लेखराम वर्मा, डाॅ अविनाश गौतम एवं डाॅ देवेन्द्र कुमार देवांगन
सहायक प्राध्यापक, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, फिंगेश्वर (गरियाबंद)

भारत की चीरकाल संस्कृति, आयुर्वेद और औषधि से नीम का नाता है। नीम को संस्कृत में एरिस्टा और मिम्बाकहते हैं जिसका हिन्दी अर्थ सर्वगुणकारी और स्वास्थ्यवर्धक होता है।इसमें विभिन्न प्रकार के बायोएक्टीव यौगिक से परिपुर्ण होता है परंतु प्रमुखता एजाडेरेक्टीन की होती है। जिसके फलस्वरूप इसका वैज्ञानिक नाम एजाडेरिक्टीका इंडिका रखा गया है।

भारत को नीम का पेटेंट सन 2005 में प्राप्त हुआ। इसके पहले अमेरिका के कृषि विभाग एवं विलियम रसेल ग्रेस एंड कारपोरेशन नामक मल्टीनेशनल कम्पनी के नाम से था। विश्वभर में नीम से संबंधित प्रक्रिया और उत्पाद के कुल 126 पेटेंट किए गये है। सबसे अधिक कुल 54 पेटेट अमेरिका के पास है। भारत के पास नीम के विभिन्न भागों का उपयोग आयुर्वेदाचार्य सामान्य एवं गंभीर बिमारियों के लिए करते है, जबकि भरत के पास कुल 14 पेटेट है।

नीम का पेड़ मनुष्य, पशु, कृषि और पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपुर्ण है।नीम वृक्ष के सभी भाग (पत्ती, फल, जड़ एवं छिलका) रोगाणुरोधक, जीवाणु एवं विषाणु नाशक है जबकि कर्करोग रोधी होने संबंधी तथ्य भी माने जा रहे है। पशुओं की अनेक बिमारिंयों के लिए किया जाता है। नीम आक्सिजन उत्सर्जन के गुण है।

नीम के पेड़भारत सहित छ.ग. के विभिन्न क्षेत्रों में सहजता से प्राप्त होती है। यह एक पर्णपाती वृक्ष है। उप-शुष्क जलवायु एवं कम नमी चाहने वाला पौधा है। अधिक ठंड में इसकी पत्तियां मुर्झा जाती है।भारत में लगभग 275 प्रकार के नीम की प्रजाती है, जिनकी संख्या लगभग 2 करोड़ है। नीम का एक सामान्य वृद्धि वाला वृक्ष से 40-50 किग्रा./वर्ष फल मिलता है। बरसात मौसम में इसके पके फल पेड़ो से टपकते है जो स्वाद में हल्के कड़वाहट के साथ मीठे लगते है।लगभग 100 किलो फल से 50 से 60 किग्रा. सुखे फल प्राप्त होते है। छ.ग. में इसकी पत्तियों, फलों का उपयोग विभिन्न दैनिक-घरेलू एवं सांस्कृतिक आयोजनों में होता है।

नीम के विभिन्न भागों का उपयोग कृषि एवं फसल उत्पादन में होते रहे है। नीम की पत्तियों का उपयोग सुरक्षित अनाज भण्डारण विशेष रूप से प्रचलित है। यह पुष्टित है कि जहां कृषि में रासायनिक दवाओं का प्रयोग अधिक है वहां केन्सर एवं नपुंसकता के मामले अधिक दिखाई पड़ते हैं। यह निश्चित है कि इसका दुर्गामी परिणाम और भी भयानक होेगें। रासायानिक दवाओं का दुश्प्रभाव सीधे मानव व अन्य जीव पर पड़ता है, साथ ही मृदा की कार्यशीलता एवं मृदा में पाये जाने वाले विभिन्न लाभदायी सूक्ष्म जीवों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

इन सभी प्रकार की समस्याओं के विस्तार को रोकना हमारे लिए चुनौती और नैतिक जिम्मेदारी है। भविष्य को स्वस्थ एवं विशमुक्त रखने में नीम उत्पाद का कृषि में उपयोग एक महत्वपूर्ण पहल है। नीम एक महत्वपूर्ण कीट एवं रोग रोधी तत्व है, जिसका उपयोग कृशि में अधिकाधिक करना अति महत्वपूर्ण है। नीम का प्रयोग मुख्य रूप से सुखे पत्ते, नीम खाद, नीम तेल, नीम केक, हरी खाद, नीम पत्तियों के घोलएवं पावडर सहित अन्य रूप में किया जाता है।

