डॉ. ईशु साहू , डॉ. मनीष चौरसिया , श्री मनीष आर्या, डॉ. शालू अब्राहम एवं श्री तुषार मिश्रा
कृषि विज्ञान केन्द्र, गरियाबंद

मटर का प्रयोग हरी अवस्था में फलियों के रूप में सब्जी के लिए तथा सूखे दानों का प्रयोग दाल के लिए किया जाता हैं। मटर एक बहुत ही पोषक तत्वों वाली सब्जी हैं जिसमें पाचनशील प्रोटीन, कार्बोहाइडेट्स तथा विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता हैं। इसके अलावा इसमें खनिज पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता हैं। पतली छिलके वाली मटर की समूची फलियों और छिली हुई मटर के दानों को सुखाकर या डिब्बा बंद करके संरक्षित किया जाता हैं। जिसका प्रयोग बाद में सब्जी के रूप में किया जाता हैं। इनके अतिरिक्त मटर के हरे पौधों का प्रयोग जानवरों के हरे चारे व हरी खाद के लिए किया जाता हैं।

मटर वास्तव में एक नकदी फसल है और किसान भाईयों को बहुत ही कम समय में अच्छी आमदनी मिल जाती है। उनकी परिपक्वता अवधि के अनुसार मटर की तीन प्रकार की किस्में होती है जो निम्न है-

1) अगेती किस्मेंः बीज बुआई के लगभग 60 से 65 दिनों बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है इनमें मुख्य है काशी नंन्दिनी, अर्कल, अगेता-6, बोनबिले, पूसा प्रभातए पूसा पन्ना एवम् रचना इत्यादि।

(2) मध्यावधि वाली किस्मेंः बीज बुआई के लगभग 70 दिनों बाद तुड़ाई योग्य तैयार हो जाती है इस तरह कि किस्मों में मुख्य हैं काशी उदय, आजाद पी-3 इत्यादि।

(3) मध्यम देर वाली किस्में:- इस के अवधि वाली किस्मों में ऐसी किस्में आती है जिनकी फलियाँ प्रायः 80-100 दिनों में तुड़ाई के लिये तैयार होती है। इस प्रकार की किस्मों मे प्रमुख है आजाद पी-1 ,काशी समर्थ इत्यादि।

(4) चूर्णिल आसिता से अवरोधी किस्में:- इस प्रकार कि किस्में देर से उगायी जाने के लिए उपयुक्त है क्योंकि देर वाली मटर की फसलों में चुर्णिल आसिता बिमारी का अधिक प्रकोप होता है। कुछ ऐसी किस्में है जो इस बिमारी के प्रति अवरोधी है काशी मुक्ति, अर्का अजीत इत्यादि।

भूमि की तैयारी
मटर की उन्नत खेती के लिए खेती की तैयारी करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी है कि नहीं। यदि नहीं है तो खेत का पहले ही पलेवा कर लेना चाहिए और खेत में जब ओट आ जाय तब खेत की तैयारी करनी चाहिए। खेत की पहली जुताई डिस्क हैरो से तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत की मिट्टी भुरभुरी बना लेना चाहिए। यह ध्यान रहे कि प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाए इससे खेत थोड़ा बहुत समतल भी हो जाता है जिससे सिंचाई में सुविधा होती है और नमी भी बनी रहती है। मटर का बुआई उन्ही खेतों में करना चाहिए जिसमें पहले मटर की खेती की गयी हो अन्यथा जड़ों में गॉठ (नोड्यूल) नहीं बनता और पैदावार भी सामान्य की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। इसके लिए बीजों का शोधन जीवाणु कल्चर से (राइजोवियम) अवश्य करना चाहिए।

बीजोपचार
उचित राइजोबियम संवर्धक (कल्चर) से बीजों को उपचारित करना उत्पादन बढ़ाने का सवसे सरल साधन है। दलहनी फसलों में वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण करने की क्षमता जड़ों में स्थित ग्रंथिकाओं की संख्या पर निर्भर करती है और यह भी राइजोबियम की संख्या पर भी निर्भर करता है। इसलिए इन जीवाणुओं का मिट्टी में होना जरुरी है। क्योंकि मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या पर्याप्त नहीं होती है, इसलिए राईजोबियम संवर्धक से बीजों को उपचारित करना जरूरी है।

