चंचल पोर्ते एवं जयेश शेष, पी.एच.डी. स्कॉलर्स,
डॉ. एस. के. झा, प्राध्यापक
श्री संजीव मलैया, सहा. प्राध्यापक सस्य विज्ञान विभाग
कृषि महाविद्यालय, इं.गा.कृ.वि.वि.,रायपुर (छ.ग.)

मक्का चारा (ज़िया मेज़ एल.) पशुओं द्वारा चाही जाने वाली बेहतरीन चारा फसलों में से एक है। शुष्क भार के आधार पर इसमें 9-10 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, 60-64 प्रतिशत एन.डी.एफ., 38-41 प्रतिशत ए.डी.एफ., 23-25 प्रतिशत हेमी सेल्यूलोस, 30-38 प्रतिशत सेल्यूलोस होता है। साथ ही विटामिन बी काम्प्लेक्स, फॉस्फोरस, पोटाश, लोहा, कॉपर, जिंक, मैग्नीशियम, मैंगनीज इत्यादि प्रचुर मात्रा में पाई जाती जाती है। इसकी खेती वर्ष- भर की जा सकती है एवं पशुओं को मक्के का हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।

मिट्टी एवं उसकी तैयारी
सामान्यतः उपजाऊ,गहरी, अच्छे जल निकासी वाली, हल्की दोमट से भारी दोमट तथा पर्याप्त जल धारण कर सकने वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। भूमि तैयारी के लिए ग्रीष्म में एक गहरी जुताई के पश्चात् कल्टीवेटर से 2-3 हल्की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी कर लें।

उन्नतशील प्रजातियाँ- अफ्रीकन टाल, ए.पी.एफ.एम्.-8, जे -1006 एवं प्रताप मक्का चरी -6 (ई.सी. -3135)

बीज दर एवं बुवाई- 80- 100 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त होता है। जिसे पंक्तियों में 25-30 से.मी. की दूरी पार बोया जाना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
बुवाई के एक माह पूर्व 12-15 टन गोबर की अच्छी सड़ी खाद डालें। बुवाई के समय 80-100 कि. ग्रा. नत्रजन : 50-80 कि. ग्रा. स्फुर: 40-60 कि. ग्रा. पोटाश का प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग किया जाना चाहिए, तथा नत्रजन की खुराक का विभाजित अनुप्रयोग 50 प्रतिशत बुवाई के समय एवं शेष 50 प्रतिशत को बुवाई के 25-30 दिनों बाद किया जाना चाहिए। ताकि, निस्छालन और वास्पीकरण द्वारा नत्रजन की होने वाली हानि को कम कर अनुप्रयोग दक्षता बढ़ाया जा सके।

सिंचाई प्रबंधन
जायद (ग्रीष्मकाल) में 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि खरीफ़ के मौसम में वर्षा का अंतराल ज्यादा होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

खरपतवार प्रबंधन
1 किलोग्राम एट्राजीन को 600 लीटर पानी में घोलकर जमाव से पूर्व 1 हेक्टेयर फसल में छिडकाव करें। वीडर-कम- मल्चर का प्रयोग बुवाई के 20-30 दिनों बाद लाभप्रद रहता है।

रोग एवं कीट
डाउनी मिल्डयू रोग से बचाव के लिए बुवाई के पूर्व बीजों का थीरम द्वारा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज मात्रा की दर से शोधन (सीड ट्रीटमेंट) कर लेना चाहिए। तना सडन से बचाव के लिए 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर 10 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें।

कटाई एवं उपज
हरे चारे के लिए मक्के की कटाई सिल्किंग अवस्था से लेकर दाने के दुधिया अवस्था तक (बुवाई के 60-75 दिन बाद) करने से गुणवत्तापूर्ण अच्छी उपज प्राप्त होती है, इस प्रकार किसान को औसतन 450-550 कु. हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।