डॉ. मुकेश कुमार साहू, YP-II, पी.एफ.डी.सी, इं.गां.कृ.वि. वि. रायपुर,
डॉ. गौरव शर्मा, प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष (पुष्पविज्ञान एवं भूदृश्य निर्माण)
रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी (उ.प्र.)

जरबेरा एक बहुवर्षिय कम्पोजिट कुल का आकर्षक पुष्प है। जरबेरा बहुवर्षीय कर्तित पुष्प वर्ग का पौधा है। जिसकी उत्पत्ति दक्षिण अफ़्रीका में हुई थी। इसे बार्बटन डेजी व ट्रसवाल डेजी नाम से भी पुकारते है। इसकी लगभग 70 प्रजातियाँ है जिसमें 7 का उत्पत्ति स्थल भारत या आस-पास का माना जाता है। मूल रूप से यह एकदम पतली लम्बी पंखुडियों वाला लाल रंग का फूल ही था, जिसमें लाल रंग के साथ-साथ सफेद पीले, नांरगी रंग के फूल भी मिलते थे। बाद में इसके संकर द्वारा बहुत सारे रंग व आकार की विविध किस्में विकसित की गई। वर्तमान में जरबेरा विभिन्न रंग में उपलब्ध है। जरबेरा की खेती विश्व में नीदरलैंड, इटली पोलैंड, इजराइल और कोलम्बिया में की जा रही है। भारत में इसकी खेती बंगलोर एवं पूणे में व्यवसायिक स्तर पर घरेलू बाजार में बेचने हेतु की जा रही है। व्यवसायिक दृष्टि से इसकी खेती जगह-जगह की जा रही है।

जरबेरा लगभग पूरे वर्ष खिलते रहने के कारण बहुत पसन्द किया जाता है। फूलदान में काटकर लगने पर इसके फूल काफी समय तरोताजा बने रहते है। यही कारण है कि आज जरबेरा अत्यन्त लोकप्रिय पुष्प बन गया है। जरबेरा फूल का प्रयोग गुलदस्ता एवं बुके बनाने में किया जाता है और बाजार में इसकी एक पुष्प डण्डी की कीमत करीब 15 से 20 रूपए है। जरबेरा के पौधों का रोपण क्यारियों के अलावा गमलों कें भी किया जा सकता है। घरेलू पुष्प बाजारों में जरबेरा कट फलावर की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके प्रजातियों को सिंगल, सेमी डब्बल और डब्बल वर्गों मे विभाजित किया गया है। जरबेरा कट फलावर व्यवसाय में डब्बल प्रजातियों की मांग सर्वाधिक है।

जलवायुः-
इसके पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए वातावरण में दिन का तापमान 18-22 डिग्री सेंटीग्रेड तथा रात का तापमान 12-16 डिग्री सेंटीग्रेड तथा आर्द्रता 50-80 प्रतिशत अच्छा पाया गया है। 8 -12 घण्टे की प्रकाश अवधि मे अच्छा पुष्प उपज पाया गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती पालीहाउस में ही सफलतापूर्वक की जा सकती है लेकिन कटीबन्धी एवं उष्ण-कटबंधी वातावरण में जहां पर ठण्ड हो वहां पर भी इसकी खेती की जा सकती है।

प्रवर्धन की विधिः-
जरबेरा का प्रवर्धन बीज तथा वानस्पतिक भागों द्वारा किया जाता है। बीज द्वारा प्रवर्धन नयी जातियों को विकसित करने के लिए किया जाता है। वानस्पतिक विधि द्वारा प्रवर्धन करने से पौधे पैतृक जैसे ही उत्पादित होते है। इस विधि द्वारा जरबेरा का प्रवर्धन कलम्प विभाजन द्वारा किया जाता है। कलम्प विभाजन विधि द्वारा कम समय में बड़े पैमाने पर पौधों को तैयार नहीं किया जा सकता है। बडे़ पैमाने पर रोगमुक्त पौधा उत्तक संवर्धन विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

