सुरेश कुमार वाकरे (पी.एच.डी. रिसर्च स्कालर),
सब्जि विज्ञान विभाग, उद्यानिकी महाविद्यालय सांकरा (छ.ग.)
नरोत्तम अत्री ( पी.एच.डी. रिसर्च स्कालर),कृषि अर्थशास्त्र विभाग, कृषि महाविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
डाॅ. देवेन्द्र कुर्रे (सहायक प्रध्यापक) लिंगो मुढ़ियाल कृषि महाविद्यालय नारायणपुर (छ.ग.)
डाॅ. अमित कुमार पैंकरा (अतिथि शिक्षक), उद्यानिकी महाविद्यालय महाविद्यालय एवं अनुशन्धान केन्द्र कुनहारावनद जगदलपुर (छ.ग.)
1. परिचय
मिश्री कंद (Pachyrhizus Erosus) जिसे अंग्रेजी में याम बीन (Yam Bean) या जिकामा (Jicama) भी कहा जाता है, एक कंदयुक्त पौधा है जो अपने मीठे और कुरकुरे भूमिगत कंदों के लिए जाना जाता है। यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जाता है। इसमें उच्च जल मात्रा, फाइबर, और पोषक तत्व होते हैं जो इसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बनाते हैं। इस लेख में मिश्री कंद की उन्नत उत्पादन तकनीक पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
2. जलवायु एवं मृदा
मिश्री कंद की अच्छी वृद्धि के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सर्वोत्तम होती है। इसके विकास के लिए 20-30 °C तापमान आदर्श माना जाता है। यह उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है, लेकिन जल निकासी वाली भूमि उपयुक्त होती है।
मृदा के संदर्भ में, यह हल्की दोमट मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थों की अधिकता हो, सबसे अनुकूल होती है। मिट्टी का pH 5.5-7.5 के बीच होना चाहिए। भारी या जलभराव वाली मिट्टी इसकी जड़ों के सड़ने का कारण बन सकती है।
3. उन्नत प्रजातियाँ
मिश्री कंद की कई प्रजातियाँ उगाई जाती हैं, जिनमें मुख्यतः
’’राजेंद्र मिश्री कंद-1 और राजेंद्र मिश्री कंद-2’’ दो उन्नत प्रजातियाँ हैं, जिन्हें बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर (राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर) द्वारा विकसित किया गया है। ये प्रजातियाँ अधिक उपज, बेहतर गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती हैं।
1. “राजेंद्र मिश्री कंद-1’’
मुख्य विशेषताएँः
- यह प्रजाति अधिक उपज देने वाली और जल्दी पकने वाली है।
- कंद सफेद, मध्यम आकार के और मीठे होते हैं।
- इसमें उच्च जल और फाइबर की मात्रा होती है, जिससे यह ताजा खपत और प्रसंस्करण दोनों के लिए उपयुक्त है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, विशेषकर जड़ सड़न और पर्ण चित्ती रोग के प्रति।
2. राजेंद्र मिश्री कंद-2
मुख्य विशेषताएँः
- यह प्रजाति अधिक बड़े आकार के कंदों के लिए जानी जाती है।
- कंद अधिक मीठे और कुरकुरे होते हैं, जिससे यह बाजार में अधिक पसंद की जाती है।
- यह जैविक खेती और कम इनपुट वाली कृषि प्रणालियों के लिए उपयुक्त है।
- इसमें कीट और रोगों के प्रति सहनशीलता अधिक पाई जाती है।
उपजः
- दोनों प्रजातियाँ उन्नत कृषि तकनीकों के साथ ’’30-40 टन/हेक्टेयर’’ तक उपज दे सकती हैं।
- ये दोनों प्रजातियाँ किसानों के लिए लाभकारी हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ मिट्टी और जलवायु मिश्री कंद की खेती के लिए अनुकूल होती है।
4. भूमि तैयारी
भूमि को 2-3 बार अच्छी तरह जुताई करके भुरभुरी बना लेना चाहिए। खेत को समतल करके कार्बनिक खाद (गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट) मिलाया जाता है। 15-20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए।
