करिश्मा, पी.एचडी., द्वितीय वर्ष, आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
सुरेखा, पी.एचडी., फाइनल ईयर, पादप आण्विक जीव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग,
 इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)


रूपरेखा:-

(1) परिचय

(2) रागी की खेती

(3) प्रसंस्करण

(4) रागी का औषधि गुण

(5) रागी के मूल्य संवर्धित उत्पाद

परिचय:-
रागी का वैज्ञानिक नम इलूसाइन कोरकाना है। कुल पोएसी व क्रोमोसोम नम्बर उत्पति स्थान अफ्रीका माना जाता है। भारत में रागी एक लघु धान्य फसल है सामान्यतः यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में कर्नाटक और तमिलनाडु में उगाया जाता है। तथा इसका छत्तीसगढ़ में बस्तर, सरगुजा में अधिक मात्रा में उत्पादन लिया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में रागी का उत्पादन 4.5 मिलियन टन है जिसमें 2.5 मिलियन टन अफ्रीका के क्षरा उत्पादित किया जाता है भारत में रागी की खेती का क्षेत्रफल 2.5 मिलियन हे. उत्पादित 2.2 मिलियन टन है। रागी की खेती हजारों वर्ष से युगाड़ा एवं इथोपिया में की जा रही है। भारत में रागी की फसल के रूप में हजारों वर्ष पूर्व लगाया गया है। अन्न वाली फसलों में रागी का स्थान उच्च पोषक तत्व एवं ऊर्जा देने वाली फसल के रूप में है। पोषक तत्वों के क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान है।

रागी अनाज, आटा एवं मिश्रित आटा आदि के रूप में उपयोग किया जाता है। रागी एक बहुपोषक तत्वीय भोज्य पदार्थ है जो कि रेशे, प्रोटीन, कैल्शियम एवं अन्य आवश्यक लवणों से भरपूर होता है। दक्षिण भारत में रागी को मुख्य भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है। रागी कर्नाटक के प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है।

रागी की खेती:-
रागी को दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से उगाया जाता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में किसानों द्वारा उगायी जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। इसकी उत्पादकता कम है क्योंकि इसमें उन्नत कृषि तकनीक का प्रयोग नहीं हो पा रहा है। जिसके के लिए इन समस्याओं के समाधान के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अंतर्गत कार्यरत शहीद गुण्डाधूर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र जगदलपुर (छ.ग.) में अखिल भारतीय समन्वित लघु धान्य अनुसंधान परियोजना प्रयत्नशील है।

जलवायु:-
रागी की खेती के लिए सामान्यतः खरीफ में बोयी जाती है। रागी सूखा एवं भारी वर्षा के लिए सहन कर सकती है लेकिन जल भराव के प्रति संवेदनशील है। रागी के लिए अधिकतम तापमान 21 डिग्री सें.-29 डिग्री सें. व आर्द्रता 70-81% है।

भूमिक तैयारी:-
भूमि की तैयारी के लिए पहली गहरी जुताई करें। तत्पश्चात् 2-3 जुताई कर पाटा चलावें इस प्रकार भूमि में कतार में लघु धान्य (रागी) फसलों की बुवाई करें।

सस्य क्रियायें:-

क्र. कृषि कार्य रागी

1. बीज की मात्रा 12-15 कि.ग्रा./हे.

2. बीज की बुवाई 15 जून से 30 जुलाई

3. पोषक तत्व NPK 50:40:20 कि.ग्रा./हे. कि.ग्रा./हे.

4. नींदा नियन्त्रण 35 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखें और नत्रजन की दूसरी मात्रा देवें। आइसोप्रोट्यूरान नामक निंदानाशक का 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व अंकुरण पूर्व उपयोग करने से अच्छी प्रकार से निंदा नियंत्रण होता है।

5. कटाई दाने भूरे हो पत्तियाँ पीली होने लगे।

6. डपज दाना 20-25 क्विं/हे. एवं चारा 40-50 क्वि./हे.

