चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
डॉ. हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग)

राज्य सरकार की ओर से किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से रबी फसल की बुवाई के काम में सहयोग दिया जा रहा है। बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार रबी फसल की के अधिक उत्पादन पर जोर दे रही है। विशेषकर तिलहन फसलों में सरसों और सोयाबीन की बुवाई पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। इसके लिए किसानों को सब्सिडी पर बीज भी मुहैया कराया जा रहा है। सरसों के उत्पादन बढ़ाने के लिए कई राज्यों में इसके प्रमाणिक बीजों पर सब्सिडी का लाभ दिया जा रहा है तो कहीं पर किसानों कोनिःशुल्कबीज वितरितकियाजा रहाहै ताकि तिलहन का उत्पादन बढ़ाया जा सके। ऐसे में किसान भाई अधिक उत्पादन प्राप्त करनेके लिए क्या करेंं ताकि पैदावार भी अधिक हो और किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सके। इसके लिए किसानों को रबी फसल की बेहतर पैदावार के लिए निम्नमहत्वपूर्ण उपायअपनाने चाहिए।

1) खेत की गहरी जुताई करें
रबी फसल को बोने से पूर्व खेत की अच्छी तरह से जुताई करें। जुताई के लिए ट्रैैक्टर, रोटावेटर, कल्टीवेटर आदि की सहायता से खेत प्रयोग करें। इससे कम श्रम और समय में खेत की तैयारी की जा सकती है। खेत की जुताई ढलान के आढे करें। इससे यह फायदा होगा कि वर्षा का जल भूमि में अधिक अंदर तक जा सकेगा। यह जुताई गर्मी के मौसम में करने से अधिक लाभ मिलता है।

2) समय पर बुवाई करें
रबी सीजन आ गया है तो किसानों को रबी से संबंधित फसलों को उनके तय किए गए समय के अनुसार बुवाई करनी चाहिए। यदि सही समय पर बुवाई की जाती है तो उत्पादन भी अधिक मिलता है। बता दें कि अगेती फसल बोने पर ज्यादा और पिछेती फसल बोने पर कम उत्पादन मिलता है।

3) बीजोपचार /बीजों का टीकाकरण करें
बुवाई से पूर्व बीजों का टीकाकरण करना बेहद जरूरी है। किसानों को चाहिए कि फसल बुवाई से पूर्व ही उसके बीजों को उपचारित कर लें और इसके बाद ही बुवाई करें। बीजोपचार करने से यह फायदा होता है कि फसल में बीमारियों और रोग का प्रकोप कम होता है और स्वस्थ्य उत्पादन प्राप्त होता है।

4) प्रमाणिक और उन्नत बीज ही बोएं
किसानों को चाहिए कि हमेशा प्रमाणिक और उन्नत बीज ही बोएं। बीज हमेशा अपनी विश्वसनीय दुकान से खरीदें। बीज खरीदते समय उसकी रसीद अवश्य लें। प्रमाणिक बीज बोने से उत्तम गुणवत्ता वाला बीज सामान्य बीज की अपेक्षा 20 से 25 प्रतिशत अधिक कृषि उपज देता है। अत:शुद्ध एवं स्वस्थ प्रमाणित बीज अच्छी पैदावार का आधार होता है। प्रमाणित बीजों का उपयोग करने से जहां एक ओर अच्छी पैदावार मिलती है वहीं दूसरी ओर समय एवं पैसों की बचत होती है।

5) उचित बीज दर रखें
जो भी फसल बोई जा रही हो उसके लिए उचित बीज दर रखें। बीजों की कतार में बुवाई करें और कतार से कतार के बीच समुचित दूरी रखें। पौधों के पौधों की दूरी उचित रहने से यह फायदा होगा कि फसल की अच्छी बढ़वार होगी और अधिक उत्पादन प्राप्त होगा।

