कृष्णा, शशिकांत सूर्यवंशी, अमरनाथ सोनकर, सस्य विज्ञान विभाग
(कृषि महाविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़)

कैसे करें एकीकृत खरपतवार प्रबंधन तरीकों से खरपतवार नियंत्रण?
खरपतवार नियंत्रण कृषि में एक महत्वपूर्ण कार्य है और इसके लिए वैज्ञानिक और तकनीकी तरीकों का उपयोग आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के वैज्ञानिक तरीकों में यांत्रिक, सांस्कृतिक, जैविक, रासायनिक और एकीकृत खरपतवार प्रबंधन शामिल हैं। यांत्रिक नियंत्रण में शारीरिक रूप से खरपतवारों को हटाना शामिल है, सांस्कृतिक नियंत्रण में पर्यावरण को संशोधित करना शामिल है, जैविक नियंत्रण प्राकृतिक दुश्मनों का उपयोग करता है, रासायनिक नियंत्रण जड़ी-बूटियों का उपयोग करता है, और एकीकृत खरपतवार प्रबंधन कई तरीकों को जोड़ता है। विधि का चुनाव विशिष्ट स्थिति और खरपतवार के प्रकार पर निर्भर करता है।

1. निवारक विधि:
इस विधि में वे क्रियाएं शामिल हैं जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी एवं बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों के प्रयोग से पूर्व सफाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिए लगाना आदि।

2. यांत्रिक विधि: 
खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ से या खुरपी की सहायता से निकालते हैं। लाइनों में सीधी बुवाई की गई फसल में हों चलाकर भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लाइनों में बोई गई फसल में पैडी वीडर चलाकर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। सामान्यत: धान की फसल में दो निराई-गुड़ाई, पहली बुवाई/रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है तथा फसल की पैदावार में काफी वृद्धि की जा सकती है।

3. शस्य क्रियाओं में परिवर्तन द्वारा:

(i). बुवाई से पूर्व खरपतवारों को नष्ट करके (स्टेल सीडबेड)– जब खरीफ मौसम की पहली बरसात होती है तो बहुत से खरपतवार उग जाते है जब ये खरपतवार 2-3 पत्ती के हो जाए तो इनकों शाकनाशी द्वारा या यांत्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है। जिससे मुख्य फसल में खरपतवारों के प्रकोप में काफी कमी आ जाती है।

(ii). गहरी जुताई द्वारा– रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद या गर्मी के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज एवं कंद (राइजोम) जमीन के ऊपर आ जाते हैं तथा तेज धूप में अपनी अंकुरण क्षमता खोकर निष्क्रिय हो जाते हैं। इस विधि से कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप भी काफी कम हो जाता है। रोपाई वाले धान के खेतों में जुताई एवं मचाई (पडलिंग) करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है। पडलिंग एवं हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर एक सार करने से एवं खेत में पानी को ठीक प्रकार से काफी समय तक रोकने से खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।

(iii). किस्मों का चुनाव एवं बुवाई की विधि– जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिए जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक होता कि ऐसी प्रजातियाँ खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा करके उन्हें नीचे दबा सके। प्राय: यह देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते हैं। छिटकवां विधि से कतारों में बोई गई धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते हैं तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है। अत: धान को हमेशा कतारों में ही बोना लाभदायक रहता है।

(iv). कतारों के बीच की दूरी एवं बीज की मात्रा– धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने से खरपतवारों को उगने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता है। इसी तरह बीज की मात्रा में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है। धान की कतारों को संकरा करने (15सेमी.) एवं अधिक बीज की मात्रा (80-100 किग्रा./हेक्टेयर) का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है।

(v). उचित फसल चक्र अपनाकर– एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में उगाने से खरपतवारों की समस्या और जटिल हो जाती है। अत: यह आवश्यक है कि पूरे वर्षभर एक ही खेत में धान-धान-धान लेने के बजाय धान की एक फसल के बाद उसमें दूसरी फसलें जैसे चना, मटर, गेहूं आदि लेने से खरपतवारों को कम किया जा सकता है।

