सरिता एवं प्रीति साहू
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग. )
ईश्वर साहू एवं प्रेमचंद उइके
राजमाता विजयाराजे सिंधिया 
कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर (म.प्र.)

परिचय
आज खाद्यानों की कमी के कारणों का विशलेषण करें तो हमें पता चलेगा कि फसलों में विभिन्न नाशक द्वारा लगभग 1,07,000 करोड़ रूपये के बराबर की वार्षिक हानि होती है। जिसमें अकेले खरपतवारों के कारण 37 प्रतिशत हानि होती है जबकि कीड़ों से 22 प्रतिशत व बीमारियों से 29 प्रतिशत होती है। खरपतवार हमारी भूमि से पानी को भी अवशोषित कर लेते हैं, जिसका जहाँ 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है वहां किसान को ज्यादा पानी देना पड़ता है, इसलिए समय पर खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है।

खरीफ फसलों का भारतीय कृषि व् देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खरीफ फसलों की उत्पादकता 1458 कि.ग्रा./हे. है जो कि देश की रबी फसलों की उत्पादकता (2005 कि.ग्रा./हे.) से काफी पीछे है। खरीफ फसलों में महत्वपूर्ण फसलें धान, मक्का, मूंगफली, तिल, अरहर तथा सोयाबीन इत्यादि है। इन फसलों में धान मुख्य खाद्य फसल है जो कि पूरे देश में उगाई जाती है और विश्व भर में इसकी अग्रणी खपत है। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में उत्पादकता में कमी के अनेक कारण है। इस मौसम में सिंचाई की कमी तथा कभी पानी की अधिकता का फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा मौसम अधिक शुष्कता तथा तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव खरपतवारों, कीड़ों तथा बीमारियों को न्यौता देता है। जिसके कारण फसलों को सुरक्षित रखना किसान के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है।

खरीफ फसलों के मुख्य खरपतवार
खरीफ की फसलों में मुख्यतः तीन प्रकार के खरपतवार पाए जाते हैं-

घास वर्ग के खरपतवार
घास वर्ग खरपतवारों की पत्तियों पतली और लंबी होती हैं तथा इन पत्तियों के अंदर समानांतर धारियां पाई जाती है। ये एक बीजीय पौधे होते है, जैसे-सांवा (इकाईनोक्लोवा कोलोनेम या इकाईनोक्लोवा कुसगेली) कोदों (इल्युसिन इंडिका) मकर (डैक्टाइलोक्टेनियम इजिप्टयम), दूब (साइनोडोन डैक्टाइलोन), वनचरी (सोरगम हैल्पैन्स), गिनिया घास (पानिकम डिकोटोमाईफलोरम)।



चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियां प्रायः चौड़ी होती हैं तथा ये आधिकतर दो बीज पत्रीय पौधे होते हैं-साठी (द्रायन्थेमा पोर्टुलकास्द्रम(, कनकवा (कोमेलिना बैंगालेंसिस), कोंदरा ( डाइजेरा अर्वेसिंम) , भांगद (कैनाबिस सटाइव), कंटीली चौलाई( अमरेंथस स्पाईनोसम), मकोय (सोलेनम नाइग्रम) बड़ी दुधी (युफोर्बिया हिरुटा), हजार दाना (फाईल्थैस निरुरी) जल भंगरा (एक्लिप्टा एल्बा), पुनर्णवा ( बोरहेविया डिफयुजा) और गाजर घास (पार्थीनियम हिस्टोफोरस)।



नरकट खरपतवार
इस समूह के खरपतवारों की पत्त्तियाँ लंबी तथा किनारे वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठें (राइजोम) पायी जाती हैं, जो जड़ों में भोजन को इकट्ठा करके नये पौधों को जन्म देने में सहायता करते हैं जैसे (साइप्रस इरिया, साइप्रस रोंट्ड्स आदि)।



