रूबल कम्बोज, विनोद कुमार एवं दीपक कुमार
सूत्रकृमि विज्ञान विभाग,
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
परिचय
पादप सूत्रकृमि (निमाटोड) छोटे एवं अति सूक्ष्म, गोल शरीर वाले, खंड रहित धागे की तरह अकशेरुकी, सांप जैसे जीव होते है जोकि अधिकतर मिट्टी में रहकर पोधो की जड़ों को नुकसान पहुँचाते है। अधिकतर सूत्रकृमि रंग विहीन होते हैं। हम इन्हें इनके सूक्ष्म आकार एवं अर्ध पारदर्शी शरीर के कारण सामान्यत नग्न आँखों से नहीं देख सकते जोकि सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही दिखाई देते है I नर व् मादा अक्सर अलग - अलग होते है और ये लैंगिक प्रजनन करते है। आम आदमी के लिए खेतों में सूत्रकृमि का पता लगाना काफी मुश्किल है I खेतों को सूत्रकृमियों से पूर्णंत: मुक्त करना व्यावहारिक रूप से असभ्भव होता है। सभी पादप रोगजनक सूत्रकृमि अविकल्पी परजीवी होते हैं I अनेक पादप - परजीवी सूत्रकृमि जातियॉ केवल कुछ फसलों के पौधों में ही सक्रमण कर सकती हैं I किसी सूत्रकृमि का एक पादप परजीवी के रूप में महत्व विषेशकर इस बात पर निर्भर करता है की उसकी संख्या सीमा फसल के पौधों की आर्थिक हानि पहुंचाने के स्तर तक बढ़ पाती है अथवा नहीं । सूत्रकृमि प्रबंधन की विधि को चुनने का विकल्प सूत्रकृमि प्रजाति के जीव विज्ञान, पोषक फसलों, इसका प्रति एकड़ मूल्य, इनके फैलने का तरीका, इस्तेमाल की जा रही सवर्धन क्रियाए तथा पारिस्थतिकीय सबधों पर निर्भर करता है। रासायनिक साधनों द्वारा सूत्रकृमियों का प्रबंधन आर्थिक दृष्टि से अव्यावहारिक होता है। अत: खाधान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान समुदाय को अपने संसाधनों के अनुरूप कृषि के तरीकों में बदलाव करने चाहिए।
विभिन्न कर्षण क्रियाऐ अनेक सूत्रकृमियों से उत्पन्न पादप रोगों की तीव्रता एवं उनके विकास को प्रभावित करती है। सूत्रकृमियों द्वारा उत्पन्न पादप रोगों से होने वाली हानि को फसल चक्र अपना कर रोकना एक सरल, प्रभावशाली, लाभकारी एवं वातावरणीय प्रदूषण की दृष्टि से उपयोगी उपाय है। लगातार एक ही फसल को बोने पर सूत्रकृमि की संख्या में वृद्धि, रसायनो के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास, विभन्न कीटों एवं रोगों का प्रकोप, पोषक तत्वों की कमी आदि कई समस्यों के स्थाई निदान के लिए फसल प्रणाली में उचित फसल चक्र का होना आवश्यक हैं जिसे साधारण भाषा में जैविक खेती की तरफ एक कदम कहा जा सकता है। फसल चक्र जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसे बिना लागत के आदान की संज्ञा दी जा सकती है। फसल चक्र का मुख्य उद्देश्य न्यूनतम संख्या को वृद्धि के उस स्तर तक रोकना है जिसमे फसल को सतोषजनक ढंग से उगाया जा सकता है। फसल चक्र अपनाने के लिऐ खेत की मिटटी में मौजूद सूत्रकृमि प्रजातियों की प्रकार, इसके जैविक स्वरूप, पोषक पादप रेंज, जीव विज्ञान, जीवन निर्वाह, संख्या और इनकी प्रतिरोधी अथवा ग्रहणशील फसलों के विषय में जानकारी होना अति आवश्यक होता है।
अत: एक खेत में निरंतर प्रतिवर्ष एक ही रोगग्राही या ग्रहणशील परपोषी फसल उगाने से मिटटी में सूत्रकृमि की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि होती है। यदि सूत्रकृमि ग्रस्त खेत में 2 या 3 वर्षो तक परपोषी फसलों के स्थान पर अ-परपोषी फसलों को उगाया जाये, तो उपयुक्त परपोषी पौधों के अभाव में उस खेत से सूत्रकृमि का भूख के कारण एवम जनन क्रिया न होने से स्वत: ही विनाश हो जाता हैं।
फसल चक्र?
