अमरनाथ, पीएचडी शोधार्थी शस्य विज्ञान विभाग,
कृष्णा, पीएचडी शोधार्थी ,शस्य विज्ञान विभाग,
तोसन कुमार साहू, पीएचडी शोधार्थी,शस्य विज्ञान विभाग,
कृषि महाविद्यालय, आईजीकेवी, रायपुर (छ.ग.)


परिचय
छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है, जहां धनिया एक महत्वपूर्ण मसाला फसल के रूप में उगाई जाती है। धनिया की पत्तियों और बीजों का उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। जैविक खेती विधि अपनाने से किसानों को उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन प्राप्त होता है, जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि प्राकृतिक खाद और जैविक उपचार का प्रयोग किया जाता है।

1. छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी
छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी धनिया की जैविक खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है:
  • छत्तीसगढ़ में समशीतोष्ण और हल्की ठंडी जलवायु धनिया उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
  • तापमान: 15-30 डिग्री सेल्सियस धनिया के अच्छे विकास के लिए आदर्श रहता है।
  • मिट्टी: बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
  • pH मान: 6.0 से 7.5 के बीच होने पर सबसे बेहतर उत्पादन होता है।

2. भूमि की तैयारी और जैविक खाद
  • खेत की गहरी जुताई करने के बाद दो से तीन बार हल्की जुताई करें।
  • 10-15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग करें।
  • हरी खाद (धैंचा या सन) मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
  • नीम खली, जैविक पोटाश और फास्फोरस का प्रयोग करें।

3. बीज चयन और बुवाई
  • जैविक प्रमाणित बीजों का चयन करें।
  • बुवाई का उचित समय: अक्टूबर से नवंबर (रबी सीजन के दौरान)
  • बीज उपचार: ट्राइकोडर्मा विरिडे या जैविक जीवाणु खाद (राइजोबियम) से बीजों का उपचार करें।
  • बीजों को 20-25 सेमी की दूरी पर और 1-2 सेमी गहराई में बोना चाहिए।
  • प्रति हेक्टेयर 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

4. जल प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण
  • बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
  • 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है, विशेष रूप से फूल आने के समय।
  • जैविक मल्चिंग तकनीक अपनाने से नमी बनी रहती है और खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है।
  • खरपतवार हटाने के लिए समय-समय पर हाथ से गुड़ाई करें।

5. जैविक कीट एवं रोग नियंत्रण
धनिया की फसल में लगने वाले मुख्य कीट और रोग इस प्रकार हैं:

मुख्य कीट:
  • एफिड और थ्रिप्स: नियंत्रण के लिए 5% नीम तेल का छिड़काव करें।
  • कटवा कीट: जैविक कीटनाशक जैसे जैविक बैसिलस थुरिंजिएंसिस (BT) का छिड़काव करें।
मुख्य रोग:
  • पाउडरी मिल्ड्यू (फफूंद रोग): ट्राइकोडर्मा आधारित जैविक उपचार करें।
  • पत्तों पर धब्बे: बायोपेस्टिसाइड का छिड़काव करें।

6. कटाई और उपज
  • हरी पत्तियों की कटाई 30-40 दिन के भीतर की जा सकती है।
  • बीजों की कटाई 90-110 दिन के बाद करनी चाहिए जब बीज हल्के भूरे रंग के हो जाएं।
  • छत्तीसगढ़ में औसतन 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर धनिया बीज की उपज प्राप्त हो सकती है।

7. विपणन और लाभ
  • जैविक धनिया की मांग छत्तीसगढ़ में स्थानीय बाजारों, जैविक दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अधिक है।
  • किसान इसे हाट बाजार, कृषि मंडियों और जैविक उत्पादकों के संघ के माध्यम से बेच सकते हैं।
  • जैविक प्रमाणन प्राप्त कर निर्यात भी किया जा सकता है, जिससे बेहतर मूल्य मिलता है।

8. छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को प्रोत्साहन
  • छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए अनुदान और प्रशिक्षण देती है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन (NMSA) के तहत जैविक उर्वरक और प्रमाणन के लिए सहायता दी जाती है।
  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर किसानों को जैविक खेती की आधुनिक तकनीक सिखाने में सहायक हैं।

निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में जैविक धनिया की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है। जैविक पद्धति अपनाने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है और बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। सरकार की योजनाओं और जागरूकता कार्यक्रमों का लाभ उठाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।

संदर्भ (References):
  • छत्तीसगढ़ कृषि विभाग की रिपोर्ट
  • राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (NCOF) की गाइडलाइंस
  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), रायपुर के शोध पत्र