मनीष कुमार, वरिष्ठ शोध अध्येता
प्रकाश चन्द्र जेना, वरिष्ठ वैज्ञानिक
हर्षा वाकुडकर, वैज्ञानिक
संदीप गांगिल एवं विनोद कुमार भार्गव, प्रधान वैज्ञानिक
कृषि ऊर्जा एवं शक्ति प्रभाग
भा.कृ.अनु.प.- केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल (म.प्र.)

गेहूं दुनियाभर में उगाया जाने वाला प्रमुख अनाज है। भारत विश्व में गेंहू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मध्यप्रदेश गेंहू की खेती में उत्पादन की दृष्टि से देश में चौथा स्थान रखता है। मध्यप्रदेश में गेंहू का औसत बोया गया क्षेत्र 7.2 मिलियन हेक्टेयर है, जो कि पिछले एक दशक से 138 मिलियन टन उत्पादन के साथ मध्य प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फसल में से एक है। किसी भी फसल के उत्पादन में ऊर्जा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। ऊर्जा के विभिन्न स्त्रोतों का प्रयोग कर उत्पादकता में एक निश्चित स्तर तक वृद्धि की जा सकती है परन्तु फसल उत्पादन में ऊर्जा के स्त्रोतों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किसान भाइयों के लिए बचत की दृष्टि से लाभकारी नहीं है। फसल उत्पादन में कुल ऊर्जा खपत का आंकलन करके यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कौन से स्त्रोत से ऊर्जा का खपत अत्यधिक हो रहा है इस प्रकार विभिन्न संरक्षण तकनीकों का प्रयोग कर ऊर्जा का बचत किया जा सकता है।

फसल उत्पादन में ऊर्जा के स्त्रोत
उन्नीसवी सदी से पहले, फसल उत्पादन में ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सौर ऊर्जा था। अतिरिक्त ऊर्जा के रूप में केवल मानव ऊर्जा व पशु ऊर्जा का प्रयोग किया जाता था। औद्योगिक युग के आगमन के पश्चात् बढती हुई आबादी के लिए पर्याप्त रूप से भोजन मुहैया कराने के लिए फसल उत्पादन में ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों के निवेश की शुरुवात हुई। ऊर्जा के विभिन्न स्त्रोतों का प्रयोग फसल उत्पादन के समय विभिन्न स्तरों में किया जाता है, जैसे- सर्वप्रथम भूमि की तैयारी, बुवाई, सिंचाई, निंदाई-गुढ़ाई एवं पौध-संरक्षण, रासायनिक उर्वरक का उपयोग, फसल की कटाई एवं गहाई तथा आखिर में उपज का परिवहन किया जाता है। इन सभी कार्यों में ऊर्जा के अलग अलग स्त्रोतों का प्रयोग होता है।

स्रोत और उपयोग के आधार पर ऊर्जा को प्रमुख रूप से दो श्रेणी में वर्गीकृत किया गया हैः

अ) प्रत्यक्ष ऊर्जाः मानव, पशु, पेट्रोल, डीजल, विद्युत इत्यादि।

ब) अप्रत्यक्ष ऊर्जाः उर्वरक, बीज, रसायन, कृषि मशीनरी, कम्पोस्ट खाद इत्यादि।

प्रत्यक्ष ऊर्जा वह ऊर्जा है जो फसल उत्पादन में सीधे तौर पर उपयोग किया जाता है अर्थात इसके प्रयोग का परिणाम उसी समय प्राप्त हो जाता है जैसे पेट्रोल या डीजल की मदद से ईंजन का चलना जबकि अप्रत्यक्ष ऊर्जा वे हैं जो विभिन्न रूपांतरण प्रक्रियाओं के पश्चात इसके प्रभाव का पता चलता है, जैसे- रासायनिक उर्वरक के प्रयोग कुछ दिनों के बाद उसका प्रभाव फसलों पर दिखाई देता है।

ऊर्जा का आंकलन
फसल उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले ऊर्जा का आंकलन करने हेतु उनके समतुल्यांकों का प्रयोग किया जाता है।

तालिका 1ः ऊर्जा के स्त्रोत एवं उनके समतुल्यांक (दीपांकर डे एवं साथी 2001, शाहीन एवं साथी 2008, लाल एवं साथी 2016)

क्रमांक

विवरण

इकाई

ऊर्जा समतुल्यांक मेगाजूल प्रति इकाई

.

