जतीन कुमार, प्रक्षेत्र सहायक, आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग,
हर्षवर्धन ठाकुर, पी.एचडी. रिसर्च स्कॉलर, पादप रोग विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
शहद की प्राप्ति के लिए मधुमक्खियाँ पाली जातीं हैं। यह एक कृषि उद्योग है। मधुमक्खियां फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं और उन्हें छत्तों में जमा करती हैं। जंगलों से मधु एकत्र करने की परंपरा लंबे समय से लुप्त हो रही है। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में स्थापित हो चला है। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। मधुमक्खी कीट वर्ग का सामाजिक प्राणी है जो खुद के बनाए हुए मोम के छत्ते में संघ बनाकर रहता है, जिसमें एक रानी कई सौ नर एवं शेष श्रमिक होते हैं। एक छत्ते में इनकी संख्या लगभग 20 हजार से 50 हजार तक होती है। इनके छत्ते से प्राप्त शहद बहुत पौष्टिक होता है। छत्तीसगढ़ में मधुमक्खी पालन अनुसंधान ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान शुरू किया गया था, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के लिए मधुमक्खियों और परागणकों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना को मंजूरी दी गई थी। 1 अप्रैल 2009 से अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना, मधुमक्खियां एवं परागणकर्ता, रायपुर ने कीट विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय, आईजीकेवी, रायपुर (छत्तीसगढ़) में कार्य करना शुरू किया। उसके बाद इस परियोजना को 20 अक्टूबर 2014 को आईजीकेवी, रायपुर के उप स्टेशन, राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) में स्थानांतरित कर दिया गया। इस परियोजना का उद्देश्य मधुमक्खियां एवं परागणकर्ताओं पर अनुसंधान करना, रोगों, कीटों एवं उनके प्रबंधन पर स्थान विशेष अनुसंधान करना, विभिन्न कीट परागणकर्ताओं की सापेक्ष प्रचुरता पर अनुसंधान का डाटा बेस तैयार करना, राज्य में उपलब्ध विभिन्न मधुमक्खी वनस्पतियों (मधुमक्खी का रस, पराग अथवा दोनों) का अध्ययन करना तथा किसानों एवं मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खियां एवं परागणकर्ताओं पर प्रशिक्षण प्रदान करना था। 2024 में, भारतीय मधुमक्खी पालन बाजार का मूल्य 28,394.4 मिलियन रुपये था। बाजार रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय मधुमक्खी पालन उत्पादन 2025 तक लगभग 68,183 मिलियन रुपये के बाजार मूल्य तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2025-2033 की अवधि के दौरान 9.71 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि दर (सीएजीआर) को दर्शाता है। यह भारत के भीतर शहद उत्पादन और संबंधित मधुमक्खी पालन उत्पादों में पर्याप्त वृद्धि का संकेत देता है।
मधुमक्खी पालन के लिए योजनाएं:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत मधुमक्खी पालन के लिए आवेदन किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (एनबीएचएम) की मदद से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- नाबार्ड (NABARD) और राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (NBB) की मदद से मधुमक्खी पालन के लिए फ़ाइनेंसिंग स्कीम भी चलाई जा रही हैं।
- केंद्र सरकार मधुमक्खी पालन पर 80 से 85 प्रतिशत तक की सब्सिडी देती है।
90 फीसदी तक सब्सिडी देती है सरकार:
कृषि और कल्याण मंत्रालय के तहत मधुमक्खी पालन विकास नाम की योजना भी चलाई जाती है। इस योजना का उद्देश्य मधुमक्खी पालन के क्षेत्र को विकसित करना, प्रोडक्टिविटी बढ़ाना, प्रशिक्षण करना और जागरूकता फैलाना है। बता दें कि मधुमक्खी पालन से शहद और मोम के अलावा बीजवैक्स, रॉयल जेली, प्रोपोलिस या मधुमक्खी गोंद, मधुमक्खी पराग जैसे प्रोडेक्ट बनाने में मदद मिलता है। इन सभी प्रोडेक्ट की मार्केट में काफी डिमांड हैं।
50 हजार से कर सकते हैं शुरुआत:
आप अगर चाहें तो 10 बॉक्स लेकर भी मधुमक्खी पालन कर सकते हैं अगर 40 किलोग्राम प्रति बॉक्स शहद मिले तो कुल शहद 400 किलो मिलेगी। 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 400 किलो बेचने पर 1.40 लाख रुपये की कमाई होगी। अगर प्रति बॉक्स खर्च 3500 रुपये आता है तो कुल खर्च 35,000 रुपये होगा और शुद्ध लाभ 1,05,000 रुपये होगा। यह बिजनेस हर साल मधुमक्खियों की संख्या के बढ़ने के साथ 3 गुना अधिक बढ़ जाता है। यानी 10 बॉक्स से शुरू किया गया बिजनेस एक साल में 25 से 30 बॉक्स हो सकता है और आप आसानी से करोड़पति बन सकते हैं।
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में मधुमक्खी पालन से महिलाएं सशक्त हो रही हैं:
बागवानी मिशन के तहत, राज्य के बागवानी विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन की प्रक्रिया में सहायता के लिए महिलाओं को शहद निकालने की मशीनें प्रदान की गई हैं। इससे इस प्रक्रिया में शामिल महिलाओं की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। पहली फसल से 600-700 किलोग्राम शहद निकालने की संभावना रखते हैं। राज्य के बागवानी विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत बलरामपुर के जाबर ग्राम पंचायत में संचालित 'आदर्श गोठान' से जुड़ी रोशनी महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की सदस्यों को रोजगार के अवसर बढ़ाने के प्रयास में मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने अंबिकापुर में बनेगा केंद्र, रायपुर में होगी जांच:
कृषि विज्ञानियों की मदद से राज्य में मधुमक्खी पालन के लिए किसानों का रुझान बढ़ाया जाएगा। इसके लिए पहली बार केंद्र सरकार के सहयोग से इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने प्रदेश के अंबिकापुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में पहला समन्वित मधुमक्खी पालन केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। यहां कृषि विज्ञानी मधुमक्खी पालन करने के लिए नई तकनीक पर अनुसंधान करेंगे। आसपास के किसानों 'को प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके साथ ही विश्वविद्यालय परिसर रायपुर में शहद की जांच के लिए लैब स्थापित होगी। एक छोटी लैब अंबिकापुर में भी स्थापित होगी। यहां कोई भी किसान शहद की जांच करा सकेंगे।
कबीरधाम जिले में 100 पेटियों में शुरू किया गया मधुमक्खी पालन:
कबीरधाम जिले में अब वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन किया जा रहा है। राजनांदगांव स्थित भोरमदेव आजीविका परिसर में 4 महिला समूहों ने 100 पेटियों में मधुमक्खी पालन की नई शुरुआत की है। विशेषज्ञों की मानें तो प्रत्येक पेटी में हर महीने 5 किलो तक शहद उत्पादन होगा। हर महीने प्रति पेटी शहद बेचकर महिलाएं 2500 रुपए तक कमाएंगी। मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन के व्यवसाय से ग्रामीण महिलाएं स्वावलंबी बनेंगी। कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से आजीविका संवर्धन की गतिविधियों के तहत राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत मधुमक्खी पालन शुरू किया गया है। चार महिला स्व-सहायता समूह को मधुमक्खी पालन से जोड़ा गया है।
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