हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग)
चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
डॉ. शमशेर आलम (पादप रोग विज्ञान)

हरी खाद क्या है
  • फसलों की अच्छी पैदावार बनाये रखने के लिए मिट्टी के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणों का बढ़िया अवस्था में होना बहुत जरूरी है। परन्तु, रासायनिक खादों के लगातार उपयोग, सघन कृषि,गेहूं-धान फसली चक्र एवं अति विश्लेषित खादों के प्रयोग से मिट्टी की सेहत लगातार खराब हो रही है, साथ ही मृदा के दोहन से उसमें उपस्थित पौधों की बढ़ोतरी के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी नष्ट होते जा रहे हैं। ऐसे में हरी खाद किसानों के खेतो के लिए मुनाफे का सौदा है।
  • मृदा गुणों को अच्छी अवस्था में बनाए रखने में जैविक खादें जैसे कि गोबर खाद अहम भूमिका निभाती है, लेकिन पशुओं की घटती आबादी के कारण गोबर खाद की उपलब्धता भी घटती जा रही है। गोबर खाद की तरह हरी खाद भी जैविक खाद देने वाली एक फलीदार फसल है। वैसे भी आमतौर पर देखा गया है कि फसल चक्र में फलीदार और गैर फलीदार फसलों को खेत में बदल-बदल कर बीजने से मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ती है और स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।
  • बिना सड़े गले हरे पौधे को जब मिट्टी की नत्रजन (नाइट्रोजन) या कार्बन जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद कहा जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हरे पदार्थ के जमीन में गलने से जमीन में मौजूद पोषक तत्व घुलनशील हो जाते हैं और अगली फसल की खुराक का हिस्सा बन जाते हैं। हरी खाद के उपयोग से भूमि में न केवल नत्रजन उपलब्ध होती है बल्कि मृदा में कार्बन जीवांश और मित्र जीवों की जनसंख्या में भी बढ़ोतरी होती है, जिस से मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है साथ ही जमीन में शूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है और मृदा उर्वरता भी बेहतर हो जाती है।

हरी खाद कौन सी उगाएं
हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनैइ (सनहेम्प), ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि फसलों का उपयोग किया जा सकता है। इन फसलों की वृद्धि शीघ्र, कम समय में हो जाती है, पत्तियाँ बड़ी वजनदार एवं बहुत संख्या में रहती है, एवं इनकी उर्वरक तथा जल की आवश्यकता कम होती है, जिससे कम लागत में अधिक कार्बनिक पदार्थ प्राप्त हो जाता है। दलहनी फसलों में जड़ों में नाइट्रोजन को वातावरण से मृदा में स्थिर करने वाले जीवाणु पाये जाते हैं।

अधिक वर्षा वाले स्थानों में जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सनई का उपयोग करें, ढैंचा को सूखे की दशा वाले स्थानों में तथा समस्याग्रस्त भूमि में जैसे क्षारीय दशा में उपयोग करें। ग्वार को कम वर्षा वाले स्थानों में रेतीली, कम उपजाऊ भूमि में लगायें। लोबिया को अच्छे जल निकास वाली क्षारीय मृदा में तथा मूंग, उड़द को खरीफ या ग्रीष्म काल में ऐसे भूमि में ले जहाँ जल भराव न होता हो। इससे इनकी फलियों की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है तथा शेष पौधा हरी खाद के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।

हरी खाद वाली फसल के आवश्यक गुण
  • हरी खाद वाली फसल का वानस्पतिक भाग मुलायम, ज्यादा, तेजी से बढ़ने वाला एवं बिना रेशे वाला हो ताकि जमीन में जल्दी से सड़ गल जाए।
  • हरी खाद वाली फसल गहरी जड़ों वाली हो ताकि वह जमीन की निचली सतह से पोषक तत्वों को खींच या सोख सके।
  • हरी खाद वाली फसल की जड़ों में ज्यादा ग्रंथियां हों ताकि वायुमंडलीय नत्रजन (नाइट्रोजन) का ज्यादा से ज्यादा स्थिरीकरण हो सके।
  • हरी खाद वाली फसल उगाने में कम लागत (खर्च)।

