रवींद्र कुमार (मृदा विज्ञान), उदय कुमार (सस्य विज्ञान), निश्चल चंद्राकर (व्याख्याता कृषि)

जलवायु
मूंग की फसल को हर मौसम में लगया जा सकता है। उत्तर भारत मे इसे ग्रीष्म तथा वर्षा ऋतु में उगते हैं दक्षिण भारत मे इसे रबी में लगया जाता है। ऐसे क्षेत्र जंहा 60- 75 से मी वर्षा होती है मूंग की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। फल्ली बनने तथा पकते समय वर्षा होने से दाने सड़ जाते है और उपज घट जाती है । अच्छे अंकुरण और बढ़वार के लिए क्रमशः 25 तथा 20- 40 डिग्री से. तापमान उपयुक्त होता है।

मृदा
मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होता है। इसकी खेती मटियार दोमट से बलुए दोमट मृदा में भी किया जा सकता है। उत्तम जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।

उन्नत किस्म-

किस्म विशेषता

पैरी मूंग- असिंचित में 9-10 क्विंटल/ हे तथा सिंचित अवस्था 12-15 क्विंटल/ हे उपज, भभूतिया तथा ब्लाइट के प्रति निरोधक, पिला मोज़ेक के प्रति सहनशील

प्रज्ञा- असिंचित में 9-10 क्विंटल/ हे तथा सिंचित अवस्था 12-15 क्विंटल/ हे उपज, भभूतिया तथा ब्लाइट के प्रति निरोधक, पिला मोज़ेक के प्रति सहनशील

एच .यू. एम. 12- पिला मोज़ेक के प्रति निरोधक , 60-65 दिन अवधि 10 -12 क्विंटल/ हे उपज

एच .यू. एम. 16- पिला मोज़ेक के प्रति निरोधक , कम अवधि 10 -12क्विंटल/ हे उपज

पूसा विशाल 12- क्विंटल/ हैक्टयर उपज, पीली चित्ती रोग प्रतिरोधी 65-70 दिन अवधि

खेत की तैयारी
प्रारंभ में 2- 3 हल्की जुताई कर खेत के कचरे को साफ कर लेना चाहिए। दीमक के प्रकोप वाले स्थान क्लोरपाइरीफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 किलो ग्राम प्रति हैक्टयर की दर से खेत मे मिला देना चाहिए। ग्रीष्म कालीन फसल लेने के लिए गेंहू को खेत से काट लेने के बाद केवल सिचाई करके मूंग को बोया जाता है।

बुवाई एवम बीज दर
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई का अनुकूल समय 10 मार्च से 10 अप्रैल होता है ग्रीष्मकाल में मूंग की खेती करने से अधिक तापमान तथा कम आर्द्रता के कारण बीमारियों तथा कीटों का प्रकोप कम होता है । परंतु इससे देरी से बुआई करने पर गर्म हवा तथा वर्षा के कारण फल्लियों को नुकसान होता हैं। अप्रैल में शीघ्र पकने वाली प्रजातियों को लगाना उत्तम होता है। खरीफ की फसल को 30 से मी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए ,और पौधे से पौधे की दूरी लगभग 8- 10से सी होनी चाहिए बीज की दर 15- 20 किलो ग्राम प्रति हैक्टयर लगता है। बंसत एवम ग्रीष्म कालीन फसल के लिए 20- 25 किलो ग्राम प्रति हैक्टयर बीज दर लगता है।

बीज उपचार
बीज को कवक नाशी थीरम (1.5-2 ग्राम) प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित किया जाना चाहिए। साथ ही मूंग की अच्छी उपज हेतु राइजोबियम कल्चर (5 ग्राम) प्रति किलो बीज का प्रयोग किया जाना चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन
मृदा परिक्षण के आधार पर 15- 20 किलो ग्राम नाइट्रोजन , 40-50 किलो ग्राम फॉस्फोरस, तथा 15-20 किलो ग्राम पोटाश प्रति हैक्टयर की हिसाब से दिया जाना चाहिए।

जल प्रबंधन
ग्रीष्म एवम बसन्त कालीन मूंग के लिए फसल को 4 से 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई 20- 25 दिन बाद तथा अन्य सिंचाई 12- 15 दिन के अंतराल में किया जाना चाहिए। वर्षा ऋतु में आवश्यक होने पर ही सिंचाई का कार्य किया जाना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन
बोने के बाद 35- 40 दिन के भीतर 1- 2 निराई गुड़ाई का काम किया जाना चाहिए। बुवाई के तुरंत बाद (2-3 दिन) पेंडिमेथालिन 30 ई सी 2.5 मिली प्रति लीटर जल में घोल कर अंकुरण के पूर्व छिड़काव किया जाना चाहिए। क्युजेलोफोप इथाइल 5 प्रतिशत ई सी 1.5 लीटर / हैक्टयर अंकुरण के 15 दिन पश्चात छिड़काव किया जाना चाहिए।

कीट प्रबंधन-

सफेद मक्खी - मेटासिस्टोक्स 25 ई सी की 750 मिली प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।

फल्ली बेधक - प्रोफेनोफास 50 ई सी का 1.5 लीटर प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।

फफोला भृंग- प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करे।

रोग प्रबंधन-

भभूतिया रोग
  • रोग ग्रस्त पौधों के अवशेष को जला देना चाहिए।
  • प्रमानित बीजो का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • कवक नाशी ( बविस्टिन 1 ग्राम ) प्रति लीटर जल में घोल कर छिड़काव किया जाना चाहिए।
  • रोग रोधी किस्म जैसे प्रज्ञा, पैरी मूंग तथा पूसा 105 को उगाना चाहिए।

पर्ण दाग ( लीफ स्पॉट)
  • ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई किया जाना चाहिए।
  • रोग ग्रस्त पौधों के अवशेष को जला देना चाहिए।
  • कवक नाशी ( थीरम 1.5 से 2 ग्राम ) प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार किया जाना चाहिए।
  • मेंकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर जल में घोल कर 8 से 10 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार छिड़काव किया जाना चाहिए।

पीला मोज़ेक
  • सफेद मक्खी की रोकथाम किया जाना चाहिए।
  • मेटासिस्टोक्स 0.1 प्रतिशत का छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर 3 से 4 छिड़काव किया जाना चाहिए।

कटाई और गहाई
खरीफ में जब फल्ली पक कर काली पड़ जाती है तो फसल को कट लेना चाहिए। ग्रीष्म तथा बंसत कालीन फसल में जब 50 प्रतिशत फल्लियाँ पक जाती है तो पहली कटाई कर लेना चाहिए। इसके बाद दूसरी बार फल्ली के पकने पर कटाई किया जाना चाहिए।फल्लियों को बहुत समय तक खेत मे रखे जाने पर वे चटक जाती है तथा दाने बिखर जाते है जिससे उपज काम हो जाता है। फल्ली से बीज को सही समय पर निकल लेना चाहिए।

उपज
वर्षा ऋतु की फसल से प्रति हैक्टयर 10 क्विंटल तथा ग्रीष्म कालीन फसल से 10 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टयर साथ ही 15 से 20 क्विंटल सूखा चारा प्राप्त होता है।