एक शोध के अनुसार फसलों पर कीट व रोगों के प्रकोप से भारत में प्रतिवर्ष 36 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता हैं। हालांकि कीट-रोग के कारण फसल की उत्पादकता में कमी का सही आंकलन मुश्किल होता हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कीटों की 10 हजार प्रजातियां, 30 हजार तरह के खरपतवार, 1 लाख किस्म के रोग जिसमें वायरस बैक्टेरिया और ऐसे ही अनेक फसल के दुश्मन, 1 हजार किस्म के निमेटोड दुनिया में फसलों को घेरे रहते हैं। लेकिन इनमें से केवल 10 प्रतिशत कीट-रोग ही प्रमुख हैं। जिनकी ठीक-ठाक पहचान हो पाई हैं और ये लगभग 40 प्रतिशत नुकसान फसलों का कर देते हैं। वैसे हरित क्रांति के बाद के दौर में कीट-रोगों से नुकसान का प्रतिशत जरूर घटा हैं, पर नगण्य हैं। विश्व में कीटनाशक की कुल खपत 30 लाख टन से ऊपर हैं। मौद्रिक अर्थ में लगभग 40 अरब डॉलर से अधिक का कृषि रसायन खेतों-बगीचों में खप जाता हैं। भारत में कीट-रोगों से सबसे ज्यादा नुकसान कपास में होता हैं। जो कभी-कभी 50 प्रतिशत तक भी हो जाता हैं, वहीं ये नुकसान धान, मक्का, तिलहनी फसलों में 25 प्रतिशत तक होता हैं।

वर्तमान समय में भारत और विश्व में भी कृषि रसायनों के उपयोग पर दुविधा की स्थिति बन रही हैं। विश्व की बढ़ती आबादी के लिए समुचित खाद्यान्न उत्पादन की आवश्यकता हैं। वहीं विष रहित, रसायन रहित खेती भी करना हैं। विश्व की वर्तमान में 7 अरब की आबादी में हर साल 70 करोड़ की नई जनसंख्या जुड़ती जा रही हैं। 2050 तक ये आंकाड़ा 9 अरब से ऊपर हो जाएगा। भारत जैसे विशाल विविधता प्रधान देश में विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। लगभग 13 करोड़ किसानों में जागरूकता, साक्षरता, कृषि आदानों की शुद्धता, उपलब्धता अनेक ऐसे कारक हैं जो पौध संरक्षण की समस्याओं के मूल में होते हैं। कीट-रोग से भारत में हर साल लगभग 10 से 30 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होता हैं।

प्रशासन स्तर पर कृषि विस्तार तंत्र की गुमशुदगी तकनीक रूप से प्रशिक्षित अमले का अभाव, महंगे कृषि रसायनों के कारण किसानों की रूचि न होने से भी फसलें नष्ट हो जाती हैं। असंतुलित और अविवेकपूर्ण तरीके से कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरण-प्रदूषण पारिस्थिक असंतुलन खाद्य पदार्थ, फल-सब्जी, पशुओं के चारे में अवशेष की मौजूदगी और कीटों में प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ जाती हैं। अंत परिणाम में फसल उत्पादन प्रभावित होता हैं, कृषि निर्यात पर असर होता हैं। पर्यावरण और देश की अर्थव्यवस्था भी चौपट होती हैं। खेती में खरपतवार नियंत्रण, कीट-रोग प्रबंधन, फसल उत्पादन में बढ़ौत्री और अंत परिणाम में आमदनी बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का उपयोग लाभकारी होता हैं। परंतु किसान और कीटनाशक छिड़काव करने वाले न मात्रा, न समय, न उपयुक्त यंत्र के बारे में जानकारी रखते हैं। मैदानी स्तर पर इस प्रकार की जानकारी बड़ी शून्य हैं। बड़ी मात्रा में महंगे कीटनाशक सही जानकारी के अभाव में व्यर्थ जाते हैं। किसानों और छिड़काव करने वाले सुरक्षा साधनों का उपयोग न करने के कारण प्रभावित होते हैं। वर्तमान समय में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कीटनाशकों अनुशंसित मात्रा का ही उपयोग करना चाहिए एवं दुविधा होने पर नजदीकी कृषि अधिकारी से संपर्क करना चाहिए।