दो या दो से अधिक फसलों को किसी निश्चित क्षेत्र पर निश्चित समय में निश्चित क्रम में हेर-फेर कर बोना जिससे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि एवं उर्वरा शक्ति बरकरार रहे एवं अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके, उसे फसल चक्र कहते है। यह फसल चक्र एक वर्ष या अधिक अवधि के लिए हो सकता है। फसल विविधीकरण समय की मांग है तथा किसानों की जोखिम कम करने एवं टिकाऊ उत्पादन के लिए बहुत आवश्यक है। यह रोगग्राही या ग्रहणशील परपोषी फसलों को अपरपोषी फसलों से साथ हेर - फेर कर बोने की क्रिया ही फसल चक्र कहलाती है I जब अ-परपोषी अथवा प्रतिरोधी फसलों को खेत में एक निश्चित अवधि तक उगाने के बाद रोगग्राही फसल को उस खेत में उगाया जाता हैं, तब यह आशा की जाती हैं की सूत्रकृमि आहार न मिलने के कारण भूखें मर जायेगेI ऐसी फसलें जो की सूत्रकृमियों के लिए अनुकूल पोषक पादप है, उनमें सूत्रकृमि की संख्या नियंत्रित करने के लिए गैर पोषक फसलों के साथ चक्र में उगाया जाना चाहिए।
|
चित्र 1. बेल वाली सब्जियों
के खेत में जड़-गांठ सूत्रकृमि के प्रबंधन में सरसों का फसल चक्र
| चित्र 2. गेहूं के खेत में सिस्ट सूत्रकृमि के प्रबंधन में लहसुन का फसल चक्र
|
|
सूत्रकृमि प्रबंधन की मात्रा फसल चक्र में उगाई गई फसलों की प्रतिरोधता के स्तर तथा संवेदनशील फसलों के बीच गैर पोषक पौधों या प्रतिरोधी फसलों के रोपण के वर्षो की संख्या पर निर्भर करती है।
सारणी: सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए मुख्य फसल चक्र
फसल
|
सूत्रकृमि
|
प्रबंधन
|
गेंहू व जौ
|
गेंहू व जौ का सिस्ट सूत्रकृमि
|
मोल्या रोग का सूत्रकृमि गेंहू व जौ की
फसलों पर ही लगता है इसलिए इस बीमारी वाले खेत में ये फसलें न लेकर दूसरी फसलें जैसे
कि सरसों, मेथी, सब्जी वाली फसलें आदि उगाएं I
|
सब्जियाँ
|
जड़ - गांठ सूत्रकृमि
|
ऐसी फसलें जिन पर यह सूत्रकृमि नहीं पनप
सकता (ग्वार, प्याज, लहसुन, अनाज वाली फसलें आदि) उन्हें सब्जियों के फसल चक्र में
उगाएं I
|
अरहर, मूंग, उड़द, ग्वार, सोयाबीन
|
अरहर सिस्ट सूत्रकृमि
|
प्रभावित खेत में दलहनी (पोषक) फसलें
न उगाकर दूसरी फसलों का फसल चक्र अपनाएं I
|
धान
|
धान का जड़-गांठ सूत्रकृमि
|
सूत्रकृमि से प्रभावित खेत में धान व
सुग्राही फसलें न बोएं
I कपास व ग्वार उगाएं I
|
फसल चक्र अपनाकर होने वाले फायदे:
1. भूमि की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा में सुधार होता है। दलहनी फसलों के कारण मृदा की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा ठीक बनी रहती है तथा जैव पदार्थ की कमी नहीं होती हैं।
2. कुछ फसलों की जड़ों से निकलने वाले रिसाव हानिकारक मृदा जीवों जैसे सूत्रकृमि व अन्य सूक्ष्म जीवों की वृद्धि आगामी फसल के लिए व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है। जो आगामी फसल के लिए लाभदायक होते है।
3. भूमि को मृदा जनित रोगों व् कीटों के प्रकोप से से बचने में मदद मिलती है।
4. खरपतवार के नियंत्रण में सहायता मिलती है तथा फसल उत्पादन में लागत कम आती है।
5. दूसरी फसल के लिए खेत तैयारी का प्रयाप्त समय मिल जाता है तथा फसलों की पैदावार/उपज में वृद्धि होती है।
0 Comments