निखिल तिवारी, शोद्यार्थी
कृषि व्यवसाय प्रबंधन विभाग
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
उद्यमिता परिचय
किसी भी व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना होता है,परन्तु लाभ कमाने के साथ-साथ जब व्यवसायी किसी उद्यम को चलाने के लिये नये तरीके से उपलब्ध संसाधनों को एकत्रित करता और साथ में जोखिम उठाता है, ऐसी क्रिया को उद्यमिता कहते हैं। उद्यमिता एक आर्थिक क्रिया है, जो बाजार में व्याप्त सम्भावनाओं को पहचानने का प्रक्रम है।
“उद्यमिता एक क्रमबद्ध उद्देश्य के साथ की जा रही रचनात्मक क्रिया है, जिससे बाजार के मांगों की पूर्ति नवीन रचनात्मक माध्यम से किया जा सकें एवं लाभ अर्जित किया जा सकें। एक उद्यमी द्वारा किये गये कार्य को उद्यमिता कहते हैं।“
आज पुरे देश में स्टार्टअप इको सिस्टम विकसित हो रहा है। इस बदलते वैश्वविक परिदृश्य में भारत विकास के विभिन्न मानकों में तेजी से आगे बढ़ रहा है। अभी हाल में ही आये पिछले तिमाही के अर्थव्यवस्था के आंकड़ो में भारत की जीडीपी विकासदर 8.4 प्रतिशत रही है, जो की पुरे विश्व के विकसित एवं विकासशील देशों में सर्वाधिक है। राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि में नए स्टार्ट अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज देश में स्टार्टअप की संख्या बात की जाए तो जहाँ वर्ष 2014 में देश में मात्र 450 स्टार्टअप थे, वहीं आज पंजीकृत स्टार्टअप की संख्या 90,000 से अधिक हो चुकी है, यह 300 गुणा अधिक की वृद्धि है। आज भारत में 113 यूनिकॉर्न स्टार्टअप है। यूनिकॉर्न स्टार्टअप से आशय उन स्टार्टअप से है जिसकी वैल्यूएशन 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गयी हो। 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर को भारतीय रूप ये में आज की दर से परिवर्तित किया जाए तो यह राशि 8,288 करोड़ रूपये होती है। पिछलें वर्ष 2022-23 में भारत में 23 नए यूनिकॉर्न स्टार्टअप बढ़े हैं, जो की विश्व में दूसरी सबसे बड़ी संख्या थी।
कृषि क्षेत्र में उद्यमिता का विकास
वर्तमान में भारत में बढ़ते उद्यमिता के परिवेश में, कृषि क्षेत्र भी पीछे नहीं है। बहुदा यह सत्य है की अन्य क्षेत्रों जैसे- प्रौद्योगिकी, निवेश, चिकित्सा, मनोरंजन आदि की तुलना में कृषि में उद्यमिता अथवा स्टार्टअप की संख्या एवं गति धीमी रही है। परन्तु पुरे देश में बदलते स्टार्टअप पारिस्थिति की तंत्र में कृषि का क्षेत्र पीछे नहीं रहा है। जहाँ वर्ष 2014 में देश में कृषि से सम्बंधित सिर्फ 10 स्टार्टअप थे, वही आज इन की संख्या 3000 से अधिक हो गयी है। मै किंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में 1 लाख करोड़ रुपये का योगदान देगी। कृषि के उद्यमिता की संभावनाओं का पूर्ण क्षमता से सदुपयोग किया जाए तो ना केवल किसानों की आय दोगुनी से तीन गुनी की जा सकती है, अपितु उत्पादन की लागत को भी कम किया जा सकता है। कृषि स्टार्टअप में फंडिंग की बात की जाए तो विगत चार वर्षों में कृषि स्टार्टअप को लगभग 6600 करोड़ रुपयों से भी अधिक की पूंजी निवेश की गयी है।
