिसर्च फेलो) एवं डॉ. हेमप्रकाश वर्मा (यंग प्रोफेशनल)
भा. कृ. अनु. प.- राष्ट्रीय जैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बरोंडा, रायपुर (छ. ग.)
परिचय
वर्तमान समय में, जब पारंपरिक कृषि के साथ-साथ वैकल्पिक कृषि प्रणालियों की आवश्यकता महसूस की जा रही है, मशरूम उत्पादन एक उभरता हुआ विकल्प बनकर सामने आया है। मशरूम, जिसे हिंदी में कुकुरमुत्ता कहा जाता है, न केवल पोषक तत्वों से भरपूर होता है, बल्कि यह कम जमीन, कम पानी और सीमित संसाधनों में भी उगाया जा सकता है। यह प्रोटीन, विटामिन, खनिज और औषधीय गुणों से भरपूर एक ऐसा खाद्य उत्पाद है, जिसकी मांग शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है। इसके उत्पादन से किसानों, महिलाओं, युवाओं और स्वरोजगार की तलाश कर रहे लोगों को न केवल आय का नया स्रोत मिल रहा है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी एक टिकाऊ और लाभकारी गतिविधि है। इस लेख में हम मशरूम की विशेषताओं, इसके प्रकार, उत्पादन तकनीक, लाभ एवं चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे, ताकि अधिक से अधिक लोग इस कृषि-आधारित उद्यम को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकें।
मशरूम की विशेषताएँ
मशरूम एक उच्च पोषणयुक्त खाद्य पदार्थ है, जिसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन (विशेष रूप से बी-कॉम्प्लेक्स), पोटैशियम, फॉस्फोरस और आयरन जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह वसा और कोलेस्ट्रॉल से रहित होता है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा, कुछ प्रजातियों जैसे गैनोडर्मा और शीताके मशरूम में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, मधुमेह और कैंसर जैसे बीमारियां से लड़ने में सहायक होते हैं। मशरूम उत्पादन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे सीमित संसाधनों, जैसे कृषि अपशिष्ट और कम जल की आवश्यकता में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसकी कई किस्में मात्र 20–30 दिनों में तैयार हो जाती हैं, जिससे कम समय में अच्छी आमदनी संभव है। इसके उत्पादन से महिलाओं, युवाओं और सीमांत किसानों को स्वरोजगार के नए अवसर मिलते हैं। इसके अलावा, यह पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि इसमें अपशिष्ट पदार्थों का पुनः उपयोग होता है और बचे हुए कंपोस्ट को जैविक खाद के रूप में खेतों में प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार, मशरूम उत्पादन पोषण, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण तीनों दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण गतिविधि है।
मशरूम के प्रमुख प्रकार
मशरूम की अनेक किस्में होती हैं, जिनमें से कुछ का व्यावसायिक उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है। प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
- बटन मशरूम (Button Mushroom – Agaricus bisporus)- यह भारत में सबसे अधिक उत्पादित और खपत की जाने वाली मशरूम प्रजाति है। इसे ठंडे मौसम में उगाया जाता है।
- ऑयस्टर मशरूम (Oyster Mushroom – Pleurotus spp.)- यह गर्म और नम वातावरण में उगाई जाती है। इसकी खेती सरल है और छोटे किसानों के लिए उपयुक्त है।
- शलाके मशरूम (Milky Mushroom – Calocybe indica)- यह मुख्यतः दक्षिण भारत में गर्म जलवायु में उगाई जाती है और उत्पादन की दृष्टि से लाभकारी है।
- शीताके मशरूम (Shiitake Mushroom – Lentinula edodes)- यह औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है और इसकी मांग वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है।
- गैनोडर्मा (Ganoderma – Ganoderma lucidum)- यह पूर्णतः औषधीय मशरूम है जिसका उपयोग आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है।
मशरूम उत्पादन तकनीक
मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया संबंधित प्रजाति के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन सामान्यतः इसकी खेती कुछ मुख्य चरणों में की जाती है। सबसे पहले गेहूं या धान के भूसे अथवा अन्य कृषि अपशिष्टों को अच्छी तरह गीला करके पाश्चराइज या उबालकर साफ किया जाता है, जिससे अवांछित सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाएं। इसके बाद इस तैयार सब्सट्रेट में मशरूम का बीज, जिसे स्पॉन कहा जाता है, मिलाया जाता है। यह मिश्रण फिर अंधेरे और नियंत्रित तापमान वाले कमरे में कुछ दिनों तक रखा जाता है, जिसे संवर्धन या इनक्यूबेशन चरण कहते हैं। इस दौरान मशरूम का कवक पूरी तरह फैल जाता है। इसके पश्चात थैलों या बिस्तरों को ऐसी जगह स्थानांतरित किया जाता है जहाँ उचित रोशनी, आर्द्रता और वेंटिलेशन की व्यवस्था हो – यह चरण 'फलन अवस्था' कहलाता है। कुछ ही दिनों में जब मशरूम पूरी तरह विकसित हो जाते हैं, तब उन्हें सावधानीपूर्वक काटा जाता है और ताज़ा उत्पाद को बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है। यह पूरी प्रक्रिया अगर वैज्ञानिक विधि से की जाए, तो कम समय में अच्छा उत्पादन और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
मशरूम उत्पादन के लाभ
मशरूम उत्पादन अनेक दृष्टिकोण से लाभकारी और प्रभावशाली है। यह पोषण का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन, विटामिन B समूह, आयरन, कैल्शियम एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके नियमित सेवन से कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सकता है। उत्पादन की दृष्टि से यह कम लागत में अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय है, जिसे सीमित संसाधन और स्थान में भी आसानी से किया जा सकता है। खासकर महिलाओं और युवाओं के लिए यह स्वरोजगार का सशक्त माध्यम बनकर उभर रहा है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी मशरूम उत्पादन फायदेमंद है क्योंकि इसमें कृषि अपशिष्टों का पुनः उपयोग होता है और उत्पादन के उपरांत बचा हुआ जैविक पदार्थ कंपोस्ट बनकर खेतों के लिए उपयोगी खाद का कार्य करता है। इसकी कई किस्में केवल तीन से चार सप्ताह में तैयार हो जाती हैं, जिससे कम समय में त्वरित आय प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार, मशरूम उत्पादन पोषण, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सशक्त कदम है।
मशरूम उत्पादन में प्रमुख चुनौतियाँ
हालांकि मशरूम उत्पादन एक लाभकारी उद्यम है, लेकिन इसके समक्ष कई व्यावहारिक चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। सबसे बड़ी समस्या तकनीकी ज्ञान की कमी है, क्योंकि अनेक क्षेत्रों में किसानों को वैज्ञानिक विधियों, तापमान नियंत्रण, नमी प्रबंधन एवं रोग रोकथाम संबंधी पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त, बाजार की अस्थिरता भी एक प्रमुख चुनौती है; अक्सर किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता और संगठित विपणन व्यवस्था का अभाव लाभ को सीमित कर देता है। मशरूम का स्वभाव तेजी से खराब होने वाला होता है, इसलिए इसके भंडारण और परिवहन के लिए शीत भंडारण जैसी सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो छोटे किसानों के लिए सुलभ नहीं होती। वित्तीय सहायता की बात करें तो ऋण और सब्सिडी तक सीमित पहुंच, संसाधनहीन किसानों को इस व्यवसाय से जुड़ने में बाधित करती है। इसके अतिरिक्त, उत्पादन के दौरान फफूंदी, बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों के कारण रोग और संक्रमण की संभावना भी बनी रहती है, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता और मात्रा दोनों प्रभावित हो सकते हैं। इन चुनौतियों के समाधान हेतु प्रशिक्षण, सहयोग और सरकारी समर्थन अत्यंत आवश्यक है।
स्पॉन बनाने की तकनीक
स्पॉन उत्पादन एक वैज्ञानिक और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे सावधानीपूर्वक नियंत्रित वातावरण में किया जाता है। सबसे पहले बीज सामग्री (Substrate) जैसे साफ गेहूं या जौ के दानों का चयन किया जाता है। इन दानों को 12 से 16 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है, ताकि वे पूरी तरह फूल जाएं। इसके बाद दानों को उबालकर या भाप में 30 मिनट तक पकाया जाता है, जिससे उनमें मौजूद रोगजनक सूक्ष्मजीव मर जाएं। फिर इन्हें छाया में सुखाया जाता है ताकि नमी संतुलित बनी रहे। अब इन दानों में 2% कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) और 