डॉ. धर्म प्रकाश श्रीवास्तव, पीएचडी स्कॉलर
 ANDUAT कुमारगंज अयोध्या
डॉ. नरेशचंद्रा, सहायक प्राध्यापक 
पशु विकृति विज्ञान, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कृषि विश्वविध्यालय मेरट

सूकर पालन
अपने देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए केवल अनाज का उत्पादन बढ़ाना ही आवश्यक नहीं है। पशुपालन में लगे लोगों का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि कुछ ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे- मांस, दूध, अंडे, मछली इत्यादि के उत्पादन बढ़ाए जाए जिससे अनाज के उत्पादन पर का बोझ हल्का हो सके। जहाँ सिंचाई के अभाव में एक ही फसल खेत से लाना संभव है, वैसी हालत में साल के अधिक दिनों में किसान बिना रोजगार के बैठे रहते है। यह बेकार का बैठना गरीबी का एक मुख्य कारण है इस समय का सदुपयोग हमलोग पशुपालन के माध्यम से कर सकते हैं। अत: पशुपालन ही गरीबी दूर करने में सफल हो सकती है। लोग मुर्गी, सुअर, गाय, भैंस एवं बकरी आवश्य पलते हैं लेकिन उन्न्त नस्ल तथा उसके सुधरे हुए पालने के तरीके का अभाव में पूरा फायदा नहीं हो पाता है। सुअर पालन जो कि आदिवासियों के जीवन का एक मुख्य अंग है, रोजगार के रूप में करने से इससे अधिक लाभ हो सकता है।

सूअर पालन के लिये मूल प्रबन्ध रूप
भारत वर्ष में सुअरों की जनसंख्या लगभग 90 लाख है और उनके माँस निर्मित वस्तुओं से प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ रूपये की आमदनी होती है। यह बहुत जल्दी बढ़ने वाला जानवर है और एक मादा द्वारा पति व्यात में 10 से 12 बच्चे उत्पन्न होते है। अच्छे प्रबन्ध व अच्छी दशा में रखने पर ये जानवर 1 वर्ष में 2 बार बच्चे देने में भी समर्थ है। इस जानवर के कुल शारीरिक वजन में से 60-80% तक मॉंस होता है। एक साधारण सा किसान थोड़ी सी पूँजी लगाकर व उनके रहने भर का प्रबन्ध करके परन्तु भोजन की पूर्ण सुविधा देने या अच्छा प्रबन्ध व थोड़े से परिश्रम व समय को लगाकार एक अच्छे व्यवसाय की ही तरह खासा लाभ प्राप्त कर सकता है।

सूकर पालन लाभदायक व्यवसाय
मांस का उत्पादन थोड़े समय में अधिक बढ़ने में सुअर का स्थान सर्वप्रथम आता है। इस दृष्टि से सुअर पालन का व्यवसाय अत्यंत लाभदायक है। एक किलोग्राम मांस बनाने में जहाँ गाय, बैल आदि मवेशी को 10-20 किलोग्राम खाना देना पड़ता है, वहां सुअर को 4-5 किलोग्राम भोजन की ही आवश्यकता होती है।

मादा सुअर प्रति 6 महीने में बच्चा दे सकती है और उसकी देखभाल अच्छी ढंग से करने पर 10-12 बच्चे लिए जा सकते हैं। दो माह के बाद से वे माँ का दूध पीना बंद कर देते हैं और इन्हें अच्छा भोजन मिलने पर 6 महीने में 50-60 किलोग्राम तक वजन के हो जाते हैं। दो वर्ष में इनका वजन 150-200 किलोग्राम तक जाता है। आहारशास्त्र की दृष्टि से सोचने पर सुअर के मांस द्वारा हमें बहुत ही आवश्यक एवं अत्यधिक प्रोटीन की मात्रा प्राप्त होती है। अन्य पशुओं की अपेक्षा सुअर घटिया किस्म के खाद्य पदार्थ जैसे- सड़े हुएफल, अनाज, रसोई घर की जूठन सामग्री, फार्म से प्राप्त पदार्थ, मांस, कारखानों से प्राप्त अनुपयोगी पदार्थ इत्यादि को यह भली-भांति उपयोग लेने की क्षमता रखता है। अच्छे बड़े सुअर साल में करीब 1 टन खाद दे सकते हैं। इसके बाल ब्रश बनाने के काम आते है। इन लाभों से हम विदेशी मुद्रा में भी बचत कर सकते हैं।

सूकर की मुख्य प्रजातियाँ
सूअरों की जातियाँ का चुनाव करते वक्त कुछ आवश्यक बातों को ध्यान में रखना चाहिये। जैसे कि बच्चे का पैदा होने पर वजन, दूध छुड़ाने के पश्चात वजन, प्रतिदिन वजन में बढ़ोत्तरी व भोजन को माँस के रूप में उचित वापसी देने वाली जाति ही चुनना चाहिए यह समस्या गण इन कुछ जातियाँ में पाये जाते है। देश में सूकर की काफी प्रजातियाँ हैं।
लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हल्का सफेद यॉर्कशायर, हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।

सफेद यॉर्कशायर सूकर
यह प्रजाति भारत में बहुत अधिक पाई जाती है। हालांकि यह एक विदेशी नस्ल है। इसका रंग सफेद और कहीं-कहीं पर काले धब्बे भी होते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं जबकि चेहरा थोड़ा खड़ा होता है। प्रजनन के मामले में ये बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन 300-400 किग्रा. और मादा सुअर का वजन 230-320 किग्रा के आसपास होता है।

