डॉ. पी. मूवेंथन, वरिष्ठ वैज्ञानिक
डॉ. श्रावणी सान्याल, वैज्ञानिक
डॉ. हेमप्रकाश वर्मा, यंग प्रोफेशनल
सुमन सिंह, सीनियर रिसर्च फेलो
भा. कृ. अनु. प.-राष्ट्रीय जैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बरोंडा, रायपुर (छ.ग.)
ड्रैगन फ्रूट, जिसे पिताया या सुपर फ्रूट के नाम से भी जाना जाता है, यह एक उष्णकटिबंधीय फल है जो मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया, मैक्सिको, मध्य और दक्षिण अमेरिका में उगाया जाता है। यह फल हायलोसेरियस प्रजाति के कैक्टस पौधों से प्राप्त होता है। इसका नाम इसके विशेष रूप से अद्वितीय दिखने के कारण रखा गया है, जो एक ड्रैगन की त्वचा की तरह दिखता है। ड्रैगन फ्रूट का छिलका गहरे गुलाबी या पीले रंग का होता है, और अंदर का गूदा सफेद या लाल रंग का होता है, जिसमें छोटे, काले बीज होते हैं। यह फल न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसमें कई पौष्टिक गुण भी होते हैं। इसमें उच्च मात्रा में विटामिन सी, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। ड्रैगन फ्रूट का सेवन ताजे फल के रूप में किया जा सकता है, साथ ही इसे स्मूदी, सलाद और अन्य व्यंजनों में भी शामिल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ड्रैगन फ्रूट की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प बनती जा रही है, क्योंकि इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, खासकर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के मध्य।
भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है, क्योंकि यह कम पानी में भी अच्छी उपज देता है और इसकी मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है। ड्रैगन फ्रूट अपने पोषण, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के कारण वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हो रहा है। ड्रैगन फ्रूट हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, पाचन को सुधारता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। इसके अलावा, यह त्वचा को जवां बनाए रखने में मदद करता है। आर्थिक दृष्टि से, ड्रैगन फ्रूट की खेती एक लाभकारी व्यवसाय बन रही है, क्योंकि इसकी मांग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बढ़ रही है। पर्यावरण के लिए भी यह फसल महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है इसे शुष्क क्षेत्रों में भी अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। साथ ही, यह जैव विविधता को भी समर्थन देता है। इस प्रकार, ड्रैगन फ्रूट अपने पोषण, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के कारण स्थायी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण फसल बन गया है।
ड्रैगन फ्रूट को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैय एक सफेद गूदे वाला और दूसरा लाल/ गुलाबी गूदे वाला। इस फल की न्यूट्रास्युटिकल गुणों के लिए अत्यधिक मान्यता है। यह कैलोरी में कम और फिनोलिक्स, फ्लेवोनोइड्स और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता से भरपूर होता है। फल हल्का अम्लीय होता है और इसका टिट्रेटेबल एसिडिटी 0.20 से 0.30 मिलीग्राम लैक्टिक एसिड समतुल्य होती है। ड्रैगन फ्रूट विटामिन सी के समृद्ध स्रोतों में से एक है, और इसमें विटामिन सी की मात्रा 4 से 10 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम के मध्य होती है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी एकदम उपयुक्त है, जिसके फल स्वरुप विभिन्न जिलों जैसे बस्तर, कोंडागांव, राजनांदगाव, रायपुर एवं रायगढ़ में किसान अच्छे उत्पादन के साथ सफलतापूर्वक खेती कर रहें हैं तथा आस पास के राज्यों में निर्यात भी कर रहे हैं आने वाले समय में अन्य जिलों में भी इसकी खेती होने की अपार संभावनाएं हैं।
मिट्टी और जलवायु