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है की देश में बदलते उद्यमिता पारिस्थिकी तंत्र में कृषि प्रधान भारत का कृषि क्षेत्र केंद्र बिंदु पर रहने वाला है। अब तक भारत विश्व में उत्पादक देश की भूमिका में था, परन्तु अब भारत को निर्यातक देश की भूमिका से विश्व में पहचाना जाना प्रारंभ हो चुका है। बहुदा पहले देश में खाद्यान्न की समस्या थी। भारत की आजादी के बाद प्रारम्भिक दशकों में देश की बड़ी जनसँख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण चुनौती थी। तब देश के कृषि वैज्ञानिकों, किसानो और सरकारों के अथक परिश्रम एवं समन्वित प्रयासों से इस चुनौती का निदान किया जा चूका है। परन्तु वर्तमान में परिस्थितियां बदल चुकी है, अब देश की ऊर्जा एवं संसाधनों का प्रयोग कृषि पारंपरिक उत्पादन बढ़ाने मात्र से बदलकर मूल्यसंवर्धन, वैश्विक मांग पूर्ति, कैश क्रॉप पर अधिक लगाने की आवश्यकता है।
हमारे देश की नवाचार क्षमताओं और नवाचार पारिस्थिति की तंत्र को विकसित करने के लिए कॉपोर्रेट्स, सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्टअप के बीच समन्वय स्थापित करने का एक अच्छा समय है। कृषि के क्षेत्र में तिलहन एवं दलहन फसलों को छोडकर भारत लगभग अन्य सभी फसलों के उत्पादन में आत्म निर्भर बन चूका है। भविष्य में भारत में कृषि के क्षेत्र में अगली क्रांति उत्पादन वृद्धि को लेकर नहीं, अपितु कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन को लेकर होगी। ऐतिहासिक रूप से भारत कभी कृषि प्रधान देश नहीं रहा है, अपितु भारत कृषि उत्पाद प्रधान देश रहा है। प्राचीन से ही भारत फलों एवं सब्जियों का मूल्य संवर्धन करने की अनेक प्रक्रियाओं का जन्मदाता रहाहै। फिर भी देश में आज भी लगभग 18 प्रतिशत सब्जियां एवं फल उचित प्रबंधन नहीं होने की वजह से नष्ट हो जाते हैं। देश में आज कम कीमत एवं भारतीय परिवेश के अनुरूप कोल्ड स्टोरेज, कृषि यंत्रों एवं मूल्य संवर्धन के नवाचारों की बहुत आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में नए स्टार्टअप आने से खाद्यान्न एवं अन्य कृषि उपज की हानि कम होगी व इससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित दाम मिलने से सरकार द्वारा दी जाने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर निर्भरता कम होगी। कृषि के असंगठित क्षेत्र (Unorganised Sector) में क्रांतिकारी नवाचार की आवश्यकता लक्षित होती है।
कृषि उद्यमिता में समस्याएँ एवं समाधान
कृषि के क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को नीतिगत सुधार करने की आवश्यकता है। आज भी कृषि से सम्बंधित स्टार्टअप को निवेश (Funding) जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण परिवेश के उद्यमियों में उत्साह एवं परिश्रमकर उद्यमिता प्रारम्भ की प्रबल इच्छा तो रहती है, परन्तु जानकारी एवं शिक्षा के अभाव में उनकी योजनाओं पर क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। कृषि के क्षेत्र में नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों को कम ब्याज दर पर लोन व सब्सिडी देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। केंद्र एवं राज्य सरकार को कृषि क्षेत्र में उद्यमिता के विकास के लिए पूंजीगत निवेश (Capital Expenditure) पर अधिक व्यय करना चाहिए। दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक यातायात परिवहन हेतु रोड व अन्य संसाधनों पर अधिक खर्च किये जाना चाहिए। कृषि शिक्षा के पाठ्य विवरण में सुधार कर उन्हें स्वरोजगार व उद्योगोंमुखी बनाने की आवश्यकता है। जिससे कृषि का विद्यार्थी शिक्षापूर्ण कर स्वयं का व्यवसाय स्थापित कर सकें। जिससे देश में उसकी भूमि का रोजगार लेने वाला ना होकर, रोजगार देने वाले की हो सकें एवं राष्ट्र की वृद्धि में वें अपना योगदान दे सकें।
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