बुवाई से पहले मिट्टी को जीवाणु संक्रमण से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा या जैविक फफूंदनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
5. बीज उपचार एवं बुवाई
मिश्री कंद की बुवाई के लिए स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का चयन करना आवश्यक है। बीजों को बुवाई से पहले राइजोबियम बैक्टीरिया और पीएसबी (Phosphate Solubilizing Bacteria) से उपचारित किया जाता है जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
बुवाई का समयः
- उत्तरी भारत में फरवरी-मार्च
- दक्षिणी भारत में जुलाई-अगस्त
बुवाई की विधिः
- कतार से कतार की दूरीः 50-60 सेमी
- पौध से पौध की दूरीः 25-30 सेमी
- बीज की गहराईः 3-5 सेमी
- बीज दरः 8-10 किग्रा/हेक्टेयर
6. उर्वरक प्रबंधन
मिश्री कंद की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए संतुलित पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। सामान्यतः उर्वरक अनुसूची निम्न प्रकार होती हैः
- नाइट्रोजन (N): 50-60 किग्रा/हेक्टेयर
- फास्फोरस (P2O5): 40-50 किग्रा/हेक्टेयर
- पोटाश (K2O): 80-100 किग्रा/हेक्टेयर
- जैविक खेती के लिए नीमखली, कंपोस्ट और हरी खाद का उपयोग भी किया जा सकता है।
7. जल प्रबंधन
- मिश्री कंद की खेती के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक है।
- अंकुरण से 30 दिन तक 4-5 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।
- फूल आने और कंद बनने की अवस्था में पानी की पर्याप्त मात्रा आवश्यक होती है।
- कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई रोक देनी चाहिए ताकि कंदों की गुणवत्ता बनी रहे।
8. खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार की समस्या को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैंः
- निराई-गुड़ाईः 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें।
- मल्चिंगः जैविक मल्चिंग (फसल अवशेष या पत्तियाँ) से खरपतवार कम होते हैं।
- रासायनिक नियंत्रणः पेंडीमेथालिन (1 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग किया जा सकता है।
9. कीट एवं रोग प्रबंधन
प्रमुख कीटः
- एफिड्स (Aphids) नीम तेल छिड़काव (5%) से नियंत्रण।
- सफेद मक्खी (Whitefly) इमिडाक्लोप्रिड (0-0.3%) का छिड़काव।
- तना छेदक (Stem Borer) बैवेरिया बेसियाना जैविक कीटनाशक का प्रयोग।
प्रमुख रोगः
- जड़ सड़न (Root Rot): ट्राइकोडर्मा विरिडी का प्रयोग
- पर्ण चित्ती रोग (Leaf Spot): कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम/लीटर)
- विल्ट रोगः बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित करें।
10. फसल कटाई एवं उपज
मिश्री कंद की फसल 120-150 दिनों में तैयार हो जाती है। कटाई के लिए जब पत्तियाँ पीली पड़ने लगें और पौधा सूखने लगे, तब कंदों को सावधानीपूर्वक खोदकर निकाला जाता है।
उपजः
- सामान्य उपजः 25-30 टन/हेक्टेयर
- उन्नत तकनीकों द्वारा उपजः 35-40 टन/हेक्टेयर
ताजे कंदों को ठंडी और हवादार जगह पर संग्रहित किया जाता है। इसे बाजार में ताजा या प्रसंस्करित रूप में बेचा जा सकता है। मिश्री कंद की अच्छी मांग होती है, विशेष रूप से औषधीय और आहार उद्योगों में।
12. निष्कर्ष
मिश्री कंद की खेती एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकती है यदि उचित उन्नत तकनीकों को अपनाया जाए। सही जलवायु, मिट्टी, उर्वरक, सिंचाई एवं कीट-रोग प्रबंधन का ध्यान रखकर इसकी उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों और बढ़ती बाजार मांग को देखते हुए किसान इससे अच्छी आमदनी कमा सकते हैं।
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