खरपतवारों के प्रकोप से क्षति
खरीफ फसलों में रबी मौसम की फसलों की तुलना में खरपतवारों के प्रकोप से अधिक क्षति होती है। सामान्यतः खरपतवार फसलों को प्राप्त होने वाली 47ः फास्फोरस, 50ः पोटाश, 39ः कैल्शियम और 34 मैग्नीशियम तक का उपयोग कर लेते हैं। इसके साथ-साथ खरपतवार फसलों के लिए नुकसानदायक रोगों और कीटों को भी आश्रय देकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके आलावा कुछ जहरीले खरपतवार जैसे गाजर घास (पार्थनियम) धतुरा, गोखरू, कांटेदार चौलाई आदि न केवल फार्म उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं बल्कि मनुष्यों ओर पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति खतरा उत्पन्न करते हैं।

खरपतवारों का नियंत्रण
किसान खरपतवारों को अपनी फसलों में विभिन्न विधियों जैसे कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों तथा विधि आदि का प्रयोग करके नियंत्रण कर सकते हैं। लेकिन पारम्परिक विधियों के द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण करने पर लागत तथा समय अधिक लगता है। इसीलिए रसायनों के द्वारा खरपतवार जल्दी व प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किये जाते हैं और यह विधि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी है। लेकिन शोध कार्यों द्वारा प्रमाणित कुछ निम्नलिखित सस्य क्रियाएँ भी खरपतवारों के प्रकोप को कम करने में लाभदायक पाई गई है।

मृदा सौरीकरण
इस तकनीक के अंतर्गत विभिन्न मोटाई की पारदर्शी पोलिथाईलिन शीट (50-100 मिलीमाईक्रोन) को समतल नमीयुक्त मिट्टी की ऊपरी सतह पर फसल की बोवाई के पहले मई के महीने में 4-6 सप्ताह तक फैलाकर मिट्टी की ऊपरी सतह का तापमान बाह्य तापमान की तुलना में 8-12 अंश से. ज्यादा किया जाता है। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह में जमा खरपतवारों की बीजों के अंकुरण होने की शक्ति कम या निष्क्रिय हो जाती है। इसके आलावा कुछ हानिकारक कीड़े, सूत्रकृमि अन्य नाशक भी नष्ट हो जाते हैं। यह तकनीक पौधशाला में पौध तैयार करते समय खरपतवारों को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावशाली है।



जीरो टिलेज तकनीक
इस तकनीक में खेत में केवल बोवाई के लिए ही विशेष मशीन (जीरो टिलेज मशीन) द्वारा खाद तथा बीज को डाला जाता है। उससे पहले खेत में कोई क्रिया नहीं की जाती है। यह तकनीक गेहूँ की फसल में प्रयोग की जाती है। तकनीक से किसानों को लगभग 2500 रूपये प्रति हेक्टेयर कम लागत आई है और इससे गुल्ली डंडा नामक खरपतवार की संख्या कम होती है।

धान की चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण
धान की चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 625 ग्राम दवा प्रति हेक्टेयर की दर से धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद करना चाहिए। पतली पत्तियों वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्रेटिलाक्लोर या एनीलोफास 50 प्रतिशत ईसी 1.6 लीटर प्रति हेक्टेयर रोपाई के 3-5 दिन के अंदर दो इंच खड़े पानी में छिड़काव करें। रोपाई के समय यदि दवा डालने से चूक गए हों तो रोपाई के 20-25 दिन के अन्दर नामिनी गोल्ड 200 एमएल दवा 500 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। ध्यान रहे दवा छिड़काव के बाद 4-5 घन्टे वारिश नहीं हो तो बेहतर है। इसलिए मौसम साफ रहे तभी दवा का छिड़काव करना चाहिए।