0.5% जिप्सम (Gypsum) मिलाया जाता है, जिससे पीएच संतुलन बना रहे और दाने चिपके नहीं। इसके बाद मिश्रण को बॉटलों या पॉलीप्रोपाइलीन बैग्स में भरकर अच्छी तरह बंद किया जाता है। फिर इन्हें ऑटोक्लेव या प्रेशर कुकर में 15 पाउंड दबाव पर 1 घंटे तक कीटाणुरहित किया जाता है। जब सामग्री ठंडी हो जाए, तो उसे लेमिनर फ्लो चैम्बर या अल्ट्रा साफ जगह में ले जाकर उसमें शुद्ध कल्चर (Pure Culture) मिलाया जाता है, जिसे इनोक्यूलेशन (Inoculation) कहते हैं। इसके बाद बॉटलों या बैग्स को 25°C से 28°C तापमान वाले इनक्यूबेटर या कमरे में रखा जाता है। लगभग 10–15 दिनों में पूरा दाना कवक से ढंक जाता है और तब यह स्पॉन के रूप में उपयोग के लिए तैयार होता है।
स्पॉन उत्पादन में सावधानियाँ
स्पॉन उत्पादन एक अत्यंत संवेदनशील और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें पूर्ण स्वच्छता और सतर्कता की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, कार्य स्थल को पूरी तरह कीटाणुरहित बनाए रखना अनिवार्य होता है, ताकि किसी भी प्रकार के अवांछित सूक्ष्मजीव बीज को संक्रमित न कर सकें। इसके साथ ही, स्पॉन तैयार करने में प्रयुक्त सभी औजार, बर्तन और अन्य सामग्री को भी उपयोग से पूर्व अच्छी तरह से कीटाणुरहित करना चाहिए। उच्च गुणवत्ता और रोगमुक्त बीज कल्चर का चयन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि बीज की गुणवत्ता ही आगे चलकर उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को प्रभावित करती है। चूँकि यह कार्य वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होता है, अतः इसे प्रशिक्षित और अनुभव प्राप्त व्यक्ति द्वारा ही करना चाहिए, ताकि स्पॉन की शुद्धता और उत्पादकता सुनिश्चित हो सके।
नम्रता घई – एक सफल एकीकृत मशरूम फार्मिंग और वैल्यू एडिशन की मिसाल
नम्रता घई, छत्तीसगढ़ के तंदवा, नया रायपुर की एक योग्य और दूरदर्शी कृषि उद्यमी हैं। एम. एस. सी. (रसायन विज्ञान) की डिग्री प्राप्त करने के बाद, वे सरकारी गर्ल्स कॉलेज, रायपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थीं। लेकिन उनकी खेती के प्रति लगन और कृषि में कुछ नया करने की चाह ने उन्हें 1994-95 में मशरूम फार्मिंग के क्षेत्र में कदम रखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने CMCAT, भोपाल से उद्यमिता का प्रशिक्षण प्राप्त किया और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (रायपुर), मशरूम अनुसंधान निदेशालय (सोलन), हरियाणा एग्रीकल्चरल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन, तथा रोज नर्सरी (भोपाल) जैसी प्रतिष्ठित संस्थानों से मशरूम उत्पादन की वैज्ञानिक प्रशिक्षण ली। शुरुआत में मात्र 100 मशरूम बैग के साथ 10x10 फीट क्षेत्र में काम शुरू किया था, जिसमें पहली बार ₹3,000 की कमाई हुई। आज नम्रता जी का एक एकड़ में फैला इंटीग्रेटेड मशरूम फार्म है, जो प्रति वर्ष 50,000 बैग मशरूम उत्पादन करता है और ₹1 करोड़ का वार्षिक कारोबार करता है। उन्होंने अपने फार्मिंग मॉडल में स्पॉन उत्पादन, प्रोसेसिंग जैसे मशरूम के अचार, सूखे मशरूम, मशरूम पाउडर और मशरूम बड़ी जैसे उत्पाद शामिल किए हैं, जिससे उनका व्यवसाय और भी व्यापक और लाभकारी हुआ है। सरकारी नौकरी में ₹18,000 मासिक वेतन से लेकर अब ₹1 करोड़ के कारोबार तक पहुँचने का उनका सफर प्रेरणादायक है। नम्रता जी न केवल अपनी सफलता से कई ग्रामीण महिलाओं और युवाओं को प्रेरित कर रही हैं, बल्कि वे प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से भी दूसरों को सक्षम बनाने का काम कर रही हैं। उनका यह मॉडल विज्ञान, नवाचार और आत्मनिर्भरता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे अपनाकर और भी किसान अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं।
पुरस्कार:
- महिला उद्यमी ऑफ द ईयर (2018-19)
- इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा प्रशंसा पत्र
- ASPEE द्वारा महिला किसान पुरस्कार
नम्रता घई की कहानी साबित करती है कि सही शिक्षा, समर्पण और नवाचार के साथ कृषि क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है।
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