निवेश

 

 

1.

मानव ऊर्जा

घंटा

1.96

2.

मशीनरी

कि.ग्रा

62.70

3.

विद्युत मोटर

कि.ग्रा

64.80

4.

विधुत मोटर के अलावा अन्य प्राथमिक वाहक

कि.ग्रा

68.40

5.

डीजल

लीटर

56.31

6.

पेट्रोल

लीटर

48.23

7.

विद्युत-शक्ति

किलोवाट-घंटा

11.93

8.

बीज (गेंहू)

कि.ग्रा

14.7

9.

भूसा

कि.ग्रा

12.5

10.

कम्पोस्ट खाद

कि.ग्रा

0.3

11.

नाइट्रोजन

कि.ग्रा

60.6

12.

फास्फोरस

कि.ग्रा

11.1

13.

पोटाश

कि.ग्रा

6.7

14.

रसायन

कि.ग्रा

120

.

पैदावार

 

 

1.

अनाज (गेंहू)

कि.ग्रा

14.7

2.

कृषि अवशेष (भूसा)

कि.ग्रा

12.7


इस अध्ययन हेतु मध्यप्रदेश के विंध्यपठार कृषि जलवायु क्षेत्र के गाँवों के गेंहू का उत्पादन करने वाले 220 किसानों का यादृच्छिक तरीके से चयन करके उनका व्यक्तिगत साक्षात्कार कर जानकारी एकत्र किया गया एवं निम्नलिखित समीकरणों का प्रयोग करके प्रत्येक किसानों से प्राप्त जानकारी अनुसार गेंहू उत्पादन में विभिन्न स्त्रोतों से उर्जा की खपत का आंकलन किया गयाः-

ईंधन ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = h*FC*FEq*RU
  • h = एक बार चलाने में लगा समय (घंटा प्रति हेक्टेयर)
  • FC = ईंधन खपत (लीटर प्रति घंटा)
  • FEq = ईंधन का ऊर्जा समतुल्यांक (मेगाजूल प्रति लीटर)

मानव ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = (मजदूरों की संख्या × समय (घंटा)) / (क्षेत्रफल (हेक्टेयर)) × मानव ऊर्जा समतुल्यांक

विद्युत ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = किलोवाट प्रति घंटा ×विद्युत ऊर्जा समतुल्यांक

मशीन व उपकरण ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = (W*MEq) / UL*h*RU
  • W = मशीन या उपकरण का वजन (कि.ग्रा.)
  • MEq = मशीन या उपकरण का ऊर्जा समतुल्यांक (मेगाजूल प्रति कि.ग्रा.)
  • UL = मशीन या उपकरण का जीवनकाल (घंटा)
  • h = एक बार चलने में लगा समय (घंटा प्रति हेक्टेयर)
  • RU = जितने बार मशीन को चलाया गया उसकी संख्या

उर्वरक, कीटनाशक एवं बीज ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = Rinput*IEq
  • Rinput = उर्वरक या कीटनाशक या बीज की की दर (कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर)
  • IEq = उर्वरक या कीटनाशक या बीज का ऊर्जा समतुल्यांक (मेगाजूल प्रति कि.ग्रा.)