अरहर में खरपतवार नियंत्रण
खरीफ फसल में अरहर की फसल के सभी खरपतवारों के नियंत्रण के लिए इमीडाथापर 10 एसएल एक लीटर दवा 500 लीटर पानी मे घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 20-25 दिन के अन्दर छिड़काव करें। खरीफ सीजन की अन्य फसलों को खरपतवारों से बचाने के लिए बुआई के बाद अंकुरण के पहले 72 घंटे के अन्दर पेन्डीमेथिलीन 3.3 लीटर दवा 1000 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें। ऐसा करके किसान फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

धान की फसल में चौड़ी पत्ती वाले एवं पतली पत्ती वाले खरपतवार नुकसान पहुचाते है। इनको नष्ट करना जरूरी है। क्योंकि खरपतवारों से जहां फसल की उचित बाढ़वार नहीं हो पाती वहीं तमाम रोग, कीट पैदा हो जाते है। फलस्वरूप उत्पाद की गुणवत्ता खराब हो जाती हैं।

सब्जियों की फसल में खरपतवार नियंत्रण
सब्जियों की खेती की शुरुआत में फसल की वृद्धि धीमे-धीमे होती है। ऐसे समय में यदि खेत में सब्जियों के साथ-साथ खरपतवार भी उगने लगे, तो वे जमीन के पोषक तत्वों, पानी, रोशनी, और जगह को लेकर आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं। खरपतवारों का विकास इतनी तेजी से होता है कि ये आपकी फसल की क्रांतिक अवस्थाओं को प्रभावित करके सब्जी की पैदावार और क्वालिटी तक को गिरा देते हैं।

सब्जियों की फसल में खरपतवार नियंत्रण की 5 विधियां हैं-

1. प्रतिबंधक विधि

2. सस्य वैज्ञानिक विधि

3. यांत्रिक विधि

4. जैविक विधि

5. रासायनिक विधि

1.खरपतवार नियंत्रण की प्रतिबंधक विधि
खरपतवार को फैलने से रोकना ही खरपतवार प्रतिबंध कहलाता है।
  • आमतौर पर खरपतवार के बीज सब्जियों के बीज के साथ उग जाते हैं। खरपतवार को यहीं पर रोकने के लिए, शुरु से ही शुद्ध और प्रमाणित बीजों का प्रयोग करना चाहिए।
  • कई बार खरपतवार के बीज, कृषि काम में इस्तेमाल होने वाले उपकरण के जरिये भी आ जाते हैं। इसलिए, खेती के उपकरणों को सफाई के बाद ही इस्तेमाल करना चाहिए।
  • खेत की सिंचाई नालियों के किनारे पर लगे खरपतवारों को निकाल दें।

2. खरपतवार नियंत्रण की सस्य वैज्ञानिक विधि
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके जमीन को खुली छोड़ दें। इससे खरपतवार के बीज, जड़ें और गाठें सूख जाती हैं।
  • खरपतवार के बीज एक खास मौसम व अनुकूल वातावरण मिलने पर ही पनपते हैं। इसे ध्यान में रखकर उसके आगे-पीछे बुवाई करें।
  • बुवाई या रोपण से पहले या बाद में अंकुरित खरपतवारों को नष्ट करने के लिए उपयुक्त शाकनाशी से खेत का उपचार अवश्य करें।
  • यदि आप साल दर साल एक ही फसल को उगाते रहते हैं तो उसमें खरपतवार के बीज फसल के बीजों के साथ ही आने लगते हैं। सब्जी की फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल चक्र, मिश्र फसल और अंतःफसली जैसी फसल प्रणाली के तरीकों को अपनाना एक कारगर कदम है।
  • मल्चिंग करने से सब्जियों के आसपास के खरपतवारों को उचित नमी व पोषण नहीं मिलने से वे उग नहीं पाते। पुआल या सूखी घास को भी आप पौधों की जड़ के आसपास डालकर घास-पात को रोक सकते हैं।
  • मृदा सौरीकरण में गर्मियों के दौरान प्लास्टिक की पॉलीथीन से खेत की जमीन को कवर कर दिया जाता है। जमीन के ढके हुए भाग में तापमान के बढ़ जाने से खरपतवार के बीजों की अंकुरण क्षमता कमजोर पड़ जाती है।

