हेमलता (पीएचडी कृषि) आलोक कुमार (एमएसी कृषि), (कीट विज्ञान विभाग)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषक नगर रायपुर
कृषि महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

सोयाबीन एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। यह एक वार्षिक फसल है, इसे व्यापक रूप से खाद्य तेल के लिए उगाया जाता है तथा यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा होते हैं। यह पशु आहार एवं मानव उपभोग के लिए प्रोटीन का एक अच्छा और सस्ता स्त्रोत है। इससे बनने वाले खाद्य पदार्थों में सोया सॉस और सोयाबीन बडी शामिल है। सोयाबीन एक वानस्पतिक तेल हैं। सोयाबीन फेबेसी परिवार का एक सदस्य है एवं वंश ग्लाइसिन के अंतर्गत आता है। इस पौधे की जड़ में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो मिट्टी में नाइट्रोजन की उपलब्धता को बढ़ाते हैं। कुछ जैविक कारण जो सोयाबीन की उत्पादकता कम करते हैं, उनमें से कीट एक महत्वपूर्ण कारक है।

1. स्टेम फ्लाई (मिलेन्ग्रोमाईजा सोजी )

हानिकारक लक्षण- यह कीट पत्तों पर अंडे देता है। अंडे से मैगट निकलने के बाद वह सबसे निकटतम पौध उत्तक पर तथा उसके बाद तने पर छिद्र करता है। यदि संक्रमित तने को खोला जाए तो उसमें टेढ़ी-मेढ़ी लाल सुंरगे, मेंगट, प्यूपा देखे जा सकते है। मेंगट तने की बाहरी परत पर रहते है और जड़ों तक को खा सकते है जिससे पौधा मर जाता है। यह कीट सामान्यतःफूल और फल्ली बनने की अवस्था में आक्रमण करता है

कीट की पहचान- मैगॉट का रंग सफेद होता है और तने के अंदर रहता है। वयस्क मक्खियाँ लगभग 2 मि.मि. लम्बी काली और चमकीली होती हैं।

प्रबंधन

• गर्मी में गहरी जुताई करें।

• मानसून पूर्व बुवाई से बचें तथा उचित फसल रोटेशन का पालन करें।

• क्षतिग्रस्त पौधों के हिस्सों को हटा दें और नष्ट कर दें।

• प्रतिरोधी / सहिष्णु किस्मों का उपयोग करें। जैसे, JS 335, PK 262, NRC 12, NRC 37, MACS 124 और MAUS 2, MAUS 47 ।

• हाइमनोप्टेरान पैरासाइटोइड्स की दो प्रजातियां, अर्थात्, यूरीटोमिडे (एरीटोमा मेलानाग्रोमाइजा नरेन्द्रन) और पेरटोमालिडे (क्लोरोसाइट्स जाति)।

• रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले।

• बुआई से पहले कार्बोफूरान 3 G को 30 किलोग्राम / हे की दर से या फोरेट 10 G का 10 किलोग्राम /हे की दर से भुरकाव करे।

• अंकुरण के दो सप्ताह के बाद डाईमेथोएट 30 प्रतिशत EC 750 मिलीलीटर /हे 600-800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

2. तम्बाकू की इल्ली (स्पोडोप्टेरा लिटुरा )

हानिकारक लक्षण- यह कीट इल्ली अवस्था में अधिक क्षतिदायक है। यह इल्ली फूल आने के पहले आक्रमण करती है। प्रारंभिक अवस्था के इल्लीयां पत्तियों के हरे भाग को खाती हैं और बड़े होने पर पूरी पत्तियाँ खाने लगती है या उन पर बड़े छेद बना देती है। खाई हुई पत्तियाँ सफेद पीले जाल की तरह दिखती है

कीट की पहचान- वयस्क शलभ जिसका रंग मटमैला भुरा होता है। अग्र पंख सुनहरे भूरे रंग के सिरों पर टेढ़ी-मेढ़ी धारियां तथा धब्बे होते हैं। पंख सफेद तथा भुरे किनारे वाले होते हैं। नवजात इल्लीयां मटमैले हरे रंग की होती हैं। पूर्ण विकसित इल्लीयां हरे भूरे रंग या कत्थई रंग की होती हैं। शरीर के प्रत्येक खंड के दोनों तरफ काले तिकोण धब्बे इसकी विशेष पहचान है।

