डॉ. अभय बिसेन,वैज्ञानिक (फल विज्ञान), 
पं शिव कुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, राजनांदगांव (छ.ग.)

ड्रैगन फलको आमतौर पर पिताया के नाम से जाना जाता है। यह कैकट्स परिवार का बेलनुमा पौधा होता है। इसका उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता है। इसके पौधों में जल्द ही फल लग जाता है। इसके ऊपर कीड़े-मकोड़ों और बिमारियों का हमला बहुत ही कम होता है। ड्रैगन फल में पोड्ढक तत्व भरपूर होने के कारण इसे एक सुपर फल के रूप में पहचाना जाने लगा है। इस कारणइस फल की बाजार में भी कीमत अच्छी प्राप्त हो रही है। इसके फलों में एंटीआक्सीडंट तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। खासतौर पर लाल गूदे वाले फलों में बीटा-कैरोटीन, फिनौल, फ्लेवानाल आदि प्राकृतिक पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। ड्रैगन फल में कैल्शियम, जिंक और मैगनीशियम जैसे खनिज एवं विभिन्न विटामिन तथा फाइबर की भी काफी मात्रा होती है।

ड्रैगन फ्रूट के प्रति 100 ग्राम फल में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व

पोषक तत्व

मात्रा

पोषक तत्व

मात्रा

नमी

85.3 प्रतिशत

विटामिन

0.01 मि.ग्रा

प्रोटीन

1.10 ग्राम

नियासिन

2.80 मि.ग्रा

वसा

9.57 मि.ग्रा.

कैल्शियम

10.20 मि.ग्रा

क्रूड फाइबर

1.34 मि.ग्रा.

आयरन

3.37 मि.ग्रा

ऊर्जा

67.70 किलो कैलोरी

मैग्नीशियम

38.90 मि.ग्रा

कार्बोहाइड्रेट

11.2 मि.ग्रा.

फाॅस्फोरस

27.75 मि.ग्रा

ग्लूकोज

5.70 मि.ग्रा.

पोटेशियम

272.0 मि.ग्रा

फ्रक्टोज

3.20 मि.ग्रा.

सोडियम

8.90 मि.ग्रा

सोरबिटोल

0.33 मि.ग्रा.

जिंक

0.35 मि.ग्रा

विटामिन सी

3.00 मि.ग्रा

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मृदा एवं जलवायु
मृदा एवं वातावरण यद्यपि ड्रैगन फल कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, परन्तु दोमट, अच्छे जल निकास वाली एवं पोड्ढण तत्वों से भरपूर मिट्टी इस फल की खेती के लिए उपयुक्त होती है। बहुत ज्यादा रेतीली एवं खराब जल निकास वाली मिट्टी में ड्रैगन फलकी खेती से परहेज करें। ड्रैगन फल एक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला फल है, परन्तु इसे उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। यह फल कठोर मौसमी परिस्थितियों के प्रति काफी सहनशील होता है। इस फसल को भरपूर प्रकाश की आवश्यकता होती है किन्तु मई-जून के अधिक गर्मी वाले महीनों तथा सर्दियों में कोहरे से भी कुछ शाखाओं को नुकसान हो सकता है।

खेत की तैयारी
खेत अच्छी तरह से जुताई किया हुआ हो, कीट-पतंगों व खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए। भूमि में 20 से 25 टन प्रति हैक्टर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट मिला देनी चाहिए।

प्रवर्धन एवं लगाने की विधि
ड्रैगनफ्रूट के पौधे को दो प्रकार से तैयार किया जाता है 1- बीज द्वारा, 2- कलम एवं ग्राफ्टिंग द्वारा।

बीज द्वारा पौध तैयार करना
बीज से ड्रैगनफ्रूट के पौधे तैयार करने में अधिक समय लगता है। बीज द्वारा पौधा उगने से लेकर फल आने तक करीब 6 से 7 वर्ष लग जाते है। इसलिए बीज द्वारा पौध तैयार नहीं की जाती है।

ग्राफ्टिंग द्वारा पौध तैयार करना
इस विधि से ड्रैगन फ्रूट के पौधों को तैयार होने में तीन महीने का समय लग जाता है। एक हेक्टेयर भूमि पर ड्रैगनफ्रूट के पौधे लगाने के लिए 10 मीटर x 10 मीटर आकार की नर्सरी में लगभग 1100 कलमों की रोपाई की जाती है।

