आलोक कुमार (एम.एसी. कृषि), हेमलता (पीएच.डी. कृषि)(कीट विज्ञान विभाग)
इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर रायपुर
(कृषि महाविद्यालय, रायपुर छ.ग.)

आलु भारत की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। कुछ राज्यों जैसे तमिलनाडु एवं केरल के अलावा यह फसल पुरे देश में उगाई जाती है। आलु में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, विटामिन तथा अन्य पोषक तत्व संतुलित मात्रा में पाये जाते हैं।

भारत में आलु की औसत उपज 152 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जो विश्व कि औसत उपज में बहुत कम है। आलु का भरपुर उत्पादन प्राप्त करने में कीट व्याधियां एक प्रमुख बाधा है। कीटों के कारण न केवल उत्पादन बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता में भी कमी आती है और साथ ही उत्पादन लागत में अचानक बढ़ोतरी भी होती है। आलु में किन-किन कीटों की अधिकता होती है, उन कीटों की पहचान, उनके क्षति के लक्षण तथा एकीकृत प्रबंध की जानकारी निम्न हैः-

1. आलु कंद शालभ (पोटेटो ट्युबरमोथ)
  • पोषक पौधेः आलु, टमाटर, बैंगन, तम्बाकु इत्यादि।
  • पहचान चिन्हः पूर्ण विकसित सुण्डी लगभग 15-20 मि.मी लम्बी होती है तथा शरीर का रंग हल्का हरा और सिर का रंग भूरा होता है। वयस्क शालभ भूरे कत्थई रंग के होते हैं।
  • क्षति के लक्षणः इस कीट की सुण्डी अवस्था हानिकारक होती है यह कीट आलु को भण्डार गृहों और खेतों दोनों स्थानों पर हानि पहुंचाता है। भण्डार गृहों में भण्डारित आलुकंदो में नालियां बनाकर खाता है तथा ग्रसित कंदो की सतह पर काली विष्ठा छोड़ता है। सुरंग युक्त पत्तियां तथा ग्रसित टहनियों का गिरना खड़ी फसल में इस कीट के क्षति के लक्षण हैं।

प्रबंधनः
  • स्वस्थ एवं प्रमाणित कंदो का प्रयोग।
  • फसल में उचित समय पर मिट्टी चढ़ाये।
  • लगभग 75 प्रतिशत पत्तियां सुखने पर कंदो की खुदाई करें।
  • खोदे गये कंदो से स्वस्थ कंद चयनित कर भंडार गृहों में रखे और उन पर बालु की 25 से.मी. मोटी तक बिछाए जिससे मादा कंदो पर अण्डा न दे सके।
  • सेक्स फेरोमोन का प्रयोग करेंए 1 हेक्टेयर में प्रभावी ट्रेपिंग के लिए 20 ट्रेप लगाऐं।
  • अंडे लार्वा परजीवी चेलोनस ब्लैकबर्नि/ 30000 हेक्टेयर की दर से रोपण के बाद 40 और 70 दिन में दो बार फसल में छोड़ें। खड़ी फसल में प्रकोप होने की स्थिति में क्विनाल फॉस 25म्ब् 1250 मि.ली. को 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेेयर छिड़काव करें।

2. आलु का माहो (माईजस परसिकी)
  • पोषक पौधेः यह कीट आलु, सरसों, टमाटर, सेम आदि को नुकसान पहुंचाता है।
  • पहचान चिन्हः वयस्क कीट हरा एवं चिकना होता है। यह पंखयुक्त, पंखहीन दोनों प्रकार का होता है। संपूर्ण जीवन चक्र 15-20 दिन का होता है।
  • क्षति के लक्षणः इस कीट की वयस्क एवं निम्न दोनों अवस्था हानिकारक होता है। यह कीट पत्ती की निचली सतह पर रस चुसता है, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती है। पौधे की वृद्धि रूक जाती है। अत्यधिक प्रकोप होने से पत्तियां नीचे की ओर कुंचित हो जाता है।

