डॉ. कुन्तल साटकर, डॉ. सुमन रावटे एवं विभा चंद्राकर,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, फिंगेश्वर, गरिया बंद, इ.गाँ.कृ.वि.वि.रायपुर (छ.ग.)
अमरूद (Psidiumguajava L.) व्यावसायिक रूप से एक महत्वपूर्ण फल है एवं भारत के प्रमुख फलों में से एक लोकप्रिय फल है। अपनी व्यापक उपलब्धता, भीनी सुगन्ध एवं उच्च पोषक गुणों के कारण यह ‘‘गरीबों का सेब’’ भी कहलाया जाता है। अमरूद की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है। अमरूद का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक हैं।
पिछले दशक (2001-2010) में अमरूद के क्षेत्रफल में 1.3 गुना वृद्धि (0.16 से 0.21 मिलियन हेक्टेयर) और उत्पादन में 1.4 गुना वृद्धि (1.72 से 2.46 मिलियन टन ) हुई है। वर्ष 2023 में देश की अमरूद की खेती का क्षेत्रफल लगभग 358 हजार हेक्टर था जिसके द्वारा 5.58 मिलियन मीट्रिक औसतन उत्पादन प्राप्त हुआ। हालांकि, इसकी उत्पादकता में अभी भी उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। कम उत्पादकता के कई कारणों में से, फसल विनियमन को न अपनाना सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है।
फसल विनियमन विभिन्न तकनीकों के माध्यम से किया जा सकता है जैसे, छंटाई, रसायनों और पौधों की वृद्धि नियामकों का उपयोग, शाखावंकन आदि। इनमें से, शाखावंकन फसल विनियमन की सबसे सरल और लागत प्रभावी तकनीक है।
अमरूद में प्रायः वर्ष में तीन बार पुष्पन एवं फलन की प्रक्रिया होती है, जिसको बहार कहा जाता है। बहारों का विवरण नीचे दिया गया है-
बहार |
फूल लगने का समय |
फलन का समय |
गुणवत्ता |
मृगबहार |
जून-जुलाई (वर्षा ऋतु) |
नवंबर-जनवरी (शरद ऋतु) |
फल उच्च कोटि के
मीठे एवं बड़े होते
है। उपज अधिक
व बाजार मूल्य
अधिक प्राप्त होता है। |
अम्बे बहार |
फरवरी-मार्च (बसंत ऋतु) |
जुलाई से सितंब
(वर्षा ऋतु) |
फल स्वाद मे कम
मीठे एवं गुणवत्ता अच्छी
नही रहती है। |
हस्त बहार |
अक्टूबर-नवंबर (शरद ऋतु) |
फरवरी-अप्रेल (बसंत/ग्रीष्म
ऋतु) |
फलो का स्वाद
अच्छा लेकिन उपज कम
मिला है। |
शाखावंकन द्वारा बहार नियंत्रण
शाखाओं के अग्र शीर्ष भाग पर बनने वाले पादप हार्माेन ऑक्सीजन का संरक्षण पौधे में नीचे की तरफ होता है, ऑक्सीजन के प्रभाव के कारण शाखा के निचले हिस्से में पाई जाने वाली कलियां सुषुप्त हो जाती हैं और सहायक प्ररोहों का निकलना कम हो जाता है ऑक्सीजन का सहायक कालिकाओं पर निरोधात्मक प्रभाव, शीर्ष प्रभाव अथवा शीर्ष प्रभुत्व कहलाता है। ऊपर की ओर बढ़ने वाली सीधी शाखाओं पर यह प्रभाव अत्यधिक रहता है। जिससे शाखा के निचले हिस्से में पाई जाने वाली निष्क्रिय सहायक कालिकाएं सक्रिय हो जाती हैं तथा अधिक संख्या में प्ररोह निकलने लगते हैं इस प्रकार शाखाअंकन अर्थात शाखा को झुकाकर अधिक मात्रा में बाहर लाई जा सकती है।
अमरूद के वृक्ष में फूल नए प्ररोहों में ही लगते हैं शाखों को यदि झुकाया जाता है, तो उनमें खिंचवा उत्पन्न होता है, जिस कारण उनमें निकलने वाले नए प्ररोहों से अन्य पादप हिस्सों में पाया जाने वाला प्रकाश संश्लेषण उत्पाद खाद्य स्थानांतरण अवरोधित हो जाता है। फलस्वरुप प्ररोहों में कार्बन नत्रजन का अनुपात फूल तथा फल लगने की प्रक्रिया को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त शाखावंकन की प्रक्रिया के दौरान शाखा को झुकाने, कमजोर एवं छोटी शाखाओं तथा पत्तियों को निकाल देने से अमरुद वृक्ष आघात तनाव की स्थिति में आ जाता है। इस के परिणामस्वरुप प्रोलीन नामक अमीनो एसिड बनने लगता है, जो पुष्पन की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है।
