डॉ. योगेश कुमार कोसरिया (अतिथि शिक्षक, कृषि अभियांत्रिकी, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, रायगढ़),
डॉ. श्रीकांत सावरगांवकर (वैज्ञानिक, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, रायगढ़),
गामिनी वर्मा (अतिथि शिक्षक, कृषि सांख्यिकी, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, रायगढ़)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़

दक्षिण एशिया के इस पौधे का वानस्पतिक एवं वैज्ञानिक नाम कुरकुमालौंगा(Curcumalonga) है तथा यह जिंजी बरेसी कुल का सदस्य है। हल्दी के पौधे ज़मीन के ऊपर से हरे-भरे दिखाई देते हैं। हल्दी के पत्ते केले के पत्ते के समान बड़े-बड़े और लंबे होते हैं, इसमें से सुगन्ध आती है। यह अदरक की प्रजाति का 5-6 फुट तक बढ़ने वाला बारह मासी पौधा है जिसके जड़ की गाठों में फल पैदा होता है और उसी को हल्दी कहते हैं। कच्ची हल्दी, अदरक जैसी दिखती है। हल्दी की गांठ छोटी और लालिमा लिए हुए पीले रंग की होती है। यह खेतों में बोई जाती है, लेकिन कई स्‍थानों में यह स्वय उत्पन्न हो जाती है। ज़मीन के नीचे कन्‍द के रूप में इसकी जड़ें होती है। ये कन्‍दरूपी जड़ें हरी अथवा ताजी अथवा कच्‍ची हल्‍दी होती है। कच्‍ची हल्‍दी की सब्‍जी बनाकर खाते हैं। कच्‍ची हल्‍दी को उबालकर सुखा लेते हैं, ऐसी हल्‍दी सूखने के बाद रंग परिवर्तन होकर पीला रंग ग्रहण कर लेती है। हल्‍दी स्‍वाद में कड़वी व तेज होती है। भोजन में इस्तेमाल के लिए हल्दी को पीसा जाता है।

विवरण- 
हल्दी उबाला, सूखा, साफ और पॉलिश किया गया कुरक्युमालोंगराइज़ोम है । छोटा तना और गुच्छेदार पत्तोंवाला इसका पौधा शाकीय, चिरस्थाई, 60-70 से. मी. ऊँचा है।इसके 7-12 पत्ते होते हैं। पर्णच्छदस्यूडोतना बनता है। पत्रदलऊँपर से हरा और नीचे से हल्का हरा है और 30-40 से.मी. ऊँचाई और चौडाई 8-12 से.मी.होती है। फूल 10-15 लंबा मध्य स्पाइक है । सहपत्र के कक्ष में एक-एक करके 1-4 फूल खिलते हैं। एक स्पाइक में लगभग 30 फूल हुआ करते हैं। बीज संपुटिकाओं में बनते हैं और एक पुष्पक्रम में एक से लेकर बहुसंख्यक जलमग्न संपुटिकाएँ होती हैं।

उपयोग- 
हल्दी खाद्य पदार्थों को स्वाद एवं सुगंध प्रदान करने केलिए प्रयुक्त होती है। यह करी पाउडर का मुख्य एक घटक है। हल्दी तैलीराललवणजलीय अचारों एवं कुछ हद तक सलाद के मसालों, लजीज पकवानों, गैर-ऐल्कहॉलिकपेयों, जेलाटिन, मक्खन एवं पनीर में प्रयुक्त किया जाता है। हल्दी से निष्कर्षित रंग कुक्र्युमिनवर्णक के रूप में प्रयुक्त होता है। वस्त्र उद्योग में रंजक के रूप में भी हल्दी प्रयुक्त होती है। यह औषधीय तेलों, मरहमों एवं पुलटिस की तैयारी में प्रयुक्त होती है। यह क्षुधावर्ध्दक, वातहर, टॉनिक, रक्तशोधक एवं प्रतिरोधी है। इसका अंगराग में प्रयोग होता है। इसका जलीय निचोडजैवनाशकजीवनाशी गुण रखता है।

