चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग),
हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग),
शुभी सिंह (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
परिचय- सहजन एक बहु उपयोगी पेड़ है। सहजन को मोरिंगा के नाम से भी जाना जाता है।
वानस्पतिक नाम- मोरिंगा ओलिफेरा अन्य नाम- सहजना, सुजना, सेंजन , मुनगा और ड्रमस्टिक।
इस पेड़ के सभी भाग फल, फूल, पत्तियों, बीजों में अनेक पोषक तत्व होते हैं। इसलिए इसका उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। इसकी खेती करने से काफी लाभ प्राप्त होता है। सहजन के उत्पादन की खास बात ये हैं कि इसे बंजर जमीन में भी उगाया जा सकता है। वहीं किसी अन्य फसल के साथ भी इसकी खेती की जा सकती है।सहजन में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रट, वसा, प्रोटीन, पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम, मैगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं। सहजन में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं इसमें 90 तरह के मल्टीविटामिन्स, 45 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 35 तरह के दर्द निवारक गुण और 17 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं।छत्तीसगढ़ के किसान मुनगा की खेती करके इसके कच्चे और निर्मित उत्पादों को जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका जैसे बड़े देशों की कंपनियों को निर्यात कर सकते हैं। एक साल के भीतर अकेले विदेशों में करीब 200 टन माल भेजा गया है।
सहजन का पौधा- सामान्यत: सहजन का पौधा 4-6 मीटर ऊंचा होता है तथा 90-100 दिनों में इसमें फूल आता है। जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई करते रहते हैं। पौधे लगाने के लगभग 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है। सहजन पौधा करीब 10 मीटर उंचाई तक का हो सकता है। लेकिन लोग इसे डेढ़-दो मीटर की ऊंचाई से प्रतिवर्ष काट देते हैं ताकि इसके फल-फूल-पत्तियों तक हाथ सरलता से पहुंच सके। इसके कच्ची-हरी फलियां सर्वाधिक उपयोग में लाई जातीं हैं।
सहजन की उन्नत किस्में
सहजन की उन्नत किस्मों में कोयम्बटूर 2, रोहित 1, पी.के.एम 1 और पी.के.एम 2 अच्छी मानी जाती हैं। सहजन की ओडीसी-3 किस्म उत्पादन के नजरिये से बहुत अच्छी है यह किस्म साल में दो बार फल्लियां देने वाली सहजन की किस्म है। इसकी तोड़ाई सामान्यतया मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर में होती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) सहजन सालभर में प्राप्त हो जाती है।
रोहित-1: इससे रोपाई के 6 महीने बाद पैदावार मिलती है। एक पेड़ से एक बार में 10 किलो सहजन पैदा होता है। साल में ऐसी दो उपज मिलती है। ये किस्म 7 साल तक पैदावार दे सकती है। इसका गूदा (pulp) स्वादिष्ट, मुलायम और उच्च गुणवत्ता वाला होता है। इसकी फलियाँ एक से सवा फीट लम्बी होती है।
कोयम्बटूर-2: इस किस्म से रोपाई के करीब साल भर बाद उपज मिलती है, लेकिन फिर साल में दो बार फसल मिलती है। इसका पेड़ 5 साल तक पैदावार दे सकता है। इसमें करीब एक फीट वाली 200 से 375 फलियाँ लगती हैं। इसका रंग गहरा हरा और गुदा स्वादिष्ट होता है।
PKM-1: इसका पेड़ 5 फीट ऊँचा होता है और रोपाई के 8-9 महीने बाद पैदावार देने लगता है। इससे साल में दो बार 200 से 350 फलियाँ प्राप्त होती हैं और ये 5 साल तक पैदावार दे सकता है।
PKM-2: सहजन की ये किस्म अधिक पानी वाली ज़मीन के लिए उपयुक्त है। इसकी फली भी हरे रंग की और बहुत स्वादिष्ट होती है। इसकी लम्बाई दो फीट तक हो सकती है। इसके एक पेड़ में एक बार में 400 फलियाँ लग लगती हैं और ये भी साल में दो बार उपज देती है।
ज्योति-1: इस किस्म को गुजरात के मोरबी ज़िले के चूपनी गाँव के किसान रवि सारदीय ने विकसित किया है। इसके एक पेड़ पर करीब 700 फलियाँ लगती हैं। बाक़ी इससे भी साल में दो बार उपज मिलती है।
सहजन की खेती के लिए भूमि व जलवायु- सहजन की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। जैसे- बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। यह सूखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी में अच्छी तरह बढ़ता है। इसका पौधा गर्म इलाकों में आसानी से फल फूल जाता है। इसको ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती। सर्द इलाकों में इसकी खेती बहुत कम की जाती है क्योंकि इसका पौधा अधिक सर्दी और पाला सहन नहीं कर पाता है। वहीं इसके फूल खिलने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
