सुरेश कुमार साहू पीएचडी स्कॉलर 
पादप रोग विज्ञान विभाग

कद्दूवर्गीय सब्जियों को मानव आहार का एक अभिन्न अंग माना गया है। एक आदमी को रोजाना 300 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए परन्तु भारत में इसका 1/9वां भाग ही मिल पाता है। कद्दूवर्गीय सब्जियों की उपलब्धता साल में आठ से दस महीने तक रहती है। इसका उपयोग सलाद रूप में (खीरा, ककड़ी), पकाकर सब्जी के रूप में (तोरई, करेला, परवल) मीठे फल के रूप में (तरबूज व खरबूजा) मिठाई बनाने में (पेठा, परवल, लौकी) अचार बनाने में (करेला) प्रयोग किया जाता है। इन सब्जियों में विभिन्न प्रकार के कीट व रोगों, सूत्रकृमियों एवं खरपतवारों के कारण लगभग 30 प्रतिशत नुकसान होता है।

कद्दूवर्गीय सब्जियों की प्रमुख रोग

1. उकठा
यह रोग एक मृदा जनित फफूंद फ्यूजेरियम स्पीसीज से होता है। इससे प्रभावित पौधा मुरझाकर सूख जाता है। पौधे की जडें व भीतरी भाग भूरा हो जाता है तथा पौधे की वृद्धि रूक जाती है। स्पष्ट लक्षण फूल आने व फल बनने की अवस्था में दिखाई देते है।

रोकथाम:
  • रोगरोधी किस्मों की बुवाई करें।
  • भूमि सौर्यीकरण करने पर भी बीमारी को कम कर सकते है।
  • बुवाई से पूर्व बीज के बाविस्टीन (1-2 किग्रा) से उपचारित करें तथा बीमारी आने के बाद ड्रेचिंग भी करें।

2. चूर्णिल आसिता
इस रोग में पत्ती की ऊपरी सतह पर सफेद या धुधंले धूसर रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते है। जो बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते है। पत्तियों व फलों का आकार छोटा व विकृत हो जाता है व पौधों की पत्तियां असमय गिर जाती है।

रोकथाम:
  • रोगग्रसित पादप अवशेषों को नष्ट कर दें।
  • रोग की प्रारम्भिक अवस्था में कैराथेन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे।

3. मृदुरोमिल आसिता
इस रोग में पत्ती की ऊपरी सतह पर हल्के कोणीय धब्बे दिखाई देते है तथा पत्ती की निचली सतह पर मृदुरोमिल फफूंद बैंगनी रंग की दिखाई देती है। फल आकार में छोटे हो जाते हैं तथा रोगी पौधे के पीले धब्बे जल्द ही लाल भूरे रंग के हो जाते हैं।

रोकथाम:
  • रोग रोधी किस्मों की बुवाई करें।
  • फसल पकने के बाद फसल अवशेषों को जला दें।
  • खड़ी फसल पर मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें।
4. श्यामवर्ण (एन्थ्रेक्नोज)
यह रोग एक प्रकार की फफूंद कोलेटोट्राईकम लेजीनेरम से होता है। यह रोग तरबूजा, कद्दू में अधिक होता है जबकि पेठा में भी यह रोग अधिक होता है। यह रोग गर्म व आद्र्र मौसम में अधिक फैलता है तथा पौधे की किसी भी वृद्धि अवस्था में आ सकता है। पुरानी पत्तियों पर छोटे जलयुक्त या पीले धब्बे बनते है। ये धब्बे कोणीय अथवा गोलाकार हो सकते है बाद में ये आपस में मिल जाते है तथा सूख जाते है। पत्ती का यह सूखा भाग झड़ जाता है। खीरा, खरबूजा, लौकी की पत्तियों पर कोणीय या खुरदरे गोल धब्बे दिखाई देते है जो पत्ती के बड़े भाग या पूरी पत्ती को झुलसा देते है।

रोकथाम:
  • कद्दूवर्गीय जंगली पौधों को इकटठा कर नष्ट कर दें।
  • बीज को थाइरम या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रतिकिग्रा बीज से उपचारित करके बोयें।
  • मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से सात दिन के अंतराल पर दो बार छिड़कें।

5. पत्ती झुलसा
सर्वप्रथम पत्ती पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है जो बाद में गहरे रंग के व आकार में बड़े हो जोते हैं। पत्तियों पर धब्बे केन्द्रीयकृत गोलाकार में बनते है। जिससे पत्तियाँ झुलसी हुई दिखाई देती हैं।

रोकथाम:
  •  स्वस्थ बीज प्रयोग करें।
  • फसल चक्र अपनायें।
  • फसल पर इंडोफिल एम-45, 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 10-15 दिन के अंतराल में छिड़काव करें।

6. कुकुम्बर मोजेक
पौधे छोटे रह जाते हैं। तथा ग्रसित पौधों की नयी पत्तियाँ छोटी आकार की तथा पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियाँ सिकुड़कर मुड़ जाती है। तथा पीले रंग का मोजेक क्रम दिखाई देता है। जिन्हें क्लारोटिक पेचेंज कहते है। कुछ फूल गुच्छे में दिखाई देते है। फल छोटे व विकृत हो जाते है या फलन बिल्कुल नहीं होता है।

रोकथाम:
  • उपचारित बीज ही बुवाई हेतु प्रयोग करें।
  • रोगग्रस्त पौधों व जंगली खरपतवारों को उखाड़कर जला दें।
  • इमिडाक्लोप्रिड (3-5 मि.ली./15 लीटर पानी) दवा का एक सप्ताह के अंतराल पर खड़ी फसल पर दो बार छिड़काव करें जिससे वाहक नष्ट हो जायें।

7. कलिका उत्तकक्षय
पत्तियों की शिराओं पर नेक्रोसिस धारियां बन जाती है। पर्व छोटे रह जाते है। उत्तकक्षय हो जाने से कलिका सूख जाती है। धीरे-धीरे कलिका वाली पूरी शाखा सूखने लगती है। पत्तियाँ सिकुड़कर पीली पड़ जाती है।

रोकथाम:
  • रोगग्रस्त पादपों को उखाड़कर जला दें।
  • स्वस्थ बीजों को बोयें।
  • इमिडाक्लाप्रिड 3-5 मिली. प्रति 15 लीटर पानी की दर से दो बार छिड़काव करें।
  • खेत के चारों ओर बाजरा की फसल उगायें इससे रोग कम आता है।