ड्रैगन फ्रूट विभिन्न प्रकार की मिट्टियों, जैसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक, पर उगाया जा सकता है। हालांकि, बलुई मिट्टी जिसमें अच्छा जैविक पदार्थ और आंतरिक जल निकासी हो, इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए 5.5 से 7 के बीच की मिट्टी का पीएच सबसे अच्छा होता है। इस फसल के लिए 65 से 80 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच का तापमान आदर्श होता है। ड्रैगन फ्रूट एक कैक्टस है, और 32 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे का तापमान इसके लिए समय के साथ हानिकारक हो सकता है।
भूमि की तैयारी
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए भूमि को तब तक जोता जाना चाहिए जब तक मिट्टी बारीक हो जाए और खरपतवार मुक्त हो जाए। भूमिक्षेत्र की तैयारी के हिस्से के रूप में, किसी भी जैविक खाद को उचित अनुपात में मिलाया जा सकता है।
प्रवर्धन तकनीक
ड्रैगन फ्रूट में सबसे सामान्य प्रवर्धन विधि कटिंग द्वारा होती है। लगभग 20 सेंटीमीटर लंबी कटिंग का उपयोग खेत में रोपण के लिए किया जाता है। इन कटिंग्स को लगाने से दो दिन पहले जमा कर लेना चाहिए। हालांकि, इसे बीज द्वारा भी उगाया जा सकता है, लेकिन यह व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
रोपण तकनीक
ड्रैगन फ्रूट को बीज एवं कटिंग दोनों विधि से उगाया जाता हैं पौधे की उचित वृद्धि और विकास के लिए इसे कंक्रीट या लकड़ी के खंभों द्वारा सहारा देना चाहिए। जैसे-जैसे पौधा परिपक्व होता है, इसकी शाखाओं से हवाई जड़ें निकलती हैं, इसलिए संतुलित ड्रैगन झाड़ी को बनाए रखने के लिए गोलध्वृत्ताकार धातु फ्रेम लगाया जाता हैं जिसमें कम से कम 8 फीट का अंतराल होना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
ड्रैगन फ्रूट के पौधों को अन्य पौधों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार रोपण, फूल आने एवं फल विकास के समय तथा गर्म व शुष्क मौसम में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए ड्रिप सिंचाई पद्धति सर्वोत्तम होती हैं जिसमे पानी एवं पैसों की बचत होती हैं।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
अच्छी तरह से सड़ी हुई 10 से 14 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट, 250 ग्राम नीम की खली, 35-40 ग्राम फोरेट प्रत्येक गड्ढे में अच्छी तरह मिला देने से पौधों में मृदाजनित रोग एवं कीट का प्रकोप कम हो जाता हैं। उर्वरक जैसे, यूरिया (50 ग्राम), सिंगल सुपर फॉस्फेट (50 ग्राम) तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश (100 ग्राम) का मिश्रण बनाकर पौधों को फूल आने से पहले अप्रैल में फल विकास अवस्था तथा जुलाई-अगस्त और फल तुड़ाई के बाद दिसबंर में देने से पैदावार अच्छी प्राप्त होती हैं ।
कीट एवं व्याधि प्रबंधन
ड्रैगन फ्रूट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है। फिर भी प्रायः एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप देखा गया है। एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव एवं थ्रिप्स के लिए एसीफेट दवा का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव किया जाता हैं।
उपज एवं आय
ड्रैगन फ्रूट रोपण के बाद पहले वर्ष में आर्थिक उत्पादन के साथ तेजी से लाभ प्रदान करता है और 3-4 वर्षों में पूर्ण उत्पादन प्राप्त होता है। फसल की जीवन प्रत्याशा लगभग 20 वर्ष तक है। प्रति पिलर जिसमें लगभग 3-4 पौधे होते हैं जिससे वार्षिक उपज का औसत लगभग 15 किलोग्राम होता है। प्रति फलों का वजन 300 से 500 ग्राम तक होता है। रोपण के 2 वर्ष बाद औसत आर्थिक उपज लगभग 10 टन प्रति एकड़ होता है। स्थानीय बाजार में 100 रुपये प्रति किलोग्राम रेट मिल जाता हैं, इस प्रकार प्रति वर्ष आय लगभग 10,00,000 रुपये तक हो जाता है तथा लाभ लागत का अनुपात 2.50 से 2.58 तक होता हैं।
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