कलम्प विभाजनः-
पहाड़ी क्षेत्रों में जरबेरा के कलम्प का विभाजन सितम्बर के पहले सप्ताह तथा मैदानी क्षेत्रों में जून से जुलाई में किया जाता है। कलम्प विभाजन के बाद तथा पुनः कलम्प को रोपित करने से पहले कलम्प से कुछ पत्तों के उपरी आधे हिस्से को काट देना चाहिए। केवल दो से तीन नये पत्ते रखे जाते है। कलम्प को लगाने में यह सावधानी रही जाती है कि कलम्प के बीच का भाग मिट्टी में नहीं दबना चाहिए। पौध उखाड़ने तथा कलम्प विभाजन के बाद कलम्पों को पाॅलीथीन बैग में लगाकर पाॅलीहाउस में जिसका तापमान 18-200ब सेंटीगे्रड तथा आर्द्रता 80 प्रतिशत तक हो, वहाॅ पर रखनी चाहिए। इस विधि द्वारा 15-20 दिनों में पौधे क्यारी में स्थानान्तरण के लिए तैयार हो जाते है। पौध रोपण के तुरन्त बाद जो फूल जाते है, उन्हें शुरू में तोड़ देते है। जब तक पौधे पर कम से कम 6-7 बड़ी आकार की पत्तियां न हों जाएं तब तक पुष्प उत्पादन नहीं किया जाता है।

उत्तक संवर्धन विधिः-
बड़े पैमाने पर कम समय में रोगमुक्म जरबेरा की पौध सामग्री तैयार करने की यह सर्वोत्तम विधि है। उत्तक संवर्धन विधि द्वारा जरबेरा का पौधा शूट टिप फलावर बड, फलावर हेड, लीब्स, मिडरिब्स, पेटियोल इत्यादि भागों द्वारा तैयार किया जाता है। इस विधि द्वारा जरबेरा का पौध सामग्री व्यवसाय के तौर पर भारतवर्ष में कई कम्पनियों के द्वारा उत्पादित किया जा रहा है।

मिट्टी तथा क्यारी की तैयारीः-
जरबेरा की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। इसकी जड़े 30 सेंमी. गहराई तक जाती है। बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच.मान 6-7 हो तथा जीवांश पदार्थ की प्रचूर मात्रा के साथ-साथ जल निकास का उचित प्रबन्ध हो, सर्वोत्तम पायी गई है। यदि बलुई दोमट मिट्टी नहीं हे तो चिकनी मिट्टी में जीवांश पदार्थ (गोबर की खाद या पत्तियों की सड़ी खाद) अधिक मात्रा में तथा बालू क्यारी बनाने से पहले मिला देते है। क्यारी बनाने से पहले मिट्टी की 30-40 सेंमी. गहरी खुदाई करके भुरभुरा तथा खरपतवार रहित कर लेते है। पौध रोपण के 15-20 दिन पहले मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर आवश्यकतानुसार जीवांश पदार्थ तथा रासायनिक उर्वरक मिट्टी में डाल कर 15-20 सेंमी. गहराई तक अच्छी तरह मिला देते है। मिट्टी की सक्रांमक शुद्धि के लिए फार्मेल्डिहाइड के 2.0 प्रतिषत सान्द्रता का घोल बनाकर मिट्टी की सतह से हटाने के बाद 6-7 दिनों के लिए मिट्टी को खुला छोड़ देते है। अच्छी तरह तैयार भुरभुरी मिट्टी में 1.0-1.2 मीटर चैड़ा और 25-30 सेंमी. जमीन की सतह से उठी क्यारियां बनानी चाहिए। क्यारी की लम्बाई सुविधानुसार रखनी चाहिए तथा दो क्यारियों के बीच में 30 सेंमी. चैड़ा रास्ता छोड़ना चाहिए। पौध रोपण के एक सप्ताह पहले क्यारियों की हल्की सिंचाई कर देते है, जिससे फार्मेल्डिहाइड गैस की सान्द्रता कर हो जाए तथा मिट्टी में हल्की नमी बनी रहें।

पौध रोपण एवं विधिः-
वातावरण अनुकूल होने पर जरबेरा को पौध रोपण पूरे वर्ष किया जा सकता है। सामान्यत तौर पर इसका पौध रोपण जून से सितम्बर तथा फरवरी से मार्च तक किया जाता है। पौध से पौध एवं पंक्ति से पंक्ति का फासला 30-40 सेंमी. रखा जाना चाहिए। पौध रोपण का फसला बढ़ाने पर पुष्प की उपज कम हो जाती है तथा बहुत ही कम फासला करने पर पुष्प गुणवत्ता में कमी आ जाती है। तथा रोग लगने की अनुकूल परिस्थिति पैदा हो जाती है। पौध रोपण करते समय विशेष तौर पर यह ध्यान देना चाहिए कि पूर्ण तरीके से जड़ वाला भाग जमीन के अन्दर चला जाए लेकिन पौधे के बीच में में जहां से नई पत्तियाँ निकलती हैं, वह जमींन के अन्दर नहीं जाना चाहिए। पौध रोपण का काय सायंकाल में करना चहिाए। रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि जड़ों एवं मिट्टी के बीच कोई फसला न रहे अन्यथा पौधांे के मरने की स्थिति पैदा हो जाती है।