ऊर्जा अनुपात = (उत्पादन से प्राप्त ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर)) / (कुल खपत ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर))

शुद्ध ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) = उत्पादन से प्राप्त ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर) - कुल खपत ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर)

विशिष्ट ऊर्जा, (मेगाजूल प्रति किलोग्राम) = (कुल खपत ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर)) / (मुख्य उत्पाद (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर))

ऊर्जा उत्पादकता, (किलोग्राम प्रति मेगाजूल) = (मुख्य उत्पाद (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर)) / (कुल खपत ऊर्जा (मेगाजूल प्रति हेक्टेयर))


परिणाम
गेंहू उत्पादन में औसत कुल ऊर्जा की खपत 17188 मेगाजूल प्रति हेक्टेयर, ऊर्जा अनुपात 5.69, शुद्ध ऊर्जा 80670 मेगाजूल प्रति हेक्टेयरए विशिष्ट ऊर्जा 4.40, मेगाजूल प्रति किलोग्राम, ऊर्जा उत्पादकता 0.23 किलोग्राम प्रति मेगाजूल प्राप्त हुआ। चित्र.1 फसल उत्पादन के विभिन्न कार्यों में ऊर्जा की खपत को दर्शाता है एवं चित्र. 2 विभिन्न स्त्रोतों से ऊर्जा की खपत को दर्शाता है। रासायनिक उर्वरक को छिड़कने में ऊर्जा की खपत सर्वाधिक 35 प्रतिशत है उसके बाद सिंचाई करने में 25 प्रतिशत, बुवाई में 16 प्रतिशत, कटाई व गहाई में 16 प्रतिशत एवं खेत की तैयारी में 8 प्रतिशत ऊर्जा का खपत हो रहा है। सर्वाधिक ऊर्जा की खपत क्रमशः रसायन उर्वरक से 33 प्रतिशत है तत्पश्चात ईंधन (डीजल) ऊर्जा 25 प्रतिशत, बिजली की ऊर्जा 20 प्रतिशत एवं बीज ऊर्जा 13 प्रतिशत प्राप्त हुए। रासायनिक उर्वरक जैसे- यूरिया, डीएपी.,कृषि उपकरणों को चलाने हेतु ईंधन मुख्य रूप से डीजल, सिंचाई हेतु बिजली व डीजल चालित मोटर पम्प तथा बुवाई में बीज का प्रयोग ऊर्जा खपत के प्रमुख कारक हैं।

ऊर्जा संरक्षण हेतु मशीनरी एवं उनके फायदे-

1. हैप्पी सीडर:- इस यंत्र का प्रयोग कर कृषि अवशेष का प्रबंधन, खेत की जुताई व बुवाई एक साथ एक ही बार में किया जा सकता है।



2. रोटावेटर:- इस यंत्र का प्रयोग कर कुशलतापूर्वक कम समय में फसल अवशेष को मृदा में मिश्रित बोनी हेतु खेत को तैयार किया जा सकता है जिससे समय व ईंधन दोनों की बचत होती है।



3. सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल:- इस यन्त्र का प्रयोग कर बीच आवश्यक दुरी बनाये रखते हुए बीज व उर्वरक का दक्षतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है।


4. लेजर लेवलर:- ट्रेक्टर चालित इस कृषि यन्त्र का प्रयोग कर खेत को एकसमान ढलान प्रदान किया जा सकता है। जिससे दक्षता पूर्वक सिंचाई की जा सकती है।




निष्कर्ष
उक्त परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि सर्वाधिक ऊर्जा की खपत रासायनिक-उर्वरक के प्रयोग से होता है। अनुशंसित दर पर उर्वरक का छिडकाव कर तथा बीज व उर्वरक के दक्षतापूर्वक उपयोग हेतु सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल का प्रयोग कर व रासायनिक उर्वरक के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग कर ऊर्जा के खपत में तुलनात्मक कटौती किया जा सकता है। सटीक व संरक्षण कृषि प्रणाली में उपयोग किये जाने वाले कृषि यंत्रों जैसे- हैप्पी सीडर, रोटो-टिल-ड्रिल, सुपर सीडर का प्रयोग कर ईंधन ऊर्जा की बचत किया जा सकता हैै। पट्टी जुताई यंत्र, ट्रेक्टर या पशु चालित सब सोइलर का प्रयोग कर मृदा की उपयोगिता व फसल की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है। लेजर लेवलर के प्रयोग से खेत के ढलान को सुनिश्चित किया जा सकता है व सिंचाई में लगने वाले ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्त्रोत-बिजली व पानी का बचत कर सकते है।