प्रबंधन

• गर्मी में गहरी जुताई करें।

• मानसून पूर्व बुवाई से बचें।

• इष्टतम बीज दर (70-100 किलोग्राम / हेक्टेयर) का उपयोग किया जाना चाहिए।

• संक्रमित पौधे के हिस्सों, अंडों और लार्वा को इकट्ठा करें और नष्ट करें।

• प्रतिरोधी / सहिष्णु किस्मों का उपयोग- JS 81-21, PS 564 और PK 472।

• कीट के प्रारंभिक क्षति में के लिए सेक्स फेरोमोन ट्रैप @ 10 जाल / हेक्टेयर स्थापित करें।

• तंबाकू के कैटरपिलर के लिए जाल फसल के रूप में कैस्टर का उपयोग करें।

• स्पोडोप्टेरा के खिलाफ टेलीनोमस रेमुस @ 50000 / हे की दर से प्रयोग करें।

• स्पोडोप्टेरा के अंडे का परजीवी ट्रोडोग्राममा चिलोनिस और टेट्रास्ट्रिचस का उपयोग करें।

• बेसिलस थुरिंगिएन्सिस जाति कूर्स्टकी, सेरोटाइप एच -39, 3 बी, स्ट्रेन जेड -52 (बीटी) @ 0.75

से 1.0 किलोग्राम / हे के दर से प्रयोग करें।

• क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5 प्रतिशत SC @ 150 मिलीलीटर / हे, इंडोक्साकार्ब 15.8 प्रतिशत EC @ 333 मिलीलीटर / हेक्टेयर, क्विनालफॉस 25 प्रतिशतEC @ 1000 मिलीलीटर / हे के दर से प्रयोग करें।

3. हरी अर्धकुड़लाकार इल्ली (डाईक्रेशिया ओरीचेलशिया, क्राईसोडिएकसीस एक्युटा)

हानिकारक लक्षण- इल्लीयां पत्तियों फूलों एवं फलियों को खाकर क्षति पहुंचाती है। बड़ी इल्लियां, छोटी विकसित हुई फलियों को कुतर कुतर कर खाती है तथा बड़ी फलियों में छेद कर बढ़ते हुए दानों को खाती है। अधिक प्रकोप होने पर कीट सारी पत्तियां खा जाता है और सिर्फ तना रह जाता है। करीब 30 प्रतिशत फलियां अविकसित रह जाती हैं तथा उनमें दाने नहीं भरते।

कीट की पहचान - शलभ के पहले के पंखों पर दो छोटे चमकीले सफेद रंग के धब्बे होते हैं। जो कि अत्यंत पास होने के कारण अंग्रेजी के अंक '8 'के आकार के दिखाई देते हैं। अंडे हल्के पीले रंग के एवं गोल होते हैं। जो कि इल्लियों के निकलने से पहले काले पड़ जाते हैं पूर्ण विकसित इल्लीयां 35 से 40 किलोमीटर लंबी होती है, एवं पश्च भाग मोटा होता है। इल्लियों के पृष्ठ भाग पर एक लंबवत तथा शरीर के दोनों ओर पीली और एक सफेद धारी होती है।

प्रबंधन

• प्रतिरोधी / सहिष्णु किस्मों का उपयोग- NRC 7, NRC 37, PUSA 16, PUSA 20, PUSA 24, JS 93-05, JS 97-52, MAUS 47 और JS 80-21।

• बेसिलस थुरिंगिनेसिस जाति र्क्यूरस्टकी, सेरोटाइप एच -39, 3बी, सेमलोपर कॉम्प्लेक्स के प्रबंधन के लिए स्ट्रेन जेड -52 (बी.टी) @ 0.75 से 1.0 किलोग्राम / हे का उपयोग करें।

• हरा सेमीलूपर के आमतौर पर प्राकृतिक जैविक नियंत्रण जैसे : छोटे ट्राइकोग्रामेटिड ततैया, इचियोमोनिड, ब्रैकोनिड, इलास्मिड, युलोफिड और चेल्सीड ततैया, और मकड़ियों द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है