नीम तेल
नीम तेल सुखे हुए फल की पिराई से प्राप्त होता है।वर्तमान में नीम तेल का प्रयोग धान उत्पादन के साथ सब्जी उत्पादन अथवा कीट प्रबंधन में प्रमुखता से किया जा रहा है। यह बाजार मेंऐजा पावर, डाक्टर नीम, निम्पा, लिमडो 1500, ओरर्गानीम,इत्यादि नाम से अलग-अलग सांद्रता में सहजता से उपलब्ध है। इसके छिड़काव से पौधे/पत्ती की सतह पर एक कड़वा सतह बन जाता है जो समस्त प्रकार के कीटों से पौधों की रक्षा करते हैं।जिससे पौधे में कीट का आक्रमण नियंत्रित होता है। नीम तेल की 30 एम.एल.मात्रा प्रति नेपसेक स्प्रेयर (15 लीटर) के हिसाब से उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार एक एकड़ के फसल में 300 एम.एल. नीम तेल पर्याप्त होता है। शुद्व नीम तेल का प्रयोग प्रभावी ढंग से करने हेतु साबुन का घोल, सैंपु इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए, इसके प्रयोग से पौध भाग में नीम तेल ठीक प्रकार से फैलते और चिपकते है।

नीम केक
यह सुखे बीज से तेल निकालने के पश्चात् बचा उत्पाद होता है, इसमें नाइट्रोजन 3.56% होता है। इसका प्रयोग न सिर्फ नाइट्रोजनप्रदान करता है बल्कि यह विनाईट्रीकरण प्रक्रिया को कम करता है। यह उर्वरक एवं कीटनाशी के रूप में भी प्रयोग हेाता है। भूमि में उपस्थित चिचड़ी (निमेटोड) को नष्ट करता है। मृदा को स्वस्थ बनाता है, मृदा में कार्बनिक तत्वो की वृद्धि कर मृदा संरचना को बेहतर करता है।

नीम केक में उपलब्ध तत्व एवं प्रतिशत मात्रा-

तत्व का नाम एवं प्रतिशत मात्रा
  • नाइट्रोजन - 3.56
  • फास्फोरस - 0.83
  • पोटेशियम - 1.67
  • कैल्शियम - 0.99
  • मैग्निशियम - 0.75
  • सल्फर - 1.2

नीमखाद
यह संयुक्त रूप से जीव, पौधे अथवा दोनों से प्राप्त हुए पदार्थ होते हैं जिसका उपयोग मृदा उर्वरता, पौध वृद्धि, फसल उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक होता है। यह वातावरण के अनुकूल होने के कारण वर्तमान में इसका उपयोग बढ रहा है। नीम नाइट्रोजन, पोटाश और सुक्ष्म तत्व जैसे -सल्फर,कैल्शियमइत्यादि की वृद्धि करता है। नीम खाद तैयार करने के लिए गाय का गोबर, गौ मूत्र, व अन्य कृषि अपशिष्ट को नीम की पत्ती की अधिकता के साथ सड़ा कर तैयार किया जाता है। इसका का प्रयोग खेतों में सीधे अथवा अन्य कार्बनिक खाद के साथ मिला कर सुगमता से किया जा सकता है।

पावडर के रूप में
नीम के फल, जड़ एवं छाल को कूटकर पावडर रूप में प्रयोग किया जाता है। यह मृदा को फसल अनुकुल बनाता है। इसका प्रयोग बीज बुआई व सिंचाई के समय किया जा सकता है। यह मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक कीट व सूक्ष्मजीवों को नश्ट करता है एवं लाभदायी सू़क्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायक होता है।

नीमास्त्र
नीमास्त्र तैयार करने के लिए 5 किलो नीम की ताजी पत्ती, 2 किलो गाय का ताजा गोबर, गौ मूत्र 5लीटर की आवश्यकता होती है। सबसे पहले पत्त्यिों को अच्छे से कूटकर/पीसकर, प्लास्टिक ड्रम या मिट्टी का पात्र में 50 लीटर पानी और गौ मूत्र को भी मिला लें। ड्रम को सूती के कपड़े से बांधकर ढक लें। घोल को 24 घण्टे के लिए छोड़ दे। तैयार घोल को छान लें। फसलों में उपयोग के लिए 100 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें।

नीम कोटेड युरियो के रूप में 
इससे प्रदाय युरिया का पौध उपयोग प्रतिशत स्वतः ही बढ़ जाता है क्योंकि यह धीरे - धीरे घुलता है साथ ही भूमि की उर्वरता पर भी बहुत कम नुकसान होता है। चूंकि भूमि की उर्वरता नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की उपलब्धता पर निर्भर करती है, यह तत्व विभिन्न प्रकार के बैक्टेरिया के द्वारा वाश्पीकृत कर दिया जाता है। नाईट्रोजन कोटेड यूरिया वाष्पीकृत करने वाले बैक्टिरिया और उसके क्रियाविधि को कम करता है, जिससे भूमि में अधिक समय तक उर्वरता बने रहने में सहायता मिलती है। जिसके कारण नाइट्रोजन कोटेड यूरिया सामान्य यूरिया की मात्रा में फसल में कम डालना पड़ता है।