सहजन की पौध तैयार करना- सहजन की एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 500 से 700 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है। बीज को सीधे तैयार गड्ढ़ो में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढ़ों में लगाया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में पौध एक महीना में लगाने योग्य तैयार हो जाता है। एक महीने के तैयार पौध को पहले से तैयार किए गए गड्ढ़ों में जून से लेकर सितंबर तक रोपण किया जा सकता है। पौधा जब लगभग 75 सेंमी का हो जाए तो पौध के ऊपरी भाग को तोड़ देना चाहिए , इससे बगल से शाखाओं को निकलने में आसानी होती है।
सहजन के पौधे को रोपने का सही तरीका- सहजन की खेती के लिए एक माह के तैयार पौधे को पहले से तैयार किए गए गड्ढों में जुलाई-अगस्त माह तक रोपनी कर देनी चाहिए। सहजन के पौधे का रोपण के लिए खेत को अच्छी तरह खरपतवार मुक्त करने के बाद 2.5 X 2.5 मीटर की दूरी पर 45 X 45 X 45 सेंमी. आकार का गड्ढा बनाया जाना चाहिए। गड्ढे के उपरी मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए। इससे खेत पौध के रोपनी के लिए तैयार हो जाता है। बता देें कि सहजन में बीज और शाखा के टुकड़ों दोनों प्रकार से ही प्रबर्द्धन होता है। अच्छी फलन और साल में दो बार फलन के लिए बीज से प्रबर्द्धन करना जरूरी होता है।
खाद और उर्वरक- रोपनी के तीन महीने के बाद 100 ग्राम यूरिया + 100 ग्राम सुपर फास्फेट + 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालना चाहिए। वहीं इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का दुबारा डालना चाहिए। सहजन पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक सहजन की खेती में किया जा सकता है।
सहजन की सिंचाई- सहजन के अच्छे उत्पादन के लिए समय-समय पर सिंचाई करना फायदेमंद रहता है। यदि गड्ढ़ों में बीज से प्रबर्द्धन किया गया है तो बीज के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापन तक नमी का बना रहना आवश्यक है। फूल लगने के समय खेत ज्यादा सूखा या ज्यादा गीला रहने पर दोनों ही अवस्था में फूल के झडऩे की समस्या होती है। इसलिए इसके पौधों की आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई ही की जानी चाहिए। इसके लिए ड्रिप या फव्वारा सिंचाई का इस्तेमाल किया जा सकता है।
सहजन में रोग और कीट प्रबंधन- सहजन में मुख्य रूप से भुआ पिल्लू नामक कीट का प्रकोप होता है। यह कीट पूरे पौधे की पत्तियों को खा जाता है तथा आसपास में भी फैल जाता है। इसके नियंत्रण डाइक्लोरोवास (नूभान) 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिडक़ाव करना चाहिए।
भूमिगत कीट या दीमक: सहजन के खेत में जिस क्षेत्र में कीट की समस्या हो उस क्षेत्र में इमिडाक्लोप्रिड 600 FS को अनुशंसित मात्रा में पानी में मिलाकर उसका घोल बीजों पर समान रूप से स्प्रे कर उपचारित करें । इसके अलावा अंतिम जुताई के दौरान क्यूनोलफॉस 1.5% चूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में डाल दें. अगर यह नहीं कर पा रहे हैं, तो जैविक फफूंदनाशी बुवेरिया बेसियाना या मेटारिजियम एनिसोपली की एक किलो मात्रा को एक एकड़ खेत में सौ किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें।
रसचूसक कीट: अगर खेत में रसचूसक कीट की समस्या है तो बचाव के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP की 80 ग्राम मात्रा या थियामेंथोक्साम 25% WG की 100 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर दें. यह मात्रा एक एकड़ क्षेत्र के लिए भरपूर है. वही जैविक उपचार के तौर पर बवेरिया बेसियाना पाउडर की 250 ग्राम मात्रा भी प्रति एकड़ की दर से स्प्रे किया जा सकता है।
फल मक्खी: सहजन के फल पर फल मक्खी का भी आक्रमण होने की संभावना होती है.इससे भी फसल को भारी नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए डाइक्लोरोवास 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।
जड़ सड़न रोग: सहजन में जड़ सड़न रोग की समस्या होने पर नियंत्रण के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा द्वारा प्रति किलो की दर से बीज उपचार किया जा सकता है. रासायनिक कार्बेन्डाजिम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर जमीन में तने के पास डालें.
