टॊसन कुमार साहू, एम. एस. सी. (कृषि), सस्य विज्ञान
शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, जगदलपुर (छ.ग.)
डॉ. योगेश कुमार मेश्राम, सह प्राध्यापक, कीट विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

            
लोबिया एक दलहनी पौधा है जिसमें पतली, लम्बी फलियाँ होती हैं। इन फलियों का उपयोग कच्ची अवस्था में सब्जी के रूप में किया जाता है। लोबिया हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद और चारे के लिये उगाई जाती है। लोबिया खरीफ एवं जायद की मुख्य दलहनी चारा फसल है, जो अधिक पौष्टिकता एवं पाचक होने के कारण काफी लोकप्रिय है। गर्मियों में इसे दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ाने के लिये अवश्य खिलाना चाहिये। इसके चारे में औसतन 15-20 प्रतिशत प्रोटीन और सूखे दाने में 20-25 प्रतिशत प्रोटीन होता है। दलहनी फसल होने के कारण यह वायुमण्डलीय नत्रजन को भूमि में संचित करती है जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ती है और आगामी फसल को इस नत्रजन का लाभ मिलता है।

भूमि तैयारी
हल्की एवं अच्छे जल निकास वाली भूमि में अच्छी उपज देती है। खेत तैयार करने के लिये 2-3 जुताई काफी है।

बुवाई का समय
गर्मी वाली फसल के लिये मध्य मार्च से लेकर मई का पहला सप्ताह ।

उन्नत किस्में
छ.ग. चारा बरबट्टी-1, ई. सी.– 4216, बुन्देल लोबिया-1 एवं बुन्देल लोबिया-2,4

बीज की मात्रा
35-40 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर।

बुवाई से पहले बीज उपचार
अच्छी पैदावार के लिए बीजों का उपचार करके ही बोना चाहिए। बीजों को उपचारित कर के बोने से बीजों का अंकुरण उचित रूप से होता है। साथ फसल में होने वालें रोगों की संभवना कम हो जाती है। लोबिया के बीजों को बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम दवा से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लोबिया बीजो को विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से शोधित करें।

पौध अंतरण
दो पंक्तियों के बीच की दूरी 25-30 से.मी., पौधे से पौधे 5 से 8 से.मी. ।

खाद एवं उर्वरक
लोबिया दलहनी फसल होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन से अपनी आवश्यकता पूर्ण कर लेती है। फिर भी शुरूआती अवस्था में नत्रजन की आवश्यकता पूरी करने के लिये 20 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय देना चाहिये। सल्फर की कमी वाली भूमि में (10 पी.पी.एम. से कम) 20 से 40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर प्रयोग किया जाना चाहिये।

सिंचाई
गर्मी में 10-15 दिनों के अन्तराल पर 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण
गर्मी में बोई गई फसल में एक निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के करें। रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण हेतु इमेजाथापायर 0.1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।


कीट प्रबंधन-
रोमिल सूंडी कीट- यह लोबिया का प्रमुख कीट है। यह फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है अगर फसल में इस कीट का प्रकोप दिखे ट्राईजोफॉस 40 ईसी @ 0.8 लीटर/हेक्टेयर या क्विनालफॉस 25 ईसी @ 1.5 लीटर/हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।

लीफ होपर, जैसिड, एफिड- ये कीट पौधे के रस को चूसकर उसे पीला व कमजोर कर देते है। अगर इस कीट का प्रकोप फसल में दिखे तो इसकी रोकथाम के लिए एनएसकेई 5% या इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल 100 मिली/हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
1.जीवाणुज अंगमारी (जैन्थोमोनास कैम्पेस्ट्रिस विग्नीकोला)- रोग संक्रमित बीजों से निकलने वाले पौधों के बीज पत्रों एवं नई पत्तियों पर रोग के लक्षण सर्वप्रथम दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के कारण बीज पत्र लाल रंग के होकर सिकुड़ जाते हैं। नई पत्तियों पर सूखे धब्बे बनते हैं। पौधों की कलिकाएँ नष्ट हो जाती है और बढ़वार रुक जाती है। अन्त में पूरा पौधा सूख जाता है।

नियंत्रण
रोगी पौधो के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
  • जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए।
  • उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए तथा उन्नत कृषि विधियाँ अपनानी चाहिए|
  • खड़ी फसलों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 कि. ग्रा. एक हजार लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

2. लोबिया मोजैक (मोजैक विषाणु)- रोगी पत्तियाँ हल्की पीली हो जाती है। इस रोग में हल्के पीले तथा हरे रंग के दाग भी बनते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और उन पर फफोले सदृश उभार आ जाते हैं । रोगी फलियों के दाने सिकुड़े हुए होते हैं तथा कम बनते हैं।

नियंत्रण
रोगी पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • स्वस्थ तथा अच्छे पौधों से प्राप्त बीज को ही बीज उत्पादन के काम मे लाना चाहिए|
  • इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल 100 मिली/हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।

कटाई
लोबिया की हरे चारे के लिये कटाई 50 प्रतिशत फूल आने से लेकर 50 प्रतिशत फलियां बनने तक पूरी कर लेनी चाहिये। इसके बाद तना सख्त व मोटा हो जाता है और चारे की पौष्टिकता व स्वादिष्टता दोनों ही प्रभावित होती हैं। गर्मियों की फसल 70-75 दिन में कटाई करने के लिये तैयार हो जाती है। फसल कटाई के 10 से 15 दिन पूर्व कीटनाशक फफूंदी नाशक आदि रसायन का छिड़काव ना करें।

उपज
गर्मियों में लगभग 300-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है।