6) फसल चक्र अपनाएं
भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को फसल चक्र का पालन करना चाहिए। फसल चक्र से तात्पर्य यह है कि बदल-बदल कर फसलें बोनी चाहिए। बदल-बदल कर फसलें बोने फसलों पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम होता है। रबी फसलों के लिए- गेहूं, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका - हरे चारे की खेती, मसूर, आलू, राई, तंबाकू, लाही, जई। इस प्रकार से फसल चक्र अपनाया जा सकता है।

7) मिलवा फसलें लें यानि इंटर क्रोपिंग खेती करें
इंटर क्रोपिंग का अर्थ है एक ही ऋतु में एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों को उगाना। इसे मिश्रित फसल भी कहते हैं। इस तरह दो या दो से अधिक फसलें एक निश्चित दूरी पर पंक्ति में या बिना पंक्ति के बोई जाती है, तो उसे इंटर क्रोपिंग कहा जाता है। इंटर क्रोपिंग फसल लेने का सबसे अधिक फायदा ये हैं कि जोखिम कम हो जाता है। मान लें आपने गेहूं और चना की एक साथ फसल ली। इसमें से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ और चना की फसल को फायदा। तो आपके गेहूं के नुकसान की फसल भरपाई चने की फसल से हो जाएगी। इस तहर इंटरक्रोपिंग जोखिम को कम करने में मददगार है।

8) दलहनी-तिलहनी फसलों में जिप्सम का प्रयोग करें
गंधक की कमी को दूर करने और गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने बुवाई से पहले 250 किलो जिप्सम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलाने की सिफारिश की है। जिप्सम (70-80 प्रतिशत शुद्ध) में 13-19 प्रतिशत गंधक तथा 13-16 प्रतिशत कैल्शियम तत्व पाए जाते हैं। क्षारीय भूमि सुधार हेतु मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट, (जीआर वैल्यू) की सिफारिश के अनुसार जिप्सम का उपयोग करना चाहिए। दलहनी और तिलहनी फसलों में जिप्सम का उपयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। दाने चमकीले होते हैं और 10-15 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है। इसके अलावा तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा अधिक हो जाती है। जिप्सम का उपयोग क्षारीय भूमि को सुधारने और फसलों को पाले से बचाने के लिए भी किया जाता है।

9) सिंचाई के लिए करें फव्वारा व ड्रिप सिस्टम का उपयोग
फसलों की सिंचाई के लिए किसान भाई फव्वारा व ड्रिप सिंचाई और पाइप लाइन का उपयोग करें। इससे एक ओर कम पानी में अधिक सिंचाई संभव हो सकेगी। वहीं बूंद-बूंद जल का उपयोग होगा। इसका परिणाम ये होगा कि पूरी फसल को समान मात्रा में पानी मिल सकेगा जिससे अधिक क्षेत्रफल में कम पानी से सिंचाई हो जाएगी। पानी की बचत होगी और उत्पादन भी बेहतर होगा।

10)फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं में करें सिंचाई
फसल की क्रांतिक अवस्था से तात्पर्य फसल की उस अवस्था जिसमें उसे निश्चित मात्रा में पानी मिलना ही चाहिए। ये क्रांतिक अवस्था अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग होती है। रबी की फसल गेहूं में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए 4 से 6 सिंचाइयां की जाती है। इसकी क्रांतिक अवस्था आ अनुमान 180 से 120 मिली लीटर के मध्य लगाया जाता है। क्रांतिक अवस्था में सिंचाई करने से कम पानी की स्थिति में भी अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।

11)मित्र कीटों का संरक्षण करें
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मित्र कीटों को खेतों में संरक्षित करना चाहिए। यदि शत्रु एवं मित्र कीट का अनुपात 2:1 है, तो कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। प्रेइंग मेंटिस, इंद्रगोपभृंग, ड्रैगन फ्लाई, किशोरी मक्खी, झिंगुर, ग्राउंड विटिल, रोल विटिल, मिडो ग्रासहापर, वाटर बग, मिरिड बग ये सभी मित्र कीट हैं, जो फसलों व सब्जियों में पाए जाते हैं। ये कीट शत्रु व हानिकारक कीटों के लार्वा, शिशु एवं प्रौढ़ को प्राकृतिक रूप से खाकर नियंत्रित करते हैं। इनमें मांसाहारी कीट मित्र कीट होते हैं, जबकि शाकाहारी कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। फसल पर कीट देखते ही किसान अंधाधुंध रासायनिक खाद का उपयोग करने लगते हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और उत्पादन पर भी असर पड़ता है। इसलिए मित्र कीटों की पहचान करके उनका संरक्षण करना चाहिए। मित्र कीटों के संरक्षण से रासायनिक खाद की कम आवश्यकता पड़ती है और फसल भी अच्छी होती है।

