हेमलता (पीएच.डी. कृषि) एवं आलोककुमार(एमएसी कृषि)
(कीट विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, कृषक नगर, रायपुर
(कृषि महाविद्यालय, रायपुर छ.ग.)
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्ध कुण्डलक इल्ली,चने की इल्ली द्वारा क्षति पहुचाई जाती है। जिससे अलसी के उत्पादन में भरी कमी आती है। अलसी की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को चाहिए की वे समय पर इन हानिकारक कीट के रोकथाम करें। अलसी फसल के कीट और उनकी रोकथाम की जानकारी का उल्लेख किया गया है।
प्रमुख कीट एवं रोकथाम-
1. फली मक्खी (डेसिन्यूरालिनी)
यह वयस्क आकार में छोटी तथा नारंगी रंग की होती है। जिनके पंख पारदर्शी होते हैं। इसकी इल्ली ही फसलों को हांनि पहुँचाती है। इल्ली अण्डाशय को खाती है, जिससे कैप्सूल एवं बीज नहीं बनते हैं। मादा कीट 1 से 10 तक अण्डे पंखुड़ियों के निचले हिस्से में देती है। जिससे इल्ली निकलकर फली के अंदर अण्डाशयों को खा जाती है। जिससे फली पुष्प के रूप में विकसित नहीं होती है तथा कैप्सूल एवं बीज का निर्माण नहीं होता है। यह अलसी की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाला कीट है, जिसके कारण उपज में 60 से 85 प्रतिशत तक क्षति होती है।
2. अलसी की इल्ली(स्पोडोप्टेराएक्ज़िगुआ)
वयस्क कीट मध्यम आकार के गहरे भूरे रंग या धूसर रंग का होता है, जिसके अगले पंख गहरे धूसर रंग के पीले धब्बेयुक्त होते हैं। पिछले पंख सफेद, चमकीले, अर्धपार दर्शक तथा बाहरी सतह धूसर रंग की होती है। इल्ली लम्बी भूरे रंग की होती है। जो अलसी की फसल में तने के उपरी भाग में पत्तियों से चिपककर पत्तियों के बाहरी भाग को खाती है। इस कीट से ग्रसित पौधों की बढ़वार रूक जाती है।
3. अर्धकुण्डलक इल्ली(प्लसियाओरिचल्सिया)
इस कीट के वयस्क के अगले पंख पर सुनहरे धब्बे होते हैं। इल्ली हरे रंग की होती है, जो प्रारंभ में अलसी की फसल में मुलायम पत्तियों तथा फलियों के विकास होने पर फलियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है।
4. चने की इल्ली (हेलिओथिस आर्मिगेरा)
इस कीट का वयस्क भूरे रंग का होता है जिनके अगले पंखों पर सेम के बीज के आकार के काले धब्बे होते हैं। इल्लियों के रंग में विविधता पाई जाती है, जैसे यह पीले, हरे, नारंगी, गुलाबी, भूरे या काले रंग की होती है। शरीर के पार्श्व हिस्सों पर हल्की एवं गहरी धारियाँ होती है। छोटी इल्ली अलसी की फसल में पौधों के हरे भाग को खुरचकर खाती है, बड़ी इल्ली फूलों एवं फलियों को नुकसान पहुंचाती है।
समन्वित कीट रोकथाम-
1. अलसी की सहनशील प्रजातियों का चुनाव बुवाई हेतु करना चाहिये।
2. अगेती बुवाई अर्थात अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में बुवाई करने पर कीटों का संक्रमण कम होता है।
3. अलसी की फसल के साथ चना (2:4) अथवा सरसों (5:1) की अतंवर्तीय खेती करने से फलीबेधक कीट का संक्रमण कम हो जाता है।
4. उर्वरक की मात्रा (60 से 80 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम स्फुर तथा 20 किलोग्राम पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित अवस्था में प्रयोग करना चाहिये।
5. बॉस कीटी के आकार की 2.5 से 3 फीट ऊँची 50 खूटियों को प्रति हेक्टेयर से लगाने से कीटों को उनके प्राकृतिक शत्रु चिड़ियों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।
6. न्यूक्लियर पाली हेड्रोसिस विषाणु की 250 एलई का प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव लैपिडोप्टेरा कूल के कीटों का प्रभावशाली प्रबंधन होता है।
7. अलसी की फसल में प्रकाश प्रपंच का उपयोगकर कीड़ों को आकर्षित कर एकत्र कर नष्ट कर दें।
8. अलसी की फसल में नर कीटों को आकर्षित करने तथा एकत्र करने हेतु फेरोमोन ट्रेप का प्रति हेक्टैयर की दर से 10 ट्रैप का प्रयोग लाभप्रद होता है।
9. जब फली मक्खी की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (8 से 10 प्रतिशत कली संक्रमित) से उपर पहुँच जाय, तो एसिफेट या प्रोफेनोफॉस अथवा क्विनालफॉस 2 मिलीलीटर मात्रा प्रतिलीटर पानी के घोल का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव लाभप्रद होगा।
10. इसके अतिरिक्त अन्य रसायनों जैसे साइपरमेथ्रिन (5 प्रतिशत) + क्लोरोपाइरीफॉस (50 प्रतिशत) की 750 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से या साइपरमेथ्रिन (1 प्रतिशत) + ट्राइजोफॉस (35 प्रतिशत) 40 ईसी की एक लीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव लाभप्रद होता है।
11. फलीमक्खी के रोकथाम के लिये ईमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 100 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
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