गतिविधियां- 
हल्दी के लिए अच्छी तरह से कुटा और स्तरित बीज वाली क्यारी की आवश्यकता होती है क्योंकि यह जल भराव के लिए बेहद संवेदनशील है।भूमि को 15-20 सेमीगहरी जोती जाती है जिससे अंदर की सूखी मिट्टी सूर्य के प्रकाश में उजागर होती है । इसके बाद एक महीने खाली छोड़ दिया जाता है ज़मीन को 2-3 बार पटारा से समतल बनया जाता है एवं संकरा ऊंचा भाग बना दीया जाता है ताकी मिट्टी का क्षरण रोका जा सके।खरपतवार, घासपात, कुदालसे मिट्टी ढकी जाती है।बारहमासी खरपतवार, हल्दी राइज़ोम के विकास में बाधा डालता है। घासपात, खरपतवार को दबाने में मदद करता है और राइज़ोम क्षेत्र के आसपास मिट्टी नमी को बचाने में मदद करता है। धरती पर चलने वाले ऑपरेशन को बढ़ाए गए रूट विकास में लाया जाता है। पहले महीने के दौरान खरपतवार नियंत्रण हल्दी के फसल में, रोपण के तुरंत बाद किया जाता है और 40 से 50 दिनों के अंतराल पर द्वितीय और तीसरे बार किया जाता है एवं पूर्णतया रोपण के बाद 50-60 दिनों में किया जाता है।

कटाई एवं कटाई के बादकी प्रक्रिया- 
कटाई एवं कटाई के बादकी प्रक्रियारोपण के बाद 7-9 महीने में की जाती है ।कटाई के समय भौतिक विशेषताएँ एवं लक्षण यह हैं कि हल्दी की पत्तियां पीलीऔर पूरी तरह सूख जाती हैं।इसमें मदाई के उपकरन की जरूरत नहीं होती ।हल्दी के भण्डारण करने के लिए हल्दी को 70-75 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता पर 12-15 डिग्री सेल्सियस पर राइज़ोम का ठंडा भंडारण किया जाता है

हल्दी हर रसोई में पाया जाने वाला मसाला है। जो खाने का स्वाद और रंग बढ़ाने का काम करती है। खाने के साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी है जो विभिन्न रोगों को ठीक करने में काम आती है। ठंड में तो हल्दी का सेवन करना बहुत ही फायदेमंद होता है।


छत्तीसगढ़ हल्दी-3 के कुछ प्रमुख घटक
छत्तीसगढ़ हल्दी-3, रायगढ़ में उत्पादित एक मसाला फसल है और जड़ी बूटी भी है, यह पौधे की जड़ से प्राप्त होता है जो जड़ीय परिवार में एक बारह मासी है। हल्दी का सबसे प्रमुख सक्रिय अंश है करक्यूमिन। करक्यूमिन हल्दी को पीला रंग देता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में हल्दी का उपयोग कई वर्षों से किया जा रहा है। आयुर्वेद में इसे हरिद्रा कहते है। हल्दी भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया का पौधा है। यह एक बारह मासी पौधा है इसके पौधे में फूल आते है। इसे 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान चाहिए होता है और वार्षिक वर्षा की भी अच्छी मात्रा में आवश्यकता होती है। हल्दी पाउडर का स्वाद कड़वा, गर्म, काली मिर्च जैसा होता है और इसकी सुगंध मिट्टी, सरसों जैसी होती है। इसका विशेष तौर पर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। खाने के साथ ही इसे सर्दी-जुकाम, त्वचा रोग और भीतर की बिमारियों में प्रयोग किया जाता है।

रायगढ़ में उत्पादित छत्तीसगढ़ हल्दी-3, सिर्फ भोजन का स्वाद ही नहीं बढ़ाती बल्कि विभिन्न तरह के शारीरिक फायदे भी प्रदान करती है। जानते है हल्दी के फायदे क्या है हल्दी हर रसोई में पाया जाने वाला मसाला है। जो खाने का स्वाद और रंग बढ़ाने का काम करती है। खाने के साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी है जो विभिन्न रोगों को ठीक करने में काम आती है। ठंड में तो हल्दी का सेवन करना बहुत ही फायदेमंद होता है। छत्तीसगढ़ हल्दी-3के अनोखे फायदे हैं जैसे कि-

1) चोट का घाव भरने में- अगर आपको छोटी मोटी चोट लग गई है तो उस जगह पर तुरंत हल्दी लगा ले। इससे चोट पर बहने वाला खून रुक जाता है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है। हल्दी में घाव को जल्दी भरने के गुण होते है। यह चोट की जलन और दर्द को भी कम करने में मददगार है।

