डॉ. ईशु साहू, श्रीमती रितिका समरथ, सुश्री कल्पना कुंजाम, एवं डॉ. सरिता पैकरा
सहायक प्राध्यापक, उद्यानिकी महाविद्यालय, धमतरी

जैविक खेती सब्जी उत्पादन की वह पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरक, कीटनाशी, फफूँदनाशी, खरपतवारनाशी, वृद्धि नियामक पदार्थ आदि के प्रयोग को हतोत्साहित करके जैविक पदार्थो जैसे जैविक खादें, जैव उर्वरक, हरी खाद, फार्म के उत्पाद, जैविक कीटनाशी एवं फफूँदनाशी तथा फसल चक्र को बढ़ावा दिया जाता है। जैविक खेती का मुख्य उद्द्देश्य मृदा, पौधों एवं मनुष्यों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए फसल की उत्पादकता बढ़ाना है। सब्जियों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशी के अन्धाधुन्ध प्रयोग से मृदा उर्वरता एवं मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव देखा जा रहा है। कीटनाशी एवं फफूँदनाशी के अधिक छिड़काव से इनके हानिकारक अवशेष सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के शरीर पर बुरा प्रभाव डालते हैं जिससे बहुत सी जानलेवा बीमारियों रोग एवं विकार पनप रहे हैं। अतः इनके स्थान पर जैव कीटनाशी एवं फफूँदनाशी का प्रयोग करके इनके हानिकारक दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

जैविक खेती की आवश्यकता क्यों?
हमारे देश में सम्पूर्ण रासायनिक उर्वरक का लगभग 10 प्रतिशत भाग अकेले सब्जियों में प्रयोग होता है। सब्जियों में प्रति वर्ष लगभग 12.5 लाख टन रासायनिक उर्वरक प्रयोग किए जा रहे हैं जिसमें नत्रजन 5.3 लाख टन, फास्फेटिक उर्वरक 3.2 लाख टन तथा पोटाश उर्वरक का 4 लाख टन प्रयोग किए जा रहा है। मृदा उर्वरता में असंतुलन विशेषकर मृदा में सल्फर, जिंक एवं मैग्नीशियम की कमी, मृदा सूक्ष्म जीवों पर हानिकारक प्रभाव, मृदा जल का प्रदूषित होना तथा मृदा का लवणीय या क्षारीय होना आदि रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणाम है। अतः जैविक खेती अपनाकर इन हानिकारक रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक खादें जैसे गोबर की खाद, चीनी मिल की खाद, कम्पोस्ट आदि की 15-20 टन मात्रा/हे. एवं हरी खाद का 3 वर्षों में कम से कम एक बार खेत में पलटना चाहिए।

जैविक खेती के मुख्य स्रोत

(क) प्राथमिक स्रोत

1. जैविक खादें- गोबर की खाद, कम्पोस्ट, मुर्गी की खाद

2. वानस्पतिक अवशिष्ट- खलियाँ, पुआल, भूसा, फार्म अवशिष्ट

3. गोमूत्र एवं सींग से तैयार खाद (बायोडायनेमिक खाद)

4. जैव उर्वरक- राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, फास्फेट को घुलनशील बनाने वाले सूक्ष्म जीव (पी.एस.एम.), न्यूट्रिलिंक (वैम)

5. जानवरों के अवशिष्ट-जानवरों के मलमुत्र, वर्मीकम्पोस्ट (केंचुए की खाद)

6. कीड़ों एवं रोगों का जैविक नियंत्रण-ट्राइकोग्रामा, एन, पी, वी, ट्राइकोडर्मा, फेरोमोन, नीम उत्पाद आदि

(ख) पूरक/द्वितीयक स्रोत

1. चीनी मिल की खाद (प्रेशमड)

2. सीवर की खाद (डाइजेस्टेड स्लज)

3. कार्पेट अवशिष्ट

(ग) सस्य तकनीक अपनाकर

1. फसल चक्र

2. मृदा सूर्य ताप शोधन (भूमि का सोलेराइजेशन)

3.एग्रोनेट का प्रयोग

4. ट्रैप क्राप (आकर्षक फसलें)

