डॉ. सुमन रावटे, डॉ. कुन्तल साटकर एवं विभा चंद्राकर
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, फिंगेश्वर, गरियाबंद, इ.गाँ.कृ.वि.वि. रायपुर (छ.ग.)

रामतिल, जिसे सामान्यत: नाइजर या ब्लैक सीड के नाम से भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में उगाई जाती है। यह मुख्य रूप से अपने बीजों के लिए उगाई जाती है, जिनमें तेल की उच्च मात्रा होती है। रामतिल की फसल सूखा सहनशील और कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से उगती है, जिससे यह शुष्क भूमि कृषि के लिए एक आदर्श फसल बन जाती है। अफ्रीका और एशिया में सदियों से इसकी खेती की जा रही है, और इसके कृषि, औषधीय और आर्थिक लाभों के कारण इसकी लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है।

छत्तीसगढ़ में रामतिल की खेती: 
छत्तीसगढ़ अपनी विविध जलवायु और सतत कृषि प्रथाओं के लिए प्रसिद्ध है, जो रामतिल की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है। रामतिल एक कठोर फसल है जो वर्षा आधारित क्षेत्रों में अच्छी उगती है और उन क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है, जहां अन्य फसलें संघर्ष करती हैं।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ: 
रामतिल एक उष्णकटिबंधीय फसल है जो गर्म तापमान को पसंद करती है और यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उग सकती है। छत्तीसगढ़ में यह फसल उन क्षेत्रों में अच्छी उगती है जहां 600 से 1,200 मिमी तक वार्षिक वर्षा होती है। मिट्टी को अच्छे जल निकासी वाली और दोमट होना चाहिए, हालांकि यह हल्की मिट्टी और हल्के क्षारीय परिस्थितियों में भी उग सकती है। रामतिल के लिए आदर्श मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच होता है।

बुवाई और सिंचाई: 
छत्तीसगढ़ में रामतिल की बुवाई का आदर्श समय खरिफ मौसम के दौरान जून से जुलाई तक है, जब मानसून की वर्षा फसल की शुरुआती वृद्धि के लिए पर्याप्त नमी प्रदान करती है। इसे बोने के लिए छिड़काव या पंक्ति बुवाई की विधि का उपयोग किया जाता है। चूंकि रामतिल एक सूखा सहनशील पौधा है, इसे शुरुआती विकास के बाद अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे यह जल संकट वाले छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनता है। यह फसल पानी की ज्यादा जरूरत नहीं रखती, जो इसे सीमित सिंचाई सुविधाओं वाले किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है।

फसल प्रबंधन और कटाई:
रामतिल को सामान्य फसल प्रबंधन प्रथाओं जैसे खरपतवार नियंत्रण, कीट प्रबंधन और उर्वरकों के समय पर प्रयोग की आवश्यकता होती है। यह फसल आमतौर पर कम देखभाल वाली होती है और किसान जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं। फूलने की अवधि बुवाई के 60-90 दिन बाद होती है, और बीज 100-120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई तब की जाती है जब बीज काले हो जाते हैं और फलियां सूखने लगती हैं।

छत्तीसगढ़ में रामतिल का आर्थिक महत्व:-

1. तेल बीज उत्पादन: रामतिल के बीजों में तेल की मात्रा (35-45%) अधिक होती है, जो इसे एक मूल्यवान तेल बीज फसल बनाती है। बीजों से निकाला गया तेल कई उपयोगों के लिए होता है, जैसे पाक कला और औषधीय उद्देश्य। इस तेल में उच्च पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड्स की मात्रा होती है, जो इसे कुछ अन्य तेलों से अधिक स्वास्थ्यवर्धक बनाती है। इसका उपयोग खाना पकाने, सौंदर्य प्रसाधनों और दवाओं में होता है। रामतिल तेल एक संभावित निर्यात वस्तु है, जिससे किसानों की आय और राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।

2. खाद्य और आजीविका सुरक्षा: रामतिल विशेष रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है, जहां अन्य फसलें विफल हो सकती हैं। रामतिल के बीजों का उपयोग खाद्य सामग्री के रूप में किया जाता है, विशेष रूप से कुछ आदिवासी समुदायों में। तेल और तेल निष्कर्षण के बाद बची हुई केक का उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है, जिससे पशुधन के पोषण को सुनिश्चित किया जाता है। इस प्रकार यह फसल मानव और पशु दोनों के आहार की आवश्यकताओं को पूरा करती है, और एक सतत आजीविका सुनिश्चित करती है।

3. मिट्टी की सेहत और पारिस्थितिकी लाभ: रामतिल एक सूखा सहनशील और नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसल है, जो मिट्टी की सेहत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसे अक्सर फसल चक्र प्रणाली के हिस्से के रूप में उगाया जाता है, जो मिट्टी के कटाव को कम करता है और नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है। यह पारिस्थितिकी लाभ विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के उन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है जहां मिट्टी का क्षरण और उर्वरता की हानि हो रही है।

4. रोजगार सृजन: रामतिल की खेती, प्रसंस्करण और विपणन ग्रामीण समुदायों के लिए रोजगार सृजन करती है। बीज उत्पादन से लेकर तेल निष्कर्षण और पैकेजिंग तक, रामतिल आपूर्ति श्रृंखला के कई चरणों में श्रम की आवश्यकता होती है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए अवसर प्रदान करते हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाता है और सामुदायिक विकास में योगदान मिलता है।

चुनौतियाँ और संभावनाएँ: 
जहां रामतिल की खेती छत्तीसगढ़ में बहुत उम्मीदें जगाती है, वहीं कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संबोधित किया जाना चाहिए। एक प्रमुख चिंता बाजारों और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी है। इसके कारण उत्पादन और मूल्य प्राप्ति के बीच अंतर होता है, और किसान अक्सर अपनी उपज के लिए आदर्श मूल्य नहीं प्राप्त कर पाते। इसके अलावा, कुछ कीट जैसे कि एफिड्स और रोग जैसे की रस्ट भी फसल की उपज को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए, उच्च उत्पादन को अधिकतम करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) और रोग नियंत्रण उपायों को अपनाना फायदेमंद होगा। इन चुनौतियों से निपटने के लिए फसल प्रबंधन तकनीकों, कीट प्रतिरोध और बाजार लिंकिंग पर अधिक शोध की आवश्यकता है। इसके अलावा, रामतिल तेल के विभिन्न उद्योगों में उपयोग के बारे में किसानों में जागरूकता बढ़ाना और राज्य में प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना इसके आर्थिक महत्व को बढ़ा सकता है।

निष्कर्ष: 
रामतिल की खेती छत्तीसगढ़ में अनेक लाभ प्रदान करती है, जैसे आर्थिक विकास, आजीविका सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता। यह एक सूखा सहनशील और बहुमुखी फसल होने के कारण राज्य की कृषि रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती है। यदि अनुसंधान, किसानों का समर्थन और बाजार विकास में वृद्धि की जाए, तो रामतिल की खेती छत्तीसगढ़ के कृषि क्षेत्र को मजबूत कर सकती है और ग्रामीण समुदायों के लिए समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है।