इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भाभा अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई के सहयोग से विकसित सुगंधित धान की नवीन म्यूटेन्ट किस्में अब किसानों के खेतों में भी महेकेंगी । कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सुगंधित धान की पांच नवीन म्यूटेन्ट किस्मों - ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेन्ट-1, विक्रम टी.सी.आर., छत्तीसगढ़ जवांफूल म्यूटेन्ट, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेन्ट तथा ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी के बीज प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए प्रगतिशील किसानों को वितरित किये। कृषि उत्पादन आयुक्त ने किसानों से आव्हान किया कि वे सुगंधित धान के उत्पादन के लिए आगे आएं, राज्य सरकार सुगंधित धान के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हर संभव मदद करेगी। उन्होंने छत्तीसगढ़ की परंपरागत सुगंधित धान की प्रजातियों की म्यूटेशन ब्रीडिंग के द्वारा नवीन उननत म्यूटेन्ट किस्में विकसित करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। इस अवसर पर भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर के संचालक डॉ. तपन कुमार घंटी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में धान की हजारों परंपरागत किस्में पाई जाती है जो अपनी सुगंध, औषधीय गुणों तथा अन्य विशिष्ट गुणों के लिए मशहूर हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा धान की ऐसी 23 हजार 250 परंपरागत किस्मों के जनन द्रव्य का संग्रहण किया गया है। धान की परंपरागत सुगंधित किस्मों की दीर्घ अवधि, अधिक ऊंचाई तथा कम उपक की वजह से धीरे-धीरे किसानों ने इनकी खेती करना कम कर दिया है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के सहयोग से म्यूटेशन ब्रीडिंग के द्वारा सुगंधित धान की परंपरागत किस्मों की अवधि और ऊंचाई कम करने तथा उपज बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीछले 7 वर्षाें से संचालित इस परियोजना के तहत उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। परमाणु विकरण तकनीक के द्वारा प्रदेश की परंपरागत किस्मों - दुबराज, सफरी-17, विष्णुभोग, जवांफूल और सोनागाठी की नवीन म्यूटेन्ट किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जिनकी अवधि और ऊंचाई में उल्लेखनीय कमी तथा उपज में आशातीत वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि जल्द ही धान की अन्य परंपरागत किस्मों के म्यूटेन्ट विकसित कर लिये जाएंगे। डॉ. चंदेल ने कहा कि अनुसंधान स्तर पर इन प्रजातियों के ट्रायल पूरे कर लिए गए हैं और अब इनके लोकव्यापीकरण हेतु किसानों के खेतों पर उत्पादन किया जा रहा है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष एवं परियोजना प्रभारी डॉ. दीपक शर्मा ने परियोजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ की 300 परंपरागत किस्मों पर म्यूटेशन ब्रीडिंग का कार्य चल रहा है। कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय कुलसचिव श्री जी.के. निर्माम, संचालक अनुसंधान डॉ. पी.के. चन्द्राकर, निदेशक विस्तार डॉ. आर.के. बाजपेयी, भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर के विभागाध्यक्ष डॉ. पी.के. मुखर्जी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी डॉ. बी.के. दास सहित विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं विभिन्न जिलों से आए प्रगतिशील कृषक उपस्थित थे।
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