3. खरपतवार नियंत्रण की यांत्रिक विधि
  • खेत में उगने वाले खरपतवारों को निराई-गुड़ाई करके निकालते रहें।
  • मोल्डबोर्ड की जुताई से खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैं।
  • रोटरी बोईंग से बड़े बीजों वाली फसलों में छोटे बीज वाले खरपतवारों को कम करने में मदद मिलती है।
  • फसलों की कतार में खेती करने से उनकी जड़ों को खरपतवार द्वारा नुकसान पहुंचाने से रोका जा सकता है।
  • जैसे ही खरपतवारों में फूल बनना दिखाई दें, वैसे ही उसे काट दें। इससे उसमें बीज नहीं बन पाएगा।

4. खरपतवार नियंत्रण की जैविक विधि
जैविक तरीके से खरपतवार को कंट्रोल करने के लिए फफूंद का खरपतवारनाशक तरीके से हम उपयोग कर सकते है, जिसमें फफूंद द्रावण बनाकर खरपतवार पर छिंडकाव किया जाना चाहिए।

5. खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि
खरपतवार उगने से पहले मेट्रिब्यूजिन, पेंडिमिथालिन, प्रोपाक्लोर, या इमिजाथापर शाकनाशी का प्रयोग करें।फसल उगने के बाद शाकनाशी ऑक्सीफ्लोरोफेन, लोक्सिलिन, रिमसलफ्यूरॉन, मेट्रिब्यूजिन, या इमिजाथापर का इस्तेमाल करें।

शाकनाशियों के इस्तेमाल के दौरान अपनाई जानी वाली सावधनियां:
  • चिन्हित क्षेत्र में शाकनाशियों पर एक समान छिडकाव करने के लिए स्प्रेयर का व्यास सावधानी से नापें।
  • मात्रा क्षेत्र तथा विभिन्न संरूपणों (फार्मुलेशन) में उपलब्ध सक्रिय संघटकोण के आधार पर खरपतवारनाशियों का आकलन करके एक निशिचत तौल बना लें।
  • खेत में स्प्रे करने के लगभग आधा घंटे से पहले तुले हुए शाकनाशियों को पानी में अच्छी तरह मिला लें।
  • शाकनाशियों के स्प्रे के लिए फ्लैट फेन लोजन का इस्तेमाल करें।,
  • गैर चयनित शाकनाशियों के इस्तेमाल करते समय स्प्रेयर के नोजल पर सुरक्षात्मक शील्ड लगाकर ही पौधों पर छिडकाव करें।
  • खरपतवारनाशी का छिडकाव बराबर मात्रा में करें, कहीं कम या ज्यादा न हो।
  • रसायनों का प्रयोग हर सात अदल-बदल कर करें।
  • खरपतवारनाशी रसायनों को बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  • तेज हवाओं के चलने पर छिडकाव न करें क्योंकि शाकनाशी हवाओं के साथ उड़कर समीप की अन्य संवेदी फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • वर्षा की संभावना होने पर शाकनाशियों का छिडकाव न करें।
  • मिश्रित फसलों में रसायनों का चयन फसलों के मुताबिक ही करें।
  • खरपतवारनाशी का इस्तेमाल रेत, खाद व मिट्टी में मिलाकर न करें।
  • हवाओं के प्रतिकूल रुख की ओर कभी भी छिडकाव न करें।
  • शाकनाशियों का इस्तेमाल करते समय रक्षात्मक वस्त्र (बूट, दस्ताने, धूप का चश्मा, मास्क आदि) इस्तेमाल करें।
  • छिडकाव पूरा हो जाने के बाद खाली डिब्बे को या तो जमीन में दवा दें या जला दें।
  • छिडकाव करने के बाद अपने हाथ तथा अन्य अंगों को साबुन से अच्छी तरह से धो दें।