पोषणः-
जरबेरा की पौध की अच्छी वृद्धि के लिए लगातार पोषक तत्व की आवश्यकता पड़ती है लेकिन कभी भी एक साथ अधिक मात्रा में पोषक तत्व इसके पौधों को नहीं देना चाहिए। पौध रोपण के बाद तब तक उर्वरक देना शुरू नहीं करते हैं जब तक पौधों में नई वृद्धि शुरू न हो जाए। पोषक तत्वों जैसे नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश के लिए घुलनशील ग्रेडेड विभिन्न प्रतिशत वाले रासायनिक उर्वरक जैसे 19:19:19, 20:20:20 तथा 13:13:13 का इस्तेमाल किया जाता है। नत्रजन के लिए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट का भी प्रयोग किया जाता है। जरूरत पड़ने पर सूक्ष्म पोषक तत्वों को छिड़काव पौधों पर किया जाता है। इन उर्वरकों या सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा वर्तमान में पौधों की वृद्धि एवं विकास के उपर काफी हद तक निर्भर करता है।

सिंचाईः-
जरबेरा की खेती में पौधों की बढ़वार के लिए सिंचाई का विशेष महत्व है। मिट्टी को पौध रोपण से पहले हल्का सींच देना चाहिए तथा पौध रोपण के उपरान्त भी सिंचाई करनी चाहिए। मिट्टी की उपरी सतह पर पोषक तत्वों को अर्जित करने वाली जड़ों का विकास होता है, इसलिए यह आवश्यक है कि उपरी 30 सेंमी. की सतह में लगातार नमी बनी रहें। क्यारियों में पानी का जमाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए। शुष्क मौसम में प्रतिदिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जरबेरा के पूर्ण विकसित एक पौधे को 700 से 1000 मिलीलीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती हैं सिंचाई के पानी का पी.एच. मान 6.5- 7.0 तथा ई.सी. 0.5-1.0 तक लाभकारी पाया गया है।

फर्टिगेशनः- फर्टिगेशन सारिणी रोपण के 3 सप्ताह बाद अपनाना चाहिए-

रासायनिक खाद

मात्रा (ग्राम/500 वर्ग मी)

टंकी () (सोमवार, मंगलवार, बुधवार)

 

कैल्शियम नाइट्रेट

700

पोटैशियम नाइट्रेट

400

Fe FDTA/ सल्फेट

20

टंकी () (गुरू, शुक्र, शनि)

 

मोनो अमोनियम फास्फेट (12:61:0)

300

सल्फेट आफ पोटाश (0:0:50)

700

मैग्निशियम सल्फेट

700

मैंग्निश सल्फेट

5

कापर सल्फेट

3

बोरैक्स

1


टपक सिंचाईः- 
टपक पद्धति द्वारा सिंचाई 2-3 दिन के अंतराल 3.75/लीटर/पौधा किया जाता है। औसत पानी की आवश्यकता 500-700 मी.ली./दिन/पौधा है।

कीट एवं रोगः-

लीफमाइनरः- लीफमाइनर काला एवं पीले रंग का होता है। इसके नर एवं मादा दोनों पौधों को नुकसान पहुंचाते है। जरबेरा में इसका प्रकोप बहुत देखने को मिलता है। यदि समय पर इसका नियन्त्रण न किया गया तो कुछ समय बाद जरबेरा का पौधा मर भी जाता है। इसकी रोकथाम के लिए 1.0 मिली लीटर रोगर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

व्हाईट फलाई- यह एक प्रकार का रस चूसने वाला कीट है। इसके अत्याधिक प्रभाव के कारण पौधों की बढ़वार तथा फूलों की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है। व्हाईट के द्वारा बहुत सारे विषाणु एक पौध से दूसरे पौध पर स्थानांतरित होते है। इसकी रोकथाम के लिए फेनप्रोपेथ्रिन 30 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रतिलीटर पानी में घोलकर करना चाहिए।