कटिंग द्वारा पौध तैयार करना
कटिंग से इसका प्रवर्धन करने के लिए कटिंग की लंबाई 20 सें.मी. रखते हैं। इसको खेत में लगाने से पहले गमलों में लगाया जाता है। इसके लिए गमलों में सूखे गोबर, बलुई मृदा तथा रेत को 1:1:2 के अनुपात से भरकर छाया में रख दिया जाता है।

ड्रैगन फ्रूट के पौधों को लगाने का तरीका एवं समय
वर्षा के मौसम में पौधों का विकास अच्छा होता है। इसलिए जून और जुलाई का महीना पौधों को लगाने के लिए सर्वोत्तम है।यदि सिंचाई की उचित व्यवस्था है तो फरवरी-मार्च महीने में भी पौधों को लगाया जा सकता है।प्रति एकड़ खेत में करीब 1,780 पौधे लगाए जा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट के पौधों को सपोर्ट की आवश्यकता होती है इसलिए खेतों मे पोल लगाए जाते है। ।सीमेंट कंक्रीट के 7.5 फीट लम्बे और 6 इंच के चैकोर आकार के खम्भेध्पोल होने चाहिए, इन्हें भूमि में 1.5 से 2 फिट दबाया जाता है।ना होगा। इस तरह एक हेक्टेयर में 1111 खम्भों का उपयोग किया जा सकता है।इन पिलर को 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर खेत में लगाना चाहिए। इन खम्भों के ऊपर 2 फुट व्यास की एक रिंग लगाईं जाती है।पौधे से पौधे की बीच की दूरी 8 से 8 फिट रखनी है। कतार से कतार की दूरी 12 से 12 फिट रखनी है।एक पोल के चारों और 4 पौधे लगाएं और ऊपर की और दिशा में बांध दें। इन खम्भों के सहारे एक हेक्टेयर में 4500 पौधे लगाए जा सकते है। रोपण के बाद इन पौधों को खम्भे से बाँध देना चाहिए।जिससे पौधों खम्भे के सहारे अच्छी प्रकार बढ़ सके।

ड्रैगन फ्रूट की प्रमुख किस्में
ड्रैगन फ्रूट की मुख्यतः 3 किस्में होती हैं। जिनमें सफेद ड्रैगन फ्रूट, लाल ड्रैगन फ्रूट एवं पीला ड्रैगन फ्रूट शामिल है।

1. सफेद ड्रैगन फ्रूट
इसके पौधे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। फल बाहर से गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। इस किस्म के फल अंदर का भाग सफेद रंग का होता है। जिसमें काले रंग के छोटे-छोटे बीज होते हैं। अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म की कीमत कम होती है।

2. लाल ड्रैगन फ्रूट
इस किस्म के फलों का रंग गहरा गुलाबी होता है। फलों को काटने पर अंदर का रंग भी गहरा गुलाबी नजर आता है। सफेद ड्रैगन फ्रूट की तुलना में बाजार में इसकी बिक्री अधिक मूल्य पर होती है। खाने में भी स्वादिष्ट होने के कारण इस किस्म की मांग भी अधिक होती है।

3. पीला ड्रैगन फ्रूट
पीला ड्रैगन फ्रूट भारत में बहुत कम देखने को मिलता है। इसका रंग बहार से पीला और अंदर से सफेद होता है। इस किस्म के फल सफेद एवं लाल किस्मों से अधिक स्वादिष्ट और मीठे होते हैं। इसके साथ ही इस किस्म की बिक्री अन्य किस्मों से अधिक मूल्य पर की जाती है।

भारत में खेती की जाने वाली कुछ उन्नत किस्में
हमारे देश में कई किस्म के ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। जिनमें वालदीव रोजा, असुनता, कोनी मायर, डिलाईट, अमेरिकन ब्यूटी, पर्पल हेज, गोल्डन यैलो, 8 शूगर, आउसी गोल्डन यैलो, वीयतनाम वाईट, रॉयल रैड, सिंपल रैड, आदि किस्में शमी हैं। इनमें कुछ सफेद, कुछ लाल एवं कुछ पीले रंग की किस्में हैं।

खाद एवं उर्वरक
अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक पौधे को अच्छी सड़ी हुई 10 से 15 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए। इसके अलावा लगभग 250 ग्राम नीम की खली, 30-40 ग्राम फोरेट एवं 5-7 ग्राम बाविस्टिन प्रत्येक गड्ढे में अच्छी तरह मिला देने से पौधों में मृदाजनित रोग एवं कीट नहीं लगते हैं। 50 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का मिश्रण बनाकर पौधों को फूल आने से पहले अप्रैल में फल विकास अवस्था तथा जुलाई-अगस्त और फल तुड़ाई के बाद दिसबंर में देना चाहिए।

