डॉ. किशन कुमार पटेल
सीनियर रिसर्च फेलो
 केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल

लाख की खेती भारत में सदियों से चली आ रही पुरानी परंपरा है। छत्तीसगढ़ भारत के प्रमुख लाख उत्पादक राज्यों में से एक है, और राज्य सरकार इस क्षेत्र में लाख की खेती को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। छत्तीसगढ राज्य में वर्तमान में 100 करोड़ रुपये के अनुमानित मूल्य के साथ 4,000 टन लाख का उत्पादन होता है। लाख उत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए राज्य सरकार वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। राज्य में लाख उत्पादन बढ़ाकर 10 हजार टन करने और किसानों को 250 करोड़ रुपये की आय देने का लक्ष्य है।

लाख एक लाल रंग की प्राकृतिक राल है जो लैसीफर या केरिया लक्का नामक लाख कीट द्वारा स्रावित किया जाता है। राल को पेड़ों से अलग किया जाता है, सुखाया जाता है और लाख बनाने के लिए संसोधित किया जाता है जिसका उपयोग आभूषण और चमड़ा उद्योगों में किया जाता है।

भारत में लाख कीट की लगभग बीस प्रजातियाँ पायी जाती हैं। जिसमें तीन प्रजातियां यानी केरिया लक्का, केरिया चिनेंसिस और केरिया शारदा मुख्य रूप से लाख के उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है । केरिया लक्का के दो उपभेद यानी रंगीनी और कुसमी लाख उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं । रंगीनी एक वर्ष में दो फसलें पैदा करता है जो कटकी और बैसाखी फसल कहलाती हैं जबकि कुसमी नस्ल दो फसलें देती है जिसे अगहनी और जेठवी फसल के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में कुल राष्ट्रीय उत्पादन में रंगीनी लाख लगभग 41 प्रतिशत और कुसमी लाख लगभग 59 प्रतिशत योगदान है । भारत में लाख उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पलास (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा), बेर (जिजीफस मौरिटियाना) और कुसुम (श्लीचेरा ओलियोसा) वृक्ष का उपयोग व्यावसायिक रूप से लाख की खेती के लिए किया जाता है । रंगीनी लाख के लिए पलास , कुसमी लाख के लिए कुसुम जबकि बेर दोनों प्रकार के लाख की खेती के लिए प्रयोग में लिया जाता है।

पलास को, परसा, अंग्रेजी में बस्टर्ड टीक तथा वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा के नाम से भी जाना जाता है। इस पर लाख की खेती यानि लाख कीट पालन से वृक्षों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। रंगीनी लाख कीट से एक वर्ष में दो फसलें ली जाती हैं जिसे बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और कतकी (वर्षाकालीन) फसल कहते हैं। बैसाखी फसल हेतु लाख कीट या बीहन को वृक्षों पर अक्टूबर माह में तथा कतकी के लिये जून या जुलाई माह में चढ़ाया जाता है । बैसाखी और कतकी फसल बीहन चढ़ाने के बाद क्रमशः 8 और 4 माह में तैयार हो जाती है।

कुसुम (स्लेईचेरा ओलिओसा) या कोसम, सैपिनडेसी कुल के वृक्ष को लाख वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर वृक्ष वनों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में महुये के वृक्ष की भांति होते हैं, वृक्षों के आकार भी इसी प्रकार के होते हैं। फरवरी-मार्च माह में पतझड़ के पश्चात नये पत्तों का रंग काफी आकर्षक एवं लगभग लाल होते हैं। इस वृक्ष पर ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन दोनों मौसम के लाख कीट को पाला जा सकता है। रंगीनी लाख कीट की तुलना में कुसमी लाख कीट नजदीक नजदीक बैठते हैं एवं इनकी लाख क्षमता रंगीनी के मुकाबले अधिक होती है कुसमी लाख से अगहनी (शीतकालीन) और जेठवी (ग्रीष्मकालीन) फसल क्रमशः जून-जुलाई से फरवरी तथा जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक की होती है। सामान्य परिस्थिति में कुसुम वृक्ष पर कुसमी कीट की उत्पादन क्षमता छः माह की फसल में 7-8 गुनी होती है जिसका तात्पर्य है कि एक कि.ग्रा. लाख कीट या बीहनलाख लगाने से 7-8 कि.ग्रा. बीहन का उत्पादन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। कुसुम वृक्ष आकार में काफी विशाल होते हैं। सामान्यतः एक वृक्ष पर 4 से 6 कि.ग्रा. बीहन लाख की आवश्यकता होती है जिससे छः माह पश्चात 30-45 कि.ग्रा. बीनलाख प्राप्त किया जा सकता है।



लाख खेती की प्रक्रिया में निम्नलिखित प्रमुख कदम शामिल हैं:-

मेजबान पेड़ों की खेती: 
लाख की खेती में पहला कदम मेजबान पेड़ों की खेती है। मेजबान पेड़ों को पंक्तियों में लगाया जाता है, और उचित वृद्धि और उपज सुनिश्चित करने के लिए उनका अच्छी तरह से रखरखाव किया जाना चाहिए। पेड़ों को उनके आकृति और माप को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से छंटाई की जाती है ।

