योगेंद्र सिंह, सहायक प्राध्यापक (फल विज्ञान)
डॉ. देवेन्द्र कुमार चौधरी, सहायक प्राध्यापक (पादप रोग विज्ञान)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कोरबा (छ.ग.)
परिचय
मुनगा भारतीय मूल का मोरिन्गासाए परिवार का सदस्य है। इसका वनस्पतिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। इसे हिंदी में मुनगा , सहजना, सुजना, सेंजन आदि नामों से जाना जाता है। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक भी कहा जाता है। इस पेड़ के सभी भाग फल, फूल, पत्तियों, बीजों में अनेक पोषक तत्व होते हैं। इसकी खेती करने से काफी लाभ प्राप्त होता है। यदि आप इसकी एक एकड़ में भी खेती करते हैं तो आपको 6 लाख रुपए की कमाई हो सकती है। सामान्यतया यह एक बहुवर्षिक, कमजोर तना और छोटी-छोटी पत्तियों वाला लगभग दस मीटर से भी उंचा पौधा है। यह कमजोर जमीन पर भी बिना सिंचाई के सालों भर हरा-भरा और तेजी से बढने वाला पौधा है। सहजन में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रट, वसा, प्रोटीन, पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम, मैगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं। 300 से अधिक बीमारियों को रोकने की क्षमता के कारण इसे 'मिरैकल ट्री' यानि 'चमत्कारी पेड़' के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 90 तरह के मल्टीविटामिन्स, 45 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 35 तरह के दर्द निवारक गुण और 17 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। मुनगा की बढ़ती मांग और औषधीय गुणों के कारण किसानों द्वारा इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
मुनगा का गुण एवं उपयोग
- मुनगा के लगभग सभी अंग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि) खाये जाते हैं। इसकी पत्तियों और फली की सब्जी बनती है।
- कई जगहों पर इसके फूलों को पकाकर खाया जाता है और इनका स्वाद खुम्भी (मशरूम) जैसा बताया जाता है।
- अनेक देशों में इसकी छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारंपरिक दवाएं बनाई जाती है।
- मुनगा उपयोग जल को स्वच्छ करने के लिए तथा हाथ की सफाई के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
- मुनगा बहुउपयोगी पौधा है। पौधे के सभी भागों का प्रयोग भोजन, दवा औद्योगिक कार्यो आदि में किया जाता है। मुनगा में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व विटामिन है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम तथा संतरा की तुलना में सात गुणा विटामिन सी है।
- मुनगा का फूल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में व्यवहार होता है। मुनगा का छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है, जो लगभग 300 प्रकार के बीमारियों के इलाज में काम आता है। मुनगा के पौधा से गूदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता है।
- भारत वर्ष में कई आयुर्वेदिक कम्पनी मुख्यत: “संजीवन हर्बल” व्यवसायिक रूप से मुनगा से दवा बनाकर (पाउडर, कैप्सूल, तेल बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर रहे हैं।
- दियारा क्षेत्र में मुनगा के नये प्रभेदों की खेती को बढ़ावा देकर न सिर्फ स्थानीय व दूर-दराज के बाजारों में सब्जी के रूप में इसका सालों भर बिक्री कर आमदनी कमाया जा सकता है, बल्कि इसके औषधीय व औद्योगिक गुणों पर ध्यान रखते हुए किसानों के बीच में एक स्थाई दीर्घकालीन आमदनी हेतु सोच विकसित किया जा सकता है।
- मुनगा बिना किसी विशेष देखभाल एवं शून्य लागत पर आमदनी देनी वाली फसल है। किसान भाई अपने घरों के आस-पास अनुपयोगी जमीन पर सहजन के कुछ पौधे लगाकर जहां उन्हें घर के खाने के लिए सब्जी उपलब्ध हो सकेंगी वहीं इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता भी हासिल कर सकते हैं।
मुनगा की उन्नत किस्में
मुनगा की उन्नत किस्मों में कोयम्बटूर 2, रोहित 1, पी.के.एम 1 और पी.के.एम 2 अच्छी मानी जाती हैं।
मुनगा की खेती के लिए भूमि व जलवायु
मुनगा की खेती सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। यहाँ तक कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है, परन्तु व्यवसायिक खेती के लिए साल में दो बार फलनेवाला मुनगा के प्रभेदों के लिए 6-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर पाया गया है।
जलवायु:
सामान्यतया 25-30 डिग्री के औसत तापमान पर मुनगा के पौधा का हरा-भरा व काफी फैलने वाला विकास होता है। यह ठंढ को भी सहता है। परन्तु पाला से पौधा को नुकसान होता है। फूल आते समय 40 डिग्री से ज्यादा तापमान पर फूल झड़ने लगता है। कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है।
खेत की तैयारी
