सेलोरीटा एवं वेद प्रकाश राज
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंन्द्र, अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गहराई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पडी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है। विगत एक दशक से खेती में मशीनोें का प्रयोग बढा है। साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रयोग बहुत तेजी से बढा है, जिसकी वजह से बहुत मात्रा में फसल अवशेष खेत में रह जाता है। कुछ किसान इसे जलाकर प्रबंधन करते है। क्योकि अलग से अवशेष प्रबंधन में धन, मजदूर, समय आदि की आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से भी वे ऐसा करते है। परंतु इस तरह फसल अवशेष प्रबंधन, खेत की मिट्टी, वातावरण व मनुष्य एवं पशुओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही रहता है।
फसल अवशेष का सही उपयोग
परिस्थितिकी में पोषक तत्वों का पुन चक्र एक आवश्यक घटक है। यदि किसान उपलब्ध फसल अवशेषों को जलाने की बजाए उनको वापस भूमि में मिला दिया जाए तो निम्न लाभ प्राप्त होते हैं -
1. मृदा के भौतिक गुणों में सुधार-
फसल अवशेषों को मिलाने से मृदा की परत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढने से मृदा सतह की कठोरता कम होती है तथा जल धारण क्षमता एवं मृदा में वायु संचरण में वृध्दि होती है।
2. मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार-
फसल अवशेषों को मृदा में मिलाने से मृदा के रसायनिक गुण जैसे उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा, मृदा की विद्युत चालकता एवं मृदा पीएच में सुधार होता है।
3. कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृध्दि-
कार्बनिक पदार्थ ही एकमात्र ऐसा स्त्रोत है जिसके द्वारा मृदा में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्व फसलों को उपलब्ध हो पाते है तथा कम्बाइन द्वारा कटाई किए गए प्रक्षेत्र उत्पादित अनाज की तुलना में लगभग 1.29 गुना अन्य फसल अवशेष होते है। ये खेत में सडकर मृदा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृध्दि करते है।
4. पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृध्दि-
अवशेषों में लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्वों के साथ 0.45 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा पाई जाती है, जो कि एक प्रमुख पोषक तत्व है।
5. उत्पादकता में वृध्दि-
फसल अवशेषों को मृदा में मिलाने पर आने वाली फसलों की उत्पादकता में भी काफी मात्रा में वृध्दि होती है। अत मृदा स्वास्थ्य पर्यावरण एचं फसल उत्पादकता को देखते हुए फसल अवशेषों को जलाने की बजाए भूमि में मिला देने से काफी लाभ होता है।
फसल अवशेष जलाने से मृदा में होने वाली हॉनिया
- भूमि की उर्वरा शक्ति में ह्रास, अवशेष जलाने से नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर आदि का नुकसान होता है।
- भूमि की संरचना में क्षति होना जिससे पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानांतरण न हो पाना तथा अत्यधिक जल का निकासी न हो पाना।
- भूमि के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास।
- फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाता है।
- जमीन की उपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते है।
मानव स्वास्थ्य पर पडने वाले दुष्प्रभाव
- अस्थमा और दमा जैसी सांस से सम्बन्धित बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पडता है।
- सल्फर डाईआक्साइड व नाइट्रोजन के कारण ऑखों में जलन।
- चर्म रोग की समस्या बढ जाती है।
- फसल अवशेष जलाने की वजह से कई गंभीर बिमारी हो सकती है।
पर्यावरण सम्बन्धी दुष्परिणाम
- यह वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंगं) को बढाता है।
- फसल अवशेष के साथ साथ खेत के किनारे के पेडों को भी आग सें नुकसान पहुचता है।
- ओजोन परत का ह्रास
- अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन से नुकसान।
- ग्रीन हाउस गैसों का अधिक मात्रा में उत्सर्जन से वैश्विक तपन को बढावा।
0 Comments