डाॅ. प्रवीण कुमार निषाद, विषय वस्तुविशेषज्ञ (प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी) 
डिप्रोशन बंजारा, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख (सस्य विज्ञान), 
कृषि विज्ञानकेन्द्र, दन्तेवाडा, इं.गां.कृ.वि.वि., रायपुर (छ.ग.)

प्रस्तावनाः-
बस्तर के आदिवासी समाज के लिए महुआ का पेड विशेष महत्व रखता है। वनों पर आश्रित व इनके निकटरहने वाले जनजाति, ग्रामीण आबादी के लोगों द्वारा औषधियों के रूप में प्राचीन काल से किया जा रहा है। इसी कड़ी में उनकी आजीविका में महुआ वृक्ष उनके जीवन रेखा का आधार है।प्रदेश में रहने वाले अधिकांश आदिवासी एवं ग्रामीण आबादी आज भी महुआ फूलों को भोजन व अन्य व्यावहारिक रूप में जीवणोपार्जन के लिए प्रयोग में ले रहे है।महुआ के फूल एवं फलों का संग्रहण, प्राथमिक प्रसंस्करण एवं भंडारण की वैज्ञानिक विधि की जानकारी न होने के कारण उनके द्वारा संग्रहित किए गए महुआफूलों का उचित दाम नहीं मिल पाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस लेख में महुआफूल उत्पादन से लेकर उसके संग्रहण, प्रसंस्करण, भंडारण,ंपरिवहनएवं विपणन के समय आवश्यक सावधानी की जानकारी दी गई है, जो किउत्तम श्रेणी के फूलसंग्रहण के साथ-साथ मूल्य वर्धन में भी उपयोगी सिद्ध होगी।

परिचयः-
महुआ एक भारतीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जोपूरे भारत में मुख्य रूप से छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, ओडिसा, पश्चिमबंगाल, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, केरल, गुजरात और तमिलनाडु तक एक पर्णपातीवृक्ष के रूप में समुद्रतल से 1200 मीटरऊंचाई तक पाया जाता है।यह तेजी से बढने वाला पेड है जो लगभग 20 मीटरऊंचाई तक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले वृक्ष के रूप में पाया जाता है। यह सभी प्रकार की मिट्टी,चट्टान,बंजर से लेकररेतीलीजमीन में शुष्क वन में पाया जाता है।

महुआ छत्तीसगढ सहित देश केअन्य राज्यों के जनजातीय समुदाय का महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ है। इसके फूल एवं फल ग्रीष्म ऋतु में उसे समय प्रकृति से प्राप्त होते हैं, जब जनजातिसमुदाय के पास चावल एवं अन्य भोज्य पदार्थों का भण्डार लगभग नगण्य रहता है। इस कारण वन अंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासियों के लिए इसके रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महत्व बढ़ जाता है। उक्त महत्व के कारण महुआफूल एवं फल का संग्रहण,प्रसंस्करण एवं भंडारण यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो फल एवं फूल की गुणवत्ता के साथ-साथ उचित मूल्य प्राप्त कर आर्थिक स्तर पर वृद्धि की जा सकती हैएवं बहुउद्देशीय उत्पादों के उपयोग में प्रयोग किया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ राज्य में महुआफूल और फल (टोरा) का संग्रहणराज्य उघुवनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारीसंघमर्यादित द्वारा किया जाता है जिसका वार्षिकसंग्रहण क्षमता 5 लाख टनसे भी अधिक है। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता ऐसाराज्य है जहां इसकी खरीदी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित है। वर्ष 2024 के लिए, महुआफूल एवं फल (टोरा) का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमशः 33 व 32 रूपये प्रति किलोग्राम है।