मुनगा के पौधे का रोपण गड्ढा बनाकर किया जाता है। खेत को अच्छी तरह खरपतवार मुक्त करने के बाद 2.5 X 2.5 मीटर की दूरी पर 45 X 45 X 45 सेंमी. आकार का गड्ढा बनाया जाना चाहिए। गड्ढे के उपरी मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए। इससे खेत पौध के रोपनी के लिए तैयार हो जाता है।
प्रबर्द्धन
मुनगा में बीज और शाखा के टुकड़ों दोनों से ही प्रबर्द्धन होता है। अच्छी फलन और साल में दो बार फलन के लिए बीज से प्रबर्द्धन करना अच्छा है। एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 500 से 700 ग्राम बीज पर्याप्त है। बीज को सीधे तैयार गड्ढों में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढों में लगाया जा सकता है। एक महीने के तैयार पौध को पहले से तैयार किए गए गड्ढ़ों में जून से लेकर सितंबर तक रोपण किया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में पौध एक महीना में लगाने योग्य तैयार हो जाता है।
मुनगा की खेती में खाद और उर्वरक
रोपनी के तीन महीने के बाद 100 ग्राम यूरिया + 100 ग्राम सुपर फास्फेट + 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालना चाहिए। वहीं इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का दुबारा डालना चाहिए। मुनगा पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक मुनगा की खेती में किया जा सकता है।
शस्य प्रबंधन
एक महीने के तैयार पौध को पहले से तैयार किए गये गड्ढों में माह जुलाई-सितम्बर तक रोपनी कर दें। पौध जब लगभग 75 सेंमी. का हो जाये तो पौध के ऊपरी भाग की खोटनी कर दें, इससे बगल से शाखाओं को निकलने में आसानी होगी। रोपनी के तीन महीने के बाद 100 ग्राम यूरिया + 100 ग्राम सुपर फास्फेट + 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालें तथा इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का पुन: व्यवहार करें। मुनगा पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक सहजन की खेती, उपज में बिना किसी ह्रास के किया जा सकता है।
सिंचाई
अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई करना लाभदायक है। गड्ढों में बीज से अगर प्रबर्द्धन किया गया है तो बीज के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापन तक नमी का बना रहना आवश्यक है। फूल लगने के समय खेत ज्यादा सूखा या ज्यादा गीला रहने पर दोनों ही अवस्था में फूल के झड़ने की समस्या होती है।
मुनगा में रोग और कीट प्रबंधन
मुनगा में मुख्य रूप से भूरा पिल्लू नामक कीट का प्रकोप होता है। यह कीट पूरे पौधे की पत्तियों को खा जाता है तथा आसपास में भी फैल जाता है। इसके नियंत्रण क्लोरपाइरीफोस0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिडक़ाव करना चाहिए।
इसके अलावा मुनगा में फल मक्खी का आक्रमण भी इसमें देखा गया है। इससे भी फसल को भारी नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.3-0.5 मिली. दवा एक लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।
फसल की कटाई और प्राप्त उपज
जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई की जा सकती है। पौधे लगाने के करीब 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है। एक बार लगाने के बाद से 4-5 वर्षों तक इससे फलन लिया जा सकता है। प्रत्येक वर्ष फसल लेने के बाद पौधे को जमीन से एक मीटर छोडक़र काटना जरूरी होता है। दो बार फल देने वाले मुनगा की किस्मों की तुड़ाई सामान्यत: फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) मुनगा सालभर में प्राप्त हो जाता है। मुनगा के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इससे इसकी बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है। बता दें कि पहले साल के बाद साल में दो बार उत्पादन होता है और आमतौर पर एक पेड़ 10 साल तक अच्छा उत्पादन करता है।
फल की तुड़ाई एवं उपज
साल में दो बार फल देनेवाले मुनगा की किस्मों की तुड़ाई सामान्यतया फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) मुनगा सालभर में प्राप्त हो जाता है। मुनगा की तुड़ाई बाजार और मात्रा के अनुसार 1-2 माह तक चलता है। मुनगा के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई करने से बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है।
मुनगा की खेती से कितनी होगी कमाई
यदि आप एक एकड़ में करीब 1500 पौधे लगाते हैं। यदि और मुनगा के पेड़ मोटे तौर पर 12 महीने में उत्पादन देते हैं। यदि पेड़ अच्छी तरह से बढ़े हैं तो 8 महीने में ही तैयार हो जाते हैं और कुल उत्पादन 3000 किलो तक हो जाता है। इस तरह से 7.5 लाख का उत्पादन हो सकता है। इस तरह आपको मुनगा की खेती से करीब 6 लाख रुपए तक का फायदा हो सकता है।
बाजार में मुनगा का रेट
सामान्यत : मुनगा का फुटकर रेट आमतौर पर 40 से 50 के बीच रहता है। थोक में इसका रेट 30 रुपए के करीब होता है।
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