हरेन्द्र कुमार (सस्य विज्ञान विभाग)
चन्द्रकला (कृषि अर्थशास्त्र विभाग)
डॉ. शमशेर आलम (पादप रोग विज्ञान)

गुलदाउदी संसार के सबसे प्रसिद्ध एवं शरद ऋतु में फूलने वाले पौधों में से है।गुलदाउदी एक बारहमासी सजावटी फूलों का पौधा है।इसकी लगभग 30 प्रजातियों पाई जाती हैं। मुख्यतः यह एशिया और पूर्वोत्तर यूरोप मे पाया जाता है।इसका मुख्यतः माला बनाने के लिए, खुले फूलों के लिए, वेनी में लगाने, गुलदस्तों में सजाने एवं प्रदर्शनी के लिए तथा बगीचा सजाने में इस्तेमाल करते हैं।जापान में इसे राजशाही का प्रतीक अभी भी माना जाता है।

गुलदाउदी सामान्य रूप से छोटी दिन अवधि का पौधा है।दिन की अवधि अगर 14.5 घंटे से ज्यादा हो जाए तो फूल खिल नहीं पाएगा एवं दिन की अवधि अगर 13.5 घंटेसे बढ़ जाए तो कली का विकास बंद हो जाएगा ।

किस्में

(1) बड़े फूल वाली किस्मेंः- कस्तूरबा गाँधी (सफेद), चन्द्रमा (पीला),महात्मा गाँधी (बैंगनी), मीरा, ताम्र एवं अरुण (लाल)।

(2) छोटे फूल वाली किस्मेंः- शरद मुक्ता, शरद तना का, शरद माला (सफेद), शरद बहार, शरद प्रभा (बैगनी), राखी, अरुण श्रृंगार, सुहाग श्रृंगार (लाल)।

एन. बी. आर.आई., लखनऊ द्वारा विकसित कुछ नई किस्में को विभिन्न मौसमों में नीचे दी गई सूची के अनुसार लगा सकते हैं।इसे लगाने में कोई विशेष खर्च नहीं होता है।

किस्में

लगाने का समय

 खिलने का समय

ज्वाला, ज्योति

जनवरी

 गर्मी

शारदा, शरदशोभा

फरवरी

वर्षा ऋतु

शारदा, शरदशोभा

मार्च

सितम्बर-अक्टूबर

शरदमाला, शरदकांति

जुलाई

अक्टूबर-नवंबर

अन्य सभी किस्में 

जुलाई

 नवंबर-दिसम्बर

वसंतिका, जया

अगस्त

दिसंबर-जनवरी

शालिनी, केस्केड

अगस्त

फरवरी-मार्च


प्रवर्धनः- इसका प्रवर्धन बीज एवं वानस्पतिक दोनों विधियों द्वारा होता है।



कीट व रोग
गुलदाउदी के पौधों पर अनेक प्रकार के कीटपतंग जैसे-एफिड, लालमकड़ी, थ्रिप्स, कैटरपीलर, सफेदमक्खी, लीफमाइनर, निमेटोड इत्यादि का प्रकोप होता है।

रोग व्याधियों में फफूद जनक रोग जैसे-पाउडरी मिल्ड्यू, सेप्टोरिया लीफस्पाट व रूट रॉट प्रमुख हैं बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न रोगो में बैक्टीरियल ब्लाईट प्रमुख है।

गुलदाउदी के पौधों पर विभिन्न प्रकार के विषाणु का प्रकोप भी पाया गया है, इनमें मुख्य तौर पर क्राइसेन्थिम्म वाइरस ‘बी’, टोमैटोस्पर्मों वाइरस, कुकुम्बर मोजैक वाइरस, टोमैटो स्पॉटेडविल्ट वाइरस एवं क्राइसेन्थिम्म स्टंट वाइरस हैं।

रोग रोकथाम

1. पाउडरी मिल्ड्यू की रोकथाम के लिए केराथेन का 0.03 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर समय-समय पर छिड़काव करने से काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

2. सेप्टोरिया लीफस्पाट रोग के नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम रोग युक्त पौधों को नष्ट कर देते हैं और डाईथेन एम- 45 या कैप्टान या बावीस्टीन के 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करते हैं एवं क्यारियों में पानी के जमाव को रोकते हैं।

3. जड़ व तना सड़न रोकथाम के लिए सर्वप्रथम रुटिंग मीडिया कोठी कढंग से एक प्रतिशत फार्माल्डिहाईड के घोल से उपचारित करते हैं और यदि कोई कटिंग रोग से ग्रसित होतो उसे निकाल कर जमीन में गड्ढा खोदकर दबा देते हैं, इसके अलावा अन्य कवक नाशी जैसे कैप्टान या बिनोमिल के 0.2 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल से पौधों की ड्रेचिंग करते हैं।

4. बैक्टीरियल ब्लाईट बीमारी की रोकथाम के लिए कटिंग्स को लगाने के पूर्व मिट्टी का शोधन करना चाहिए और कटिंग्स को जीव प्रति रोधी जैसे-स्ट्रेप्टो माईसिन, कैरामाईसिन के घोल में 4 घण्टे तक डुबाकर रखने पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

विषाणु रोग
गुलदाउदी के पौधे कई प्रकार के विषाणु से ग्रसित हो सकते हैंए विषाणु से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर विभिन्न प्रकार की आकृति एवं धब्बे दिखाई देते हैं विषाणु रोग का फैलाव एफिड, थ्रिप्स, सवंमित मातृ पौध से प्रवर्धन,सवंमित औजार आदि से होता है।

इसकी रोकथाम के लिए एफिड व थ्रिप्स पर नियंत्रण, विषाणु मुक्त पौधों का प्रवर्धन तथा आस-पास उगने वाली घासों की सफाई और स्वच्छ कृषि यंत्रों का प्रयोग अनिवार्य है।

पैदावार
गुलदाउदी के फूलों की उपज पौध रोपण का समय, सघनता और इसके पौधों की पचिंग विधि पर निर्भर करती है।यह देखा गया है, कि पौध से पौध लगभग 14 सेंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति भी 14 सेंटीमीटर का फासला रखा जाए तो सिंगल पीचिंग विधि द्वारा औसतन 150 से 200 पुष्प डण्डियाँ प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र फल में उत्पादित हो सकता है।

भण्डारण
फुल उत्पादक को यदि फुल डण्डियों को भण्डारण न करना पड़े तो बहुत अच्छी बात हैं, भण्डारण की स्थिति पुष्प बाजार में पुष्प की अधिक उपलब्धता, कम खपत और एक ही समय में अधिक से अधिक पुष्प डण्डियों में पुष्पों की खिलने की सम्भावना आदि पर निर्भर करती है।

गुलदाउदी को 0.5 से 1 सेंटीग्रेड तापमान पर 12 से15 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके कर्चित पुष्प इंण्डियों को 1000 पीपीएम सिल्वरनाइट्रेट के घोल में 10 मिनट के लिए डुबो कर या 4 प्रतिशत सुक्रोज के घोल में डालकर इसके जीवन काल को बढ़ाया जा सकता है।