थ्रिप्सः- यह भी एक प्रकार का रस चूसने वाली कीट है। इसका सीधा प्रभाव की गुणवत्ता पर पड़ता है तथा बाजार में इस प्रकार के पुष्पों की कीमत कम मिलती है। समय-समय पर स्पाइरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत एससी. अथवा डाईमेथोएट 30 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए।

एफिड्सः- एफिड्स नई पत्तियों या पुष्प डण्डियों पर रहते है। इनकी रोकथाम के लिए फेनप्रोपेथ्रिन 30 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रतिलीटर पानी अथवा मैलाथियान का छिड़काव 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर करना चाहिए।

कवक रोगः-

रूट राट- इससे प्रभावित पौधों की पत्तियों में रेडिस बाइलेट रंग तथा बाद में नेक्रोटिक एरिया विकसित हो जाता है। यदि पौध रोपण से पहले मिट्टी की संक्रामक शुद्धि कर दी जाए। इसकी रोकथाम के लिए डाईथेन एम-45 एक लीटर पानी में 2.0 ग्राम की दर से घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

फ्यूजेरियम- फ्यूजेरियम से ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती है तथा कुछ समय बाद पतितयाँ सूख जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टीन 1.0 ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। पौध रोपण से पहले पौधों को 0.2 प्रतिशत बिनोमील के घोल में 30 मिनट के लिए डुबोकर उपचारित करना चाहिए।

पाउडरी मिल्ड्यू- पाउडरी मिल्ड्यू का प्रकोप होने पर पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कैराथेन 1.0 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

विषाणु रोग- विषाणु रोग पौधों की गुणवत्ता को धीरे-धीरे कम कर देता है। जरबेरा में कुकुम्बर मोज़ेक, टोबैको रैटल, टोबरावाइरस, टोमैटो स्पोटेड विल्ट वाइरस इत्यादि का प्रकोप देखा गया है। विषाणु रोग के बचाव के लिए रोगमुक्त पौध ही नर्सरी से खरीदना चाहिए तथा रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर ज़मीन के अन्दर दबा दें या जला देना चाहिए।

पुष्प की कटाई एवं उपजः-
गुणवत्ता युक्त पुष्प उत्पादन पौध रोपण के 2.5 से 3 महीने बाद शुरू हो जाता है। जरबेरा का फूल जब पूर्ण रूप से खिल जाए, उसी दिन उन पुष्पों की कटाई कर लेनी चाहिए। यदि फूलों को काटने की सही अवस्था से पहले काट दिया गया, तो फलों का रंग एवं आकार भली भांति विकसित नहीं हो पाता है तथा यदि खिले फूलों को बिलम्ब करके काटा गया तो फूल की गुणवत्ता घट जाती है। काटने के बाद फूलों की डण्डियों को तुरन्त पानी भरे बाल्टी में रखना चाहिए। कटाई के बाद फूलों को 200 मि.ग्रा. एच. क्यू. सी. और 5 प्रतिशत सुक्रोस के घोल में रखना चाहिए। खुले खेत में फूलों की औसतन उपज 140-150 फूल प्रति वर्गमीटर प्रति वर्ष होती है और ग्रीन हाउस में कटाई किए गए फूलों की औसतन पैदावार 225-250 फूल वर्गमीटर प्रति वर्ष होती है।

श्रेणीकरण, पैकिंग एवं ट्रांसपोर्टेशनः-
जरबेरा के फूलों को श्रेणीकरण पुष्प की डण्डी की लम्बाई, पुष्प के आकार एवं ताजगी के आधार पर किया जाता है। जैसे 40, 50, 60 70 सेंमी. लम्बी डण्डियों को पुष्प के आकार के आधार पर विभिन्न गे्रड में विभाजित किया जाता है। इसके पुष्प की पंखुड़ियाँ खराब न हों, इसके लिए उन्हें प्लास्टिक के एक छोटे आकार के एक बैंग में एक पुष्प डण्डी के ऊपरी हिस्से को पैक कर दिया जाता है। इस प्रकार 12 पुष्प डण्डियों को एक साथ मिलाकर जरबेरा का एक बन्च बनाया जाता है। एक बाक्स में 20 से 25 बन्चों को पैक करके घरेलू बाजारों में भेजा जाता है। बाक्स में पुष्प बंचों को न अधिक टाइट तथा न ही अधिक लूज भेजते हैं। जो फूल बिक्री नहीं हो पाता उनको शीतगृह में रख देते हैं एवं दूसरे दिन बेचने को कार्य करते है।