शैलू यादव, (प्रयोगशाला तकनीशियन),
मृदा विज्ञान विभाग, ज.ने.कृ.वि.वि.,जबलपुर
डॉ. द्रोणक कुमार साहू, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, 
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र कुरूद, धमतरी

सघन कृषि पद्धति अपनाने एवं रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण मृदा में जीवांश पदार्थ की निरंतर कमी होती जा रही है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। यही हाल रहा तो आने वाले समय में दिक्कत और बढ़ जाएगी। कृषि वैज्ञानिकों को मानना है कि यह समय किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यदि किसान ढैचा की बोआई करें और बरसात में इसे पलटकर खेत में सड़ा दें तो जीवांश संतुलन में मदद मिलेगी। गोबर, पौधों व जीवों के अवशेष का प्रयोग खाद के रूप में करने से भूमि में जीवांश की पूर्ति होती है। जीवांश खाद के प्रयोग से पौधों को समस्त जीवांश प्राप्त हो जाते हैं।

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि यदि मिट्टी में जीवांश का स्तर-
  • 0.5 फीसदी से कम है तो न्यून।
  • 0.5 से 0.75 फीसदी तक मध्यम।
  • 0.75 से अधिक है तो उत्तम माना जाता है।

म.प्र. की मृदाओं में लगातार फसलोत्पादन के फलस्वरुप जीवांश का स्तर 0.5 फीसद के स्तर तक पाया गया था। ऐसे में भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए तत्काल प्रबंध जरूरी है।

किसान किन देशी तरीको अपनाकर भूमि में जीवांश का स्तर बढ़ा सकते हैं-

खेत की मिट्टी खेत में
खेत की मिट्टी खेत में तथा खेत का पानी खेत में बनाए रखने के लिए खेतों की मेड़ बंदी कराएं ताकि बरसात में उपजाऊ मिट्टी को बहने से बचाया जा सके।

हरी खाद का प्रयोग
मई माह में खाली खेत में ढैचा सनई उड़द मूंग आदि की बोआई करे। फसल बड़ी होने पर इसे खेत में पलट दें। एक बीघा में छह किलो ढैचा का प्रयोग करे।

जैविक खाद का प्रयोग
खेत में गोबर की सड़ी खाद वर्मीकंपोस्ट वर्मीवाश नाडेप कंपोस्ट मटका की खाद जानवरों की सींग की खाद फसल के अवशेष तथा काऊ पिटपैट आदि जैविक खादों का प्रयोग करे। इसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता के साथ ही जीवांश तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।

ट्राइकोडर्मा उपचारित खाद का प्रयोग
50 किग्रा गोबर की खाद व दो किग्रा ट्राइकोडर्मा अच्छी तरह मिलाकर छायादार स्थान पर गोल ढेर लगाएं। 15 दिन तक इसे पालीथिन से ढककर रखें फिर इसे खेत में डालें। इससे गोबर की खाद में पोषक तत्व सात से आठ गुना बढ़ जाता है।

राइजोवियम कल्चर
यह दलहनी फसलों में नत्रजन उपलब्ध कराने वाला यह महत्वपूर्ण कल्चर है।

एजोटो वैक्टर व एजोस्पाइरिलम
यह गेहूं जौ मक्का ज्वार तिलहन गन्ना कपास सब्जी बागवानी तथा वानिकी पौधों को नत्रजन उपलब्ध कराता है।

नील हरित शैवाल
नील हरित शैवाल जैव उर्वरक धान की फसल को नत्रजन उपलब्ध कराता है।

फास्फेट विलायक जैव उर्वरक
सभी प्रकार की फसल में इसका प्रयोगकर 20-25 फीसद तक फास्फोरस रासायनिक उर्वरक की बचतकर10-20 फीसद उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।



केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट
पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।

वर्मीकम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मीकम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2-5 से 3 प्रतिशत नाइट्रोजन 1-5 से 2 प्रतिशत सल्फर तथा 1-5 से 2 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है।