(1.) महुआफूलकासंग्रहणः-

(अ) पारंपरिक विधिः
महुआफूलका संग्रहणमार्च-अप्रैल के महिनों में किया जाता है। फूल की गुणवत्ता का संग्रहण विधि से काफी प्रभाव पड़ता है क्योंकि पारंपरिक तरीके से जिस तरह महुआ का संग्रहण किया जाता है उसमें वृक्ष के चारों तरफ सफाई कर गिरेहूए फूल को हांथो से बिनकर या झाड़ू से बटोर जाता है। जिस कारण फूल में बालू के कण एवं अन्य अवशिष्ट मिल जाने पर गुणवत्ता खराब होती है। इसके साथ ही कई उत्पाद तैयार करने में उसे उपयोग नहीं किया जा सकता। इससे इसकी मांग कमजोर होने से बाजार मूल्य कम प्राप्त होते हैं एवं संग्रहणकर्ता को उचित पारिश्रमिक नहीं मिल पाता।दूसरी पारंपरिक विधि में वृक्ष के चारों ओर आगलगाई जाती है जिससेअंधेरे में या कम प्रकाश में फूल का संग्रहणसुविधाजनक हो सके। परंतु इससे आसपास के वन क्षेत्र में आगलगने की संभावना बढ़ जाती है जिससे नई पौध का नुकसान होता है साथ ही गिरे हुए महुआफूलों में जलाए गए पत्ते एवं कचरा की गंदगीलग जाती है।

(ब) वैज्ञानिक तकनीकः
महुआफूल वृक्ष से 25 से 50 फुट की ऊंचाई से गिरता है गिरते ही जमीन से टकराने के कारण आधा भागदब जाता है तथा उसेभाग में धूल तथा बालू के कणचिपक जाते हैं। यही भागसूखने के बाद कालापड़ जाता है जो कि खराब गुणवत्ता (ग्रेड-सी) की श्रेणी में आता है।अतःउच्च गुणवत्ता के लिए वृक्ष छत्र के नीचे नेट/त्रिपाल/पॉलीथिन शीट/पुरानीसाड़ियों की शीटबिछाकरफूल का संग्रहण करना चाहिए। इसके लिए नेट/त्रिपाल/पॉलीथिन शीट/पुरानीसाड़ियों की शीट को वृत्तकेे घेरे की लंबाई की माप की त्रिज्यालेते हुए टुकड़ेकांट ले एवं आवश्यकता अनुसार टुकड़ों को आपस में सिलकरफूलसंग्रहण के लिए तैयार करना चाहिए। इस पर संग्रहण करने से महुआफूल के जमीन पर गिरने से धूल मिट्टी एवं अन्य गंदगीउसेछू भी नहीं पाती एवं गुणवत्ता बनी रहती है। इसके अतिरिक्त वृक्ष के नीचे गिरेपत्तों को वैसे ही पड़ेरहने देने पर फूल के गिरने से वहजमीन पर नहीं लगते एवं काफीहद तक गुणवत्ता खराब होने से बच जाती है।

(2.) महुआफूल को सुखाने का तरीका
महुआफूल का उत्पादन साल के सिर्फ 15 से 20 दिन तक ही होता है जबकि इसकी खपत वर्ष भर होती है अतः यह आवश्यक हो जाता है कि महुआफूलों को किसी तरह से संभालकर रखा जाए ताकि इसका सालभर उपयोग हो सके। चूंकि महुआफूल में पानी का प्रतिशत 20 से अधिक होता है जिससे इसके भंडारण के दौरान खराब होने की आशंकारहती है अतः इसको सुखाकर नमी के प्रतिशत को कम करना बहुत आवश्यक होता है।

