संगीता, हेमंत पाणिग्रही एवं दिप्ती पटेल
फल विज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर, रायपुर (छ.ग.)

सामान्य परिचय
कुल का एक है सल्फी एक ताड़वृक्ष है जो कि एरिकेेसी (ताड़ी) परिवार से संबंध रखता हैं। इसको संस्कृत में मोहकारी तथा अंग्रजी में फिशटेल पाम, टोडीपाम, किटुलपाम, सागोपाम, वाइनपाम और जैगेरीपाम भी कहते हैं। इसे हिन्दी में माड़ी के नाम से भी जाना जाता है, हालांकि इसका वानस्पतिक नाम केरियोटा यूरेन्स हैं। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में हुई हैं। सल्फी का पेड़ दक्षिण तथा पूर्वी भारत के वनों में देखा जा सकता है। यह पेड़ छत्तीसगढ़ के जंगलो में भी पाया जाता है। यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते मछली के पूंछ के समान दिखते है जिसके कारण इसे फिशटेल पाम के नाम से भी जाना जाता हैं। सूखने के बाद इसकी पत्ती को मछली पकडने के डण्डे के रूप में प्रयोग किया जाता है।

वानस्पतिक एवं विस्तार
सल्फी एक सदाबहार, पुष्पधारी, 16-20 मीटर ऊंचा और 30-50 से.मी. ब्यास का, एकल तना वाला पेड़ होता है। इसका तना कुंडलाकार पत्ती के निशान के साथ चिकना होता है। पत्तियां संयुक्त, बाइपिन्नेट, चिकनी, 4-6 मीटर लंबी, 1.5 मीटर चौड़ा पंखे के आकार का लीफलेट जिसमें 5-7 जोडे पिन्नी होती हैं। प्रत्येक पिन्नी 12-20 सेमी लंबी, 7-10 सेमी चौड़ी, शीर्ष कई कटने का निशान लिए हुए होता है। इसके पुष्प क्रम स्पैडिक्स कहलाते है जो कि 4 मीटर लंबा होता है। इसका पुष्पक्रम बहुशाखित व अनेक मादा पुष्पों को लिए हुए होता है। इसके फल बेरी कहलाते है जो कि, डंठलयुक्त, अंडाकार या ग्लोबोज 1-2 बीज वाले होते है। इसके पुष्पक्रम को काटने पर एक मादक रस (सल्फी रस) का स्त्राव होता है। सल्फीनम उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है। जहां तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे कभी नहीं गिरता है, औसत वार्षिक वर्षा 1,500 मिमी या अधिक है और सबसे शुष्क महीने में भी 25 मिमी या अधिक वर्षा होती है, अधिक उपयुक्त होता है। 5 डिग्री सेल्सियस या उससे कम तापमान सल्फी के पेड़ के लिए हानिकारक है। उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि जिनका पी.एच. मान 5-8 के मध्य हो, में यह पेड़ पनपता हैं। सल्फी का पेड़ दक्षिण तथा पूर्वी भारत के वनों, श्रीलंका, मलेशिया और म्यांमार में पाया जाता है। यह पेड़ छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी पाया जाता है।

उपयोग
  • एक सजावटी पेड़ के रूप में बगीचों और पार्कों में लगाई जाती हैं।
  • इसका ताजा रस स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। वहीं बासी होने पर खमीर उठना शुरू हो जाता है और इसके सेवन से नशा देने का काम करता हैं।
  • इसके बीज को खाया जाता है, लेकिन इसकी पेरिकार्प जलन के लिए कुख्यात है, बीज को बाहर निकालने के दौरान सावधानी बरती जाती है। इसका स्वाद थोड़ा कड़वा होता हैं।
  • हाथियों को इस पौधे की पत्ती और गूदा दोनों खिलाया जाता हैं।
  • पत्तियों में मजबूत फाइबर होने से इसका उपयोग टोकरी बनाने में किया जाता हैं।
  • इसके तने के बीच में साबूदाना के समान एक स्टार्च होता है, जिसके गुदे को काटकर धूप में सूखाया जाता है और पाउडर बनाकर खाने में उपयोग किया जाता हैं। यह स्वाद में मीठा होता है।
  • इसके तने को इमारती लकड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • पत्तियों का उपयोग छत बनाने के लिए किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में सल्फी का पेड़
सल्फी का यह पेड़ छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले के लिए विशेष महत्व रखता है। इस वृक्ष से एक मादक रस का स्त्राव होता है जिसे गोंडी बोली में गोरगा कहा जाता है तो बस्तर के ही बास्तानार इलाके में यह आकाश पानी के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके रस को हिलाने से बीयर की तरह झाग निकलता है साथ ही इसके सेवन से नशा भी होता है। इसी कारण से इसे बस्तर बीयर भी कहा जाता है। एक दिन में करीब 20 से 50 लीटर तक मादक रस देने वाले इस पेड़ की बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक पेड़ से साल में छह से सात माह तक मादक रस निकलता है।

बस्तर जिले के आदिवासी अपने आंगन या खेतों की मेड़ पर सल्फी का पेड़ लगाते हैं। सल्फी का पेड़ 40 फीट तक ऊंचा हो सकता है और 9 से 10 साल के बाद सल्फी (रस) देने शुरू करता हैं। इसका ताजा रस स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है तो बासी होने पर खमीर उठना शुरू हो जाता है और इसके सेवन से नशा देने का काम करता हैं। सुबह और शाम, दो बार पेड़ से सल्फी रस निकाला जाता है।

ठंड का मौसम आते ही सल्फी रस का मौसम भी आ जाता है। इसके शौकीन इसके सेवन के लिए गांव-गांव पहुंचने लगते हैं। स्थानीय भाषा में इसे सुर कहा जाता है। ठंड का मौसम आते ही सल्फी पेड़ से रस निकलना शुरू होता है जो 6 से 7 माह तक निकलता रहता है। एक वृक्ष से दिन भर में लगभग 50 लीटर तक सुर निकल जाता है। क्षेत्र के आदिवासी गांवों में ही सल्फी के वृक्ष हैं जहां से सल्फी का रस निकाला जाता है। शहरों से भी बड़ी संख्या में लोग इसका सेवन करने पहुंचते हैं। मांग अधिक होने के चलते सल्फी रस काफी महंगा बिकने लगा है।

सल्फी पेड़ की खासियत उसके रस से आमदानी और शोभा है। सल्फी का रस निकालने वालों का कहना है कि एक एकड़ खेत के बराबर सल्फी का एक पेड़ है। एक सल्फी के पेड़ से रोजाना सुबह चार से पांच सौ रुपए का रस निकलता है तथा एक सीजन में एक पेड़ से करीबन 50 हजार की आमदनी हो जाती है। सल्फी पेड़ लगाकर कमजोर और गरीब किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारी जा सकती है।

सल्फी की खेती
सल्फी की खेती प्राय: एक सजावटी पेड़ के रूप में की जाती है और उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में बगीचों और पार्कों में लगाई जाती है। छोटे होने पर इसका उपयोग इंटीरियर और हाउस प्लांट के रूप में भी किया जाता है।