2) हाथ-पैरों का दर्द मिटाएं- हल्दी में एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक गुण हाथ पैरों का दर्द मिटा देते है। कभी-कभी हाथ-पैरों में दर्द होने लगता है ऐसा अक्सर ठंड के मौसम में ज्यादा होता है। तो ऐसे में आपको हल्दी का सेवन करना चाहिए आप गर्म दूध में हल्दी मिलाकर भी पी सकते है।

3) रक्त शोधन- हल्दी रक्त शोधन करने वाली होती है। रोजाना हल्दी खाने से रक्त में पाए जाने वाले विषैले तत्व शरीर से बाहर निकलते है। जिससे रक्त का बहाव भी अच्छे से होता है। रक्त पतला होने पर धमनियों में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे हृदय संबंधी समस्याएं भी नहीं होती।

4) मजबूत हड्डियां- हल्दी वाला दूध पीने से हड्डियां मजबूत होती है। दूध में कैल्शियम होता है जिससे शरीर मजबूत बनता है और हल्दी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते है। जो हड्डी से संबंधित समस्याओं को दूर करने में मदद करते है। इससे ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या भी कम होती है।

5) कैंसर से बचाएं- कच्ची हल्दी में करक्यूमिन तत्व पाए जाते है जो कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को बढ़ने से रोकते है। कच्ची हल्दी में एंटी-कैंसर गुण पाए जाते है। कच्ची हल्दी पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर को कम करने में सहायक होती है। इस बात पर ध्यान देना जरुरी है की कच्ची हल्दी से कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है लेकिन इसे कैंसर का इलाज नहीं कह सकते।

6) पाचनसुधारे- पाचन संबंधित समस्या होने पर कच्ची हल्दी खाना चाहिए हल्दी में पाया जाने वाला करक्यूमिन पेट और पाचन की परेशानियों को ठीक करता है। करक्यूमिन में एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते है जिससे पाचन में सुधार होता है। डायरिया, अपच, गैस होने पर कच्ची हल्दी को पानी में उबाले और इसे पिएं।

7) लिवर रहे स्वस्थ- लिवर से संबंधित समस्या में कच्ची हल्दी फायदेमंद रहती है। कच्ची हल्दी का अचार, चटनी या किसी ना किसी रूप में सेवन जरूर करे। फैटी लिवर डिजीज, लिवर की विषाक्तता, लिवर सिरोसिस की बिमारियों में कच्ची हल्दी का सेवन करना लाभदायक होता है। लिवर से जुड़ी बीमारी के मरीजों को हल्दी का सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए।

8) अर्थराइटिस-ज्वाइंट्स पेन- अर्थराइटिस की समस्या या जोड़ों में दर्द की समस्या है तो इससे निजात पाने के लिए हल्दी का सेवन करे। हल्दी के सत का सेवन करने से अर्थराइटिस के लक्षणों में जैसे: दर्द, सूजन को कम करने में मदद करता है। शरीर में किसी जगह पर दर्द या सूजन है तो हल्दी का लेप लगाने से आराम मिलता है।

9) पायरिया में- पायरिया होने पर हल्दी में सरसों का तेल मिलाकर मसूड़ों पर मालिश करने से लाभ मिलता है। मसूड़ों पर मालिश करने के बाद गर्म पानी से कुल्ला करे आपको फायदा होगा।

10) मुँह के छालें- पाचन क्रिया खराब होने की वजह से मुँह में छाले हो जाते है। हल्दी में उष्ण गुण होते है। जिससे पाचकाग्नि को ठीक करने में मदद मिलती है। हल्दी मुँह के छालों को जल्द ही ठीक कर देती है।

11) रंगत निखारे- चेहरे की रंगत निखारने में हल्दी का सालों से प्रयोग किया जाता रहा है। हल्दी चेहरे की रंगत को बढ़ा देती है और चेहरे के कील मुहाँसे, दाग – धब्बों को कम कर देती है। हल्दी को अपने उबटन में मिलाकर लगाएं।

10) सिर की फुंसियों– सिर में फुंसियां होने पर हल्दी और त्रिफला, नीम और चन्दन को पीसकर सिर पर मालिश करें।

11) कान बहने में आराम- कान के बहने में आराम पाने के लिए पानी में हल्दी डालकर उबाले छानकर इसे कान में डालें।

12) गले की खराश- गले की खराश दूर करने के लिए हल्दी, यवक्षार और चित्रक के २-५ ग्राम चूर्ण लें एक चम्मच शहद के साथ इसका सेवन करें। 

13) दाद खुजली में- त्वचा पर दाद खुजली हो गई है तो खुजली वाली जगह पर हल्दी का लेप लगाएं।