राईजोबियम से बीजों को उपचारित करने के लिए उपयुक्त कल्चर का एक पैकेट (250 ग्राम) 10 किग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है। बीजों को उपचारित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ और २ ग्राम गोंद को एक लीटर पानी में घोल कर गर्म करके मिश्रण तैयार करना चाहिए। सामान्य तापमान पर उसे ठंडा होने दें और ठंडा होने के बाद उसमें एक पैकेट कल्चर डालें और अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण में बीजों को डालकर अच्छी तरह से मिलाएं, जिससे बीज के चारों तरफ इसकी लेप लग जाए। बीजों को छाया में सुखाएं और फिर बोयें। क्योंकि राइजोबियम फसल विशेष के लिए ही होता है, इसलिए मटर के लिए संस्तुत राईजोबियम का ही प्रयोग करना चाहिए।

बुआई का समय
मटर की बुआई करने का मुख्य समय देश के अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग है। विभिन्न अवधि की किस्मों की बुआई करने का उपयुक्त समय इस प्रकार है।

किस्म

उन्नतशील प्रजातियाँ

बीजदर (कि.ग्रा./हे.)

बीज बुआई का उपयुक्त समय

अगेती

काशी नन्दिनी, अर्केल, अगेता-6 पूसा प्रभातए पूसा पन्ना

150-160

15 अक्टूबर-15 नवम्बर

मध्यम अवधि

काशी उदय, आजाद पी-3, काशी मुक्ति

120-130

15 नवम्बर- 30 नवम्बर

पछेती

काशी शक्ति, आजाद पी-1

100-120

30 नवम्बर-15 दिसम्बर


बीज बुआई और दूरी
बीजों के आकार और बुआई के समय के अनुसार बीज दर अलग-अलग हो सकती है। सीड-ड्रिल मशीन से 30 सेंमी. की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिये ।
मटर के बीजों की बुआई सीड-ड्रिल मशीन से करनी चाहिए इससे बीज एक समान गहराई व दूरी पर गिरते हैं जिससे 20-25 प्रतिशत बीज की बचत हो जाती है छिटकवॉ विधि से बीजों की बुआई करने पर बीजदर लगभग दो गुना के बराबर लगता है और जमाव भी कम होता है ।

उर्वरक
मटर दलहनी सब्जी है अतः इसकी जड़ों में गॉठे पायी जाती है जो वायुमण्डल से नत्रजन को खीच कर पौधों को देती है इस कारण नत्रजन वाली उर्वरकों की आवश्यकता कम पड़ती है। औसतन प्रति हेक्टेयर खेत के लिए 40-60 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 60 कि.ग्रा. पोटाश की अवश्यकता पड़ती है। उर्वरकों का प्रयोग यदि मिट्टी की जाँच कराकर प्रयोग किया जाय तो अति उत्तम होगा। मटर में नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश बीज सभी बीज बुआई से पुर्व ही खेत में डाल कर अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। इसमें नत्रजन की टापडेªसिंग नहीं करते है।

सिंचाई
मटर यदि पलेवा करके बुआई किया गया है तो सिंचाई उस समय करनी चाहिए जब 50 प्रतिशत पौधों में फूल निकल आये हो। सिंचाई हमेशा फुआरे की सहायता से (स्प्रिंकलर विधि या बौछारी विधि) से करनी चाहिए। यदि बौछारी विधि (स्प्रिंकलर) की व्यवस्था न हो तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। यह ध्यान रहे कि जैसे ही क्यारियों में पानी फैले क्यारी में पानी का आना बंद कर देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार फसल के निमित्त पोषक तत्वों व जल को ग्रहण कर फसल को कमजोर करते हैं और उपज को भारी हानि पहुंचाते हैं। फसल को बढ़वार की शुरू की अवस्था में खरपतवारों से अधिक हानि होती है। अगर इस दौरान खरपतवार खेत से नहीं निकाले गये तो फसल की उत्पादकता बुरी तरह से प्रभावित होती है। यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे-बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, सतपती अधिक हों तो 4-5 लीटर स्टाम्प-30 (पैंडीमिथेलिन) 600-800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर बुआई के तुरंत बाद छिड़काव कर देना चाहिए। इससे काफी हद तक खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।

