सत्यनारायण सोनी
पी. एच. डी. कृषि अर्थशास्त्र विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ सरकार छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए गोबर के बाद अब गौमूत्र की खरीदी की शुरुवात 28 जुलाई हरेली तिहार के मौके पर शुरू कर चुकी हैं, प्रथम चरण में प्रत्येक जिले के दो चयनित स्वावलम्बी गौठानों में गौमूत्र की खरीदी की जाएगी। गौठान प्रबंध समिति पशुपालक से गौमूत्र क्रय करने हेतु स्थानीय स्तर पर दर निर्धारित कर सकेगी, कृषि विकास एवं किसान कल्याण और जैव प्रौद्योगिकी विभाग छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से राज्य में गौमूत्र क्रय के लिए न्यूनतम चार (4) रूपये प्रति लीटर प्रस्तावित की गयी हैं, गौमूत्र की खरीदी राज्य में जैविक खेती के प्रयासों को और आगे बढाने में मददगार साबित होगी। इसी को ध्यान में रख कर राज्य में गौमूत्र की खरीदी शुरू की जा रही हैं, इससे पशु पालको को गौमूत्र बेचने से जहाँ एक ओर अतिरिक्त आय होगी, वही दूसरी ओर महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से जीवमृत, गौमूत्र की कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किये जाने से समूहों को रोजगार और आय का एक और जरिया मिलेगा, जीवामृत और गौमूत्र की कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे, जिससे कृषि में लागत कम होगी और विषाक्तता में कमी आएगी।

क्या होता हैं जीवामृत
जीवामृत एक कार्बनिक उर्वरक है, जो जैवभार, प्राकृतिक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों का बहुत अच्छा स्रोत हैं।

सैंपल

प्रतिशत में मात्रा

पीपीएम

N

P

K

pH

Mn

Cu

जीवामृत

1.40

0.104

0.084

4.92

46

51

गुड़

0.84

0.209

0.290

6.37

9.1

28.80

बेसन(फ्लोर)

1.47

0.622

0.910

6.70

12.6

12.40

गाय का गोबर(देशी)

0.70

0.285

0.231

8.08

9.33

3.60

गौमूत्र(देशी)

1.67

0.112

2.544

8.16

6.3

20.00


जीवामृत के प्रकार

1. द्रव अवस्था जीवामृत

2. अर्ध शुष्क जीवामृत

3. शुष्क जीवामृत (घना जीवामृत )


द्रव अवस्था जीवामृत बनाने की विधि और उपयोग

आवश्यक सामग्री– पानी, गाय का गोबर, गौमूत्र, गुड़ और दाल का आटा (चना दाल )

विधि - 10 लीटर पानी, 1 किलोग्राम गाय का गोबर, 1 लीटर गौमूत्र, 200 ग्राम गुड़, 200 ग्राम चना दाल का आटा( बेसन ) और 100 ग्राम मिट्टी (रसायन मुक्त) आदि को एक बड़े टंकी में मिला ले टंकी को छायादार या शेड के नीचे  रख कर जूट बैग से ढँक दे, इस मिश्रण को 5 दिनों तक दिन में कम से कम 2-3 बार, 10-15 मिनट  लकड़ी के डंडे से हिलाये। बनाने की पूरी अवधि के दौरान न्यूनतम तापमान 13.4 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 31.1 डिग्री सेल्सियस तापमान होनी चाहिये

उपयोग विधि
जीवामृत को सिंचाई जल जैसे ड्रिप
, स्प्रिंकलर और नहर सिंचाई जल के माध्यम से दिया जा सकता हैस्प्रे के रूप में देने के लिए उसमे और पानी मिलाकर तरल (फीका) कर लेवे

पहला छिड़काव- बीज बुवाई के एक माह बाद 100 लीटर पानी और 5 लीटर छनित जीवामृत को एकड़ के हिसाब से छिड़काव करे

दुसरा छिड़काव- पहले छिड़काव के 21 दिन बाद 150 लीटर पानी और 10 लीटर जीवामृत प्रति एकड़

तीसरा छिड़काव- दूसरे  छिड़काव के 21 दिन बाद 200 लीटर पानी और 20 लीटर छनित जीवामृत प्रति एकड़

चौथा छिड़काव- जब फल लगना शुरू हो जाये तो 200 लीटर पानी और 6 लीटर खट्टा बटर मिल्क के साथ मिक्स करके एक एकड़ के लिए छिड़काव किया जा सकता है

छिड़काव का समय

गर्मी- सुबह या शाम

ठंडी- किसी भी समय किया जा सकता है

अर्ध शुष्क जीवामृत बनाने की विधि
100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर, 5 लीटर गौमूत्र, 1 किलोग्राम गुड़, 1 किलोग्राम दाल का आटा (बेसन ) सभी को अच्छे से मिलाकर मिक्स करे और आवश्यकता पड़ने पर थोड़ा - सा जल की मात्रा भी मिलायी जा सकती हैं एवंम छोटे-छोटे गोले के रूप बनाकर धूप में सूखा देवे, इन छोटे-छोटे जीवामृत के गोले को ड्रिप के ड्रिपर या स्प्रिंकलर के मुंह पर रखने पर अर्ध शुष्क जीवामृत गोले पर जल के पड़ने से सुक्ष्म जीव पुनः क्रियाशील हो जाते है।

शुष्क जीवामृत (घना जीवामृत) की निर्माण विधि
200 किलोग्राम गाय के गोबर को साफ सुथरे फर्श पर सामान रूप से फैला दे तथा 20 लीटर जीवामृत को सामान रूप से मिलाये और ढेर बनाकर उसे जूट बैग में 48 घंटे के लिए ढँक दे, उसके बाद धूप में सुखाकर 6 महीने तक उपयोग में लाया जा सकता हैं।

उपयोग
बुवाई के समय 200 किलोग्राम घना जीवामृत प्रति एकड़ की दर से या 2 हथेली जीवामृत 1 बीज के साथ डाले, उसके बाद फूल निकलने के समय 50 किलोग्राम घना जीवामृत प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों के 2 कतारों के बीच डाले।

जीवामृत के लाभ
1. जीवामृत एक तरल कार्बनिक उर्वरक हैं, जो मृदा पी. एच. में सुधार करता हैं।

2. यह कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाशियम और अन्य माइक्रो न्यूट्रिएंट का एक अच्छा स्त्रोत हैं।

3. यह मृदा में उपयोगी बैक्टेरिया और सूक्ष्मजीव को बढ़ाता हैं।

4. यह अन्य उर्वरक के साथ भी उपयोग में लाया जा सकता हैं।

5. यह केंचुवा की संख्या को भी बढ़ाता हैं, जो कि मृदा उर्वरता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।

6. यह अन्य उर्वरक में लगने वाली खर्च को कम कर उत्पादन लागत को घटाता हैं।

7. इसकी निर्माण प्रक्रिया बहुत ही आसान हैं।