प्रबंधनः
  • समय पर बुआई करें।
  • जैव नियंत्रण के रूप में लेडीबर्ड बीटल का प्रयोग उपयोगी हैं।
  • लेडी भृंग लेसविंग लार्वा और सिरिफिड लार्वा जैसे शिकारियों को स्वाभाविक रूप से पैदा करना।
  • रासायनिक नियंत्रण के रूप में मेलाथियान 50 ई.सी., 700 मि.ली. दवा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए।

3. कटुआ इल्ली (एग्रोटिसईप्सिलान)
  • पोषक पौधेः चना, मटर, आलु, गेंहू, कपास, सरसों आदि।
  • पहचान चिन्हः पूर्ण विकसित इल्ली का सिर काला तथा शरीर की उपरी सतह हरे या भूरे रंग की होती है, जिनकी लंबाई 40-43 मि.मी. होती है। वयस्क मध्यम आकार की भूरे रंग की शालभ होती है। अग्र पंखों पर मटमैले धब्बे एवं पीछे के पंख सफेद होता है।

प्रबंधनः
  • प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर वयस्क शालभ को नष्ट करें।
  • खेतों के बीच-बीच में घास-फूस के छोटे-छोटे ढेर शाम के समय लगा देना चाहिए।
  • जैव नियंत्रण में ब्रकानिड, एपेंटेलिस प्रजाति उपयोगी पाए गए हैं।
  • ब्रेकोनिड्सए माइक्रोगास्टर जाति (शिकारियों) का संरक्षण करें।
  • प्रकोप की अधिकता होने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा की 800 से 1000 मि.ली. मात्रा/हे. की दर से सिंचाई जल के साथ दें।

4. एपिलेकना भृंग
  • पोषक पौधेः आलु।
  • पहचान चिन्हः इस कीट का वयस्क गहरा लाल रंग की जिनके इलेट्रा पंख पर 14 काले धब्बे प्रति इलेट्रा होते हैं। संपूर्ण जीवन चक्र 30-60 दिनों की होती है।
  • क्षति के लक्षण: इस कीट की वयस्क एवं ग्रब दोनों ही पत्ती की उपरी सतह की पर्ण हरित को खा जाता है जिससे पत्ती ही सतह पर नेटवर्क संरचना बन जाती है। इससे 70 प्रतिशत की क्षति हो सकती है।

प्रबंधनः
  • कीट को पकड़कर नष्ट करना चाहिए।
  • उचित समय में ही बुआई करें।
  • अत्यधिक प्रकोप होने पर डाइमिथोल्ट 30 ई.सी. की दवा 1100-1150 मि.ली. घोल का छिड़काव करना चाहिए।

5. सफेद मक्खी
  • पोषक पौधेः आलु, सोयाबीन
  • पहचान चिन्हः व्यस्क लगभग 1 मिमी लंबा होता है। जिसके पंख सफेद पीले रंग के होते हैं। जो मोमयुक्त परतदार पंख वाली मक्खी होती है। अंडे करीब 0.2 मिली मीटर लंबे नाशपाती के आकार के होते हैं। अण्डों का रंग सफेद होता है। शंखी काली नाशपाती के आकार की होती हैं।
  • क्षति के लक्षण: इस कीट के शिशु व व्यस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं। जिससे पत्तियां मुड़कर पीली पड़ जाती हैं तथा पूर्ववक्त होने से पहले गिर जाती हैं। यह शहद जैसे चिपचिपा पदार्थ का स्त्राव करती हैं। जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है तथा भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रबंधनः
  • आलू की फसल पर सफेद मक्खियों की संख्या को जानने के लिए एवं इन्हें पकड़ने हेतु पीली चिपचिपा फंदे का प्रयोग करें।
  • एनकोर्सिया फॉर्मोसा प्युपल पैरसिटोइड्स का प्रयोग करें।
  • इसके अलावा रासायनिक तरीके से रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड का 17.8 एस.एल. की 2 मिली 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।