लैंडरेस सूकर
इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर सुअर 270-360 किग्रा वजनी होता है, जबकि मादा 200 से 320 किग्रा. वजनी होती है।

हैम्पशायर सूकर
इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किग्रा. वजनी होती है।

घुंघरू सूकर
इस प्रजाति के सूकर का पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है।सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं। इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं

सुअरों के लिए आवास की व्यवस्था
आवास आधुनिक ढंग से बनाए जायें ताकि साफ सुथरे तथा हवादार हो। भिन्न- भिन्न उम्र के सुअर के लिए अलग – अलग कमरा होना चाहिए। ये इस प्रकार हैं –

क) प्रसूति सुअर आवास
यह कमरा साधारणत: 10 फीट लम्बा और 8 फीट चौड़ा होना चाहिए तथा इस कमरे से लगे इसके दुगुनी क्षेत्रफल का एक खुला स्थान होना चाहिए। बच्चे साधारणत: दो महीने तक माँ के साथ रहते हैं। करीब 4 सप्ताह तक वे माँ के दूध पर रहते हैं। इस की पश्चात वे थोड़ा खाना आरंभ कर देते हैं। अत: एक माह बाद उन्हें बच्चों के लिए बनाया गया इस बात ध्यान रखना चाहिए। ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो सके। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुअरी बच्चे के खाना को न सके। इस तरह कमरे के कोने को तार के छड़ से घेर कर आसानी से बनाया जाता है। जाड़े के दिनों में गर्मी की व्यवस्था बच्चों केलिए आवश्यक है। प्रसूति सुअरी के गृह में दिवार के चारों ओर दिवार से 9 इंच अलग तथा जमीन से 9 इंच ऊपर एक लोहे या काठ की 3 इंच से 4 इंच मोटी बल्ली की रूफ बनी होती है, जिसे गार्ड रेल कहते हैं। छोटे-छोटे सुअर बचे अपनी माँ के शरीर से दब कर अक्सर मरते हैं, जिसके बचाव के लिए यह गार्ड रेल आवश्यक है।

ख) गाभिन सुअरी के लिए आवास
इन घरों ने वैसी सुअरी को रखना चाहिए, जो पाल खा चुकी हो। अन्य सुअरी के बीच रहने से आपस में लड़ने या अन्य कारणों से गाभिन सुअरी को चोट पहुँचने की आंशका रहती है जिससे उनके गर्भ को नुकसान हो सकता है। प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी को आसानी से रखा जा सकता है। प्रत्येक गाभिन सुअरी को बैठने या सोने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए। रहने के कमरे में ही उसके खाने पीने के लिए नाद होना चाहिए तथा उस कमरे से लेगें उसके घूमने के लिए एक खुला स्थान होना चाहिए।

ग) विसूखी सुअरी के लिए आवास
जो सुअरी पाल नहीं खाई हो या कूंआरी सुअरी को ऐसे मकान में रखा जाना चाहिए। प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी तक रखी जा सकती है। गाभिन सुअरी घर के समान ही इसमें भी खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए स्थान होना चाहिए। प्रत्येक सुअरी के सोने या बैठने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए।

घ) नर सुअर के लिए आवास
नर सुअर जो प्रजनन के काम आता है उन्हें सुअरी से अलग कमरे में रखना चाहिए। प्रत्येक कमरे में केवल एक नर सुअर रखा जाना चाहिए। एक से ज्यादा एक साथ रहने आपस में लड़ने लगते हैं एवं दूसरों का खाना खाने की कोशिश करते हैं नर सुअरों के लिए 10 फीट। रहने के कमरे में X 8 फीट स्थान देना चाहिए। रहने के कमरे में खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए कमरे से लगा खुला स्थान जोना चाहिए। ऐसे नाद का माप 6 X4 X3 X4’ होना चाहिए। ऐसा नाद उपर्युक्त सभी प्रकार के घरों में होना लाभप्रद होगा।

ङ) बढ़ रहे बच्चों के लिए आवास
दो माह के बाद साधारण बच्चे माँ से अलग कर दिए जाते हैं एवं अलग कर पाले जाते हैं। 4 माह के उम्र में नर एवं मादा बच्चों को अलग –अलग कर दिया जाता है। एक उम्र के बच्चों को एक साथ रखना अच्छा होता है। ऐसा करने से बच्चे को समान रूप से आहार मिलता है एवं समान रूप बढ़ते हैं। प्रत्येक बच्चे के लिए औसतन 3X4’ स्थान होना चाहिए तथा रात में उन्हें सावधानी में कमरे में बंद कर देना चाहिए।

सूकरों के लिए घर बनाते समय सर्दी, गर्मी, वर्षा नमी व सूखे आदि से बचाव का ध्यान रखना चाहिए। सूकरों के घर के साथ ही बाड़े भी बनाने चाहिए। ताकि सूकर बाड़े में घूम-फिर सकें। बाड़े में कुछ छायादार वृक्ष भी होने चाहिए, जिससे अधिक गर्मी के मौसम में सूकर वृक्षों की छाया में आराम कर सकें। सूकरों के घर की छत ढलवां होनी चाहिए और घर में रोशनी व पानी के लिए खुला बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुरली गोलाई में हो ताकि राशन आसानी से खाया जा सके। सूकरों के घर का फर्श समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए। मादा सूकर वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं, सामान्यतया मादा 112 से 116 दिन गर्भावस्था में रहती हैं इस अवस्था में तो विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ब्याने से एक महीना पूर्व मादा को प्रतिदिन तीन किलोग्राम खुराक दी जाती है, ताकि मादा की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा किया जा सके।