नीलम सिन्हा (पीएचडी शोधार्थी) कृषि अर्थशास्त्र विभाग, 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ की कृषि अर्थव्यवस्था में टमाटर एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। यह राज्य के किसानों के लिए आय का प्रमुख स्रोत है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, हाल के वर्षों में टमाटर की कीमतों में अत्यधिक गिरावट देखी गई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। आर्थिक दृष्टिकोण से, यह समस्या केवल किसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव राज्य की सकल कृषि उपज (Gross Agricultural Output), ग्रामीण रोजगार, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, और उपभोक्ता बाजार पर भी पड़ता है।

यह लेख छत्तीसगढ़ में टमाटर की गिरती कीमतों का आर्थिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है और इसके कारणों, प्रभावों और संभावित समाधान पर प्रकाश डालता है।

छत्तीसगढ़ में टमाटर उत्पादन और इसकी अर्थव्यवस्था में भूमिका

1. सकल कृषि उपज (Gross Agricultural Output) में योगदान
छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है, जिसमें सब्जी उत्पादन का योगदान महत्वपूर्ण है। राज्य में टमाटर की खेती लगभग 50,000 हेक्टेयर में की जाती है, और वार्षिक उत्पादन 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक है।

वर्ष

टमाटर उत्पादन (लाख टन)

राज्य की कुल सब्जी उत्पादन में योगदान (%)

2020

8.5

14.5%

2021

9.2

15.1%

2022

10.1

15.8%


टमाटर की गिरती कीमतों का सीधा प्रभाव राज्य की सकल कृषि आय पर पड़ता है, जिससे किसानों की क्रय शक्ति (Purchasing Power) और निवेश क्षमता कम होती है।

2. मूल्य श्रृंखला (Value Chain) में असंतुलन
टमाटर उत्पादन के मूल्य श्रृंखला में चार प्रमुख चरण होते हैं:
  • कृषि इनपुट (बीज, उर्वरक, श्रम, सिंचाई)
  • फसल उत्पादन और कटाई
  • मंडी एवं थोक बाजार मूल्य निर्धारण
  • खुदरा बाजार और उपभोक्ता कीमतें
  • यदि उत्पादन लागत अधिक है और बिक्री मूल्य कम है, तो किसानों को घाटा होता है।

3. मांग और आपूर्ति में असंतुलन
छत्तीसगढ़ में टमाटर की अत्यधिक आपूर्ति होने के बावजूद मांग सीमित है।

मांग कम होने के कारण:
  • टमाटर को निर्यात करने के लिए लॉजिस्टिक्स कमजोर हैं।
  • राज्य में टमाटर प्रसंस्करण (Tomato Processing) उद्योग सीमित हैं।
  • टमाटर को दीर्घकालिक भंडारण की सुविधाएँ नहीं हैं।

आपूर्ति अधिक होने के कारण:
  • किसानों ने अधिक उत्पादन किया, जिससे बाजार में अचानक आपूर्ति बढ़ गई।
  • सरकारी खरीद तंत्र (Government Procurement System) इस असंतुलन को नहीं संभाल सका।
  • परिणामस्वरूप, टमाटर की कीमतें ₹1-₹2 प्रति किलो तक गिर गईं, जबकि उत्पादन लागत ₹5-₹7 प्रति किलो थी।

टमाटर की गिरती कीमतों के आर्थिक प्रभाव

1. किसानों की आय और उपभोग क्षमता पर प्रभाव
  • जब टमाटर की कीमतें गिरती हैं, तो किसानों की शुद्ध आय (Net Farm Income) घट जाती है, जिससे वे अपनी खपत (Consumption), बचत (Savings) और निवेश (Investment) कम कर देते हैं।
  • इससे कृषि क्षेत्र में व्यय चक्र (Expenditure Cycle) धीमा पड़ जाता है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।

2. कृषि ऋण संकट और वित्तीय संस्थानों पर दबाव
  • जब किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता, तो वे ऋण नहीं चुका पाते, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets - NPAs) बढ़ती हैं।
  • सहकारी और ग्रामीण बैंकों पर ऋण वसूली का दबाव बढ़ता है।

3. श्रम और रोजगार पर प्रभाव
  • टमाटर की खेती से जुड़े कृषि मजदूरों (Agricultural Labourers) और परिवहन कर्मियों (Transport Workers) की रोज़गार दर घटती है।
  • उत्पादन लागत निकालने के लिए किसान मजदूरी कम कर देते हैं, जिससे असंगठित क्षेत्र (Unorganized Sector) प्रभावित होता है।

4. खुदरा और उपभोक्ता बाजार पर प्रभाव
  • उपभोक्ताओं के लिए यह स्थिति लाभकारी हो सकती है, क्योंकि उन्हें कम कीमतों पर टमाटर उपलब्ध होता है।
  • लेकिन, लंबे समय तक कम कीमतों से किसानों की हतोत्साहित खेती (Disincentivized Farming) बढ़ती है, जिससे भविष्य में टमाटर की आपूर्ति घट सकती है और कीमतों में तेज़ी से वृद्धि (Price Volatility) हो सकती है।

समाधान और नीतिगत सुधार

1. टमाटर मूल्य स्थिरीकरण कोष (Price Stabilization Fund)
  • सरकार को टमाटर के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाना चाहिए।
  • यदि कीमतें न्यूनतम स्तर (₹5-₹7 प्रति किलो) से नीचे जाती हैं, तो सरकार को किसानों से खरीद करनी चाहिए।

2. टमाटर प्रसंस्करण उद्योग का विकास
  • राज्य में टमाटर आधारित उद्योग (Tomato-Based Industries) को बढ़ावा देना चाहिए।
  • नए केचप, सॉस और प्यूरी निर्माण संयंत्र लगाए जाने चाहिए, जिससे अतिरिक्त उत्पादन का उपयोग किया जा सके।

3. निर्यात नीति और अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा
  • टमाटर को बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में निर्यात करने के लिए सरकार को सब्सिडी आधारित ट्रांसपोर्ट सिस्टम शुरू करना चाहिए।
  • इसके अलावा, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में भी निर्यात की संभावनाएं बढ़ाई जानी चाहिए।

4. कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स सुधार
  • राज्य सरकार कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसिंग सुविधाओं में निवेश बढ़ाए ताकि किसानों को उनकी फसल उचित समय तक रखने का विकल्प मिले।
  • यह नीति पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सफल रही है और इसे छत्तीसगढ़ में भी लागू किया जा सकता है।

5. ई-नाम (e-NAM) और डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म
  • टमाटर किसानों को e-NAM (National Agriculture Market) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़कर सीधा बाजार तक पहुंच प्रदान की जाए।
  • इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और किसानों को उचित दाम मिलेगा।

निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में टमाटर की गिरती कीमतें सिर्फ किसानों की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है। यह राज्य की कृषि विकास दर, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार दर को प्रभावित करता है। उचित सरकारी नीतियों और बुनियादी ढांचे के सुधार से इस संकट को कम किया जा सकता है।

अगर भंडारण, प्रसंस्करण, और निर्यात तंत्र को मजबूत किया जाए, तो छत्तीसगढ़ के किसान इस समस्या से उबर सकते हैं। इसके अलावा, मूल्य स्थिरीकरण और डिजिटल बाजार नीतियों से टमाटर की कीमतों में स्थिरता लाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ के किसानों को केवल बेहतर उत्पादन तकनीकों की जरूरत नहीं है, बल्कि बेहतर बाजार और मूल्य सुरक्षा की भी आवश्यकता है, ताकि वे अपनी मेहनत का पूरा लाभ उठा सकें।