(अ) पारंपरिक विधिः
महुआफूल के उत्पादन के समय (मार्च-अप्रैल)महीने में तेज धूप रहती है अतः इसकोसूखने के लिए सूर्य के तापमान में पारंपरिक तरीके से खुलेआसमानकेे नीचे साफ जगह पर सुखालिया जाता है। संग्रहणकर्ता द्वारा महुआफूल को 3 से 5 दिनों तक खुलेआसमान में सुखाकरअपने जरूरत के लिए रख लिया जाता है और बची हुई मात्रा को गांव या बाहर के व्यापारियों/बिचैलियोंको बेंच दिया जाता है। व्यापारीइसे खरीदकरफिर से 2 से 3 दिन के लिए सूर्य की धूप में सुखाते हैं ताकि नमी का प्रतिशत कम किया जा सके एवं महुआ को अधिक समय तक भंडारण किया जा सके।

(ब) वैज्ञानिक तकनीकः
यह पारंपरिक विधि से बेहतर है क्योंकि इसमें महुआफूल मिट्टी के फर्श के संपर्क में नहीं आताअतः यह अधिक साफ एवं अच्छी गुणवत्ता का महुआ पाने की विधि है।इसमें छिद्र युक्त ट्रे/चैकोरथाली का उपयोग किया जाता हैैजिससे की हवा का आना जाना रह सके और सूखने की गति तेज हो सके। महुआ के फूल को चैकोरथाली में रखकरफैला दिया जाता है और धूप में सूखने के लिए बाहर रख देते हैं।

(3.) महुआफूलभंडारणका पारंपरिक एवं वैज्ञानिक विधिः-
परंपरागततरीकों से महुआफूल का भंडारण जूट की बोरियों में रखकर बंद कमरे में किया जाता है जिसमें नमी एवं तेज धूप नहीं पहुंच पाती हो। लेकिन इस विधि से भण्डारितजूट की बोरीजमीन से नमी को सोंख लेती है जिससेफूल अधिक समय तक सुरक्षित नही रहता है।

महुआफूल को वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण एवं प्रसंस्करण के पश्चात उपयुक्त तरीके से भंडार करना भी आवश्यक है जिससेलंबे समय तक गुणवत्ता प्रभावित किए बिनासुरक्षित रखा जा सके। इसके लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पॉलिथीनबैग में भरकरइसकोजूटबैग में किसी अच्छेभंडारगृह में रखा जाता है। इन जूटबैग को जमीन से 2 से 4 इंच ऊंचे लकड़ी के पट्टे या लोहे के स्टेण्ड पर रखा जाता है ताकि जमीन से नमी को सोंख नापाए।इसके अलावा महुआफूल को टीन या प्लास्टिक की चैकोरटंकियां में भी सीलबंद कर रखा जाता है। भण्डारण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि फूल को दबादबाकरपूरी तरह से टंकी में भर दिया जाए ताकि हवा रिक्त स्थान से भण्डारितमहुआ में न पहुंच सके एवं नमी से संरक्षित रहे।कोल्डस्टोरेज में भी महुआफूल को प्लास्टिक की टंकियां में रखकर भंडारित किया जाता है जिससे अधिक समय तक सुरक्षित रहता है। महुआ रखने से पहले भंडार घरों को अच्छी तरह से साफ किया जाना चाहिए तथा इसका फुमिगेशन करना अत्यंत आवश्यक है।इस तरह का भंडारण बड़े व्यापारी ही कर पाते हैं।

(4.) महुआ फल का संग्रहण,प्रसंस्करण एवं भंडारण
परवल के आकार जैसा दिखने वाला गुदेदारमहुआका फल मई माह में आता है और जूनमाह मेंपरिपक्व हो जाते है। फल के अंदर एकभूरेरंग का चमकदारबीज(टोरा) पायी जाती है।महुआ फल का संग्रहण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि फल पूर्णतःपरिपक्व होने पर ही संग्रहित किया जाए।परिपक्वफलों का संग्रहणबांस की डंडी में दतारीफंसा कर फल के गुच्छो को वृक्ष के नीचे पॉलीथिन शीटबिछाकरगिराना चाहिए।परिपक्व फल हल्के पीले होते हैं एवं इन्हेंदबाने पर आसानी से दब जाते हैं। परिपक्वफलों के अंदर बीज हल्की गहरीभूरे/काले/कत्थईरंग की होती है, जबकि अपरिपक्वफलों से प्राप्त होने वाली बीजसफेदरंग की होती है।
पारंपरिक तरीको में फल से गूदेको हाथों से हटाया जाता है। जिसमें पहले फल को 5 से 6 घंटे तक पानी में डुबोकर रखा जाता है फिरसुखाकरपत्थरों से पीटकर अलग किया जाता है। एकमहुआवृक्ष से लगभग 20 से 40 किलोग्रामबीज प्राप्त हो जाता है।

