सुरेखा, पीएच.डी., फाइनल ईयर, पादप आण्विक जीव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग
हेम प्रकाश वर्मा, पीएच.डी‐, फाइनल ईयर, कृषि विस्तार विभाग
खुशबू टंडन, पीएच.डी., फाइनल ईयर, फल विज्ञानविभाग 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,रायपुर (.ग.)


पिछले कुछ वर्षो से ऊतक संवर्धन (टिश्यू कल्चर) विधि द्वारा केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किये जा रहे हैं। इस विधि द्वारा तैयार पौधों से केला की खेती करने के अनेकों लाभ हैं ये पौधे स्वस्थ एवं रोग रहित होते है। पौधे समान रूप से वृद्धि करते हैं। इसलिए सभी पौधों में पुष्पन, फलन की कटाई एक साथ होती है, जिसकी वजह से इसकी मार्केटिंग में सुविधा होती है। हमारे देश में बड़े स्तर पर केला की खेती की जाती है। सब्जी से लेकर चिप्स बनाने तक केले की काफी डिमांड है। ऐसे में किसान भाई इसकी खेती कर अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन किसान भाई केला उगाने के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं।फल वैज्ञानिक के मुताबिक फलों का आकार-प्रकार एक समान एवं पुष्ट होता है। टिशू कल्चर से तैयार पौधों में फलन लगभग 60 दिन पूर्व हो जाता है। इस प्रकार रोपण के बाद 12-14 माह में ही केले की पहली फसल प्राप्त हो जाती है। औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक मिलती है। वैज्ञानिक विधि से खेती करके 60 से 70 किग्रा की उपज भी हासिल की जा सकती है।

टिश्यू कल्चर तकनीक से केले की खेती करना एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है। इस तकनीक से तैयार किए गए पौधे रोगमुक्त और एक समान होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है।इसमें पौधे के एक छोटे टुकड़े को एक विशेष माध्यम में उगाया जाता है। इस माध्यम में पोषक तत्व और हार्मोन होते हैं जो पौधे की कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करने में मदद करते हैं। कुछ ही महीनों में पौधे पर्याप्त रूप से विकसित हो जाते हैं और उन्हें खेत में लगाया जा सकता है।

टिशू कल्चर क्यों?
सकर्स आम तौर पर कुछ रोगजनकों और नेमाटोड से संक्रमित हो सकते हैं। इसी प्रकार, सकर्स वाले की उम्र और आकार में भिन्नता के कारण फसल एक समान नहीं होती है, कटाई लंबी होती है और प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। ऊतक संवर्धन तकनीक पांच महत्वपूर्ण चरणों से बनी है, जैसे सड़न रोकनेवाला संवर्धन की शुरुआत, गुणन, शूटिंग और रूटिंग, ग्रीनहाउस में प्राथमिक सख्त होना और शेड नेट घरों में माध्यमिक सख्त होना।

होते हैं कई फायदे
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे रोग से मुक्त होते हैं, जिससे फसल को बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है।
  • इस तकनीक से तैयार किए गए पौधे एक समान आकार और आकार के होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे आम तरीके से तैयार किए गए पौधों की तुलना में जल्दी फल देने लगते हैं।
  • इस प्रकार तैयार किए गए पौधे परंपरागत तरीके से तैयार किए गए पौधों की तुलना में ज्यादा उपज देते हैं।

टिश्यू कल्चर केले से किसानों को फायदा
देश में केले की पांच सौ अधिक प्रजातियां हैं। इसमें टिश्यू कल्चर केला किसानों के लिए सबसे अधिक फायदेमंद है। यह 13 से 15 माह में तैयार हो जाता है, जबकि अन्य प्रभेद 16 से 17 महीने में तैयार होता है। 24 से 25 माह के अंदर दो फसल तैयार हो जाता है। टिश्यू कल्चर केले की खासियत है कि इससे तैयार पौधों से 30 से 35 किलो प्रति पौधा केला मिलता है। ये पौधे स्वस्थ और रोग रहित होते हैं। सभी पौधों में पुष्पन, फलन व कटाई एक साथ होती है।

काफी फायदेमंद है केले की खेती
औषधीय गुणों से भरपूर केले की खेती किसानों के बड़े फायदे का सौदा है। प्रति एकड़ साढ़े चार लाख रुपये तक किसान कमा सकते हैं। यह फल विटामिंस और मिनरल्स का खजाना है। लोग इसे हर मौसम में खाना पसंद करते हैं। इसमें शर्करा, खनिज लवण, कैल्सियम तथा फास्फोरस की मात्रा प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। पका केला विटामिन ए, बी एवं सी का अच्छा स्रोत है। यह सस्ता, परिपूर्ण व सबसे ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर फल है। इसके नियमित सेवन से दिल की बीमारियां का खतरा कम होता है। इसके अलावा यह गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर और किडनी के विकारों से संबंधित रोगों से बचाव में भी सहायक है। यह आंख की रोशनी को बढ़ाता है और कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी से बचाव के लिए रोग निरोधक क्षमता को भी बढ़ाने का काम करता है।