मिट्टी कार्बनिक पदार्थ
मृदा एक जीवित और गतिशील पारिस्थिति की तंत्र खाद्य प्रणाली का आधार है। स्वस्थ मिट्टी स्वस्थ फसलों का उत्पादन करती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है। पौधे और पशु सामग्री जैसे पत्तियां खाद और अन्य जैविक कचरे को कार्बनिक पदार्थ कहा जाता है। कार्बनिक पदार्थ जब विभिन्न मिट्टी के सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटित किया जाता है कार्बनिक पदार्थ बन जाता है। मृदा कार्बनिक पदार्थ में सूक्ष्म जीव 10-40 प्रतिशत और स्थिर कार्बनिक पदार्थ 40-60 प्रतिशत शामिल हैं।

कार्बनिक पदार्थों के मुख्य कार्य

1. यह पौधे के सभी पोषक तत्वों के एक भंडार के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह काफी हद तक पौधे के अवशेषों से प्राप्त होता है।

2. ह्यूमस और पोषक तत्वों को एक ऐसे रूप में बनाए रखता है जो पौधे द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

जीवाणु कल्चर में जीवित होते हैं। अतः इनका भण्डारण ठण्डे एवं नमस्थान और बीजोपचार भी छायादार स्थान पर करें। विभिन्न अनुसंधान प्रयोगों में यह परिणाम मिले हैं कि दलहनी फसलों जैसे चना अरहर आदि में कम्पोस्ट खाद की 52 टन/हेक्टेयर मात्रा का उपयोग किया जाये। साथ ही राइजोबियम एवं पी.एस.बी. कल्चर से बीज निवेशन किया जाये तो रासायनिक उर्वरक की मात्रा में आधी कटौती करके भी उतना उत्पादन मिल सकता है जितना उर्वरक की पूर्ण मात्रा से प्राप्त होता है। कृषकों को यह तकनीक आर्थिक रूप से तभी लाभप्रद होगी जब कृषक स्वयं अपने प्रक्षेत्र पर पैदा हो रही व्यर्थ वनस्पति का उपयोग कम्पोस्ट बनाने में करें एवं स्वयं द्वारा बनाये कम लागत वाले कम्पोस्ट का ही उपयोग करें।

सघन खेती के अंतर्गत लगातार फसल उत्पादन लेते रहने के कारण भूमि से आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है तथा बदले में उर्वरकों द्वारा कम एवं संतुलित मात्रा में पोषक तत्व मिट्टी में मिलाए जा रहे हैं जिससे भूमि में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ रहा है। इसके अतिरिक्त उर्वरक काफी महंगे होते है और केवल उर्वरकों के लगातार प्रयोग से भूमि की भौतिक दशा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आवश्यकता है कि उत्तम पौध पोषण एवं भूमि स्वास्थ्य हेतु केंचुओं से निर्मित वर्मी कम्पोस्ट खाद बायोगैस स्लरी तथा जीवाणु कल्चर जैसे-राइजोबियम पी.एस.बी. कल्चर एजोटो बैक्टरनीली-हरी काई आदि का प्रयोग कर पौध पोषण किया जाए।

निष्कर्ष और भविष्य के अनुसंधान की जरूरत है
खेती की प्रणाली को प्रभावी ढंग से बनाए रखने या मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक स्थायी प्रबंधन रणनीतियों की पहचान महत्वपूर्ण है। कार्बनिक संशोधन विशेषरूप से खाद में गहन कृषि में मिट्टी कार्बनिक सी स्टॉक और मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए स्थायी उपकरण का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। मृदा कार्बनिक सी भंडारण सी इनपुट की मात्रा के साथ-साथ सीबहि र्प्रवाह की मात्रा पर निर्भर करता है मुख्य रूप से मिट्टी में तापमान पानी की उपलब्धता और कार्बनिक पदार्थों की गुणवत्ता द्वारा विनियमित माइक्रोबियल गति विधि को प्रभावित करने वाले सभी कारक हैं।