उन्नत किस्में:-

इंदिरा रागी -01: यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार होता है। इसका औसत उत्पादन 27-30 क्वि./हे. है। एवं यह ब्लास्ट बीमारी हेतु अवरोधी है।

छत्तीसगढ़ रागी-02: यह किस्म असिंचित क्षेत्र हेतु अत्यंत उपयुक्त है। यह 115-118 दिन में पकती है। एवं 30-32 क्वि./हे. उत्पादन देती है।

चंपावती (V.R.708): यह किस्म उन क्षेत्रों हेतु उपयुक्त है जहां पकने के समय में मृदा में नमी की कमी हो जाती है। पौधे की ऊँचाई 75-80 सेमी. पकने में 90-95 दिन लगते है। विशेष रूप से सूखा व झुलसा सहनशील है। उत्पादकता 18-20 क्विं/हे. है।

जी.पी.यू. 28 : सिंचित व असिंचित दोनों दशा में अच्छा उत्पादन देती है। यह 110-115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है उपज 20-25 क्विं./हे. तक होती है।

पौध संरक्षण:-

रागी में रोग प्रबन्धन

(1). लीफ ब्लास्ट 

लक्षण:
1. सर्वप्रथम पत्ती पर इस रोग के लगभग 1.4 mm के रूप में प्रकट होते है।

2. धब्बों का केन्द्रीय भाग हल्का गहरा या फीका धूसर रहित हो जाता है और जलसिक्त धब्बा पत्तीयों पर दिखाई पड़ता है

3. इसका बाहरी परिधि गहरे भूरे रंग की होती है।

प्रबंधन:
प्रांरभिक अवस्था में कार्बेण्डाजिम 0.1% या मेंकोजेब 0.2% या ट्राइसाकोजोल 0.06 दवा का पहला छिड़काव 50% पुष्पन के समय व दूसरा छिड़काव। इसके 10 दिन के बाद करने पर गर्दन व दानों में लगा झुलसा का नियंत्रण किया जा सकता है।

(2). Neck  ब्लास्ट

लक्षण:
1. बाली की गर्दन सिकुड़ी हुई दिखाई पड़ती है और उस पर रोयेदार कवक वृद्धि भी मिलती है।

2. ग्रीवा या तने पर कुछ-कुछ नीले रंग के धब्बे का परीक्षण करके रोग प्रभावित पौधे बड़े आसानी से पहचाना जा सकता है।

3. यदि दानों की रचना से पूर्व ही उग्र आक्रमण हो चुका होता है तो दाने भरते नहीं है और पुष्प गुच्छा सीधा खड़ा रहता है।

4. परन्तु यदि कुछ दानों के भरने के बाद आक्रमण हुआ तो पुष्प गुच्छा झुक जाता है।

5. बाली की ग्रीवा के ऊतकों का क्षय हो जाने के कारण बालियां

(3). रागी ब्लास्ट

लक्षण:
फसल के पकने के समय पुष्पक्रम के पिच्छाक्ष पर भूरे या काले दाग।

(4). टंगमारी 

लक्षण:
इसमें पत्तियों की बाहरी सतहों पर भूरे रंग की धारियां बनती है, जो बाद में पूरी पत्तियां में फैल जाती है। यह नर्सरी अवस्था में भी नुकसान पहुँचाता है।




रोकथाम:-

बीजोपचार:- केप्टान या थाइरम का 2 ग्राम दवा प्रतिकिलो बीज या मेन्कोजेब 2 ग्राम /किलो बीज से भी नियंत्रण किया जा सकता है।

जैव नियन्त्रण - रागी, कोदो एवं कुटकी में ब्लास्ट, अंगमारी एवं शीथ ब्लाइट के रोकथाम के लिए स्युडोमोनास फ्लोरेसेंस + ट्राइकोडर्मा हारजियनम + बेसिलज सबटीलिस को मृदा में 1 किलो टेल्कम पावडर के मिश्रण को 25 किलो सड़ी हुई गोबर खाद में मिलाकर बुवाई से 15 दिन पूर्व में उपयोग करने पर प्रभारी नियंत्रण पाया जा सकता है।

कीट प्रबन्धन:-

रागी का तना छेदक:-
यह कंसे की अवस्था में आने पर तनाछेदक तने में छेद बनाकर बाली आने की स्थिति को रोकता है।