नीम उत्पाद की कार्यप्रणाली
नीम उत्पाद विभिन्न कीटों के पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव न डाल कर हार्मोेनल तंत्र पर प्रभाव डालता है। फलस्वरूप कीटों में विभिन्न रासायनों/दवाईयों के लिए सहनशीलता नही बढ़ पाती। नीम कीटनाशी, मृदा उर्वरता बढ़ाने वाला पौध वृद्धि हार्मोन अथवा कीट विकर्शणकरने वाला होता है। नीम के पौध भागों में उपस्थित एजाडिरेक्टीन, सेलानीनंड एवं मेलान्ड्रिआॅल नामक रासायनों के कारण यह मुख्यतः तीन प्रकार से कीटों पर प्रभाव डालता है -

1. कीट विकर्शक व पौध भाग को कीटों के लिए अरूचिकर बनाने में।

2. कीट के भोजन को अरूचिकर बनाना।

3. कीट जीवन चक्र को प्रभावित कर वृद्धि नियामक/जीवन चक्र को प्रभावित कर।

1. कीट विकर्षक व पौध भाग अरूचिकर बनाना- यह नीम का असाधारण एवं महत्वपूर्ण गुण है पौधों के उपचारित भागों को खाने पर कीट के एलीमेन्ट्री कनेाल में स्वतः ही क्रमानुकंचन की क्रिया बढ़ जाती है जिससे कीट को अत्यधिक भुख लगने लगता है और उपचारित भाग केा खाने से पौधे में उपस्थित रसायन एलिमेन्ट्रीकेनाल के क्रमानुकंचन क्रिया को बंद कर देते हैं। फलतः भुख लगने और भोजन नली से भोजन नीचे नहीं जाने पर उल्दी जैसा उत्तीपन लक्षण प्रकट होते हैं फलस्वरूप कीट भुख से मर जाते हैं अथवा अन्य भोजन हेतु पौधों की ओर गमन करता है।

2. मादा का अंडा न दे पाना - मादा कीट फसल/मृदा में जब अंडे देती है तो इससे पहले वह निश्चित जगह का निर्धारण करती है जहां पर अंडों से लार्वा आसानी से बन सके परंतु फसल/मृदा यदि नीम उत्पाद से उपचारित है तो वह उपयुक्त समय में उपयुक्त स्थान का चुनाव नहीं कर पाती है। फलस्वरूप मादा या तो फसल से दुर उचित स्थान में अंडे देती है या उपचारित क्षेत्र में अंडे देने से कीटों का जीवन चक्र पुर्ण नहीं हो पाता है। इस प्रक्रिया में खड़ी फसल व भण्डारित अनाज दोनों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

3. कीट वृद्धि नियमांक के रूप में - इस रूप में नीम उत्पाद का गुण अद्वितीय हैं किसी भी कीट के जीवन काल में मुख्यतः चार चरण होते हैं अंडा, इल्ली, कोसा और तितली। जब कीट इल्ली की अवस्था में रहता है तो फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है और यदि कीट इस समय भोजन के साथ में नीम उत्पाद की यदि वह सही मात्रा में खा लेता है, तो निर्माेचन करने की प्रक्रिया नही कर पाती, क्योंकिवहएक्डीसोर नामक एन्जाईम के द्वारा निर्धारित होती है और यह एन्जाइम एजेडेरेक्टिन की उपस्थिति में नहीं बन पाता है फलतः निर्मोचन नहीं होने से वह जीवन चक्र के अगले चरण में प्रवेश नहीं कर पाता है ओर यदि रासायन की मात्रा कम होने के कारण वह निर्माेचित हो भी जाता है तो तितली शत् प्रतिशत विकृत होगी और निश्चित रूप से अप्रजायी (नपुंसक)होती है।

ध्यान रखने योग्य बाते:-

1. नीम उत्पाद बनाने हेतु स्वस्थ एवं रोग पौध भाग लेना चाहिए।

2. भविष्य में उपयोग हेतु पौध भाग को सही प्रकार से छाये में सुखाकर नमी रहित सुखे स्थान पर भण्डारित करना चाहिए।

3. घरेलू उपयोग हेतु बर्तन में उत्पाद को नहीं बनाना चाहिए।

4. नीम उत्पाद बनाने के लिए हमेशा प्लास्टिक बर्तन का उपयोग करें।

5. उत्पाद को बच्चों एवं जानवरों को दूर रखना चाहिए।

6. यदि साबून घोल अथवा अन्य पदार्थ मिलावें तो उत्पाद का प्रयोग बड़े क्षेत्र में करने से पहले छोटे प्रक्षेत्र में उपयोग कर लेना चाहिए।