5. गर्मी की गहरी जुताई

जैविक खादों मे पाए जाने वाले पोषक तत्व एवं उनकी मात्रा (प्रतिशत) इस प्रकार हैं।

जैविक खाद

नत्रजन

फास्फोरस

पोटाश

गोबर की खाद

1.0

 0.6

 1.2

ग्रामीण कम्पोस्ट

0.6

0.5

0.9

शहरी कम्पोस्ट

1.5

1.0

1.5

सीवेज स्लज

4.0-7.0

2.1-4.2

0.5-0.7

पुआल/भूसा

0.5

0.2

0.5

भेड़ बकरी के मल की खाद

4.0

1.0

2.0

मुर्गियों के बिछावन की खाद (ताजी)

3.03-1.47

1.15-2.63

0.48-1.40

महुआ की खली

2.5-7.9

0.8-4.0

1.0-2.2

ढैचा (हरी खाद)

0.62

0.15

0.58

सनई (हरी खाद)

0.75

0.12

0.51

नीम की खली

5.2

1.0

1.8


विभिन्न पोषक तत्वों का पौधों के विकास मे क्या योगदान
पौधों के बढ़वार और विकास के लिए मुख्य रूप से 17 तत्वों की आवश्यकता होती है। कार्बन व आक्सीजन, वायुमण्डल से प्राप्त होती है। हाइड्रोजन, वायुमण्डल से नमी लेकर जल का निर्माण कर लेता है। गंधक कई विटामिनों के उपाचय में योगदान करता है। इनमें विटामिन, थायमिन, बायोटीन तथा इंजाइम ए प्रमुख है। यह नत्रजन के संतुलन मे भी योगदान करता है। एक किग्रा गंधक प्रति हे0 की दर से देने पर 3-19 किग्रा तक पैदावार में वृद्धिहोती है। क्लोरीन पौधों की ऊर्जा क्रियाओं मे भाग लेता है तथा श्वसन क्रियाओं सम्बन्धित इन्जाइमों के निर्माण में मदद करता है। मैगनीज पौधों मे होने वाली इन्जाइम क्रियाओं में एक अंश के रूप में कार्य करता है तथा पर्ण हरित के संश्लेषण में मदद कर प्रकाश संश्लेषण में सीधी भूमिका अदा करता है तथा कैल्शियम की उपलब्धता बढकर बीजों के अंकुरण और फसल पकने की गति में वृद्धि करता है। मालिब्डेनम दलहनी फसलों की जड़ ग्रंथियों में राइजोबियम जीवाणु द्वारा सहजीवी नाइट्रोजन के स्थरीकरण की प्रक्रिया में मदद करता है तथा अजैविक फास्फोरस को जैविक रूपों मे बदलने के लिए आवश्यक है। जस्ते से सब्जियों की पैदावार अधिक प्रभावित होती है तथा पादप वृद्धि, पदार्थो के संश्लेषण व इन्जाइमों की क्रियाओं में मदद करता है। यह पर्ण हरित व कार्बोहाइड्रेट के उत्पादन के लिए भी आवश्यक है। इस प्रकार प्रत्येक तत्व सब्जियों की पैदावार के लिए आवश्यक है।

जैविकखेती के लिए संस्तुति कीटनाशी एवं फफूँदनाशी निम्नलिखित है-

(क) वानस्पतिक उत्पाद
निकोटीन सल्फेट यह तम्बाकू की पत्तियों से तैयार कीटनाशी है जो कि सब्जियों मे थ्रिप्स, माँहू (एफिड), मकड़ी तथा अन्य चूसने वाले कीड़ों के नियंत्रण के लिए उपयुक्त है। सबाडिल्ला यह लिली के बीज से तैयार कीटनाशी है जो कि सब्जियों में थ्रिप्स, माँहूएफिड), मकड़ी तथा अन्य चूसने वाले कीड़ों के नियंत्रण के लिए उपयुक्त है।

रोटीनोन
यह कीटनाशी दो विभिन्न दलहनी फसलों की जड़ों से तैयार किया जाता है। यह विभिन्न सब्जियों में पत्ती खाने वाली सूड़ी, एफिड एवं थ्रिप्स की रोकथाम के लिए उपयोगी है।