फसल की कटाई और प्राप्त उपज- जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई की जा सकती है। पौधे लगाने के करीब 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है। एक बार लगाने के बाद से 4-5 वर्षों तक इससे फलन लिया जा सकता है। प्रत्येक वर्ष फसल लेने के बाद पौधे को जमीन से एक मीटर छोडक़र काटना जरूरी होता है। दो बार फल देने वाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई सामान्यत: फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) सहजन सालभर में प्राप्त हो जाता है। सहजन के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इससे इसकी बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है। पहले साल के बाद साल में दो बार उत्पादन होता है । इसकी किस्में कम से कम पाँच साल तक उपज देती हैं, लिहाज़ा सहजन की खेती कम लागत में शानदार मुनाफ़ा यानी ‘एक लागत में दस उपज’ देने वाली फसल है।एक एकड़ में 1200 से 1500 किलो मुनगे की पत्ती का उत्पादन करते हैं। 70 से 80 रुपये प्रति किलो की दर से बाजार में बिकती है।
सहजन के उपयोग
1) सहजन के लगभग सभी अंग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि) खाये जाते हैं। इसकी पत्तियों और फली की सब्जी बनती है।कई जगहों पर इसके फूलों को पकाकर खाया जाता है और इनका स्वाद खुम्भी (मशरूम) जैसा बताया जाता है।
2) अनेक देशों में इसकी छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारंपरिक दवाएं बनाई जाती है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है। सहजन औषधीय गुणों से भरपूर होता है।इसके बीजों से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग औषधियों में भी किया जाता है।
3) सहजन उपयोग जल को स्वच्छ करने के लिए तथा हाथ की सफाई के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
4) मुनगे का पाउडर, कैप्शूल, टेबलेट, एनर्जीवार बनाकर बाहर भेज रहे हैं। मुनगे की भी चाय बना रहे हैं।
मुनगा के औषधीय गुण-
1) शरीर में खून की कमी जिसे हम एनीमिया कहते हैं, उसे ठीक करने में मुनगा को कारगर माना गया है। मुनगा महिलाओं का कुपोषण दूर करने में भी कारगर है।
2) मुनगा में दूध की तुलना में चार गुना अधिक कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है।
3) मुनगा का रस सुबह-शाम पीने से उच्च रक्त चाप में लाभ मिलता है। पत्तियों के रस का सेवन करने से मोटापा कम होता है।
4) छाल से बने काढ़ा से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े से राहत और दर्द में आराम होता है। कोमल पत्तों का उपयोग साग बनाकर खाने से कब्ज की समस्या में लाभ होता है।
5) सेंधा नमक और हींग के साथ जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से मिर्गी के रोग में लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होती है।
6) शरीर में बनी पुरानी गांठ या फोड़े में भी मुनगा के जड़ के साथ अजवाइन, हींग और सोंठ मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
7) मुनगा की गोंद को जोड़ों के दर्द व दमा में लाभदायक माना गया है।
क्यो करें मुनगा की खेती-
1) सहजन के पौधों की मुख्य विशेषता यह हैं कि इसके एक बार बुवाई कर देने के बाद यह चार साल तक उपज देता हैं। इसके पौधों को अधिक जमीन की आवश्यकता नहीं होती इसे घर के बगल में भी लगा सकते हैं। इसके पेड़ को न ही ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं और न ही इसका ज्यादा रखरखाव करना पड़ता है।
2) सहजन बहुउपयोगी पौधा हैं । पौधे के सभी भागों का प्रयोग भोजन, दवा औद्योगिक कार्यो आदि में किया जाता हैं । सहजन में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व विटामिन हैं । एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम तथा संतरा की तुलना में सात गुणा विटामिन सी हैं ।
3) भारत वर्ष में कई आयुर्वेदिक कम्पनी मुख्यतः “संजीवन हर्बल” व्यवसायिक रूप से सहजन से दवा बनाकर (पाउडर, कैप्सूल, तेल बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर रहे हैं।
4) दियारा क्षेत्र में सहजन के नये प्रभेदों की खेती को बढ़ावा देकर न सिर्फ स्थानीय व दूर-दराज के बाजारों में सब्जी के रूप में इसका सालों भर बिक्रीकर आमदनी कमाया जा सकता है, बल्कि इसके औषधीय व औद्योगिक गुणों पर ध्यान रखते हुए किसानों के बीच में एक स्थाई दीर्घकालीन आमदनी हेतु सोच विकसित किया जा सकता हैं।
5) सहजन बिना किसी विशेष देखभाल एवं शून्य लागत पर आमदनी देनी वाली फसल हैं। अपने घरों के आसपास अनुपयोगी जमीन पर सहजन के कुछ पौधे लगाकर जहां उन्हें घर के खाने के लिए सब्जी उपलब्ध हो सकेंगी वहीं इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता भी हासिल कर सकते हैं।
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