शाखावंकन की तकनीक
पारंपरिक पद्यति से (5x5 मीटर की दूरी) पर लगाए गए बगीचे में शाखावंकन एक बहुत ही सरल तकनीक है। हालाँकि, उच्च घनत्व (5x5 मीटर से कम दूरी) वाले बगीचे में इसे अपनाना संभव नहीं है क्योंकि झुकने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होती है और पौधा प्रवृति में फैलने वाला हो जाता है। शाखा मोड़ने का कार्य 2 वर्ष पुराने पौधे में किया जा सकता है तथा इसे 8 वर्ष तक जारी रखा जा सकता है। झुकने के लिए अपनाएं जाने वाले चरण हैं-
- फसल की उर्वरक की आवश्यकता का आधा भाग झुकाने से 15-20 दिन पहले डालें।
- प्रत्येक शाखा के अंतिम भाग पर 10-12 जोड़ी पत्तियों को बरकरार रखते हुए शाखाओं से छोटे अंकुर, पत्ते, फल एवं फूल तोड़ लें।
- केंद्रीय छत्र को खोलने के लिए शाखाओं को नीचे झुकाएँ। शाखाओं को मोड़ने के लिए आधार पर दबाव डालना चाहिए और इसे धीरे-धीरे टिप वाले हिस्से तक बढ़ाना चाहिए।
- टहनियाँ 1 सेमी लम्बी हो जाएं तो मुड़ी हुई शाखाओं को खोल दें ।
- शाखा बंधन के 15 से 20 दिन पश्चात शाखाओं में नए प्ररोहों का निकालना प्रारंभ हो जाता है तथा यह प्रक्रिया लगभग 20 से 25 दिन तक चलती रहती है शाखा बंधन के 40 से 45 दिन बाद इन झुकी शाखाओं के बंधन काट दिए जाते हैं।
शाखावंकन का उचित समय
वैसे तो बेंडिंग का अभ्यास पूरे साल किया जा सकता है, लेकिन बागवानों को सलाह दी जाती है कि वे इसे बरसात और सर्दियों के मौसम में न करें, ताकि क्रमशः फूल गिरने और धीमी वृद्धि के कारण फसल को होने वाले नुकसान से बचाजा सके। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए गर्मियों और शरद ऋतु के मौसम में बेंडिंग करना वांछनीय माना जाता है।
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ग्रीष्म ऋतु में झुकना (Summer bending) |
शरद ऋतु में झुकना
(Autumn bending) |
झुकने का समय (Time of bending) |
अप्रैल-जून |
सितंबर से नवंबर |
अंकुर उद्भव (Shoot emergence) |
झुकने के 8-10 दिन बाद |
झुकने के 20-25 दिन
बाद |
पुष्पन (Flowering) |
झुकने के 40-45 दिन
बाद |
झुकने के 60-65 दिन
बाद |
शाखावंकन के लाभ
- यह तकनीक पर्यावरण अनुकूल और लागत प्रभावी है, इसमें फसल नियंत्रण के लिए महंगे और हानिकारक रसायनों की आवश्यकता नहीं होती है।
- शाखा को झुकाने से पौधे का केन्द्रीय वितान खुल जाता है, जिससे सूर्य का प्रकाश बेहतर तरीके से प्रवेश कर पाता है तथा वितान में वायु संचार सुगम हो जाता है एवं बीमारियों और कीटों का प्रकोप भी कम हो जाता है।
- अन्य बाहर नियंत्रण की विधियों की तुलना में शाखावंकन अधिक संख्या में निष्क्रिय कालिकाओं को सक्रिय करता है, जिससे अंकुरों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे जैव भार को बिना हानि पहुचाएं प्रचुर मात्रा में पुष्पन और फलन होता है।
- यह एक समान पुष्पन और फलन को बढ़ाता है।
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