• बुवाई के समय फोरेट 10G @ 10 किलोग्राम / हे या कार्बोफ्यूरान 3G @ 30 किलोग्राम / हे का मिट्टी का अनुप्रयोग शीघ्र संक्रमण को रोक देगा।

• 0.07 प्रतिशत एंडोसल्फान 35 EC या 0.03 प्रतिशत डाइमेथोएट 30 EC या 0.05 प्रतिशत क्विनालफॉस 25 EC के एक या दो छिड़काव से कम किया जा सकता है ।

4. गर्डल बीटल (ओबेरोप्सिस ब्रेविस)

हानिकारक लक्षण- इल्ली एवं लार्वा अवस्था में ज्यादा क्षति पहुंचाते है।प्राय: कीट का आक्रमण जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त के पहले पखवाड़े में होता है। वयस्क मादा तने या टहनियों पर दो रिंग बनाती है। रिंग में 3 छोटे छेद बनाकर तने के बीच में पीले अंडे देती है। अंडे से इल्ली निकलने पर वह तने को अंदर से खाती है जिससे तना व टहनियां मुरझाकर सूख जाती है।पौधा भूमि से 15 से 20 से.मी. उपर टुट जाता है।

कीट की पहचान- वयस्क भृंग 7 – 10 मि.मि.लम्बा, 2 से 4 मि.मि. चौड़ा तथा मादा नर की अपेछा बड़ी होती है | भृंग का सिर एवं वक्ष नारंगी रंग का होता है |पंख वक्ष से जुड़ा होता है | पंख का रंग गहरा भूरा – काला ,श्रृंगिकाएं काली तथा शरीर से बड़ी होती है | अण्डे पीले रंग के लम्बे गोलाकार होते है , पूर्ण विकसित इल्ली पीले रंग की 19 – 22 मि.मि. लम्बी तथा शारीर खंडो में विभाजित व सिर भूरा रंग का होता है

प्रबंधन

· सहिष्णु किस्मे जैसे JS 97-52, JS 71-05 जैसी किस्मो का उपयोग करना चाहिये।

· बीज दर 70 से 100 किलोग्राम के बीच में होनी चाहिए।

· खेत के चारों और ढेंचा नामक हरी फसल को लगाये जो गर्डल बीटल को अपनी ओर आकर्षित कर सोयाबीन फसलों में होने वाली हानि को कम करने में उपयोगी हो।

· रासायनिक नियंत्रण हेतु ट्राइजोफॉस 40EC @ 625 मिलीलीटर/ हे ।

· बुवाई के समय फोरेट 10G @ 10 किलोग्राम / हे या कार्बोफ्यूरान 3G @ 30 किलोग्राम / हे का मिट्टी का अनुप्रयोग तना मक्खी द्वारा शीघ्र संक्रमण को रोक देगा।

5. सफेद मक्खी (बेमिसिया टैबेकी)

हानिकारक लक्षण- वयस्क और निम्फ दोनों पौधे की कोमल पत्तियों और तने से चूसते हैं यह कीट मधुरस भी उत्सर्जित करता है जिस पर काली फफूंद विकसित हो जाती है। ग्रसित पौधों की पत्तियां कमजोर व पीली पड़ जाती है और पीला शिरा मोजेक रोग को प्रसारित करते हैं। इस बीमारी से पीड़ित पौधों मे फली निर्माण और उपज मे कमी हो जाती है ।

कीट की पहचान- निम्फ का रंग काला होता है, प्यूपा गोल या अंडाकार होता है। प्यूपा में सीमांत रेखाएं होती हैं। वयस्क सफेद पंखों के साथ छोटे, पीले रंग के कीड़े होते हैं जिस पर सफेद मोमीया पाउडर की सतह होती है।

प्रबंधन

• एनकोर्सिया फॉर्मोसा और एर्मोकेरस सफेद मक्खी के प्युपल पैरसिटोइड्स का प्रयोग करें ।

• शुरुआती चरण के लार्वा और चूसने वाले कीट के प्रबंधन के लिए NSKE @5 प्रतिशत का छिड़काव करें ।

• थायमेथोक्साम 30 प्रतिशत FS@ 10 किलोग्राम / हे ।

• 0.01 प्रतिशत एंडोसल्फान 35 EC या 0.05 क्विनालफॉस 25 EC या 0.01 प्रतिशत मैलाथियान का छिड़काव करें।