सोनाली हरिनखेरे
पीएच.डी. रिसर्च स्कालर (मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायनविभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

आधुनिक कृषि में रासायनिक उर्वरक एक महत्वपूर्ण कृषि निवेश है, परन्तु उर्वरकों के असंतुलित उपयोग से मृदा की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट आ रही है, जिससे फसल उत्पादन एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उर्वरकों के उपयोग से निःसंदेह ही फसल उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, परन्तु इनके परिणामस्वरूप मृदा संरचना एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मृदा में अनेक पौधों के पोषक तत्वों की बढ़ती कमी इस समस्या का एक स्पष्ट संकेत है। अतः कम लागत पर अधिकतम गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने के साथ-साथ मृदा उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना अति आवश्यक है। यूरिया के अत्यधिक प्रयोग के कारण भूमि के उपजाऊपन एवं फसल उत्पादों की गुणवत्ता में कमी, मौसम की विषमताएं तथा उत्पादकता में कमी जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।इससे मृदा में जल अधिग्रहण क्षमता, वायु संचार और कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में कमी आई है। साथ ही यूरिया के असंतुलित प्रयोग से वायु और जल प्रदूषण में लगातार वृद्धि हो रही है। जिसके फलस्वरूप मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही फसल उत्पादकता भी घट रही है।

इन दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर हमारे देश के वैज्ञानिकों द्वारा नीमलेपित यूरिया का विकास किया गया। नीमलेपित यूरिया के प्रयोग से किसानों की समस्याओं को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से न केवल फसलों में नाइट्रोजन की आवश्यकता पूर्ति की जाती है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण में भी प्रभावी है। नीमलेपित यूरिया के इस्तेमाल करने से सामान्य यूरिया की अपेक्षा लगभग 10 फीसद मात्रा कम प्रयोग करनी पड़ती है। इसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ कम उत्पादन लागत में कृषि की जा सकती है।

क्या है नीम लेपित यूरिया
सर्वप्रथम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के वैज्ञानिक डा. राजेन्द्र प्रसाद और उनकी टीम ने नीमलेपित यूरिया तैयार किया था। उन्होंने सर्वप्रथम इसका धान की फसल में उपयोग कर फसल की वृद्धि और उत्पादन में बढ़ोत्तरी दर्ज की, क्योंकि इससे नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। नीमलेपित यूरिया से अभिप्राय साधारण यूरिया को नीम के तेल से आवरित करना है। इससे नाइट्रोजेन मृदा में धीरे-धीरे समावेशित होती है। नीम लेपित यूरिया धीमी गति से प्रसारित होता है, जिसके कारण फसलों की आवश्यकता के अनुरूप नत्रजन पोषक तत्व की उपलब्धता होती है एवं फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। उम्मीद है कि आने वाले समय में हमारे किसान भाई नीमलेपित यूरिया का उपयोग कर मृदा स्वास्थ्य के साथ-साथ अधिक फसलोउत्पादन प्राप्त करेंगे। इससे भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा में कमी आएगी परिणामस्वरूप मानव स्वास्थ्य की भी रक्षा होगी।

नीमलेपित यूरिया का महत्व
यूरिया के जलीयकरण और नाइट्रीकरण द्वारा क्षति भी एक गंभीर समस्या है। इस समस्या से बचने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय नीमलेपित यूरिया हैजो नाइट्रीकरण निरोधी के रूप में कार्य करता है। इसके प्रयोग से नाइट्रीकरण की प्रक्रिया मंद गति से होने लगती है, जिससे नाइट्रोजन के लीचिंग व वाष्पीकरण द्वारा ह्रास में कमी आ जाती है। नाइट्रोजन अधिक समय तक मृदा में रहने से पौधे इसे लंबे समय तक ग्रहण कर सकते हैं। इससे यूरिया का कम मात्रा में प्रयोग कर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता हैजिससे लागत में कमी आयेगी। इसके साथ ही नीम को एक अच्छा कीटनाशक और बैक्टीरियारोधी भी माना जाता है, जिससे विभिन्न फसलीय रोगों एवं कीटों के प्रकोप को कम किया जा सकता है। 

सारणी:सामान्य यूरिया की तुलना में नीमलेपित यूरिया के प्रयोग से नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में वृद्धि

क्र.सं.

फसल

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में प्रतिशत वृद्धि

1

धान

10*22

2

गेहूं

7*12

3

गन्ना

5*78

4

मक्का

6*22

5

अरहर

9*23

6

कपास

4*52


प्रयोग विधि
मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई/रोपाई के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा को 2-3 बार में प्रयेाग करना चाहिए। हल्की भूमियों में तीन बार मे तथा भारी भूमियों में दो बार में प्रयोग करें। कल्ले फूटते समय एवं बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर अवश्य प्रयोग करें। नीम लेपित यूरिया का सामान्य यूरिया की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत तक प्रयोग कम किया जा सकता है।

नीम लेपित यूरिया के लाभ
  • कृषि लागत में कमी।
  • कृषकों की आय में वृद्धि।
  • लगभग 10 प्रतिशत तक यूरिया की बचत।
  • 10 -15  प्रतिशत तक उपज में वृद्धि।
  • नत्रजन के धीरे-धीरे निकलने के कारण मृदा उर्वरा को मदद मिलती है।
  • यूरिया का आयात कम होगा।
  • यूरिया की सब्सिडी की बचत होगी
  • नीम लेपित यूरिया का संतुलित इस्तेमाल संभव होगा।
  • यूरिया के औद्योगिक इस्तेमाल पर अंकुश लगेगा।
  • पर्यावरण अनुकूल है।
  • नत्रजन प्रयोग दक्षता में वृद्धि।
  • नाइट्रीफिकेशन अवरोधी।
  • वाष्पीकरण तथा निक्षालन (लीचिंग) से नत्रजन की होने वाली क्षति को कम करता है।