(vi). सिंचाई एवं जल प्रबंधन– रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि धान की रोपाई के 2-3 दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी 1-2 सेमी. खेत में समान रूप से रहना चाहिए। उसके बाद पानी के स्तर को 5-10 सेमी. तक समान रूप से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है। मचाई (पडलिंग) किये गये सीधे बोये धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाए तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्रास जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। इस विधि को उड़ीसा में ‘बुशेनिंग’ एवं मध्यप्रदेश में ‘बियासी’ कहा जाता है।

(vii). उर्वरकों का प्रयोग– भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा, उर्वरक देने की विधि एवं समय का भी फसल एवं खरपतवारों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। फसल एवं खरपतवार दोनों ही भूमि में निहित पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। खरपतवार नियंत्रण करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता फसल को ही मिले सुनिश्चत की जा सकती है। पोषक तत्वों की अनुमोदित मात्रा को ठीक समय एवं उचित तरीके से देने पर धान की फसल इनका समुचित उपयोग कर पाती है। असिंचित उपजाऊ भूमि में जहां खरपतवारों की समस्या अधिक होती है वहां नाइट्रोजन की आरंभिक मात्रा को बुवाई के समय न देकर पहली निराई-गुड़ाई के बाद देना लाभदायक रहता है तथा नाइट्रोजन को धान की लाइनों के पास डालना चाहिए जिससे इसका ज्यादा से ज्यादा भाग फसल को मिल सके।

4. खरपतवारनाशियों के प्रकार और उनका उपयोग: 
अवांछित पौधों या खरपतवारों को नियंत्रित करने और मारने के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायन हैं। इनका उपयोग खरपतवार के प्रकार, फसल और उसके विकास अवस्था पर निर्भर करता है। खरपतवारनाशक का उपयोग मुख्यरूप से बुवाई के पहले और बुवाई के बाद इस्तेमाल करना चाहिए।

पोस्ट-इमर्जेंस हर्बीसाइड्स: इनका उपयोग उन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है जो पहले से ही मिट्टी से उग चुके होते हैं। उगे हुए खरपतवारों पर छिड़काव किया जाता है। अन्य खरपतवार नियंत्रण विधियों जैसे खेती या हाथ से निराई के साथ संयोजन में उपयोगी। बारह मासी खरपतवारों को नियंत्रित करने में विशेषरूप से प्रभावी। स्थापित खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।

उदाहरण – बिस्पायरी बैक सोडियम 10 प्रतिशत एस.सी. @ ए.आई. 25 ग्राम, फेनोक्साप्रॉप 9.3 प्रतिशत + एथोक्सीसल्फ्यूरॉन 15 प्रतिशत ई.सी. @ ए.आई. 60+20 ग्राम

प्री-इमर्जेंस हर्बीसाइड्स: इनका उपयोग खरपतवार के बीजों को अंकुरित होने और बढ़ने से रोकने के लिए किया जाता है। रोपण से पहले या खरपतवार के बीज के अंकुरण से पहले मिट्टी पर छिड़काव किया जाता है। वार्षिक खरपतवारों को नियंत्रित करने में प्रभावी। अन्य खरपतवार नियंत्रण विधियों जैसे फसल रोटेशन या कवर क्रॉपिंग के संयोजन में उपयोगी। खरपतवार के शुरुआती नियंत्रण में सहायक।

उदाहरण - पेंडीमेथलिन 30 प्रतिशत ई.सी. @ ए.आई. 750-1000 ग्राम, प्रीटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ई.सी. @ ए.आई. 500-750 ग्राम प्रीटिला क्लोर 37 प्रतिशत ई.सी. @ ए.आई. 550 ग्राम पायराज़ो सल्फ्यूरॉनएथिल 10 प्रतिशत डब्लयू.पी. @ ए.आई. 20-25 ग्राम।