नीम उत्पाद
नीम के बीज से तैयार किया गया कीटनाशी सब्जियों में बहुत से कीटों के नियंत्रण के लिए प्रभावकारी पाया गया है तथा मनुष्य एवं लाभकारी मधुमक्खियों के लिए सुरक्षित है।

पाइरिथ्रम
यह गुलदावदी के फूलों से तैयार किया गया रसायन है जिसका बहुतायत प्रयोग कीड़ों के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

(ख) खनिज आधारित कीटनाशी सल्फर, चूना सल्फर

(ग) जैव आधारित कीट एवं फफूँदनाशी ट्राइकोग्रामा, ट्राइकोडर्मा, एन.पी.वी., बैसीलस थु्ररिनजेनेसिस

जैविकविधि से उत्पादित सब्जियों के श्रेणीकरण/ प्रमाणीकरण
जैविक खाद्य को श्रेणीकरण एवं प्रमाणीकरण जैविक उत्पाद की विश्वसनीयता बनाने रखने के लिए आवश्यक है अन्तर्राष्ट्रीय जैविक खाद्य आन्दोलन प्रतिष्ठान (आई.एफ.ओ.ए.एम.), आइरिस जैविक उत्पादक एवं किसान संगठन, संयुक्त राज्य अमेरिका का कृषि विभाग (यू.एस.डी.ए.) आदि के मापदण्डों के अनुसार सब्जियों की सस्य तकनीकी अपनाई जाती है। भारत में जैविक खाद्य के प्रमाणीकरण (डेमेटर सर्टीफिकेट) के लिए मापदंड एपेडा, नई दिल्ली के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। भारत में इसके प्रमाणीकरण के लिए एपेडा, आइरिस जैविक उत्पादक एवं किसान संगठन से सहयोग लेता हैं।

जैविक खेती से लाभ

1. उपभोक्ता की माँग में वृद्धि
इस समय सम्पूर्ण विश्व में जैविक खाद्य पदार्थो की माँग काफी बढ़ गयी है। वर्तमान मे जैविक पद्धति से उगाए गए खाद्य पदार्थो की माँग प्रति वर्ष 20-25 प्रतिशत की दर से बढ़रही है। जैविक खाद्य पदार्थो की बाजार में कीमत परम्रागत तरीके से उगाए गए उत्पादों की अपेक्षा 10-50 प्रतिशत ज्यादा होती है। इस प्रकार सब्जियों की जैविक खेती मृदा, मनुष्यों एव पशुओं के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होने के अलावा इसके उत्पादों के बाजार मूल्य भी अधिक प्राप्त किए जा सकते हैं।

2. गुणवत्ता में सुधार
अध्ययन से पता चला है कि जैविक खादें एवं जैव उर्वरके के प्रयोग से सब्जियों में विटामिन-ए, विटामिन-सी तथा भण्डारण क्षमता में वृद्धि हुई है।

3. उत्पादन में वृद्धि
रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक एवं जैविक खादें प्रयोग करने से सब्जियाँ के उत्पादन में 10-50 प्रतिशत तक वृद्धि आँकी गयी है।

4. रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक के प्रयोग में कटौती
जैविक खाद, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट (केचुए की खाद), जैव उर्वरक, जैविक कीटनाशी आदि के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशियों की मात्रा मे 25-50 प्रतिशत तक कमी लायी जा सकती हैं।

5. मृदा की दशा में सुधार
जैविक खेती के माध्यम से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार लाया जा सकता है तथा मृदा की उर्वरता को सत्त बनाए रखा जा सकता है।

6. मृदा जल प्रदुषण से बचाव
कीटनाशी, खरपतवारनाशी एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा जल प्रदूषित होता है। जैविक कृषि अपनाकर मृदा जल को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।

7. पशुओं एवं मनुष्यों के स्वास्थ की रक्षा
कीटनाशी एवं रासायनिक उर्वरकों के अन्धाधुन प्रयोग से पशुओं एवं मनुष्यो मे हानिकारक रसायनों का प्रवेश हो रहा है। जैविक खेती अपनाकर इन हानिकारक तत्वों के प्रवेश को रोका जा सकता है और वातावरण तथा मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।