रबी सीजन की प्रमुख फसलें
रबी की फसल भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है। आलू, मसूर, गेहूं, जौ, तोरिया (लाही), मसूर, चना, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं। वहीं बात करें रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू, तोरई, लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पत्ता-गोभी, गाठ-गोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकंदर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद आदि सब्जियां उगाई जाती हैं।

रबी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बुवाई का तरीका, मृदा और उर्वरक प्रबंधन की तकनीक

जुताई और भूमि उपचार करने के लाभ:-
रबी की फसलों में सही उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही तरीके से जुताई और मिट्टी का उपचार करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

1) सही तरीके से जुताई और मिट्टी का उपचार करने से खेतों में खरपतवार को रोका जा सकता हैं

2) फसलों की बुआई के समय सही तरीके से मिट्टी तैयार करने से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

3) मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी में जो पोषक तत्व मौजूद ना हो वो पूरा करने से भी अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं

4) भूमि उपचार करने से भूमि में होने वाले रोगों और कीटों की समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है

5) दीमक फसलों में लगने वाला प्रमुख समस्या है। जिस खेत में दीमक का प्रकोप है वहां पर क्वीनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा से मिट्टी में बुवाई से पहले मिला देने से दीमक की समस्या नहीं होती हैं।

रबी सीजन की फसलों की बुवाई का तरीका:-
रबी सीजन की फसलों की बुवाई करने के लिए कतार विधि से करना चाहिए। इसमें किसान को सीड-ड्रिल या जीरो टिलेज मशीन का उपयोग करना चाहिए, जिससे किसान बुवाई के समय बीज की उचित मात्रा डाल सकें। इसमें एक कतार से दूसरे कतार और पौधे की दूरी को निश्चित कर सकते हैं जो विभिन्न कृषि कार्य जैसे निराई, गुडाई आदि करने में लाभदायक होता है। रबी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए फसलों में 6 से 8 टन कार्बनिक खाद एवं उर्वरकों का सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के उपयुक्त साधन मौजूद नहीं हैं, वहां खाद एवं उर्वरक की पूरी मात्रा व उपयुक्त उर्वरकों के द्वारा बुवाई से पहले खेत की अंतिम जुताई करते समय देनी चाहिए। जहां सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध हैं, वहां फसलों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालना चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा दो से तीन बार में थोड़ी-थोड़ी करके डालना चाहिए।

मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरक प्रबंधन कैसे करें:-
रबी फसलों की खेती की तैयारी के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम है मृदा का स्वास्थ्य परिक्षण एवं उर्वरक का प्रबंधन। मृदा का स्वास्थ्य परिक्षण करने के लिए सबसे आवश्यक है मिट्टी की जांच कराना। वर्तमान समय में रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग के कारण हमारे खेत की मिट्टी पर और वातावरण पर प्रभाव पड़ रहा है। किसान भाइयों द्वारा असंतुलित रसायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कमजोर होती जा रही है। साथ ही हमारे खेत की मिट्टी में जीवांश पदार्थ एवं सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी लगातार कमी होती जा रही है। इसके कारण पौधों के विकास एवं फसलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके लिए किसान भाई रबी फसल की बुआई से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच अवश्य कराएं तथा आवश्यक अनुसार ही उर्वरक का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। जिससे फसलों का अधिक उत्पादन का लाभ किसानों को प्राप्त हो सकें।