उपेन्द्र यादव, शोध छात्र, फल ​​विज्ञान विभाग, 
चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर
सुजीत सिंह, शोध छात्र, फल ​​विज्ञान विभाग, 
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ
विवेक यादव,एमएससी छात्र, फल ​​विज्ञान विभाग, 
चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर

स्ट्रॉबेरी एक महत्वपूर्ण बागवानी फसल है, जो अपनी मिठास, स्वाद और पौष्टिक गुणों के कारण बाजार में बेहद लोकप्रिय है। यह फसल मुख्य रूप से ठंडी और समशीतोष्ण जलवायु में उगाई जाती है। स्ट्रॉबेरी एक विदेशी फल है, जिसकी खेती भारत में कई वर्षों से की जा रही है। यह फसल पारंपरिक फसलों की तुलना में किसानों को अधिक लाभ प्रदान करती है, जिससे अब बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाने लगी है। स्ट्रॉबेरी अपने आकर्षक आकार और रंग के लिए जानी जाती है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी उन्नत खेती तकनीकें भी किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की व्यवसायिक खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों में की जाती है।

इनमें प्रमुख रूप से पॉलीहाउस और हाइड्रोपॉनिक्स विधि शामिल हैं, जिनकी मदद से किसान बेहतर उत्पादन और अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। ये आधुनिक तकनीकें पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक लाभदायक साबित हो रही हैं। हालांकि, स्ट्रॉबेरी एक संवेदनशील बागवानी फसल है, इसलिए इसकी खेती के दौरान विशेष सावधानियां बरतना आवश्यक होता है।

1. जलवायु और भूमि चयन
स्ट्रॉबेरी ठंडी जलवायु में अच्छी तरह उगती है। दिन का तापमान 18-25°C और रात का 10-15°C इसके लिए आदर्श है। हल्की दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें अच्छी जल निकासी हो, स्ट्रॉबेरी के लिए सबसे उपयुक्त है। मिट्टी का pH 5.5-6.5 होना चाहिए।

2. किस्मों का चयन
दुनिया भर में स्ट्रॉबेरी की 600 से अधिक किस्में उगाई और खाई जाती हैं, लेकिन भारत में व्यवसायिक खेती के लिए कुछ लोकप्रिय किस्में: ओफ्रा, चांडलर, कैमारोसा, स्वीट चार्ली, सीस्केप, ब्लैक मोर, फेयर फॉक्स, एलिस्ता और ओसोग्रांडे जैसी किस्में किसानों की पहली पसंद हैं। भारतीय जलवायु को ध्यान में रखते हुए, इन किस्मों की बुवाई सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है। अधिक पैदावार और बेहतर मिठास प्राप्त करने के लिए स्ट्रॉबेरी की खेती बलुई दोमट और लाल मिट्टी में की जा सकती है।

3. रोपण का समय
स्ट्रॉबेरी की खेती करना काफी सरल है। किसी भी सामान्य फल या सब्जी की तरह इसकी खेती से पहले खेतों को जैविक विधि से तैयार करना आवश्यक है। सबसे पहले, खेत की गहरी जुताई करें और उसमें जैविक तत्वों से भरपूर वर्मीकंपोस्ट मिलाएं, जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ सके। इसके बाद, खेत में ऊँची क्यारियाँ बनाएं और उनके बीच 1 से 2 फुट की दूरी रखें ताकि फसल की देखभाल आसान हो सके।

सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन प्रणाली अपनाएं और खेत में नमी बनाए रखने पर विशेष ध्यान दें। इसके अलावा, बेड़ों पर उच्च गुणवत्ता वाली प्लास्टिक मल्चिंग बिछाएं और बीजों की बुवाई के लिए 30 सेमी की दूरी पर मल्चिंग शीट में छेद करें।

4. पौध तैयार करना
स्ट्रॉबेरी का प्रवर्धन रनर्स के माध्यम से किया जाता है। केवल प्रवर्धन के लिए (फील्ड रोपण के लिए नहीं) पौधों को 1.2 x 1.2 वर्ग मीटर या 1.8 x 1.8 वर्ग मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। स्टोलन के दूसरे नोड पर एक नया रनर पौधा विकसित होता है। पर्याप्त वृद्धि और जड़ें विकसित होने के बाद, इसे मातृ पौधे से अलग करके अन्यत्र लगाया जाता है।

5. स्ट्रॉबेरी फसल की देखभाल
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है। इससे लिए खेत की गहरी जुताई आवश्यक है। पहली जुताई के पश्चात खेत में 75 टन पुरानी सड़ी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में देना होता है। इससे बाद खेत की अच्छी तरह से जुताई कर गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए| इसके बाद खेत में पानी लगा देते है, जब खेत का पानी सूख जाता है, तो उसकी फिर से जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश जैसे उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें। बोरॉन और कैल्शियम का भी ध्यान रखें, क्योंकि इनकी कमी से फल का आकार और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

रोपाई के लगभग डेढ़ महीने बाद ही पौधों में फल आना शुरू हो जाते हैं और अगले चार महीनों तक निरंतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। एक एकड़ भूमि में लगभग 22,000 स्ट्रॉबेरी पौधे लगाए जा सकते हैं।

5. रोग और कीट प्रबंधन
स्ट्रॉबेरी के पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग देखने को मिलते हैं, जिनकी समय पर रोकथाम न होने पर उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। प्रमुख रोगों में विविल्स झरबेरी, रस भृंग, मक्खियाँ, चेफर, पतंगे, स्ट्रॉबेरी मुकट कीट और कण शामिल हैं।

इन रोगों से बचाव के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जाते हैं। जड़ रोगों की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में नीम खली डाली जाती है, जबकि पत्ती रोगों में पत्ती ब्लाइट, पत्ता स्पॉट और खस्ता फफूंदी का प्रकोप आमतौर पर देखा जाता है। रोग की सही पहचान कर उचित कीटनाशकों का छिड़काव करने से पौधों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

6. स्ट्रॉबेरी के फलो की तुड़ाई और पैकेजिंग
जब स्ट्रॉबेरी के फलों का रंग लगभग 70% आकर्षक हो जाए, तो उनकी तुड़ाई का सही समय होता है। फलों की तुड़ाई चरणबद्ध तरीके से कई दिनों में की जाती है।

तुड़ाई के दौरान फलों को हल्की डंडी के साथ तोड़ा जाता है ताकि सीधे हाथ लगाने से उनका नुकसान न हो। इसके बाद, फलों को प्लास्टिक की प्लेटों में पैक करना बेहतर होता है। पैकिंग के बाद, उन्हें ऐसी हवादार जगह पर रखा जाता है, जहां तापमान लगभग 5 डिग्री सेल्सियस बना रहे, ताकि उनकी ताजगी बनी रहे।

7. स्ट्रॉबेरी की पैदावार और लाभ
प्रत्येक पौधे से लगभग 500 से 700 ग्राम तक उत्पादन प्राप्त होता है, जिससे एक सीजन में कुल 80 से 100 क्विंटल तक स्ट्रॉबेरी का उत्पादन संभव है। स्ट्रॉबेरी की व्यवसायिक खेती से किसानों को अच्छी आय हो सकती है। स्ट्रॉबेरी का बाज़ारी भाव 300 से 600 प्रति किलो तक होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से अधिक मात्रा में लाभ कमाते है। इसके उत्पादन से किसानों को 6 लाख से 12 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। फसल की उच्च मांग और प्रोसेसिंग उद्योग में इसकी उपयोगिता इसे लाभकारी बनाती है।