रवींद्र कुमार (मृदा विज्ञान)
उदय कुमार (सस्य विज्ञान)
तिलहनी फसलें भारतीय आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं है। इसका उत्पादन लगभग 24 मिलियन टन हो रहा है। तिलहन फसल के लिए संतुलित उर्वरक का प्रयोग आवश्यक है, जिसमें नत्राजन, फास्फोरस, पोटाश, गंधक, जिंक व बोरान तत्व अति आवश्यक है।
गत वर्षों में सन्तुलित उर्वरकों के अन्तर्गत केवल नत्राजन, फास्फोरस एवं पोटाश के उपयाेग पर बल दिया गया। सल्फर के उपयोग पर विशेष ध्यान न दिये जाने के कारण मृदा के नमूनों में 40 प्रतिशत गंधक (सल्फर) की कमी पाई गई। आज उपयोग में आ रहे गंधक रहित उर्वरकों जैसे यूरिया, डी.ए.पी., एन.पी.के. तथा म्यूरेट आफ पोटाश के उपयोग से गंधक की कमी निरन्तर बढ रही है।
गंधक की कमी मुख्यतः निम्न कारणों से भूमि के अन्दर हो जाती है, जिसकी तरफ कृषकों का ध्यान नहीं जाता।
1. भूमि में सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग न करना ।
2. लगातार विभिन्न फसलों द्वारा गंधक जमीन में लेते रहने व सल्फर रहित उर्वरकों के प्रयोग में इन तत्वों की कमी हो जाती है।
3. ऐसे उर्वरकों का उपयोग जिसमें बहुत कम या न के बराबर सल्फर का होना।
4. जहाँ अकार्बनिक खादें प्रयोग में नहीं आती है, वहाँ पर भी सल्फर की कमी का होना।
5. हाल ही में तोड़ कर विकसित की गई भूमि या हल्क गठन वाली बलुई मिटटी में, जहाँ निक्षालन द्वारा पोषक तत्वों की हानि हो जाया करती है, गंधक की कमी पाई जा सकती है।
गंधक की कमी के लक्षण-
1. पौधों की पूर्ण रूप से सामान्य बढ़ोत्तरी नहीं हो पाती तथा जड़ों का विकास भी कम होता है।
2. पौधों की उपरी पत्तियों (नयी पंत्तियों )का रंग हल्का फीका व आकार में छोटा हो जाता है, पंत्तियों की धारियों का रंग तो हरा रहता है, परन्तु बीच का भाग पीला हो जाता है। पत्तियां कप के आकार की हो जाती है तथा पत्तियों की निचली सतह एवं तने लाल हो जाते हैं ।
3. पत्तियों के पीलापन की वजह से भोजन पूरा नहीं बन पाता और उत्पादन में कमी आने से तेल का प्रतिशत कम हो जाता है ।
4. जड़ों की वृद्वि कम हो जाती है।
5. तने कड़े हो जाते हैं तथा कभी-कभी ये ज्यादा लम्बे व पतले हो जाते हैं।
6. फसल की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है।
गंधक के कार्य
1. गंधक क्लोरोफिल का अवयव नही है फिर भी यह इसके निर्माण में सहायता करता है तथा पौधे के हरे भाग की अच्छी वृद्वि करता है।
2. यह गंधक युक्त एमिनों अम्लों, सिस्टाइन, सिस्टीन तथा मिथियोनीन तथा प्रोटीन संश्लेषण में आवश्यक होता है।
3. सरसों के पौधों की विशिष्ट गंध निर्माण को यह प्रभावित करती है। तिलहनी फसलों के पोषण में गंधक का विशेष महत्व है क्योंकि बीजों में तेल बनने की प्रक्रिया में इस तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
4. सरसों के तेल में गंधक के यौगिक पाये जाते है। तिलहनी फसलों में तैलीय पदार्थ की मात्रा में वृद्वि करती है।
गंधक की कमी को दूर करने के उपाये-
गंधक की कमी गंधक युक्त निम्नलिखित उर्वरकों के प्रयोग से दूर की जा सकती है-
उर्वरक
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उपलब्ध गंधक(प्रतिशत)
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प्रयोग विधि
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सिंगल सुपर
फास्फेट
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12
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बुवाई के
पूर्व बेसल ड्रेसिंग के रूप में
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पोटैशियम
सल्फेट
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18
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बुवाई के
पूर्व बेसल ड्रेसिंग के रूप में एवं खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में।
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अमेनिमयम
सल्फेट
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24
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भूमि की सतह
पर उचित नमी की दशा में बुवाई में 3-4 सप्ताह पूर्व प्रयोग करना चाहिए। यह उसर
भूमि के लिए ज्यादा उपयुक्त है
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जिप्सम
(शुद्व)
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18
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भूमि की सतह
पर उचित नमी की दशा में बुवाई में 3-4 सप्ताह पूर्व प्रयोग करना चाहिए। यह उसर
भूमि के लिए ज्यादा उपयुक्त है
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पाइराइट
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22
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जस्ते की कमी
वाली भूमि के लिए उपयुक्त ळै। इसका प्रयोग
बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व या खड़ी फसल में पर्णीय छिड़काव
करें।
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जिंक सल्फेट
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18
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जस्ते की कमी
वाली भूमि के लिए उपयुक्त ळै। इसका प्रयोग
बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व या खड़ी फसल में पर्णीय छिड़काव
करें।
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तात्विक गंधक
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95-100
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100 जिस भूमि में वायु का संचार अच्छा हो तथा चिकनी
मिट्टी (भारी भूमि) के लिए विशेष उपयुक्त है। बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व उचित नमी की दशा में प्रयोग करें।
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इन उर्वरकों में गंधक, सल्फेट के रूप में पाया जाता है, जिसका उपयोग पौधे सुगमता पूर्वक कर लेते हैं।
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