केले से तैयार मूल्य संवर्धक
किसान केला से तरह-तरह का मूल्य संवर्धक उत्पाद तैयार कर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। केले की खेती यानि आम के आम गुठली के भी मिल जाते हैं दाम। केले से तैयार मूल्य संवर्धक उत्पाद जैसे चिप्स, फिग, शीतल पेय, आटा, जैम पेस्ट, चाकलेट, सिरका आदि का बाजार में खूब मांग है। इसके तना से पेपर बोर्ड, टिश्यू पेपर एवं धागे आदि बनाए जाते हैं। इसका पत्ता थाली बनाने और सजावट के भी काम आता है।

केले की अधिक उपज देने वाली किस्में-

1. ग्रैंडनाइन

2. बौना कैवेंडिश

3. रोबस्टा

4. लाल केला

5. पूवन नेंद्रन

क्रियाविधि
केले के टिशू कल्चर प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं-
  • मातृ पौधों का चयन। रोग एवं कीट से मुक्त स्वस्थ मातृ पौधे का चयन करना चाहिए।
  • मदर प्लांट सही प्रकार का होना चाहिए।
  • शुद्धता बनाए रखने के लिए मदर नर्सरी को अन्य केले के बागानों से 500 मीटर की दूरी पर स्थित होना चाहिए।
  • अलग-अलग पौधों को एक कोड के साथ टैग किया जाना चाहिए ताकि ऊतक संवर्धित पौधों का मूल पौधे से पता लगाया जा सके।
  • प्रत्येक मातृ पौधे का वंशावली रिकॉर्ड और स्रोत प्रतिदिन एक रजिस्टर में रखा जाना चाहिए।
  • रोगमुक्त केले के पौधों से प्राप्त एक्सप्लांट से सड़न रोकने वाली संस्कृतियों की शुरूआत।
  • इन विट्रो में प्ररोहों का गुणन।
  • व्यक्तिगत प्ररोहों में जड़ों का प्रेरण।
  • पॉलीहाउस में कोमल पौधों का प्राथमिक और द्वितीयक सख्तीकरण।
  • कठोर ऊतक संवर्धन पौधों का क्षेत्र स्थानांतरण।

फसल के लिए विशिष्ट ऑपरेशन हैं जो उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करते हैं-

डीसकरिंग- केले की खेती में मातृ पौधे के साथ आंतरिक प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए डीसुकरिंग एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इसमें पौधे के आधार के पास विकसित होने वाले अवांछित चूसकों को हटाना शामिल है।

सहारा देना- पौधों को बांस से उचित सहारा देना एक आवश्यक सांस्कृतिक अभ्यास है। ऐसा तेज हवाओं के कारण पौधों को गिरने से बचाने के लिए किया जाता है छंटाई - अतिरिक्त पत्तियों की छंटाई से पुरानी पत्तियों के माध्यम से फैलने वाले रोग को कम करने में मदद मिलती है।

मिट्टी चढ़ाना- जल जमाव से बचने के लिए, रोपण के 3-4 महीने बाद मिट्टी लगाना चाहिए यानी पौधे के आधार के आसपास मिट्टी का स्तर बढ़ाना चाहिए।

निराई-गुड़ाई- वृक्षारोपण को खरपतवार मुक्त रखने के लिए, रोपण से पहले 2 लीटरध्हेक्टेयर की दर से ग्लाइफोसेट (राउंड अप) का छिड़काव करना महत्वपूर्ण है। एक या दो हाथ से निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है।

लपेटना- फलों को धूप, गर्म हवा और धूल से बचाने के लिए केले के गुच्छे को ढक दिया जाता है। फल का रंग सुधारने के लिए लपेटन भी किया जाता है। यह कीड़ों के काटने और उसके परिणामस्वरूप होने वाले काले धब्बों से भी बचाता है। यह अभ्यास केले के फल की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करता है।

केले के उपयोग-
  • केले को कच्चा, सुखाकर या पकाकर कई तरह से खाया जाता है। इसका उपयोग न केवल फल के रूप में बल्कि सब्जियों के रूप में और चिप्स तथा अन्य मिठाइयाँ बनाने में भी किया जाता है।
  • कच्चे केले को सुखाकर और पीसकर आटा बनाया जाता है क्योंकि इनमें स्टार्च प्रचुर मात्रा में होता है और इसका उपयोग ब्रेड और शिशु आहार में किया जाता है।
  • यह बालों, त्वचा और आंखों के लिए बेहद फायदेमंद है।
  • यह वजन घटाने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देता है, हड्डियों की ताकत बढ़ाता है, सहनशक्ति को बढ़ाता है।
  • यह गर्भवती माताओं के लिए बेहद फायदेमंद है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है।
  • भारत के कुछ हिस्सों में केले के फूलों का उपयोग करी में सब्जियों के रूप में और स्नैक्स तैयार करने में भी किया जाता है।
  • केले की पत्तियों का उपयोग छाते, कपड़े, चटाई और छत के रूप में भी किया जाता है।
  • उष्णकटिबंधीय देशों में केले के पत्तों का उपयोग खाद्य पदार्थों को लपेटने के लिए भी किया जाता है। पौधे के रेशों को लपेटकर सुतली बनाया जा सकता है।