नीलिमा जांगडे़
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल
जीतेन्द्र सिन्हा एवं जीत राज, कृषि अभियांत्रिकी संकाय,
इ.गा.कृ.वि.वि., रायपुर (छ.ग.)

भारत एक कृषि प्रधान देश है देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि गतिविधियों से जुड़े हुई है। कृषि उत्पादन में निवेश के रूप में ऊर्जा की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सामान्यतया ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों में पंपसेट को चलाने के लिए डीजल का उपयोग किया जाता है जो कि आजकल महंगा हो रहा है तथा उसके धुएं और ध्वनि से जैविक पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरी ओर हम देखें तो पाएंगे कि किसान अभी भी सिंचाई की परंपरागत (बाढ़ सिंचाई ) विधियों का उपयोग कर रहे हैं जिससे पानी की छति अधिक व सिंचाई की दक्षता भी कम रहती है। आज हमारे देश में 22 प्रतिशत ऊर्जा एवं 80 प्रतिशत पानी का उपयोग अकेले कृषि के क्षेत्र में होता है। हमारे देश में इस ऊर्जा और पानी के अपव्यय कोरोकने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है इन दोनों में अपव्यय को रोकने की सबसे अच्छी प्रणाली “सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई प्रणाली” है। इस प्रणाली के प्रयोग से हम ऊर्जा के साथ-साथ पानी के अपव्यय को भी कम कर सकते हैं।

सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई दो प्रणालियों, अर्थात सौर ऊर्जा चलित पंप और ड्रिप सिंचाई प्रणाली का मिलन हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाली पंप उन ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम को कम करता है जहां पर बिजली की पहुंच नहीं है एवं जहां पानी महिलाओं और युवा लड़कियों द्वारा हाथों से खींचा जाता है। दूसरी ओर ड्रिप सिंचाई सीधा पौधों की जड़ों को पानी (और उर्वरक) देने के लिए अत्यंत कुशल तंत्र है। यह तंत्र पैदावार को बढ़ाता है और ऐसे क्षेत्रों में फसल और बगान उगाने में मदद करता है जो पूर्णता बारिश पर निर्भर होते हैं। इस प्रणाली को चित्र-1 द्वारा समझाया गया है। जिसमे पंप को सौर पैनल के द्वारा शक्ति मिलती है जो पानी के टैंक को भरने में मदद करता है। पंप, टैंक एवं खेतों के क्षेत्रफल का निर्धारण पानी की उपलब्धता और क्षेत्र के लिए अनुमानित वाष्पोंत्सर्जन की जरूरतों के आधार पर किया जाता है।

चित्र 1. सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई प्रणाली की व्यवस्था


सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई प्रणाली के मुख्य घटक:

सौर पैनलः इनमे अर्धचालक लगे होते हैं जिससे फोटो वॉल्टिक प्रभाव करके प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। सौर पैनल बहुत सारी छोटी-छोटी सौर कोशिकाओं से मिल कर बना होता है। वर्तमान में सौरपैनल के लिए मोनोक्रिस्ट लाइन सिलिकॉन,पॉलीक्रिस्ट लाइन, अमॉर्फससिलिकॉन एवं कैडमियमटेलूराइट आदि का प्रयोग किया जाता है।

1. माउंटिंग संरचनाः सौर पैनल को हम दो प्रकार से लगा सकते हैं या तो एक निश्चित संरचना पर या ट्रैकिंग संरचना। निश्चित संरचना वाले कम महंगे तथा उच्च वेग वाले वायु को भी सहनकर लेते हैं दूसरी ओर ट्रैकिंग संरचना थोड़ी महंगी होती है परंतु इसमें सौर पैनल को आसानी से सूरज की दिशा में कर सकते हैं। यह संरचना, निश्चित संरचना की तुलना में 25 प्रतिशत ज्यादा पानी देती है।

2. पंपः सौर ऊर्जा से चलने के लिए विशेष पंप का प्रयोग किया जाता है जोकि डीसी से चलता है। यह पंप बहुत दक्षता वाले होते हैं वह इनकी कीमत भी एसी से चलने वाले पंप से अधिक होती है डीसी पंप तीन प्रकार के होते हैं विस्थापन, केंद्र प्रसारक व पनडुब्बी।