लाख कीट का संरोपण: 
वृक्षों की नर्म टहनियों पर शिशु कीट फैलाने की प्रक्रिया ही कीट संचारण कहलाती है। गर्मियों की शुरुआत में लाख कीट मेजबान पेड़ों की शाखाओं पर लगाए जाते हैं। इसके लिये बीहन लाख टहनियों के छोटे टुकड़े, जिनमें प्रत्येक में एक मादा कीट शामिल होती है को दोनों ओर से प्लास्टिक सुतली की सहायता से मेजबान पेड़ों से बांध लेते हैं। । इनोक्यूलेशन प्रक्रिया में मेजबान पेड़ की शाखाओं में टहनियों के कीट पेड़ पर बैठ जाते हैं और रस को खाना शुरू कर देते हैं

लाख की कटाई: 
कीट रालयुक्त पदार्थ का स्राव करते हैं, जो उनके शरीर के चारों ओर एक सुरक्षात्मक परत बनाता है। मेजबान वृक्ष की शाखाओं को खुरच कर रालयुक्त पदार्थ काटा जाता है। बीहनलाख से सम्पूर्ण लाख शिशु कीट निर्गमन के पश्चात बची लाख डंडी ही फुंकी लाख या स्टिकलैक कहलाती है। जैसे ही इसमें से कीट निर्गमन समाप्त हो इसे वृक्षों से उतारकर छील देना चाहिये।

स्टिकलैक का प्रसंस्करण: 
स्टिकलैक को सीडलैक प्राप्त करने के लिए संसाधित किया जाता है, जो लाख उत्पादों के लिए कच्चा माल है। अशुद्धियों और अन्य बाहरी कणों को हटाने के लिए स्टिकलैक को कुचला और छलनी किया जाता है। छानी हुई स्टिकलाक को तब धोया जाता है और बीजलाक प्राप्त करने के लिए सुखाया जाता है।

फसल सुरक्षा के उपाय
प्रारम्भिक अवस्था में बीहनलाख वृक्षों पर चढ़ाने के 28-30 दिन पर इथोफेनप्रॉक्स 0.02 प्रतिशत घोल एवं कारबेन्डाजिम 0.01 प्रतिशत घोल का लाख टहनियों पर छिड़काव करना चाहिए। क्राइसोपा का आक्रमण होने पर भी इसी दवा का 60-62 दिन पर दूसरा छिड़काव करना चाहिए। अधिक तापमान से बचाने हेतु शाम को कभी-कभी वृक्षों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

फसल कटाई तथा पुनः लाख कीट संचारण
फसल कटाई के पश्चात कुसुम का वृक्ष सामान्यतः 18 माह पश्चात पुनः लाख कीट संचारण हेतु तैयार होता है। अतः फसल चक्र के क्रम को बनाये रखने के लिये पेड़ों को खण्ड में बांट कर लाख उत्पादन करना ही उचित है। प्रत्येक वृक्ष का उपयोग निम्न विधि से करते हैं।
  • 18 माह 
  • कीट संचारण 
  • 6 माह 
  • आशिंक फसल 
  • 6 माह 
  • सम्पूर्ण फसल

कुल उपलब्ध वृक्षों को 4-5 खण्डों में आवश्यकतानुसार बांट लेना चाहिए। प्रत्येक खण्ड के वृक्षों को 6 माह के अन्तराल पर काट-छांट करना चाहिए। काट-छांट के 18 माह पश्चात कीट संचारण 20 ग्राम बीहन प्रति मीटर नर्म टहनी की दर से करना चाहिए। कीट संचारण के 6 माह पश्चात आशिंक फसल कटाई करना चाहिए। आशिंक काट-छांट के छः माह पश्चात सम्पूर्ण फसल काट लेना चाहिए एवं इसी समय वृक्षों का काट-छांट भी कर दिया जाना चाहिए। बीहन कटाई तभी करें जैसे ही शिशु कीट निकलना प्रारम्भ हो।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों को लाख की खेती के लिए निःशुल्क ब्याज पर ऋण
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार द्वारा किसानों को लाख की खेती के लिए प्रोत्साहित करने और उनकी आय बढ़ाने के लिए विशेष पहल की जा रही है। किसानों को लाख की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा जिला सहकारी बैंक के माध्यम से लाख फसली ऋण निःशुल्क ब्याज पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। इसके तहत लाख पालने के लिए पौष्टिक वृक्ष कुसुम पर 5000 रुपये प्रति पेड़, बेर पर 900 रुपये और पलाश पर 500 रुपये प्रति पेड़ की ऋण सीमा निर्धारित की गई है। राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वैज्ञानिक तरीके से लाख पालन करने के लिए कांकेर में प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। केंद्र 3 दिनों के संस्थागत प्रशिक्षण के साथ-साथ लाख उत्पादन समूहों में कृषि प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहा है। देश भर में लाख उत्पादन में गिरावट के कारण कुसुमी लाख का बाजार भाव रु. मौजूदा समय में 300 से 900 रुपये प्रति किलो। इससे किसानों में लाख की खेती बढ़ाने का रुझान बढ़ रहा है।

अतः लाख की खेती का छत्तीसगढ़ में ग्रामीण आजीविका, वन संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण भुमिका है। चुनौतियों का समाधान करके और लाख की खेती की संभावनाओं को बढ़ावा देकर, राज्य तथा किसान बंधु एक उज्जवल भविष्य के लिए इस पारंपरिक गतिविधि का उपयोग कर सकते हैं।