ड्रैगन फ्रूट के पौधों की सिचाई कैसे करें?
ड्रैगन फ्रूट के पौधों को दूसरे पौधों की अपेक्षा कम पानी जरुरत होती है। ड्रैगन फ्रूट की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम का उपयोग करें। बारिश के मौसम में सिचाई की सिंचाई आवश्यकता नही होती है। लेकिन अन्य मौसम में इसकी आवश्यकतानुसार सिचाई करे। फूल व बनने के समय भूमि उचित नमी रहनी चाहिए।

कीट एवं रोग का प्रकोप
ड्रैगन फ्रूट की फसल पर अन्य फसलों के मुकाबले रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप इस फसल पर देखा गया है। एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से स्प्रे करें। थ्रिप्स के लिए एसीफेट दवा का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करे।

कीट एवं व्याधियां
सामान्यतः ड्रैगन फ्रूट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है। फिर भी इसमें एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप देखा गया है। एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। थ्रिप्स के लिए एसीफेट दवा का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।

ड्रैगनफ्रूट की तुड़ाई
ड्रैगन फ्रूट के पौधे एक साल में फल देने के लिए तैयार हो जाते है। ड्रैगन फ्रूट के पौधों पर मई-जून महीने में फूल आना शुरू हो जाता है। अगस्त-दिसम्बर तक फल लग जाते है और मानसून में इसके फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। ड्रैगन फ्रूट चमकीले हरे रंग से परवर्तित होकर लाल रंग हो जाये। तो ड्रैगन फ्रूट को तोड़ लेना चाहिए। फलों की तुड़ाई दरांती या हाथ से की जाती है। फलों की तुड़ाई दरांती या हाथ से की जाती है। इसकी फसल से पांच से छः टन प्रति एकड़ पैदावार ली जा सकती है।

ड्रैगनफ्रूट की उपज एवं भण्डारण
ड्रैगन फ्रूट का पौधा एक सीजन में 3 से 4 बार फल देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है। एक पौधे पर 50 से 120 फल लगते हैं। इस प्रकार इसकी औसत उपज 5 से 6 टन प्रति एकड़ होती है। ड्रैगनफ्रूट को 25 डिग्री सेल्सियस तापमान यानी रूम टेंपरेचर पर 5 से 7 दिन तक भण्डारण किया जा सकता है। ड्रैगन फ्रूट को छिद्रित हवादार बैग में 8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 25 से 30 दिन तक भण्डारण किया जा सकता है।ड्रैगन फ्रूट की खेती से प्रति एकड़ हर साल 7 से 8 लाख रुपये कमाई की जा सकती है।शुरआत में इसकी खेत पर चार-पांच लाख रुपये तक का खर्च आ जाता है।

ड्रैगन फ्रूट्स की समस्याएं और उनके समाधान
रोग और कीटाणु संक्रमणः ड्रैगन फ्रूट्स की खेती में कुछ बीमारिय और कीटाणु संक्रमण होते हैं, जैसे कि रूट रोट, फलों पर सफेद छटा, फलों पर फंगल संक्रमण आदि। इससे फसल की मात्रा और गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

इन समस्याओं का समाधान निम्नलिखित उपायों से किया जा सकता हैः
  • फसल के लिए उचित जमीन का चयनः ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उचित जमीन का चयन करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। इन फलों की खेती के लिए जलवायु, मिट्टी और जल की मात्रा को ध्यान में रखते हुए ही जमीन का चयन करना चाहिए।
  • खेतों का साफ-सफाई करनाः ड्रैगन फ्रूट्स की खेती के लिए मुख्यतः खेतों की साफ-सफाई करना बहुत जरूरी होता है। खेतों में अधिक गंदगी और फसल के संक्रमण से समुचित धातुओं की कमी होती है।
  • ताजा पानी का उपयोग करनाः ड्रैगन फ्रूट्स की खेती में समय पर ताजा पानी का उपयोग करना बहुत जरूरी होता है।
  • समय पर फसल काटनाः ड्रैगन फ्रूट की खेती में फसल काटने का समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। इन फलों को सही समय पर काटना चाहिए।
  • कीटाणु संरक्षणः ड्रैगन फ्रूट की खेती में कीटाणु संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह फसल को संरक्षित रखता है और संक्रमण से बचाता है।
  • खाद और उर्वरकों का उपयोग करनाः ड्रैगन फ्रूट की खेती में उचित खाद और उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि यह पौधों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार पोषण प्रदान करता है।