रोग एवं कीट प्रबन्धन
रोग
आर्द्र जड़ गलन
इस रोग से प्रकोपित पौधों की निचली पत्तियाँ हल्के पीले रंग की हो जाती है। पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़कर सुखी और पीली पड़ जाती है। तनों और जड़ों पर खुरदरे खुरंट से पड़ जाते हैं। यह रोग जड़-तंत्र सड़ा डालता है। यह रोग मृदा जनित है। रोग की बीजाणु वर्षों तक मिट्टी में जमे रहते हैं। हवा में 25 से 50 प्रतिशत की अपेक्षित आर्द्रता और 22 से 32 डिग्रीं सेल्सियस दिन का तापमान रोग पनपने में सहायक होता है। रोगग्राही फसल को उसी खेत में हर साल न उगाएँ। बीज का उपचार करने के लिए कार्बेन्ड़ाजिम 1 ग्राम या थीरम 2 ग्राम मात्रा एक किग्रा. बीज में मिलाएं। फसल की अगेती बुआई से बचें तथा सिंचाई हल्की करें।

चूर्णिल आसिता
यह मटर की सामान्य बीमारी है हवा जनित इरीसायफी पी . सी . द्वारा होता है । इसका आक्रमण पट्टी के दोनों तरफ और फली तथा तने पर सफेद आटे की तरह धब्बे के रूप में होता है इस रोग की वजह से फली की संख्या और उसका वजन घट जाती है सही समय पर फसल की बुवाई करे, रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करे, फसल चक्र अपनाये । बीमारियों के नियंत्रण के लिए गंधक (0.2 प्रतिशत), केराथेन (0.05 प्रतिशत) या कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें । जब रोग पौधे में दिखे तब पहली छिड़काव करें तथा पहली छिड़काव के 14 दिन बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए तीसरा छिड़काव तभी करें जब इसकी आवश्यकता हो ।

तुलासिता या रोमिल फफूंद
इस रोग के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले और ठीक उनके नीचे की सतह पर रुई जैसी फफूंद छा जाती है और रोगग्रस्त पौधों की बढ़वार रुक जाती है। पत्तियाँ समय से पहले ही झड़ जाती है। संक्रमण अधिक होने पर (0.2 प्रतिशत) मौन्कोजेब अथवा जिनेब का छिड़काव 400-800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से करनी चाहिए।

कीट

मांहू (एफिड)
कभी-कभी मांहू भी मटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनके बच्चे और वयस्क दोनों ही पौधे का रस चूसने में सक्षम होते हैं। यह रस ही नहीं चूसते, बल्कि जहरीले तत्व भी छोड़ देते हैं। इसका भारी प्रकोप होने पर फलियाँ मुरझा जाती हैं। अधिक प्रकोप होने पर फलियाँ सुख जाती है। मांहू मटर में एक वायरस (विषाणु) को फैलाने में भी उसके वाहक बनकर सहायता करती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरोपिड 0.5 मि.ली. प्रति ली. पानी की दर से छिड़काव करे।

मटर फली बेधक
इसकी इल्ली फलियों में घुस कर फलियों को खाती है, जिस कारण फलियाँ खाने योग्य नही रहता। इस फसल को समय से बोना चाहिए, उचित समय पर बोई गयी फसल पर कीट का प्रकोप कम होता है।एजाडिरेक्टिन 0ण्03 प्रतिशत के हिसाब से 15 दिन के अंतराल में 3 बार छिड़काव करना चाहिए ।
फली छेदक कीट से बचाव हेतु डाइमिथोऐट 30 ई.सी. या मिथाईल डेमेटोन 25 ई.सी. का 1 मिली. दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

उत्पादन एवं लाभ
एक हेक्टेयर क्षेत्र से हरी मटर की फलियों की पैदावार अगेती किस्मों में 80-100 कु. /हे. तथा मध्यम व देर वाली किस्मों में 100-125 कु./हे. तक प्राप्त होती है। मटर की उन्नतशील खेती से लागत निकाल कर एक लाख से डेढ ़ लाख रूपये तक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।