3. टैंकः इस प्रणाली में टैंक पानी भंडारण के लिए उपयोग में लेते हैं। टैंक की भंडारण क्षमता कम से कम इतनी होनी चाहिए कि वह तीन दिन तक पानी की मांग की आपूर्ति कर सकें। ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि रात के समय और बादलों के दिनों में सूरज नहीं निकलने के कारण यह प्रणाली काम नहीं करती हैं।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली
ड्रिप सिंचाई किसानों को कम पानी वाले क्षेत्रों में फसल पैदा करने का सबसे कुशल तरीका प्रदान करती है। इस प्रणाली में पानी में मेन लाइन, सब मेन लाइन व लेटरल लाइन के नेटवर्क द्वारा होता हुआ पौधों तक पहुंचता है प्रत्येक ड्रिपर द्वारा पानी, पोषक तत्वों एवं अन्य आवश्यक विकास पदार्थों की नियंत्रित मात्रा पौधों की जड़ों तक पहुंचता है। पानी एवं पोषक तत्व ड्रिपर से मिट्टी में प्रवेश कर गुरुत्वाकर्षण बल के माध्यम से पौधों की जड़ों में पहुंचते हैं जिससे पौधों के जड़ क्षेत्र में पानी एवं पोषक तत्वों की कमी ना हो पाए।

चित्र 2. ड्रिप सिंचाई प्रणाली की व्यवस्था


डिजाइन एवं स्थापित प्रणाली
फसलों में लगने वाली पानी की दरफसल के साथ-साथ भूमि के अनुसार भी बदलती है। एक ही फसल के लिए देश के विभिन्न भागों में पानी की आवश्यकता अलग-अलग हो सकती है। पानी की मात्रा मिट्टी के प्रकार, खेती करने की विधि, वर्षा के पानी एवं जलवायु पर निर्भर करती है। सामान्यतयाः सामान्य भारत में 300 स्पष्ट धूप दिन होते हैं इसीलिए किसानों को हम सौर ऊर्जा से चलने वाली ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं इस प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक कुशल डिजाइनर की जरूरत है। प्रणाली स्थापित करने से पहले कुशल डिजाइनर किसानों से निम्नलिखित विवरण जानना चाहेगाः
  • फसलों का विवरण कौनसी फसल किसान के खेत में होने वाला है ।
  • बुवाई के लिए कितना क्षेत्र उपलब्ध है जिसकी मदद से बैटरी प्रणाली की डिजाइन की जा सकती है ।
  • सिंचाई में लगने वाला पानी की मात्रा।
  • फसलों को कम सिंचाई के लिए पानी देना और कब नहीं ।
  • जिस स्थान पर प्रणाली स्थापित करनी है वहां पानी का स्रोत क्या है (कैनाल, तालाब, कुआं या भू गर्भ पानी)
  • पानी की उपलब्धता लीटर प्रति मिनट।
  • पानी की गुणवत्ता की जानकारी जिससे कि पंप को नुकसान ना हो।

सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ
  • पानी निश्चित मात्रा में पौधों की जड़ों में दिया जाता है जिससे पानी का अपव्यय कम होता है।
  • यह प्रणाली 50 प्रतिशत से अधिक बचत करता है।
  • यह प्रणाली प्रदूषण से मुक्त है।
  • यह प्रणाली सौर ऊर्जा चलित है जो कि आसानी से उपलब्ध है। बस प्रारंभ में निवेश की आवश्यकता है।
  • इस प्रणाली में रख रखाव की लागत बहुत कम है।
  • इसको बहुत कम पर्यवेक्षक की आवश्यकता है।

सौर ऊर्जा चलित ड्रिप सिंचाई प्रणाली किसानो के लिए बहुत ही श्रेष्ठ विकल्प है जो 50 प्रतिशत से अधिक पानी की बचत करता है व साथही अक्षय ऊर्जा का भी उपयोग करता है। यह प्रणाली दूर-दराज गांवों के लिए बहुत उपयोगी व धुप वाले दिनों के दौरान सबसे प्रभावी है। यह प्रौद्योगिकी किसान की आय बढ़ाती है एवं प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के खर्चे को बचाने में भी मदद करती है।