डॉ. प्रफुलचंद बी. रहांगडाले, विषय वस्तु विशेषज्ञ,(पशु उत्पादन एवं प्रबंधन)
डॉ. विजय जैन, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख,
इंजी. विनय नायक, विषय वस्तु विशेषज्ञ,(एफ.एम.पी.)
कृषि विज्ञान केन्द्र, पाहंदा (अ), दुर्ग (छ.ग.)

क्या होता है लम्पी त्वचा रोग
लम्पी स्किन डिजीज को ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ भी कहा जाता है। संक्षिप्त में एलएसडीवी कहा जाता है। यह एक संसर्गजन्य संक्रामक बीमारी है, जो एक पशु से दूसरे पशु को होती है। संक्रमित पशु के संपर्क में स्वस्थ पशु के आने से यह बीमार हो सकती है। यह रोग कैप्रिपॉक्स नामक वायरस के कारण होता है। इस वायरस का संबंध गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस के फैमिली से है। रोग का प्रसार मच्छर के काटने और खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए होती है।

लम्पी त्वचा रोग सन 1929 से 1978 तक दक्षिण एवं पूर्व अफ्रीका में दिखाई देता था। सन 2000 में मध्य पूर्वी देशो में उसके बाद 2013 में तुर्की में पाया गया। अभी कुछ साल पहले यह रोग रशिया ,चायना, बांग्लादेश एवं अभी भारत देश में फैलते दिख रहा है। भारत में अगस्त 2019 में इस रोग का ओड़िशा राज्य में पता चला। वर्तमान में यह रोग गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश और आंध्रप्रदेश में फैला हुआ है ।

लम्पी त्वचा रोग के लक्षणः-
  • रोग से ग्रसित पशु 2 से 4 सप्ताह बाह्य लक्षण नहीं दिखाता।
  • पशुओ में तीव्र बुखार (104 से 105 व फैरेनहाईट) आता है, आँख एवं नांक से स्त्रावन होता है एवं भूख प्यास कम हो जाती है ।
  • मुँह में छाले होने से चारा खाने एवं जुगाली करने में तकलीफ होती है एवं लार टपकती है।
  • आँख ,गर्दन ,पैर ,छाती, पीठ,जननांग के आस पास एवं थन पर 10 से 30 मि.मी. व्यास की गाठो के रूप में प्रकट होती है।
  • पशु के शरीर मे हुए गांठ फुटकर जख्म में तब्दील हो जाती है ।
  • आँखो में संक्रमण के कारण आँखों में कीचड़ आने से पलके एक दुसरे से चिपकने पर पशु देख नहीं पता ।
  • दुग्ध उत्पादन कम या पूरा बंद हो जाता है ।
  • गाभिन पशु ग्रसित होने से गर्भपात होने कि सम्भावना होती है ।
  • फेफड़ो के दाह ;सूजनद्ध के कारण श्वास लेने में तकलीफ होने से पशु की मृत्यु होती है ।
  • पैरो में सूजन एवं कमजोरी आने से पशु लंगड़ाकर चलते है या चल नहीं पाते ।

रोग का प्रसार:-
  • इस रोग का प्रसार मच्छर, किलनी, मक्खी, किट के माध्यम से होता है ।
  • स्वस्थ पशु ग्रसित पशु के संपर्क में आने से रोग का प्रसार होता है ।
  • रोग से ग्रसित पशु के आँख एवं नाक से स्त्रावण में वायरस कि मौजूदगी होने से पानी चारा भी इसके संपर्क में आने से दूषित हो जाते है।
  • जब स्वस्थ पशु रोग ग्रसित पशु के दाना, पानी एवं चारा खाने से वायरस के संपर्क में आने से रोग से पीड़ित होने कि संभावना होती है ।
  • पशुपालक रोग ग्रसित पशु को दाना, पानी, आवास कि साफ सफाई करने के बाद स्वयं को साफ सुथरा करने के बाद ही स्वस्थ पशु को दाना पानी एवं चारा देंवे ताकि रोग का प्रसार न हो पाए ।
  • गर्म एवं आद्र मौसम में कीटो कि बढ़वार तेजी से होती है जिससे रोग का प्रसार भी तेजी से होता है ।
  • ग्रसित नर के वीर्य से मादा एवं नवजात बछड़ो में संक्रमण होने कि संभावना होती है।
  • आवास हवादार रोशनीयुक्त होना चाहिए एवं साफ-सफाई नियमित करते रहना चाहिए।
  • आवास से मच्छर भगाने हेतु नीम के पत्तो को जलाकर धॅुआ करना चाहिए।
  • कपूर, करंज तेल, नीम का तेल, 1 प्रतिशत फार्मलीन, 2 से 3 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइड या 2 प्रतिशत फिनाइल कि फवारणी करनी चाहिये।

उपचार:-
  • बुखार के लक्षण दिखने पर पशुपालक को पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • पशुओ को एनाल्जेसिक, हायर एंटीबायोटिक, एन्टीहिस्टामिनिक, एन्थेलमेंटिक एवं विटामिन्स की दवाईयों का उपयोग करना चाहिए ।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढानें के लिए 500 ग्राम नीम पत्ता 250 ग्राम गुड़ के साथ एवं अच्छा पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए।
  • पशुओ के शरीर पर हुए जख्म को 2 प्रतिशत पोटॅशियम परमॅगनेट/ फिटकरी के घोल से साफ करके बोरोग्लिसरिन लगाना चाहिए ।

नियंत्रण:-
  • पशुओ के शरीर पर नीम तेल एवं करंज तेल लगाने से मच्छर, मक्खी काटते नहीं ।
  • किलनी/चिचड़ी को नियंत्रित करने के लिए 1.25 प्रतिशत डेल्टामेथ्रिन तरल 2 मि.ली. एक लीटर पानी में घोलकर पशु के शरीर पर छिड़काव करे।
  • रोग ग्रसित पशु स्वस्थ पशुओ से करीबन एक महिने तक अलग रखा जाना चाहिए ।
  • चारागाह में पशुओ को चरने एवं तालाब में पानी पिने से रोका जाये ।

सावधानियॉ:- 
  • मक्खी-मच्छर और वायरस का प्रकोप दूर करने के लिये शुरुआती 15 दिनों तक गायों के आस-पास और उनके आवास में नीम की पत्तियों का धुंआ दिया जाना चाहिए।
  • पशुओ का टीकाकरण कर प्रतिबंधात्मक उपचार किया जा सकता है, टीकाकरण चार महीने या उससे अधिक उम्र के गाय-भैंस को लगाया जा सकता है। भेड़़/बकरियों में लगाई जाने वाली गोट पॉक्स टीका को पशु चिकित्सक द्वारा लगाना चाहिए ।
  • कृषि विज्ञान केन्द्र,पाहंदा (अ ),दुर्ग द्वारा लम्पी त्वचा रोग की जानकारी पशुपालको को दी जा रही है जिससे पशुपालक को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके ।
  • रोग ग्रसित एवं स्वस्थ पशुओ को साथ में चारा पानी ना दे एवं एकसाथ चरने के लिए ना छोड़े ।

नुकसान:-
  • दुग्ध उत्पादन कम या पूरा बंद हो जाता है ।
  • गाभिन पशु ग्रसित होने से गर्भपात होने कि सम्भावना होती है ।
  • पशुओ की मृत्यू हो जाती है ।