नियंत्रण:-
इसके नियंत्रण के लिए 0.2% क्लोरोपायरीफाॅस घोल छिड़के या फोरेट 10 जी का प्रति एकड़ 4-6 किग्रा. भूमि में बुवाई पूर्व मिलावें या 4 किग्रा. प्रति एकड़ दर से छिड़काव कंसे की अवस्था में करें।

फसल की कटाइ गहाई एवं भण्डारण:- फसल पकने पर रागी को जमीन की सतह के ऊपर कटाई करें। खलियान में रखकर सुखाकर टेªक्टर या बैलों से गहाई करें। उड़ावनी करके दाना अलग करें। दानों को धूप में सुखाकर भण्डारण करें।

भण्डारण करतें समय सावधानियां:-

1. भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं होनी चाहिए।

2. भण्डार गृह की फर्श सतह से कम से कम दो फीट ऊँची होनी चाहिए।

3. कीड़े हो तो उन्हें चूना से पुताई कर नष्ट करें।

लघु धान्य फसलों के मूल्य संर्वधित उत्पाद:-

(1) रागी माल्ट - 3-4 चम्मच रागी आटा, 3-4 चम्मच गुड़, (इलायची पाउडर)

(2) रागी पकोड़ा - चना दाल 2 कप, रागी आटा 2 कप, 3 कली लहसुन, अदरक, 1 प्याज बारीक कटा, 3 हरी मिर्च, हरी धनीयां, जीरा पाउडर, 3 अजवाईन, नमक स्वाद अनुसार।

(3) रागी डोसा - उड़द दाल 150 ग्रा., चावल 150 ग्रा. रागी आटा 100 ग्रा., नमक स्वाद अनुसार।

(4) रागी ढोकला - सूजी या रवा 1 कप, उड़द डेढ़ कप, रागी

(5) रागी चकली - बेसन 2 कप रागी आटा 1 कप, सफेद तिल 2 चम्मच, तेल 2 चाय चम्मच नमक स्वाद अनुसार।

(6) रागी खुरमी - मैदा-2 कप, रागी आटा-1 कप, रवा आधा कप, शक्कर डेढ़ कप, तेल/डालडा/घी आवश्यकतानुसार मोयन के लिए।

(7) रागी सलोनी - मैदा 2 कप, रागी आटा 1 कप, कलौंजी 1 चाय चम्मच, तेल/डालडा/घी आवश्यकतानुसार मोयन के लिए एवं नमक स्वाद अनुसार।

रागी का औषधिय महत्व:-

1. रागी में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, रागी मे मुख्य रूप से इल्यूसीन प्रोटीन पाई जाती है जिसका जैविक गुण अधिक होता है।

2. रागी खनिज लवणों का उत्तम स्त्रोत है। अन्य अनाज वाली फसलों की अपेक्षा रागी में 5-30 गुना अधिक कैल्शियम पाया जाता है। रागी मुख्यतः अस्थि रोग एवं खून की कमी से पीड़ित लोगों के लिये वरदान है।

3. मधुमेह नियंत्रक - रागी की निरन्तर सेवन से मुधमेह रोग होने का जोखिम कम हो जाता है, जो कि उसमें उपस्थित पोलीफिनाॅल एवं रेशा के कारण होती है। पोलीफिनाॅल बीज के बाहरी आवरण में अत्यधिक मात्रा में उपस्थित होते है।

4. वजन तथा कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक:- रागी में आवश्यक अमीनों अम्ल ट्रिप्टोफेन तथा रेशा की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा लेसीथिन, मिथियोनिन आदि अमीनों अम्ल पाये जाते है।

5. रागी में प्रति अपचायक भी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है जो कि कैंसर प्रतिरोधक का काम करते है।

6. दुग्धस्त्रवण तथा पाचन में सहायक:- रागी में विभिन्न प्रकार के अमीनों अम्ल, विटामिन, खनिज लवण एवं रेशा भरपूर मात्रा में पाया जाता है। जो कि महिलाओं में दुग्ध स्त्रवण एवं पाचन में सहायक होता है।