वैज्ञानिक तरीकों से बीज निकालने के लिए डिकार्टिकेटरमशीन का उपयोग किया जाता है। इस विधि से निकलेबीज का उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है।

(5.) महुआफूल एवं फल के उपयोगः-
  • अभी तक महुआफूल का उपयोग अधिकतरदेशी शराब बनाने में ही किया जाता रहा है।
  • यह ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी एवं अन्य गरीबवर्गों की आजीविका का सहारा है। आदिवासी एवं अन्य वनवासी इसका उपयोग खाद्य रूप में भी करते हैं।
  • महुआफूल शर्करा का प्राचीन स्रोत रहा है जिसमें जैम,सिरप,मिठाई का निर्माण किया जाता है।
  • महुआफूलों का प्रयोग पशुचारे एवं दुधारू पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
  • इसके फूलों के अंदर विद्यमान एंजाइम्स के रूप में कैटलेज,ऑक्सीडेंट,इनवर्टेज,माल्टेज, एमाइलॉजइत्यादि की पहचान की गई है जो औषधि उपयोग में आते हैं।
  • इसकी बीजसे प्राप्त तेल को कोकोबटर के नाम से जाना जाता है जिसका उपयोग शोधन कर के चॉकलेटउद्योग के प्रयोग में लाया जाता है।
  • इसके तेल को लुब्रिकेटिंगग्रीस निर्माण, जूटउद्योग तथा मोमबत्तीउद्योग में बड़ी मात्रा में उपयोग में लाया जाता है।
  • इसके तेल का मुख्य उपयोग कपड़े धोने वाले साबुनवसौंदर्यप्रसाधन में किया जाता है।
  • महुआतेल का औषधीय उपयोग गठियाव सिरदर्द,पुरानीकब्ज,भगंदर इत्यादि रोगों में किया जाता है।
  • निर्यात मूल्य के रूप में इसका उपयोग गोल्फ व अन्य खेल के मैदानोंमें वर्मीसाइड के रूप में किया जाता है।
  • इसके फूलों का उपयोग निम्नव्यंजन जैसे रसकुटका, लाटा, बिस्किट, सलोनी, अचार इत्यादि को तैयार करने में किया जाता है।

(6.) परिवहन एवं विपणनः-
महुआफूल काउचित संग्रहण व सुखाकर बाजार में भेजनेहेतु तैयार किया जाता है। बाजार में भेजेजाने वाले महुआ के फूल की गुणवत्ता होने पर ही उचित दाम प्राप्त होते हैं। यदि महुआफूलसंग्रहण में बताई गई वैज्ञानिक तकनीकी का इस्तेमाल किया जाए तो उच्च गुणवत्ता के फूलों का संग्रहणहोगा एवं साफ सुथरा होने के कारण परिवहन करते समय उसमें उसकी गुणवत्ता में किसी तरह की कमी नहीं आएगी न ही कीड़े औरफफूंदका आक्रमणहोगा साथ ही उत्पाद का उचित मूल्य भी मिलेगा।अतः इसके लिए आवश्यक है कि महुआफूल को भलीभांतिसूखने के पश्चात भंडारण के लिए जूट के बोरोंया शक्कर की खालीबोरी का उपयोग किया जाए जिससे महुआ की गुणवत्ता बनी रहे।