हरी खाद उगाने का सही समय
हरी खाद लगभग 45-60 दिनों में खेत में दबाने योग्य हो जाती है, इसलिए इसकी बिजाई अगली फसल लगाने से लगभग 45-60 दिन पहले करें। पंजाब जैसे राज्यों में इसकी बिजाई गेहूं की फसल की कटाई के बाद मई के पहले हफ्ते में की जा सकती है। अन्य राज्यों में सिंचित अवस्था में मानसून के 15-20 दिन पहले या असिंचित अवस्था में मानसून के आने के तुरंत बाद की जा सकती है।

हरी खाद बनाने की विधि
बैंचा और सनई हरी खाद के लिए लगभग 45-50 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। मूंग 25-30 किलो, बरसीम 20-25 किलो और लूसर्न 15-20 किलो प्रति हैक्टेयर डालें। फसल के अच्छे अंकुरण के लिए टैंचा या सनई के बीज को लगभग 8 घंटे तक पानी में भिगो कर रखें। बिजाई से पहले हरी फसल के बीज को राईजोबियम कल्चर (जीवाणु खाद) से टीकाकरण कर लें। बीज को छाया में आधे घंटे तक सूखा कर तुरंत तैयार खेत में बीज दें।

हरी खाद फसल में खाद प्रबंध
हरी खाद वाली फसल में खादें मिट्टी जांच के आधार पर डालें या फिर 20-25 किलोग्राम नत्रजन खाद (40-50 किलो यूरिया), 40-50 किलोग्राम फास्फोर्स खाद (250-300 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट) प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डालें। यदि जमीन में पोटाशियम की कमी है तो हरी खाद वाली फसल में 20-25 किलोग्राम पोटाश खाद (35-40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हैक्टेयर के हिसाब से उपयोग कर सकते हैं।

हरी खाद को खेत में दबाना
45-60 दिनों वाली हरी खाद खेत में दबाने योग्य हो जाती है। धान की रोपाई से एक दिन पहले और मक्का की बिजाई से 10 दिन पहले हरी खाद की फसल को रोटावेटर या डिस्क हैरो की मदद से खेत में दबा या पलट दें। हरी खाद के माध्यम से हम 135-140 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर की बचत कर सकते हैं इसलिए अगली रोपाई या बिजाई वाली फसल में ऊपर बताई गई यूरिया की मात्रा (135-140 किलो) कम डालें। हरी खाद की फसल के बाद यदि बासमती की बिजाई करनी हो तो उसमें नत्रजन खाद जैसे कि यूरिया बिलकुल भी न डालें और अगर धान की फसल की रोपाई करनी हो तो उसमें 125-130 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर ही डालें।

आदर्श हरी खाद फसल के गुण
हरी खाद के मुख्य चार गुण हैं-
  • उगाने में न्यूनतम खर्च,
  • न्यूनतम सिंचाई, कम से कम पादप संरक्षण,
  • खरपतवारों को दबाते हुए जल्दी बढ़त प्राप्त करें तथा विपरीत परिस्थितियों में उगने की क्षमता हो।
  • कम समय में अध्कि मात्रा में वायुमण्डलीय नत्रजन का स्थिरीकरण करती हो।

हरी खाद के लाभ
  • हरी खाद बीजने से अगली फसल में नत्रजन (नाइट्रोजन) खादों जैसे कि यूरिया इत्यादि पर खर्च कम होता है और लागत में भी कमी आती है।
  • हरी खाद से जमीन में कार्बन जीवांश में बढ़ोतरी, मिट्टी भुरभुरी, सरंचना में सुधार, हवा एवं जल संचार में बढ़ोतरी, जल धारण क्षमता बढ़ती है।
  • हरी खाद के उगाने से मृदा (मिट्टी) में सूक्ष्मजीवों की जनसंख्या में बढ़ोतरी होती है, जिससे जमीन में क्रियाशीलता बढ़ती है, साथ ही मिट्टी की उर्वरता शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।
  • रेतली जमीनें जहां आमतौर से लोहे की कमी आ जाती है, उन रेतली जमीनों में हरी खाद की फसल लगाने से लोहे की कमी नहीं आती है।
  • हरी खाद केवल नत्राजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साध्न नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई अन्य आवश्यक पोषक तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
  • हरी खाद के प्रयोग में मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जलधरण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण में भी कमी होती है।
  • हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।
  • हरी खाद में मृदाजनित रोगों में भी कमी आती है।
  • इसके प्रयोग से रसायनिक उर्वरकों में कमी करके भी टिकाऊ खेती कर सकते हैं।